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Sunday 15 January 2023

गजल

 गजल


पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे।

दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे।


वोट देके कोन ला जनता जितावैं।

झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे।


खात हावँय घूम घुमके अरदली मन।

सिर नँवइयाँ के मुड़ी ला फोड़ होगे।


बड़ सरल हावय बुराई के डहर हा।

सत लगिस मुश्किल कहूँ ता छोड़ होगे।


मौत के मुँह मा समागे देवता मन।

काल के असुरन तिरन अब तोड़ होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 18 September 2021

गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"



*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*



*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*



*2212 2212 2212*




अब बता


बिन काम के पद नाम होगे अब बता।

पैसा पहुँच मा काम होगे अब बता।।1


दू टेम के रोटी कहाँ होइस नशीब।

गारत पछीना शाम होगे अब बता।2


केंवट के शबरी के पुछइया कोन हे।

रावण के थेभा राम होगे अब बता।3


कहिथें चिन्हाथे खून के रिस्ता नता।

बिरवा ले बड़का खाम होगे अब बता।4


नइ मोल मिल पावत हे असली सोन के।

लोहा सहज नीलाम होगे अब बता।5


फल फूल तारिक चीज बस अउ आदमी।

का खास सब तो आम होगे अब बता।6


धन जोर के करबोंन का रटते हवन।

कोठी फुटिस गोदाम होगे अब बता।7



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

Thursday 29 April 2021

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भुखाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला झमझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



Sunday 14 February 2021

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


वो लगाय नेकी पौधा अभी नान नान बाढ़े

दुनो हाथ ले लुटाये वो धरम के मान बाढ़े।



कहूँ  हा सकेले सोना कहूँ हा सकेले माया

तहूँ खोल पाठशाला उहाँ रोज ज्ञान बाढ़े।


भरे हे जगत मा दाता ये भरात हे तिजोरी 

कभू तँय लुटा मया ला इही प्रेम दान बाढ़े।


ये सुनार के हे सोना,ये किसान के हे खेती

हे मिलाय ताम पानी तभे भार धान बाढ़े।


भुजा मा करे भरोसा  लगे रात दिन लगन हे

सहे लाभ हानि सब मा तभे तो दुकान बाढ़े।


का बिगाड़े छोट नीयत रहे साथ जब विधाता

कती ले खिंचाय साड़ी कती ले ये थान बाढ़े।


ये ख़िरत हे खेती बारी, दिखे नइ तको चरागन

हवे नान छोट डोली भूमि के लगान बाढ़े।


आशा देशमुख

गजल


 *बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


लमा हाथ सत धरम बर तभे जग मा नाँव मिलही।

लगा पेड़ ला सुमत के तभे सुख के छाँव मिलही।


लगे भाँय भाँय अँगना गली खेत खार सुन्ना।

सजे मोर आँख सपना कहाँ अब वो गाँव मिलही।


चले तोर जोर जाँगर हवे तब तलक पुछाड़ी।

धरे आय तन बुढ़ापा तहाँ हाँव हाँव मिलही।


बिछे जाल छल कपट के इहाँ देख ताक चलबे।

रचे कूटनीति के अब घरों घर मा ठाँव मिलही।


बचा आज तैं गजानंद अपन आप ला इहाँ जी।

कहे जेन ला अपन तैं सदा ओखरे से घाँव मिलही। 


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


नवा दग‌ बिहान आही गियाँ थोरकिन सबर कर।

करू रात हा पहाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


भले हे अभी रिसाये सखा तोर वो मयारू,

मया गीत गुनगुनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


कुआँ आस के खने हस सही ज्ञान जल निकलही,

बढ़े प्यास ला बुझाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


कला जानथस चिखे के कहे गोठ ला सबन‌ के,

कसा मीठ कस जनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


ले के हार के सहारा बड़े जीत पा जबे गा,

ते हा सत्य बाट राही गियाँ थोरकिन सबर कर।


सरी दिन जपन‌ करे हस हवे हरि अबड़ दयालू,

नठे काम वो बनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


रखे राह गा भरोसा मनी हे मितान‌ सब के,

वो हा दोसती निभाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


नवाँ माथ गुरु चरण मा सुखी तोर द्वार होही।

फँसे बीच नाँव जिनगी कृपा गुरु पा पार होही।


रखे दूर गुरु बुराई जला जोत ज्ञान हिरदे।

खड़े ढाल बन बिपत मा जिहाँ सच पुकार होही।


सहीं राह गुरु दिखाये मिले बड़ नसीब ले वो।

सजे मन घड़ा बरोबर पड़े हाथ गुरु कुम्हार होही।


पढ़ा पाठ एकता गुरु कहे संग संग रइहौ।

रहे मान शिष्य गुरु के इही बात सार होही।


जपे नाम ला गजानंद सदा अपन तो गुरु के।

मिले तोर ज्ञान के जनमो जनम उधार होही।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...