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Monday 2 December 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढी गजल-खैरझिटिया

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222 221 1222

जे काम बिगाड़े वो डिहवार बने नोहे।
माखूर चरस मद के बैपार बने नोहे।1

ब काम बने होथे,तन मन रथे जब बढ़िया,
सब जीव जगत बर जर,बोखार बने नोहे।2

चकचक ले उघर जाथे,फोकट के दिखावा सब।
बिन दुःख दरद के आँसू धार बने नोहे।3।

जस नाँव ह भारत के चारों मुड़ा मा बगरै।
जे शान ल  बोरे वो सरकार बने नोहे।4।

सब जीव जिनावर ला झन मार कभू खावव।
ना मास बने नोहे ना गार बने नोहे।5।

जादा खुशी ला देवव अउ आस गिरा देवव।
वो जीत बने नोहे ना हार बने नोहे।6।

दुरिहाय अँजोरी हा सब दुःख दरद ला जी।
घर गाँव गली घपटे अँधियार बने नोहे।7

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...