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Saturday 18 September 2021

गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"



*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*



*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*



*2212 2212 2212*




अब बता


बिन काम के पद नाम होगे अब बता।

पैसा पहुँच मा काम होगे अब बता।।1


दू टेम के रोटी कहाँ होइस नशीब।

गारत पछीना शाम होगे अब बता।2


केंवट के शबरी के पुछइया कोन हे।

रावण के थेभा राम होगे अब बता।3


कहिथें चिन्हाथे खून के रिस्ता नता।

बिरवा ले बड़का खाम होगे अब बता।4


नइ मोल मिल पावत हे असली सोन के।

लोहा सहज नीलाम होगे अब बता।5


फल फूल तारिक चीज बस अउ आदमी।

का खास सब तो आम होगे अब बता।6


धन जोर के करबोंन का रटते हवन।

कोठी फुटिस गोदाम होगे अब बता।7



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

Thursday 29 April 2021

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भुखाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला झमझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



Sunday 14 February 2021

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


वो लगाय नेकी पौधा अभी नान नान बाढ़े

दुनो हाथ ले लुटाये वो धरम के मान बाढ़े।



कहूँ  हा सकेले सोना कहूँ हा सकेले माया

तहूँ खोल पाठशाला उहाँ रोज ज्ञान बाढ़े।


भरे हे जगत मा दाता ये भरात हे तिजोरी 

कभू तँय लुटा मया ला इही प्रेम दान बाढ़े।


ये सुनार के हे सोना,ये किसान के हे खेती

हे मिलाय ताम पानी तभे भार धान बाढ़े।


भुजा मा करे भरोसा  लगे रात दिन लगन हे

सहे लाभ हानि सब मा तभे तो दुकान बाढ़े।


का बिगाड़े छोट नीयत रहे साथ जब विधाता

कती ले खिंचाय साड़ी कती ले ये थान बाढ़े।


ये ख़िरत हे खेती बारी, दिखे नइ तको चरागन

हवे नान छोट डोली भूमि के लगान बाढ़े।


आशा देशमुख

गजल


 *बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


लमा हाथ सत धरम बर तभे जग मा नाँव मिलही।

लगा पेड़ ला सुमत के तभे सुख के छाँव मिलही।


लगे भाँय भाँय अँगना गली खेत खार सुन्ना।

सजे मोर आँख सपना कहाँ अब वो गाँव मिलही।


चले तोर जोर जाँगर हवे तब तलक पुछाड़ी।

धरे आय तन बुढ़ापा तहाँ हाँव हाँव मिलही।


बिछे जाल छल कपट के इहाँ देख ताक चलबे।

रचे कूटनीति के अब घरों घर मा ठाँव मिलही।


बचा आज तैं गजानंद अपन आप ला इहाँ जी।

कहे जेन ला अपन तैं सदा ओखरे से घाँव मिलही। 


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


नवा दग‌ बिहान आही गियाँ थोरकिन सबर कर।

करू रात हा पहाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


भले हे अभी रिसाये सखा तोर वो मयारू,

मया गीत गुनगुनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


कुआँ आस के खने हस सही ज्ञान जल निकलही,

बढ़े प्यास ला बुझाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


कला जानथस चिखे के कहे गोठ ला सबन‌ के,

कसा मीठ कस जनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


ले के हार के सहारा बड़े जीत पा जबे गा,

ते हा सत्य बाट राही गियाँ थोरकिन सबर कर।


सरी दिन जपन‌ करे हस हवे हरि अबड़ दयालू,

नठे काम वो बनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


रखे राह गा भरोसा मनी हे मितान‌ सब के,

वो हा दोसती निभाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


नवाँ माथ गुरु चरण मा सुखी तोर द्वार होही।

फँसे बीच नाँव जिनगी कृपा गुरु पा पार होही।


रखे दूर गुरु बुराई जला जोत ज्ञान हिरदे।

खड़े ढाल बन बिपत मा जिहाँ सच पुकार होही।


सहीं राह गुरु दिखाये मिले बड़ नसीब ले वो।

सजे मन घड़ा बरोबर पड़े हाथ गुरु कुम्हार होही।


पढ़ा पाठ एकता गुरु कहे संग संग रइहौ।

रहे मान शिष्य गुरु के इही बात सार होही।


जपे नाम ला गजानंद सदा अपन तो गुरु के।

मिले तोर ज्ञान के जनमो जनम उधार होही।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

मुकम्मल ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 मुकम्मल ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


हवे पार वो लगइया तें श्री राम के भजन‌ कर।

इही नाँव हे तरइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


जे हा हाँस के गइस बन हरे बर सबन‌ के पीरा,

ददा के कहे मनइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


नदी के करार पहुँचिस चढ़े नाव‌ के बहाना,

गुहा भाग के बनइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


हवे एक जात मनखे इही बात ला बताइस,

जुठा बेर के खवइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


बना के मितान मरकट भला काम जे करे हे,

सदा दोसती निभइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


लिखे नाँव ले उफल गय बड़े ले बड़े वो पथरा,

सदा सत्य शिव जपइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


कटा मूड़ ला जी रावन तरे जात कुल के सुद्धा,

मनी मन सदा बसइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे कामिल मुसम्मन सालिममुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन 

11212  11212  11212  11212


कभू बात करबे बने समझ के निकालबे गा जुबान ले। 

हवे बात जे बने काम के तहूँ पूछ ले जी सियान ले। 


दगा दे के तैं कहाँ जाबे जी हवे दुनिया गोल बताँव जी।

भला अउ बुरा मिले एक दिन  दुनो के नतीजा हा मान ले। 


भले काम बर सबो आव आघु इही मा सार हवे सुनव। 

बने काम के जी नतीजा होथे बने ये बात ला जान ले।


हे अकेला चलना ये रद्दा जिनगी के काँटा ले भरे जान ले। 

बढ़ा के कदम,नहीं रुकना हे,भले आँधी आय ये ठान ले।


मिले ज्ञान हा जिहाँ भी बने धरे कर "अजय" सबो सार ला। 

कहाँ ले बिसाबे तहीं बता मिले ये कभू ना दुकान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )

Thursday 11 February 2021

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल-  ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मजाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन 

1121 2122 1121 2122


लहू मा जी तोर मारत हे अबड़ उबाल काबर 

कुछू जब मिलय नही रोज करे बवाल काबर 


सुने हँव के बात मा तोर हवय अबड़ के दम जब

करे नइ कुछू इहाँ आज तलक कमाल काबर 


दिखा दव विकास ऊपर म विकास जब करे हव

दिखे नइ सुधार अउ  जस के ग तस हे हाल काबर 


सही ताय कतको ल नाम गरीब के इहाँ बस 

बना योजना तुमन लेव डकार माल काबर 


का बताँव बढ़ जथे 'ज्ञानु' दरद हा देखथँव ये

इहाँ अपने ह खिंचै अपने के रोज खाल काबर 


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]


फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


1121 2122 1121 2122 


बबा के कमाये धन मा ददा हर पुटानी मारे। 

करे हे बहुत दिखावा जुआ मा तकोच हारे। 


बचे नइ हवय तनिक भी जगा खेत खार भर्री।  

चले मोर घर ह कइसे बिना काम बिन सुधारे।


उठे हे उफान नदियाँ बहे तेज धार भारी।

फँसे जिंदगी के नइया बता कोन अब उबारे। 


परे राह मा जे पथरा चला मिल अभी हटाबो। 

नहीं ते हपट जही जी चले राह जे बिचारे। 


गरी खेल के फँसाथे गुथे मोह माया चारा। 

फँसे लालची जे मछरी दिखे दिन तको म तारे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


घुमे सच गली गली मा रमे झूठ  हाट देखे

कहाँ हे रतन चिन्हैया चुपे सोन बाट देखे।


बहे खून धार नदिया होय हे अबड़ लड़ाई

हे गवाह सब किला मन सबो राजपाट देखे।


बिछे पाँव मा गलीचा लगे फूल कांस थारी

अभी दाना बर तरसथे कभू शान ठाट देखे।


इहाँ ले उहाँ घुमत हे धरे हे सबो के नस ला

हवे कोन मीठ सिठ्ठा जेहा घाट घाट देखे।


करौ कर्म मा भरोसा इही भाग ला बनाये

सुने हँव मरे सड़क मा जेन हा ललाट देखे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]


फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


1121 2122 1121 2122


जभे मोर मन से लिखहूँ  तभे काम मोर होही।  

रहे भाव जब भराये तभे नाम मोर होही। 


ये कहाँ फँसे हवँव मँय,बँधे मोह माया बंधन।

करे बर परे तपस्या तभे राम मोर होही। 


दही बर नचाये गोपी त दिखाय नाच कान्हा। 

मया मा रिझाहुँ मँय हर तभे श्याम मोर होही।


करे जेन हर दिखावा वो कहाँ चले सफर मा। 

रमे मन जहाँ रमाये तभे धाम मोर होही।


परे हे डगर डगर मा रहे सिरतो नइ पुछारी।

सजे राह मा जे आहूँ तभे दाम मोर होही। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


बता मूँद के नयन ला, बने राह छाँट पाबे।

नदी अउ कुँवा मा मनके, का मइल ला माँज पाबे।


चले गोठ बात भारी, कभू सच कभू लबारी।

उना पेट हा रही ता, कहाँ कूद नाँच पाबे।


भरे हे नँगत खजाना, कही के लगे लुटाना।

खुदे उस्तरा चलाबे, उड़े बर का पाँख पाबे।


धरे आन मनके गलती, हँसे मार मार कलथी।

कहूँ चूक तोर होही, बता तब का हाँस पाबे।


चले चारो खूँट चरचा, छपे हे गजब के परचा।

उड़े बात जब हवा मा, बता तोप ढाँक पाबे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन

1121 2122 1121 2122


मजा हे बताँव ओखर कहाँ वो बतात हावय।

ददा हे कमात वो घर मा हे बइठे खात हावय। 


ददा तरसे पानी पीये,कहाँ तिर मा बेटा आवय। 

परे हे कुकुर के पाछू उही ला खवात हावय। 


हवे भारी सेना भारत के सबो ये जान डारिन। 

तभे दुनिया गुण ला भारत के अबड़ जी गात हावय। 


धनी गे हे जब ले परदेस बताय काला वोहा।

रो धो के ये जिनगी बीतत ले दे के पहात हावय। 


का भरोसा साँस के थम जही ये"अजय"कभू भी।

करे राह काम पुन के इही सार बात हावय। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


टुरा काय ये करत हे लुका पासथे जमाना।

धरे जाल फास नँगते सदा फाँसथे जमाना।


कभू भाय नइ‌ गा कोनो मया बात मोर चिटको,

खड़े हो कुरा ससुर बन जला खाँसथे जमाना।


बने खूब आड़ बाधा हवे बाट मा अबड़‌ के,

कभू जाय टूट एमन बढ़ा ठाँसथे जमाना।


रुँधे हें कपट के काँटा लगे स्वार्थ के गा बारी,

हिँटे ना कभू रुँधानी जमा धाँसथे जमाना।


लुहा के मताय ठेनी करे खूब गा तमासा,

मजा बर बने गा कुकरा खड़े बासथे जमाना।


कभू तो मितान‌ गाथे बने धुन मा गुनगुनाथे,

बढ़े बल बिचार मन के गिरा हाँसथे जमाना।


- मनीराम साहू 'मितान'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


 1121 2122 1121 2122


बना चेहरा ल चन्दा जे सगा चकोर बनगे

तहॉं जानले बिचारा ह मया के ढोर बनगे


ए मया मिलन के किस्सा समे आज ले सुनाथे 

कभू लास बनगे नइया कभू सॉंप डोर बनगे


टुरी दिल ल का चोराइस टुरा कामचोर बनगे

इही बात के बहाना एक शेर मोर बनगे


समे संग छोइहा के धरे रूप रस के राजा

ए मरम बताए खातिर हॉं गवाही खोर बनगे


न उला न पोठ सानी सुखदेव शायरी मा

गुरूदेव के असीस ले ये गजल सजोर बनगे


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

212  212  212  212


देश के रक्षा बर मरना हे जान ले। 

बैरी आघू खड़े तोप ला तान ले। 


मूँड़ी कटही भले फेर झुकही नहीं।

ये तिरंगा सदा फहरै जी शान ले। 


सीमा के रक्षा बर मैं अडिग रहिथौं जी।

देश भीतर के बैरी तैं पहिचान ले। 


चेत जावय अभी जेन गद्दार हे। 

भूल के झन कभू खेलहू आन ले।


घेरी बेरी मचावत हे उत्पात उन।

आज बैरी ला देबो सबक ठान ले।


जीत वोकर हमेशा ही होथे"अजय"।

जेन लड़थे अखड़ के जी तूफान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कली बनही फूल तब आबे रे भँवरा जा अभी तैं

इहाँ घेरी बेरी आ आके ना इँतरा जा अभी तैं


गिरा मत फुहार सावन सरी अंग हा सिहरगे

धनी आही ता चले आबे न  बरखा जा अभी तैं


बता मत शहर मा का का हे नवा उदीम होये

मिटे चिनहा गाँव के खोज वो लाना जा अभी तैं


बिना हेलमेट के गाड़ी चलाना छोड़ देना

गिरे मूँड़ फूट जाथे लगा के आ जा अभी तैं


अरे दू कदम चले हस थके पाँव दिखथे 'बादल'

अजी नइये तोर दमखम बने सुरता जा अभी तैं


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मजाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन 

1121 2122 1121 2122


कभू काम हर कहाँ बनथे हताश होय मा सुन 

मिले कुछ घलो नइ चुप्प उदास होय मा सुन 


सबो मिल बढ़ाबो जब हाथ हमन जरूर कहिथँव

इहाँ रोक कोन सकही ग विकास होय मा सुन 


बने सावचेत रहना हे करत हियाव अपने

कहाँ देर फेर लगथे जी विनाश होय मा सुन 


पिये परही तोला पानी तभे तो पियास बुझही

बुझे  हे कहाँ कखरो ग नदी पास होय मा सुन 


पहा जिनगी ला सुघर 'ज्ञानु' सदा हँसी खुशी मा

मिले कुछ नही ग जिंदा रही लाश होय मा सुन 


ज्ञानु

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


रहे जीत जेन कोती, उती हार होत हावे।

हरू होत हे गलत हा, बने भार होत हावे।


हवे रोक बढ़िया पथ मा, लगे जंग सत सुमत मा।

बदी बैर भोथरातिस, तिही धार होत हावे।


कहे कोन तोला का अब, दिये नाक तैं कटा अब।

बने बूता नइ बढ़त हे, बुरा चार होत हावे।


ये समै अजब गजब हे, बने छोड़ बाकि सब हे।

खुदे लड़भड़ाये जेहा, ते अधार होत हावे।


कते तीर मिलही मरहम, कते तीर भागही गम।

हवे एक ठन जे आफत, ते हजार होत हावे।


ठिहा खेत बन बारी, सबे मा रही व्यपारी।

का बने समै हबरही, का करार होत हावे।


चुका नइ सके ता कर्जा, मरे छोट मोट मनखे।

नपा लोन बड़ बड़े मन, तड़ी पार होत हावे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िरफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा

212  212  212  2


लोभ मा रात दिन तैं मरत हस।

काम ला जी के छूटत करत हस। 


संग मा का ले के जाबे भाई।

तोर का हे बता जे धरत हस।  


सच के रद्दा मा तोला हे चलना। 

काय के डर हवय जे डरत हस। 


चार दिन के हे मेला  संमझ ले। 

चीज बस जोड़ काबर भरत हस। 


चोरी करके भरे तैंहा कोठी।

चारा हे देश मन भर चरत हस।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


सही बाट मा‌ रखत पग जगा भाग तैं अपन गा।

लिहीं नाँव तोर सरलग जगा भाग तैं अपन गा।


कहाँ काम के हवय जी धरे तोर धन खजाना,

मया मोह सब हवँय ठग जगा भाग तैं अपन गा।


हें बिरान गा सबो झन नता गोत तोर हें जे,

प्रभू नाम बस हवय सग जगा भाग तैं अपन गा।


दिखे देह हा भले जी खरा सोन कस चमक मा,

सदा रइही ये कहाँ दग जगा भाग तैं अपन गा।


हवे तोर मूड़ भाई चढे़ पाप हा नँगत के,

बढ़ा पाँव ला धरम डग जगा भाग तैं अपन गा।


तहूँ जान गा दुसर दुख खुशी बाँट ले ससन भर,

हवे शांति हा इही बग जगा भाग तैं अपन गा।


अढ़ा हे मितान सिरतो कथे बात फेर खाँटी,

बना चाल खुद के जगमग जगा भाग तैं अपन गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

Sunday 7 February 2021

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।

बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1


बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।

छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2


अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।

खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3


गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।

चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4


कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।

कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5


धरे हाथ मा जे पइसा, हे पहुँच उँखर सबे तीर।

गले दाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।6


नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।

नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।7


कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।

उना थाल देख के मोर उदास हावे मन हा।8


जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।

झुके भाल देख के मोर उदास हावे मन हा।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


लुटे हे खजाना तेकर गला फूल माला हावय

हवे उजला कपड़ा अंतस भरे खोट काला हावय


हे अमीर के महल ये जिहाँ सोन के हे खम्बा

छिने हे हमेशा मजदूर के जे निवाला हावय


करे हे भरोसा जब जब मिले धोखा तब हे वोला

तभे वो किसान भाई धरे आज भाला हावय


लगे प्यार के तो आगी सरी अंग हा झुलसगे

अजी झाँक देख लेना परे दिल मा छाला हावय


नता के चिन्हारी नइये गड़े इरखा हिरदे भीतर

कहाँ कोन दिखही आँखी मा कपट के जाला हावय



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 

🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*



हवे तोर गोठ भारी कहूँ कर समात नइहे।

ये उधार के परोसा बने से खवात नइहे।


बड़े घर बिहाव माढ़े हे अबड़ सजाय मंडप

ये बनाय भोग छप्पन तभो दार भात नइहे।


ये लुकाय बाँसुरी हा बजे ढोल पोल बाजा

का लिखाय गीत कैसे एको ठन सुनात नइहे।



हवे लोभ के कुटुम्बी धरे भोग के खजाना

ये रखाय चीज कतको तभो ले अघात नइहे।


दिखे पाप के अँधेरा ये सुरुज कहाँ  लुकाये

वो कहाय नाम पूनम ये अँजोर रात नइहे।



आशा देशमुख

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


उहू बात मान जाही तहूँ मान देख लेना

दुनो के विचार ला एके मा सान देख लेना


सदा जानू जानू कहिके जे हा जान छिड़कय

उही धोखा करके लेइच अजी जान देख लेना


हँसी हे उपर छवा प्यार तको बनावटी हे

हवे वादा खोखला चढ़े शान देख लेना 


घड़ा आधा हे भरे फेर छलक भरे जनाथे

इही हाल मूढ़ के तो भरे ज्ञान देख लेना


हे खरीददार कतको खड़े जेब मा हे गरमी

बिके आबरू जिहाँ हे वो दुकान देख लेना


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


चुका गेहे मोर पारी तभो दाँव हा चलत हे।

बने मैं हवँव ग सिधवा हुँवा हाँव हा चलत हे।


सबे मनखे मन बदलगे ठिहा ठाँव तक बदलगे।

लगे देख के शहर बर सजे गाँव हा चलत हे।


कहूँ चुप रबे ता कोई कभू जाने तक नही जी।

करे ताम झाम जउने उही नाँव हा चलत हे।


दिखे बोंदवा धरा हा कटे बाग बन हरा हा।

तिपे घाम बड़ सुरुज के खुशी छाँव हा चलत हे।


गरी खेत खार घर बर बिछा दे हवे व्यपारी।

गरी मा फँसे के खातिर ठिहा ठाँव हा चलत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कभू खेत सुक्खा पड़गे कभू होगे पानी पानी।

कहे गे हे ओकरे बर जुआ काम तो किसानी।।


गिरे हपटे मन के संगी सुनौ हाथ धर चलौ गा।

पड़े जे अलग थलग रे बदौ संग मा मितानी।।


हवै दुनिया तोर मालिक बड़े तो अजब गजब के।

हवै काकरो महल तो कहूँ नइये परवा छानी।।


रहौ भाई भाई मिलके रखे का हवव अलग मा।

अरे जायदाद संगे मया होथे चानी चानी।।


जे जवानी देश हित बर नहीं काम जेन आवय।।

ले जनम हवै अभिरथा हे का काम के जवानी।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल-गजानन्द पात्रे"सत्य बोध"

गजल-गजानन्द पात्रे"सत्य बोध"

 *बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


दगा दे जही जवानी तहूँ मीत गीत गा ले।

मिले ना समय दुबारा बने कर्म ला बना ले।


धरौ साथ गुरु गुनी के मिले ज्ञान के खजाना।

ददा दाई के चरन मा सदा माथ ला नँवा ले।


रहौ दूर नाश दारू करे खोखला बसे घर।

दही दूध घी मही मा बने तन अपन सजा ले।


दिखे छाँव ना खुशी के तिपे घाम बड़ बिपत के।

गली गाँव घर शहर मा मया पेड़ ला लगा ले।


बढ़ा पाँव ला गजानंद धरे बात ला सियानी।

दया दान कर जगत मा खुदे नाम ला कमा ले।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कहूँ ला सुहाये दारू कहूँ ला दही सुहाये।

कहूँ ला हाँ हाँ सुहाये कहूँ ला नही सुहाये।


हे सबे के सोच अलगे हे अलग सबे के आदत।

कहूँ हा गलत करत हे कहूँ ला सही सुहाये।


बने तन बदन हवे ता सबे चीज रास आथे।

जिया भीतरी भरे दुख नही ता कही सुहाये।


करे घाम जब गजब के तिपे चाम तब गजब के।

ता सबे ला छाँव भाये दही अउ मही सुहाये।


हाँ अमीर के मया मीत अमीर बर बने हे।

हे गरीब खैरझिटिया उहू ला वही सुहाये।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


हवे चार दिन के जिनगी आ मया के गीत गा ले

बना झन महल अटरिया सबो दिल मा घर बसा ले।


ये महल न संग जाही तहूँ जानथस ये सच ला

लिही नाम तोर दुनिया मया-बंसरी बजा ले।


दया ले बड़े धरम का? मया ले बड़े करम का?

इहाँ दान कर मया के उहाँ बर जघा बना ले।


ये नशा नरक के रद्दा सबो काम ला बिगाड़य

तहूँ छोड़ दे नशा अब दही दूध घीव खा ले। 


कभू हारथे "अरुण" तो कभू जीत जाथे बाजी

ये जगत जुआ असन हे तहूँ भाग आजमा ले।


*अरुण कुमार निगम*


ये बहर मा कुछ  फिल्मी गीत

(1) मिली खाक में मोहब्बत जला दिल का आशियाना

(2) जिसे तू क़ुबूल कर ले, वो अदा कहाँ से लाऊँ?

(3) मुझे इश्क़ है तुझी से मेरी जान ए जिंदगानी

(4) जो खुशी से चोट खाए वो जिगर कहाँ से लाऊँ

(5) है कली कली के लब पे तेरे हुश्न का फसाना

Saturday 6 February 2021

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


थाह पाही वो भला का पीर रे किसान के ।

दाल रोटी ला बिसाके जेन खात हे दुकान के।।


खार मा तो खेत अउ तो घर जी नइये गाँव मा।

भाव तय उही करे किसान मन के धान के ।।


जेड प्लस सुरक्षा घेरे नेता मालदार ला।

देख कोनो मोल नइये आम जन के जान के।।


पल मा मासा पल मा तोला हो जथे जी नेता  मन।

आज कोनो मोल नइये नेता के जुबान के।।


बूँद बूँद पानी बर मरत हवै किसान मन।

कारखाना बर खुले हे पानी रे बँधान के।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल - अजय अमृतांशु

 गजल - अजय अमृतांशु 


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून

फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22 


हाल बड़ हे  बुरा  बताना हे।

आज जिनगी के का ठिकाना हे।


काय धर के जगत मा आये हस। 

काला धरबे कहाँ ले जाना हे ।


चार दिन रहना हे रहव सुख से।

कोन ला घर इहाँ बसाना हे । 


बाँट के सुख भुलाव दुख ला जी।

दुख के बादर सबो छँटाना हे। 


माटी मा मिलथे माटी के काया। 

खोना हे बस इहाँ का पाना हे। 


भाई भाई लड़त हवव काबर। 

अब लगे आगी ला बुझाना हे। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बड़ मतात हे गिधान मन बवाल देवता।

पाँख झट कतरके पिंजरा मा डाल देवता।


पथरा जइसे होगे मनखे पथरा बन तहूँ हवस।

हाल देख तैं जगत के अब तो हाल देवता।


मार काट होत हावे सोत हावे सत सुमत।

मनखे मन ला मनखे मन बनाय ढाल देवता।


टेक गे महल अटार गाँव गे शहर लहुट।

बाग बन कटाय अउ अँटाय ताल देवता।


झूठ बाढ़गे गजब अउ लूट बाढ़गे गजब।

चोर ढोर के नँगत के पो दे गाल देवता।


बात बानी हे जहर उठे विकार जस लहर।

लागथे अब आत हावे सबके काल देवता।


लाज राखे बर धरम के आबे के नही बता।

दे हुँकारू है हाँ नही मा हे सवाल देवता।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


अमरे बर अगास फोकटे अड़े हे तोर घर।

देखे भर मा नाम के गजब बड़े हे तोर घर।1


मोर घर हा नींद भाँजे रोज लात तान के।

एक पग मा चुरमुराय बस खड़े हे तोर घर।2


आघू मा दुवार अउ पिछोत बारी मोर हे।

साज सज्ज़ा बस दिखावटी जड़े हे तोर घर।3


मोर घर मा भाई बहिनी माँ ददा बबा हवै।

भूत बंगला असन रिता पड़े हे तोर घर।4


मोर घर कहाय झोपड़ी मकान घर ठिहा।

नाम धर महल अटार बस गड़े हे तोर घर।5


मोर घर दुवार मा फुले हे फूल बड़ अकन।

पान फूल एको ठन कहाँ झड़े हे तोर घर।6


पी घलो जहर ला मोर घर अमर हे देख ले।

दुःख डर दरद ले का कभू लड़े हे तोर घर।7



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिमफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

212 212 212 


सब ले बढ़िया वो इंसान हे। 

दिल मा जेकर गा ईमान हे। 


देख भारत के सेना खड़े।

बैरी मन भारी हैरान हे। 


जेन लूटत हे मजबूर ला। 

सिरतो वोहा  हैवान हे। 


झन झुकय याद रख बात ला। 

ये तिरंगा हमर शान हे। 


साँच के संग देना हवय।

झूठ ला छोड़ पहिचान के।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*



सोन के चिरई उदास पंख हा कटात हे।

गीध के चिंया ला देख चोंच लफलफात हे।


काग बर सजाय थाल मोतियन रतन चुगे

मूंग मोठ छींत फेंक हंस ला खवात हे।


आज कल तो पूर्व मा भी पश्चिमी हवा चले

नाच गान मंच मा ये लाज हा उड़ात हे।


लाल लाल हे जमीन घाव हे हरा हरा

बैर के ये खेत मा मया अबड़ सुखात हे।


सात छेद हे तभो धरे हे राग बाँसुरी

एक ताल ढोल हा ढमक ढमक बजात हे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


देश ला अजाद जे कराये वो अमर रहे। 

जान दे के आन जे बचाये वो अमर रहे। 


वीर वो सपूत नाम दर्ज जिन कराय हे। 

नइ कराय जान पर गँवाये वो अमर रहे। 


सब गरीब ला उठाय बर विचार जे करे।

जेन संविधान ला बनाये वो अमर रहे। 


देश के सुरक्षा बर डटे रथे सबो पहर। 

सीमा मा सिपाही जेन जाये वो अमर रहे। 


भूख ला मिठाय बर गड़े रथे जे खेत मा। 

जे किसान अन्न ला उगाये वो अमर रहे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


बात-बात मा बड़े-बड़े निकलथे बात हर। 

बात जब खिंचाय बीत जाय पूरा रात हर। 


बात के बिना कभू बने न कोई बात जी। 

बात ला बिचार के कहव बढ़े न घात हर। 


बोलना हे बात ला समाज में त सोंच लव। 

जोश मा बिगड़ जथे त पर जथे ग लात हर। 


बात जब गरम रहे त दूर होना ठीक हे। 

मुँह तको जलाय देत हावे ज्यादा तात हर। 


जब उठे धुआँ-धुआँ समझ जवव जलत हवे। 

पेंड़ तक सहे नहीं झड़े लगे जी पात हर। 


खून सींच के कमाय तेन मन अघाय जी। 

जे रहे अलाल तेला नइ मिठाय भात हर। 


नर्म भाव रख जिये ले सुख सदा मिलत रथे। 

जेन हे घमंडी तेला नइ सहाय मात हर। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Thursday 4 February 2021

ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


आगाज से मतलब नही अंजाम चाही बने।

कुछ काम से मतलब नही परिणाम चाही बने।1


सूरज लुकाये रोज के गरमी घरी मा भले।

सरदी समय घर अंगना मा घाम चाही बने।2


देवय दरद दूसर ला बेपरवाह होके जौने।

पीरा भगाये बर उहू ला बाम चाही बने।3


बिन शोर अउ संदेश के तरसे घलो कान अब।

मन मा खुशी भर दै तिसन पैगाम चाही बने।4


आफत बुला झन रात दिन करके हटर हाय तैं।

जिनगी जिये बर जान ले आराम चाही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday 30 January 2021

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


धरके धीर जे चले ते मनखे धीर हे कहाँ।

देश बर जे मर मिटे ते शूर वीर हे कहाँ।1


साधु रूप धर दनुज किवाड़ खटखटात हे।

सीता छटपटात हे लखन लकीर हे कहाँ।2


तोर मोर फेर मा वतन के बारा हाल हे।

माता भारती के तन बदन मा चीर हे कहाँ।3


हन गियानी कहिके मनखे लोक लाज बेच दिस।

बेच दिस दया मया बचे जमीर हे कहाँ।4


धन खजाना के घमंड मा मरत हे आदमी।

मीत सत मया दया हा मनखे तीर हे कहाँ।5


जेती देख तेती बस जहर के बरसा होत हे।

सबके जे गला मा उतरे मीठ खीर हे कहाँ।6


जीव शिव हा तंग हे मनुष गजब मतंग हे।

मंद पीये मांस खाये नीर छीर हे कहाँ।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


भाव के उफान मा ये डायरी भरत हवे।

दुख दरद हँसी खुशी हृदय तरी झरत हवे।


जेन काठ भीतरी हमाय हे घुना करत।

चूल के धधक धधक ये आग मा जरत हवे।


गाय भैंस नइ रखे नंदात जाय कोटना

गाँव के सुमत मया ल कोन हा चरत हवे।


लोभ मोह बाढ़गे जमाय पाँव रोग हा

दूर होत हे नता  सगा पना ढरत हवे।


खेत खार हे अबड़ तभो जिये गरीब कस

लोभ कोचिया अपन ही जेब ला भरत हवे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212  


जाड़ बाढ़ गे हवे बता नहाये जाय बर। 

का जरूरी हे कका नहाना भी ह खाय बर?


छोड़ के रजाई जाना हर तको न भात हे। 

जान बूझ के मरे ल जाय का नहाय बर। 


हाथ गोड़ काँपथे सुने कका ये जाड़ के।  

कोन हर बनाये जाड़ ला भला सताय बर। 


दिन घलो निकल जथे फुसुर-फुसुर रुके नही। 

ये सुरुज तको बने न आय जी तपाय बर। 


दिन बिताव शॉल ओढ़ भुर्री ताप के भले। 

रात लाद कतको कम हे जाड़ ला भगाय बर।


मुँह तको धुले नही उठे नही हे खाट ले।

रात के पहात ही लड़े बिहानी चाय बर। 


घुरघुरासी लागथे नहाय बस के नाम ले। 

पर रथे तियार मन ह आनी बानी खाय बर।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Friday 29 January 2021

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


मोह के गरी मा मन ला कभू लहन झन दे।

सत मया के मंदिर मा झूठ छल रहन झन दे।1


चाल हा रही बढ़िया हाल ता रही बढ़िया।

काम कर गलत कोनो ला कुछू कहन झन दे।2


कीमती हे पानी पानी हरे जी जिनगानी।

फोकटे कहूँ कोती भी कभू बहन झन दे।3


वीर बनके चलते जा धीर बनके चलते जा।

अति घलो जिया ला जादा कभू सहन झन दे।4


आग राग इरसा के भभके चारो कोती बड़।

मीत मत मया के मीनार ला दहन झन दे।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


प्यार रंग मा सने फिरत हवस बही बने।

बाप माँ ला भूल गेस कोन ता कही बने।1


ध्यान ला जमा के रख गियान गुण कमा के रख।

लेवना तथे निकलथे दूध जब दही बने।2


मनखे मनके सोच ला समझ सके कहूँ नही।

सबके सब हवे गलत ता कोन हे सही बने।3


हंस के सुभाव देख हाँसथे सबे इहाँ।

कोकड़ा के भेष धर गरी सदा लही बने।4


हाँ नही कहत रहव ग देख ताक के समय।

हर जघा न हाँ बने न हर जघा नही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


पथरा के जिया मोम कभू होय नही का।

अंतस हा बता तोर कभू रोय नही का।1


काटे चिरे के काम करत रोज हे मनखे।

भगवान घलो मन मा मया मोय नही का।2


तैं चील असन आँखी गड़ा रोज डराथस।

थक तोर घलो नैन कभू  सोय नही का।3


मन हा कहूँ हे करिया करे काय ता तरिया।

मन मैल ला सतसंग घलो धोय नही का।4


दाना घलो नइ होय तभो करथे किसानी।

थक हार कमइया हा गहूँ बोय नही का।5


नित डाँटथे फटकारथे बेटा ला बरजथे।

रिस बाँध के रोटी बता माँ पोय नही का।6


कोनो ला कहे कुछ ना मनाये कभू दुख ना।

परिवार के बोझा ला ददा ढोय नही का।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सुख चैन सबो तोर सखा भंग हो जाही।

का आन खुदे से घलो यदि जंग हो जाही।


बन पुरवा बसंती कहूँ बन बाग नचाबे।

बेरंग पड़े जिनगी हा सतरंग हो जाही।


चलबे बने पथ मीत मया सत धरे सबदिन।

डर दुःख दरद तोर निचट तंग हो जाही।


कोठी मा रतन धन रही अउ बाँह मा ताकत।

ता बैरी जमाना घलो हा संग हो जाही।


सब बर मया धरके बढ़े चलबे सबे दिन तैं।

दुश्मन घलो हा देख तोला दंग हो जाही।


चंगा रही तनमन तभे देवारी चमकही।

होरी मा सराबोर सरी अंग हो जाही।


जब घेर लिही गम हा डराही नही मन हा।

गमगीन जिया मा घलो तब उमंग हो जाही।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


चारा के बिना मछरी गरी मा लहे कइसे।

धन कोड़िहा के घर मा भराये रहे कइसे।


छानी ला सजाये मा ठिहा ठौर टिके नइ।

नेवान जे घर के बने तेहा ढहे कइसे।


बड़ बाढ़गे हे गरमी हवा मा नही नरमी।

बिन पेड़ पतउवा के पवन जुड़ बहे कइसे।


घर गाँव गली खोर मा रोवत हवे बेटी।

अतलंग जमाना के सदा वो सहे कइसे।


माँ बाप के करजा हवे बेटा के उपर बड़।

बेटा ला जतन बर ददा दाई कहे कइसे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पाठ प्रेम के सिखाथे गीता अउ कुरान गा,

प्रार्थना अजान पूजा मा भरे इमान गा ।।


कोनो धर्म नइ करे सुन आदमी म भेद रे,

ढोंग बाज मन चलाथे आड़ मा दुकान गा ।।


जात पाँत के लड़ाई नइ भलाई काकरो,

आपसी के भेद छोड़ एकता के गान गा ।।


होथे का अनेकता म एकता इहाँ परख,

संग रहिथे सिक्ख,बौद्ध ,हिन्दू मुस्लमान गा।।


ऊँच नीच भेद छोड़ एक होके तो रहव,

आही संगी मानले तभे नवा बिहान गा।।


क्रांति के मसाल भभका तैं बनेच जोर से,

रूख के अँकड़ ल तो निकालथे तुफान गा।।


विश्व देंखे घूम घूम पाक चीन जर्मनी,

सबले ऊँचा विश्व मा तो भारती के शान गा ।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


गे समे फिरय नहीं चिभिक लगाय काम कर।

कर सकत हवस तहीं चिभिक लगाय काम कर।


काम जे धरे हवस बिगड़ जही का सोच झन,

हे सबो सही सही चिभिय लगाय काम कर।


पड़ अपन बिरान मा पिछड़ जबे गा जान ले,

झन जमा कपट दही चिभिय लगाय काम कर।


पाँच तत्व‌ के बने निसार हे गा देह हा,

नाँव‌ बस‌ जगत रही चिभिय लगाय काम कर।


सब मजा करत हवँय ना‌ सोचबे ये बात गा,

सोच योग्य हँव मही चिभिय लगाय काम कर।


ज्ञान अइसे चीज हे जतिक बँटय बढ़य नँगत,

बाढ़ ये बनय पही चिभिय लगाय काम कर।


करनी हा लिखात हे मितान सुन सबो उँहा,

सब हिसाब हे बही चिभिय लगाय काम कर।  


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


नान कन भले रथे मगर रथे चलाक जी। 

आ जथे दबे-दबे तहाँ करे वो खाक जी। 


बम धरे बड़े-बड़े कथे उठा पटक दुहूँ। 

रोज के डरा- डरा जमा डरे हे धाक जी। 


हाथी सोंचथे ये चाँटी मोर का बिगाड़ही। 

चाँटी चढ़ जथे कहूँ त काट खाये नाक जी। 


जानथव सचिन लिटिल ग मास्टर कहाय जे।  

सेन वार्न हर डरे डराय देश पाक जी। 


नान कन भले रहे ये भुसड़ी हर मगर कका। 

रात भर जगाये खून पी भरे खुराक जी। 


फाँस के गड़े ले रो डरत हवय ये आदमी। 

साँप के जहर ले आदमी मरे चटाक जी। 


नान-नान चीज काम ला करे बड़े- बड़े। 

मान ले दिलीप बात झन समझ मजाक जी। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


रात ला बिताये बर तको ठिकाना नइ हवय। 

राख घर म ले अपन वो अब जमाना नइ हवय। 


कोन चोर बन जही त कोन मार भागही। 

माथ मा कहाँ लिखाये हे फलाना नइ हवय। 


दूर के ममा चले न दूर के बुआ चले। 

साँच पूछबे त आज कल बहाना नइ हवय। 


रोड मा तड़फ-तड़फ मरत हवय कतेक झन। 

रेंगथें कतेक पर गिरे उठाना नइ हवय। 


भूँख मा बिलख-बिलख गरीब रोत हे भले। 

खात हे कुकुर ह आदमी के खाना नइ हवय। 


जे मिले रखे चलव गलत सही न देखिहव। 

होत हे गलत भले जी मुँह बजाना नइ हवय। 


शेर राजा हे जिहाँ उहाँ कहे के काम का। 

चीर फाड़ तक दिही जी आजमाना नइ हवय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*

*

तुलसी चौंरा हे कहाँ कहाँ बँधाय गाय हे,

द्वार मा कुकुर से सावधान तो लिखाय हे।।


 बाप बेटा मा बता भला कहाँ सुमत हवय,

 नाता रिश्ता हर घलो इहाँ गजब घुनाय हे।।

 

चार दिन के प्यार मा तो लइका होगे हे अँधा,

चार दिन के चांदनी मा बाप मां भुलाय हे।।


 देख ले रसायनिक ये खातु के प्रभाव मा,

 खेत खार मेड़ पार घात तो बँदाय हे।।


रोज रोज वोट माँगे आत हे चुनाव बर,

मंत्री पद के पात पाँच साल ले लुकाय हे।।


दाना पानी देख लोभ मा झँपापे झन कभू,

होशियार हे शिकारी जाल ला बिछाय हे।।


जान ला गँवाय हे जवान मन तो देश बर ,

शान ले तभे तिरंगा आज फरफराय हे ।।


 दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


तीन रंग के तिरंगा हे प्रतीक शान के।

हे कफ़न शहीद वीर हौसला जवान के।


त्याग के अमिट निशानी रंग केसरी हवे।

दे उबाल खून मा गा गीत शौर्य गान के।


श्वेत रंग शांति दे रखे अमन ये देश मा।

बाँधे सुमता अउ सुमत सबो ला एक मान के।


रंग तो हरा कहे हो देश हा हरा भरा।

नारा हिंद जय जवान बोल जय किसान के।


बार बार हे नमन, मसीहा भीम राव ला।

लोक तंत्र के महान ग्रंथ संविधान के।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

रोज के कचर-कचर जे पान खाये आत हे। 

हाल चाल देश अउ विदेश के सुनात हे। 


नेता के हे नाम काम दूसरा करत हवय।

कोन पाय कुर्सी देश कोन मन चलात हे।


जेन हे अमीर नेता ओखरे कहे करे। 

राजनीति हे गुलाम कहिके वो बतात हे। 


कोन देश शक्ति शाली कोन हर गरीब हे। 

एक पान खात जम्मो चित्र वो दिखात हे। 


कोन हे खिलाड़ी जेन खेल मा रमे हवय। 

कोन हे बिकाऊ जेन खेल मा हरात हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


देशभक्त ओ कहाही लोक के जुबान मा

आस्था रखे चलत हे जेन संविधान मा


भावना ल मोर संगी छू टमड़ के देख ले

राष्ट्रगीत मा हे दिल परान राष्ट्रगान मा


शान से धजा तिरंगा लहरे चीरकाल तक

जल म थल म बल सकल म अउर आसमान मा


फूट डारबे कहॉं ले देश भर नता म हें

भोजली कका बड़ा दीदी बबा मितान मा


तैं किंजर किंजर के खोज तोर तरनतारनी

मैं परमपिता के दरश पाए हॅंव किसान मा


जाड़ घाम के फिकर न कष्ट चतुर्मास के

मैं निहारथॅंव प्रभू ल सेना के जवान मा


हे सफल करम धरम कलम के कलमकार के

जिन्दगी के भाग बर लिखे गढ़े गियान मा


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


शान मान बेटी हा माँ बाप के तो लाज हे।

फूल ये गुलाब प्रेम गीत लय ये साज हे।


बेटी रानी लक्ष्मी बाई ज्योतिबा के रूप ये।

वीरता मिसाल जान सादगी के ताज हे।


आसमान छू बताये हौसला के पंख धर

त्याग ममता ला धरे करे महान काज हे।


नव बिहान भूत वर्तमान अउ भविष्य के।

बेटी देश राज के विकास अउ सुराज हे।


झन जले दहेज आग बेटी हा धियान दौ।

सत्यबोध प्रार्थना करे सदा समाज हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

रात कारी ला भगाये जस सुरुज ह आय जी। 

मेहनत सुरुज असन ये जिंदगी के ताय जी। 


चाँद देख के चकोर सोंच मा परे हवय। 

कोन हर बनाये रूप मोर मन लुभाय जी।  


ईंट गारा ले बनाये हस बने भवन कका। 

घर तभे कहाय जब सबो म सुमता छाय जी। 


दीप ला जलाये ले अँधेरा दूर हो जथे।  

मन म जे अँधेरा तेन कइसे के भगाय जी।  


जब किसान छोड़ दय करे किसानी तब बता। 

कोन कारखाना तब ग रोटी ल बनाय जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Saturday 23 January 2021

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बाग बगिया हें सजे बसंत के बहार हे

मस्त हे हवा चलत मतौना खेत खार हे


कोन हे सुभाष कस मरय खपय जे देश बर

राजनीति अब सिरिफ तो लागथे व्यपार हे


आदमी के काम सब हवय अबड़ निसाचरी

हाय राम हाय राम धरती के पुकार हे


जिंदगी मा धूप छाँव दु:ख सुख लगे रथे

 कमती हे अँजोर हा डपट के अंधियार हे


नइ खिराही तोर धन भुखाय ला खवाय मा

रोटी दे खवा भिखारी हा खड़े दुवार हे



छूट ले गा भाई सेवा करके  करजा ला अपन

देहे दाई हा जनम ला दूध के उधार हे


कहना कन्या ला सगा सहीं  गलत हे मान्यता

सोरियाथे बाप हा वो बेटी बर दुलार हे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


धान उगाबों चल सखा धरे कुदाल हल सखा।

बेटा अन किसान के सबे के बनबों बल सखा।1


जेन आन तेन रहिबों कोन कहिही का बता।

फोकटे करत दिखावा रूप झन बदल सखा।2


हे हमर दिमाग मा भराय बड़ गियान गुण।

काय करना आन मनके फोकटे नकल सखा।3


करबों काम ला हमर गा करबों नाम ला अमर।

काम मा कभू दुसर के देन नइ दखल सखा।4


कोठी उन्ना नइ रही खजाना उन्ना नइ रही।

तोर मोर जिंदगी तभो रही सफल सखा।5


बात मान बड़का मनके कर सहीं करम धरम।

पश्चिमी पवन चलत हे तैंहा झन फिसल सखा।6


एक दिन किसान के जवान के मितान के।

नाँव गाँव बड़ चमकही बात हे अटल सखा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


सत्यनाम नाम हा सदा जगत मा सार जी

बानी घासी दास गुरु समाज मा सुधार जी


लोभ झूठ क्रोध चिंता भ्रम अगन समान हे

तोड़ दुख के फाँस जाला सुख डगर निहार जी।


पाँच तत्व काया सृष्टि तोर मोर जान ले।

सत पुरुष ले जोड़ राखौ साँसा के तो तार जी।


सत करम करत कमा ले नाम मान ज्ञान तैं।

मोह के बने महल मा घोर अंधकार जी।


सत्यबोध बाँध ले सुमत के डोर गाँव घर।

भाई भाई मा दिखत हे आपसी दरार जी।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पेट बड़ खनाय हे सही मा अउ अघाय के।

अन्न पानी नइ तको हे भाग मा भुखाय के।1


जेन करजा लेत बेरा पाँव ला परत रिहिस।

तेन नाम लेत नइहे करजा ला चुकाय के।2


लत मनुष के गे बिगड़ नजर घुमाले सब डहर।

काम धाम हे करत पिरीत सत भुलाय के।3


छोट अउ बड़े खड़े लिहाज छोड़ के लड़े।

बाप ला घुरत हे बेटा आँख तक उठाय के।4


रेल चलथे पाट मा ता गाड़ी घोड़ा बाट मा।

आदमी उदिम करत हे रात दिन उड़ाय के।5


राग रंग साधना ये साज बाज साधना।

साधना लगन हरे जिनिस नही चुराय के।6


तोप ढाँक लाख चाहे दिख जथे बुराई हा।

 नइ लगे गियान गुण ला काखरो गनाय के।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


रूप ला निखार गोरी भाग ला सँवार ले। 

आ गे हे बुढापा चेहरा म पेंट मार ले।  


देख-देख मुस्कुरात हे टुरा पलट-पलट। 

वो कहे सके नही तहीं तनिक पुकार ले। 


देख के लजात हे कि देख के डरात हे। 

ये उही टुरी हरे कका बने उतार ले। 


टेस मार के दिखाय हाथ फेर मूँछ मा।

चेंदवा मुड़ी तको ल तोप झन उघार ले। 


हाल सोंच के अपन ते जिनगी झन खराब कर। 

चार दिन बचे समे चलाये बर उधार ले।


बीबी रोज डाँट के कराय काम रात दिन।

बाँचना हे कम से कम डराय बर कटार ले।


आज कल टुरी कहाँ मिलत हवय बिहाय बर। 

देख ले चलत हवे टुरा म दिल ल हार ले।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 ,*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


मोर सँग तो आजकल कलम अबड़ रिसात हे।

भाव भागथे कती इहाँ उहाँ  लुकात हे।


हाथ पाँव जोड़के मुहर लगाय बर कहिन

पाँच साल हो गए हे अंगूठा दिखात हे।


काल काल हे कहत न आय काल हा कभू

ठेलहा वो बैठ के अपन समय गंवात हे।


तेँ रहा अपन जगह हमू हवन अपन जगह

 पाक साफ रह बने कुचाल नइ सुहात हे।


जानथन रे ढोरगा कतिक अकन भरे हवच

देख तो समुंद के चरू घलो लजात हे।


आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


हर समय हरेक के हरेक सॉंस हा कहे

गॉंव के हवा शहर ले शुद्ध साफ स्वच्छ हे


देख धून्ध कोहरा कहे शहर के आदमी

गॉंव मा घलो हमार मेर घर-दुवार हे


मंतरी करा न पूछ जल हवा के हाल ला

ऑंकड़ा बताही कार्यकाल मा फरी बहे


हव कहे म हे भलाई बात ओखरे सहीं

मूर्ख मूड़पेलिहा सो ज्ञान-गोठ नइ लहे


लाम-लाम फेंक के सुजान ला झने थहा

हे गहिरमती उफल जबे ग पॉंव नइ थहे


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


आय हे बसंत देख बाग मा बहार हे।

फूल के सुगंध हा पवन उपर सवार हे।1


मौर बाँध आमा हा मुचुर मुचुर गजब करे।

लाल लाल रंग मा पलास के सिंगार हे।2


भौंरा गुनगुनात हे ता तितली मन लुभात हे।

कूह कूह कूह कोयली करत पुकार हे।3


माड़े हे चना गहूँ मसूर सरसो अरसी हा।

साग भाजी तक सजे हे खेत जस बजार हे।4


आइना सही लगे नदी कुँवा के नीर हा।

बन गगन के रूप मा चमक धमक सुधार हे।5


राग छेड़ के पवन गवात हे नचात हे।

पात सुर मिलात हावे जइसे रे सितार हे।6


घाम नइहे जाड़ नइहे नइहे संसो अउ फिकर।

सबके मनके भीतरी उठे खुशी गुबार हे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

होत हे उजाड़ गाँव छोड़ के न जाव जी।

गाँव ला बनाये बर ग हाथ सब बँटाव जी। 


खेत खार हे अधार जिंदगी चलाये बर। 

बिन फसल बने नहीं ये बात सब बताव जी। 


जान ले जहान हे सम्हाल जिंदगी रखव। 

दारू पी के कार गाड़ी झन कभू चलाव जी। 


जोश-जोश मा कतेक होश खो मरत रथें।

गाड़ी जब चलाव हेलमेट भी लगाव जी।


जिंदगी म दुख कभू त सुख तको मिलत रथे।

नान-नान बात मा तो जान मत गँवाव जी। 


जेन काम कर सकव उही सदा करे करव।

होशियारी मार संगी नाक मत कटाव जी। 


लाल मुँह के बेंदरा दबे ग पाँव आत हे। 

छेंक छाँक के धरव तहाँ मरत ठठाव जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


संत घासी दास गुरु करे सुमत के काम हे।

देश दुनिया मा तभे तो आज ऊँचा नाम हे।


जोत सत्य के जला करे उजाला ज्ञान के

गुरु कृपा मिटे जगत के द्वेष बैर घाम हे।


टोर फाँस जाति पाति धर्म के महानता

नाम ले बड़े सदा ही नेक कर्म दाम हे।


सादा झंडा आसमान हे प्रतीक सत्य के।

शांति चिन्ह प्रेम के तो जोड़ा जैतखाम हे।


घासी गुरु जनम धरे परम पिता के रूप मा

माटी कर नमन पवित गिरौदपुर के धाम हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

212 1212 1212 1212


राख होगे देह हा तभो ले मस्ती छाय हे। 

बिहनिया ले देख फेर दारू पी  के आय हे ।


दुःख सुख लगे रथे ये जिंदगी के खेल मा।

का ले जाही सोंच कोनो जतका भी कमाय हे। 


कुल मिलाके मरना हावे साल भर किसान के। 

पानी हा गिरे नहीं जी खेत हा सुखाय हे। 


चारो कोती झिल्ली कचरा बगरे हे गली गली। 

घूम घूम खात हे तभे मरे जी गाय हे।


धर कलम बहाना छोड़ नाम होही तोर जी।

अब नवा जमाना हे अपढ़ ला कोन भाय हे।


हिंसा करके कोन हा "अजय" बता रहिस सुखी ।

शांति ले रहिन सदा उही हा सुख ला पाय हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्बूज मक्बूज मक्बूज 

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 

212 1212 1212 1212


काम हा बनाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ

चिखला मा सनाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


छाँव कब तलक ले मिलही रोज के कटात हे

पेड़ ला लगाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


आज लइका मन हमर गलत भटक गे रसता हे

राह सत धराय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


झूठ फइले इस कदर भरम मा परगे मनखे मन 

का सही बताय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


जेन सोय सोच  करना का हे कुंभकर्ण बन 

चेचका उठाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


नइ सुनय न समझे गुहार मुखिया जब हमर

ओला बस हटाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


ऊँगली बिकट उठाथे 'ज्ञानु' बात बात मा

आइना दिखाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

राम नाम के सिवा कहाँ इहाँ अधार हे। 

राम नाम ला जपे तभेच बेड़ा पार हे।  


आदमी बिना कहे रहे सके नहीं इहाँ। 

चुगली मा रमे रथे मिले जहाँ भी चार हे। 


जेन भागथे इहाँ पढ़े लिखे के नाम ले।

रोज के बहाना मार देत जी बुखार हे।


आदमी के बाढ़ आय रोके ले रुके नही।

जेन कोत देखबे कतार ही कतार हे। 


आदमी न आदमी के काम आय आज कल। 

आदमी ही आदमी ल मारथे कटार हे। 


गाँव छोड़ के शहर म जेन भी रहत हवे। 

गाँव के रहइया ला कहे कि वो गँवार हे।


मोर गाँव मोर देश मोर खेत कह जिये। 

तोर जान जाय ले रहे नहीं तुँहार हे। 


खेत खार गाँव छोड़ लोग जात हे शहर। 

कोन देखथे किसान पाँव मा कुठार हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


आँट जा भले अपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।

फेंक के तुरत खपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


काकरो मिटय थकान आय नींद शांति ले,

देबे गा चिटिक थपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


कालनेमी कस कहूँ मिलय कभू गा बाट मा,

जान बइरी के कपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


मुँह लुकाय झन रबे गा करबे जेन‌ धर्म हे,

लेबे हक अपन झपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


मोह रोकही डगर कहत थिरा ले आव तैं,

जाबे झन तहूँ लपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


त्रास हा डराय बर अजीब खेल कर जथे,

देखबे गा झन सपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


सुन मितान बात ला रबे कभू ना स्वार्थ मा,

कर भलाई तैं डपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


काम हित मा चार के करे बिना बनय नही।

सख जतिक हे कष्ट ला हरे बिना बनय नही।


मूँद झन‌ नयन सखा लड़त हवय ये जान के,

बीच मा सियान बन परे बिना बनय नही।


देख आत नइ हवय समझ हमर ये बात हा,

भूत लात के हवय छरे बिना बनय नही।


तम बढ़ात हे अपन गा शक्ति तैं हा देख ले,

कर अँजोर दीप कस बरे बिना बनय नही।


हे कहत सियान हा भला हवय हमार गा,

बात हे गियान के धरे बिना बनय नही।


सींच तैं पछीना खेत सोन हा उबज जही,

कोठी मोर मात के भरे बिना बनय नही।


हे सवाल शान के तिरंगा के मितान सुन,

जाय प्रान देश हित मरे बिना बनय नही।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

काल-काल जे करे समे सदा वो खोय हे। 

काल आय ना कभू जे काल आय रोय हे।


आज के समे गवाँ जे काल मा टिके रहे।

जान लव वो जान के समे ले हाथ धोय हे।


नाम तँय कमाय बर नवा-नवा उदिम करे। 

काम एक जे करे उही के नाम होय हे। 


घण्टी ला बजा-बजा जगात हे कभू-कभू। 

भाग के उठाय ले उठे कहाँ वो सोय हे। 


तोर कान ला पकड़ समे परे म लेगही।

बात वो सुने नही जे देंवता पठोय हे। 


तोर काम देख-देख दाई अउ ददा दुखी।

काम कुछ तो कर बने जे तोर ले सँजोय हे। 


आखरी समे रहे सबो भगाय जाय जी। 

कोन पाय कोन खाय कोन हा पचोय हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

212 1212 1212 1212


हो जथे कभू कभू जे गलती वोला जान दे। 

छोड़ के जी भेदभाव तँय सबो ला मान दे। 


अब गरीब झन सुतय जी भूखे पेट देश मा ।

खाय देहू मिल सबो उहू ला रोटी खान दे। 


काम सब अपन करव रखव कभू न द्वेष ला। 

चारी चुगली झन सुनव कभू अपन न कान दे। 


दाई अउ ददा दुनो इलाज बिन मरत हवय। 

काम धाम होत रइही गोली ला तो लान दे। 


माँहगी जमाना कइसे होही सब गुजारा अब।

खरचा हे बड़े बड़े गा तनखा ला तो आन दे।


छोड़ पाप सॉंग देशभक्ति ला सुनव सबो।

हे स्वतंत्रता दिवस जी राष्ट्रगीत गान दे। 


आज बेरा हे "अजय" ले करजा छूट देश के।

मोह माया छोड़ तैंहा देश बर परान दे। 

    

अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


खप जथे सरी उमर नाम कुछ कमाय मा

देर नइ लगय चिटिक कमाय ला गँवाय मा


झन दुखाना दिल अजी गरीब के हँसी उड़ा

हो जही भसम सबो दुखी के निकले हाय मा


बात बात मा उलझ के हो जथे बवाल बड़

बात बिगड़े बन जथे मिला के मन बनाय मा


भेदभाव ला बढ़ा जे एकता ला डस डरिस

राजनीति जीतगे प्रजा ला तो लड़ाय मा


क्रांति के बिगुल बजै दसों दिशा हा काँप जय

संग दे उठा कदम मशाल अब जलाय मा


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पेड़ खूब हे कटत गा कोन‌ दय जवाब ला।

रोज रोज हे घटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


कर डरिन बिगाड़ डार कचरा सब सकेल‌ के,

ताल कूप हें पटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


जल नँगत चुहक डरिन जी छेद कर जघा जघा,

धरती ठाड़ हे फटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


जेन हा करय सुरक्षा घाम तेज ताव ले,

रहि अगास नइ खँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


चेत हे कहाँ चिटिक फसल‌ जहर डरात हे,

घुरवा खाद हे छँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


टोर फोर कर डरिन सबो नदी पहाड़ बन,

अब समुद्र हे डँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


खाय वो कसम रहिस गा लाहूँ मैं सुधार सब

अब मितान हे नटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


फूल प्रेम के खिले हृदय सदाबहार हो।

बैर भाव तज चलौ सुमत के ना उजार हो।


बोल मा मिठास रख दया मया हो वास मन

दीन हीन अउ गरीब जन परोपकार हो।


छोड़ चाह नाम के कदम बढ़ा ले कर्म पथ।

पाँव पाछु झन हटाबे जीत हो या हार हो।


कर खरीदी साँच के धरे तराजू धर्म हित

लोभ मोह स्वार्थ के लगे जिहाँ बजार हो।


सत्यबोध के कलम चले मिटाये ढ़ोंग जग।

रूढ़िवादी ना कभू जमाना जन सवार हो।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


खान पान बोल चाल सब बिगड़ गे आज के

चेहरा बनावटी दिखत हवे समाज के।


खात हे अलाल मन मरत हे भूख मिहनती

कोन तय करे बताय मोल का अनाज के।


राखले कई बछर तभो बढ़े न मूलधन

सरसरात बाँस कस बढ़े हे पाँव ब्याज के।


ठौर अब दिखे नही कहाँ थिराय साँच हा

हर जगह पुजाय मान गौन चालबाज के।


झोपड़ा तको नही महल के गोठ बात हे

माँगथे दहेज मा ए सी कुलर बजाज के।


आज शुद्ध हे कहाँ मिलावटी हवे हवा।

बड़ उड़ात हे मजाक  रीति अउ रिवाज के।


दल बदल चलत हवें सड़क बनाम खोचका

जेब स्वार्थ के भराय आय दिन सुराज के।


आशा देशमुख

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


झाड़ फूँक टोटका फँसाय मंत्र जाल मा

जाव रोग के इलाज बर ग अस्पताल मा।


जानले सखा कई रखे चरित्र दोहरा

भेड़िया के हे नियत छिपे हे शेर खाल मा।


गुण बिना बिहाव मा दहेज हे अबड़ सगा

आय चामसुन्दरी परे हे कीरा चाल मा।


नीम होत हे करू तभो समाय गुण अबड़

मीठ गोठ हा तको कपट छुपाय गाल मा।


खुश अबड़ सियान मन दया धरम सिखात हे

पूत देखले इहाँ नजर रखे हे माल मा।



आशा देशमुख

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

212 1212 1212 1212


देश बेच देही इन सबो डहर दलाल हे ।

भूख मा मरे किसान मुसुवा खात माल हे। 


कोन ला सुधारबो समझ सके  न कोई जी

छोड़ देहे लोक लाज देख बिगड़े चाल हे। 


गाड़ी घोड़ा बेधड़क चलत हवे जी रोड मा।

देख के चलव सड़क मा चारों कोती काल हे।


हे गरीब बाप हा दहेज़ दे सकय कहाँ।

बेटी बाढ़गे हवे ददा के बारा हाल हे।


देश के विकास ला घुना हे खात रात दिन।

आजकल सबो जघा जी घूसखोर लाल हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्बूज मक्बूज मक्बूज

212 1212 1212 1212


कुछ हमर सवाल के जवाब दे ला परही अब 

होत ये बवाल के जवाब दे ला परही अब 


मोहा सब जथे इहाँ तुँहर तो सुनके गोठ ला

ये का कमाल के जवाब दे ला परही अब 


सब जिनिस के भाव सुरसा मुँह सही बढ़त हवै

दाल बिन थाल के जवाब दे ला परही अब 


आही के नही इहाँ कभू तो अच्छा दिन हमर

देख फट्टे हाल के जवाब  दे ला परही अब 


आय लोटा धर रहेव भर तिजोरी गय तुँहर

बेहिसाब माल के जवाब दे ला परही अब


का करेव नइ करेव मुखिया पा के कुरसी ला तुमन

'ज्ञानु' पाँच साल के जवाब दे ला परही अब


ज्ञानु

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


ले मया मा बाँध तार पाग ला बना‌ तहूँ।

जाग उठ के भाग चल गा भाग ला बना‌ तहूँ।


आन ये बिरान ये करय इही दुराव‌ बड़,

जोर ले नता कुछू गा लाग ला बना‌ तहूँ।


खाय जेन बाँट के असीस पाय खूब गा,

जे नँगत मिठाय प्रीत साग ला बना‌ तहूँ।


पाय बाढ़ ला सबो पलय फलय सदा सदा,

रंग रंग फूल के वो बाग ला बना‌ तहूँ।


आय रीता हाथ तैं पसारे जाय बर हवे,

लेगबे गा पुन्य दान डाग ला बना‌ तहूँ।


शान हा तिरंगा के घटय नही बढ़े रहय,

तोर माटी ले मया के ताग ला बना‌ तहूँ।


ऊँच नीच झन‌ कभू गा पोंसबे हृदय अपन,

सुन मितान भाव सम के राग ला बना‌ तहूँ।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


रात दिन कमाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।

नेत मिल मढ़ाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


द्वेष भाव बाढ़ ला मुढ़ेर देथे जान‌ लव,

प्रेम गीत गाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


नइ मिलय कुछू कभू गा खींचहू ता गोड़ ला,

खाँध मा चघाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


पाय मोती ला सदा बुड़य गहिर मा जेन हा,

त्रास मन भगाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


आड़ मा हे दम कहाँ तुहाँर बाट छेक लय,

सोच ला उठाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


जे अँड़य टुटय सदा ये बात सत्य सार हे,

माथ ला नवाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


मान लव सबो सखा हे बात सच मितान के,

एकता बनाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


टेटका के दौड़ सिर्फ बारी तक ही आय जी। 

मेचका के दुनिया हा कुआँ म ही सिराय जी। 


बात गोपनी रखे कहे पचे न बात हा।

काँव-काँव करके देख सब ला वो बताय जी।


शेर जइसे राजा के जी आन बान शान देख।

भूख लागथे तभो ले घाँस नइ तो खाय जी। 


देख ले पहाड़ कस मिले हे देह हाथी ला । 

हो जथे गुलाम वो दिमाक नइ तो पाय जी। 


हाँव-हाँव ये कुकुर ह दुरिहा ले करत रथे।

बेंदरा कभू-कभू पकड़ मरत ठठाय जी। 


कोयली के बोल मीठ सब्बो ला सुहात हे।  

मन रहे दुखी तहाँ कहाँ कछू ह भाय जी।


लोमड़ी चलाक हे समे परे बदल जथे। 

जेन हे गधा इहाँ उही ल वो फँसाय जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


दोष खुद के नइ दिखै मुँदाय जब नजर रथे

खोंट खोज आन के गिनात का कसर रथे


कुछ कहे करे मा कुछ भरोसा हा टिकै नहीं

एक हे जुबान हा तभे बने कदर रथे


घाव मिट जथे लगे कटार के करे दवा

चोट फेर बात के हरा सरी उमर रथे


रूप रंग दगदगात चाल ढाल खीक कस

सोन के कलश समझ भरे कभू जहर रथे


हाथ पाँव जोर मत सजोर बन नँगा ले हक

चूहथे पसीना तोर माथ तरबतर रथे



प्यार मा पिघल जथे पहाड़ दिल कठोर हा

प्यार सच्चा नइ मरै सदा अमर अजर रथे


साध ले निशाना चेत भटका मत कहूँ

अनमना मा काम धाम हा शटर पटर रथे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


झन‌ कहा लबार बात बोल सत्य बोल गा।

दुख दरद बढ़ात काकरो हृदय न छोल गा।


राख झन कपट कभू नता जगा मया बढ़ा,

बैर भाव ला भुला बनाय गाँठ खोल गा।


हे मनुज उहू सखा बढ़ा मदद मा हाथ गा,

तैं गरीब जान‌ के दबा कभू न कोल गा।


थोक तो बिचार गा सदा करय बिगाड़ ये,

जा कमा बचा तहूँ नशा‌ करे न डोल गा।


सच खदान‌ ज्ञान के हवँय बड़े सियान मन,

झन‌ अपन‌ बघार आजमा कभू न तोल गा।


हे नफा जे बात मा बिसर कभू न दोब झन,

जा सबो ला दे बता खुशी ले पीट ढोल‌ गा।


गोठ छोट हे भले भराय ज्ञान खूब हे,

सुन बने धियान दे मितान जान‌ मोल गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महजूफ़ 

मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

221 1221 1221 122


हे कोन पुछैया ग इहाँ दीन दुखी के 

धर हाथ चलैया ग इहाँ  दीन दुखी के 


मिल जाथे अबड़ हाँसी गरीबी के उड़ैया

हे कोन चिन्हैया ग इहाँ दीन दुखी के 


बस मुँह ले जताथे मया सब घाव म मरहम

हे कोन लगैया ग इहाँ दीन दुखी के 


मिल कोनो जतिस स्वार्थ अपन छोड़ के अब

दुख पीरा हरैया ग इहाँ दिन दुखी के 


सब काम बनत ' ज्ञानु' मितानी ल निभाथे

नइ साथ निभैया ग इहाँ दीन दुखी के 


ज्ञानु

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बाप के कमाई बेटा पानी कस बहात हे,

दिन के दारू भठ्ठी रात ताश मा पहात हे।।


एक बूंद पानी नइ तो आत हे गरीब घर ,

मंत्री के कुकुर स्विमिंग पूल मा नहात हे।।


हाड़ माँस तोड़ के  कमाथे गा किसान हर,

खेत मा तभे लगे तो धान लहलहात हे।।


बेटा जीये सौ बछर माँ कामना करत हवै,

माँ मरे तो जल्दी आज बेटा मन दहात हे।।


भाई भाई बीच मा तो आज दुश्मनी  हवै,

भाई देख भाई मन के जी कहाँ सहात हे ।।


गोड़ मा परे हे फोरा जल्दी फोर दार तँय,

जिंदगी रहत ले रे नहीं तो डहडहात हे।।


काम नाम से बड़े ये जानले जगत मा जी,

काम के प्रताप राम नाम महमहात हे।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


दान पुन करे करव जी पुण्य ला भरे करव। 

पाप के कमाई खाये पाप ले डरे करव। 


लोभ मोह मा फँसे पिसाय देख जिंदगी। 

सोंच के डगर चलव जी सोंच के करे करव। 


चार दिन के जिंदगी म ऊँच नीच पाट के। 

राह मा दुखी मिले त दुःख ला हरे करव। 


जिंदगी के राह मा बहुत झने बिछल जथे।

देख झन गिरय ग थाम हाथ ला धरे करव। 


देश बर लुटाये जान जेन आन बान ले। 

तेन पाँव के तरी म फूल कस झरे करव। 


जेन खून सींच के कमाय मान हे इहाँ।

देख शान ला उँखर जी दाँत झन दरे करव। 


खेल युद्ध देखना तो दूर ले बने लगे।

जोश मा लड़ाई बीच देख झन परे करव।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222 212 1222 


डोकरा के रसता ला डोकरी निहारत हे। 

बड़ भुखाय होही जी कहिके आगी बारत हे। 


बात नइ करत हावय बेटा हर ददा ले जी।

जानथे ददा सब पर जान के तिखारत हे


श्याम खाय माखन ला रोज चोर कस आवय।

खात भर ले खावय फिर गगरी ला कचारत हे। 


केमरा के आगू मुँह बाँधना मना राहय।

आय ले करोना के कोन हर उघारत हे। 


जन्म ले गरीबी के मार ला सहे जे मन।

काम धाम करके वो भाग ला सँवारत हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - दिलीप कुमार वर्मा

 ग़ज़ल - दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


लालच म फँसे तँय कका का पाय ठगा के।   

कतको रखे चिरमोट वो ले जाही नगा के।


माटी के बने देह हा माटी म समाही। 

फोकट करे अभिमान तें मेंकब ल लगा के। 


सोना के महल मोर करा एक रहिस हे।  

जम्मो ल उझारे कका मोला ते जगा के।


पतवार के बिन नाव चलाबे भला कइसे। 

तँय घाट ला हथिया डरे मजदूर भगा के।


बइठे बबा काँपत हवे नइ शॉल न स्वेटर।

जाड़ा ल भगावत हवे बीड़ी ल दगा के। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

 मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


पापी के बढ़त जात हे संख्या ह दिनों-दिन

ये बात ल अलखात हे गंगा ह दिनों-दिन


अन्याय निहारय खुदे के घर म नियकहा

होवत हे शरमसार व्यवस्था ह दिनों-दिन


अश्लील दुअरथी सबे गाना हे सुपरहिट 

ये जान के पछतात हे भाखा ह दिनों-दिन


गुस्सैल घमंडी हठी मुड़पेल निरंकुश

होवत हे सबे देश के सत्ता ह दिनों-दिन


रिस्ता नता के बीच म बिस्वास मया के

कमजोर परत जात हे धागा ह दिनों-दिन


जननी के अनादर समे दिन-रात करत हे

बाढ़त हे अनाचार के घटना ह दिनों-दिन


बयपार नशा के बढ़े जस नार लमेरा 

पहिदन लगे घर-घर जुआ सट्टा ह दिनों-दिन


होवत हे धरम-जाति के नित गोठ उखेनी

समता के मरत जात हे आशा ह दिनों-दिन


सुखदेव गरीब आदमी के पेट उना हे

बड़हर के भरत जात हे ढाबा ह दिनों-दिन


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल-अरुणकुमार निगम

गजल-अरुणकुमार निगम


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


राजनीति आज के बजार हाट कस लगे

हर दुकान के रिवाज लूट-पाट कस लगे।


गाँव छोड़ के मजूर मन चलिन शहर डहर

गाँव रोजगार बिन मसान घाट कस लगे।


आम आदमी के भाग मा बजट के सुख कहाँ

नाम के मिले जे छूट भेल-चाट कस लगे।


फूँक झोपड़ी अपन शरण मा सन्त के चलव 

संत के बचन सदा सरग-कपाट कस लगे।


देश के अनेकता मा एकता हवै "अरुण"

तोर काशमीर मोर मैनपाट कस लगे।


*अरुण कुमार निगम*


(कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे गीत के धुन गुनगुनाये ले ये बहर मा लिखना आसान होही)

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


चल बाट धरम के बने तकदीर बनाले।

फफरी हवे जस‌ तोर गा दलगीर बनाले।


नइ भाय कभू बात जे सुनके लगे करुहा,

सहँराय सबो बोल‌ ला तैं खीर बनाले।


तैं खात हवस भटका चलत मोह डगर मा,

जप राम कभू श्याम जी मन थीर बनाले।


बलवान‌ नँगत के हवे अक्षर ये अढ़ाई,

पबरित मया मन्दिर ला हृदय तीर बनाले।


सेवा बजा माटी के गा कर्तव्य निभा ले,

नाँगर चला खुद आप ला तैं बीर बनाले।


जाथे नठा गा काम हा लउहा करे ले बड़,

तैं बाँध के सँइता बुता ला धीर बनाले।


बन जा मनी छानी दुखी ला छाँव करे बर,

जाहय गा सँवर जिनगी ये तन कीर बना ले।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 *बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


विश्वास करे ता करे काकर ये जमाना,

थाना के सिपाही ह तो लूटत हे खजाना।


माँ बाप ला जीयत मा रे डंडा ले तैं मारे,

का होत मरे बाद रे गंगा में नहाना।।


वो भूख से मरथे करे जो काम किसानी,

लाला के तो कोठी मा ठसाठस भरे दाना।।


मतलब के बँधे डोर मा हे आज के मनखे ,

बस नाम के रहिगे हवै रिश्ता के निभाना।


सुख भोग करे संग मिले आज हे कतको,

दुर्गा कहाँ संगी भला दुख मा तैं बताना।।

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


आगे नवा गा देखते मा साल बदलगे।

जुन्ना हा भगागे गा हमर हाल बदलगे।


चक्कर परे हाबय कका निन्यानबे के सच,

कीरा परे हे चाल बुढ़त काल बदलगे।


वो बात ला मानय बने जी दुलरू श्रवण कस,

जब ले बहू आये हवे वो लाल बदलगे।


हाबय जी जमाना हा मिलावट के अभी कुन

खाँटी कहाँ पाहू सबे अब माल बदलगे।


बनगे हवे जी काल जिनावर के मनुज मन,

ढिल्ला हवें सब गाय जी गोपाल बदलगे।


पाइन नही गा जान कुछू छोट मछरियन,

फँदगें सबो केवट के लगे जाल बदलगे।


पाबे कहाँ अब साज गुदुम मोहरी के धुन,

छत्तीस गढ़ी के मनी सुर ताल बदलगे।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


बनके बड़े अगुवा‌ सबो बइमान लहुटगें।

लंगू सँगे झंगू सबो धनवान‌ लहुटगें।


बल पाँय हवें खूब कहाथें सरू ओमन,

देखव जमा के सींग गा मरकान लहुटगें।


माथा लगा चंदन बने उँन बाबा फिरँय गा,

जानँय नही अड़हा सबो गुन खान लहुटगें।


बसगें जा शहर मा हरें गाँवे के मनुज कुछ,

लइका सबो खेलाय गा अनजान लहुटगें।


चोराँय गा भुट्टा फरे बारी के अबड़ उँन,

भोगाय हें बड़ देख जी अब डान लहुटगें।


उँन आँय जी बाँको रहें बगरी घलो अबड़े,

दुबराज कहाथें सबे निक धान लहुटगें।


बोइस मनी मिहनत ले सबे खेत अपन गा,

होगें चरी सिरतोन जी गउठान लहुटगें।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


साँचा बनाके चीन ले जापान निकलगे।

पथरा म छिनी हा पड़े भगवान निकलगे।


कोंदा कहे भैरा सुने सब भेद छुपाये

माटी के बने कोठ के मुँह कान निकलगे।


पूजा करे संसार हा भगवान समझ के

ये फूल कली देखके शैतान निकलगे।


ये सोन कहे मोर सही कोन चमकही

पूँछी घुमाके आग ला हनुमान निलकगे।


बैठे हे ददा ज्ञान के ऊंचा हे सिंहासन

धन का करे बेटा इहाँ दरबान निकलगे।


दस गाँव के मुखिया रहे मारे हे फुटानी

जनता के अँगूठा तरी सब शान निकलगे।


ये बात पते के हवे सुनले बने आशा

रक्षा करे बर जुल्म ले संविधान निकलगे।


आशा देशमुख

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


निर्धन के कभू  दुःख दरद देख हरे कर। 

जतका हो सके तोर ले तैं सेवा करे कर। 


मनखे बड़े होथे बने कारज करे ले सुन।

सिरतो हवे ये बात ला गँठिया के धरे कर।


अगुवा घलो पछवा जथे बेरा कहे तोला। 

घन घोर हे अँधियार हा बन दीया बरे कर।


रखवारी मा महतारी के सब चीज लुटा दे। 

होथे बड़े जी देश हा चिंता मा मरे कर। 


चलना हवे सच्चाई मा तँय सोंच समझ ले। 

कतको रहे मुसकुल भले झन थोर डरे कर। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*

*221 1221 1221 122*


घर गाँव गली खोर ह वीरान पड़े हे।

बिन दाई ददा जिंदगी सुनसान पड़े हे।


चौपाल गुड़ी गोठ नँदावत हे दिनों दिन

बिन गरुवा बिना गाय के दइहान पड़े हे।


मतवार सबो आज डगर झूठ थामे

लाचार दुखी नित्य ही ईमान पड़े हे।


परदेशिया उद्योग लगा राज करत हे

अउ देख हमर भाग म शैतान पड़े हे।


मझधार खड़े नाँव सदा तोर गजानंद

पतवार खुशी बीच म तूफान पड़े हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222  212  1222

बिन बुलाय पहुना हर जान के पदोवत हे। 

बैठ खाय तनतन ले तान के पदोवत हे।  


खाय बर तो हक्का हे जानथौं मगर हद हे।

आधा रात के मछरी लान के पदोवत हे।


सास मोर नइ भावय फेंक देथे खाना ला।

जानथौं बने हे पर ठान के पदोवत हे।


चार दिन ह नइ होए हे सड़क बने संगी।

बीच राह मा गड्ढा खान के पदोवत हे।


नाक के नथनिया ला नाक मा रहन दे वो। 

तोर झूले झुमका ये कान के पदोवत हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212  1222  212  1222 


भीख मांग जीयत हे राम के बहाना मा।  

रोज दारू पीयत हे शाम के बहाना मा। 


पाँव घर म नइ राखय घात खोर किंजरा हे।  

रात भर वो नइ आवय काम के बहाना मा। 


हे जनम के कइयाँ पर कोसथे वो महँगाई

भाजी भात खावत हे दाम के बहाना मा। 


कोढ़िया जनम के हे दोष देत दूसर ला।

बैठ के बितावत हे घाम के बहाना मा। 


चार डाँड़ नइ जानय जेन हर लिखे बर जी।

कविता ला चुरावत हे नाम के बहाना हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


रावण ह बने ज्ञान के भंडार रहिस हे। 

अउ कुम्भकरण भाई ह खूंखार रहिस हे। 


पर एक विभीषण रहे भाई म जे छोटे। 

दोनो ल मरादिस बड़ा हुसियार रहिस हे। 


सीता बिना बनवास मा रावण मरे कइसे।

सीता के हरण मारे के आधार रहिस हे। 


लछिमन चले हे संग म का काम बता दे। 

रावण के टुरा मेघ के हथियार रहिस हे।


हनुमान बिना काम कहाँ हो भला पूरा। 

भगवान वो शिव शक्ति के अवतार रहिस हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


ऊपर चढ़े मनखे बड़े नइ आय समझ मा।

रइथें सदा दिल के सड़े नइ आय समझ मा।


परिवार भुला के रथें गा जेन मगन बड़,

मनखे पिये उन्डे पड़े नइ आय समझ मा।


रहिथे सदा रिश्ता बना इंसान सँगे मा,

आने हरे कहिके खँड़े नइ आय समझ मा।


वो मीठ करे गोठ सदा पोठ धँवा के,

तिल ताड़ बना के लड़े नइ आय समझ मा।


बाँटय दिखा कमती रहे पर जादा बतावय,

कतको खुदे हाबय झड़े नइ आय समझ मा।


रहि साथ गरीबी के सदा खेत कमाथे,

दिन रात वो माटी गड़े नइ आय समझ मा।


कइथे मनी मैं तो सदा ले लँगटा हवँव‌ गा,

हे सोन जी कुरता जड़े नइ आय समझ मा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल--चोवा राम 'बादल'

 गजल--चोवा राम 'बादल'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


हे दाग लगे खादी चिराये दिखे हावय

 छलिया हा कपट पासा ला जम के चले हावय


चुपचाप पितामह तो रहिस मूँड़ गड़ाये

अउ द्रोपदी रो रो के बँचावव कहे हावय


पहिचान के देखव तो मुखौटा हे लगाये

घुलमिल के हमर बीच मा बैरी बसे हावय


पक्का हे इरादा हा त मंजिल मा पहुँचबे

मकड़ी हा बुनत जाला का वो नइ गिरे हावय


 मर खप वो भले जाही तभो दम लगा लड़ही

अन्यायी के आगू मा निहत्था भिंड़े हावय


हे चाह उहाँ राह ए सिरतोन मा होथे

विकलांग पहाड़ी के उपर मा चढ़े हावय


हे चाल चलन बिगड़े हवा काय तो लगगे

भाई के लहू धार मा भाई सने हावय



चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सब जानथे संसार मा ईमान बड़े हे

व्यपार करे बर इहाँ तो झूठ खड़े हे।


हे एक डहर मान मया एक डहर छल

कइसे घुसे सुमता उहाँ तो लोभ अड़े हे।


दिन रात चले तोर सँगे संग गरीबी

जा देख अपन खेत खजाना हा गड़े हे।


पानी नही आँखी तरी बंजर हवे जिनगी

अब कोढ़िया के हाथ मा मिहनत ह सड़े हे।


अँधियार में झन खोज पहावत हवे रतिया

आ देख सुरुज माथ रतन सोन जड़े हे।


आशा देशमुख

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


बैरी हवे सब दिन के तभो हितवा बनत हे। 

आँखी मा हवय आँसू गटर पाछू खनत हे। 


औकात हवे मनखे के दू आना के भाई।

का कहिबे तभो छाती बड़े भारी तनत हे ।


वर्दी के हवय भारी बड़े रौब बतावँव।

दोषी हवे छूटे तभे सिधवा ला हनत हे।


का कहिबे हकीकत इही हे देश मा भाई।

अब गोडसे के बर्थ डे पार्टी हा मनत हे।


जानत हे लबारी हे महापाप कहे सब। 

ये लद्दी मा काबर तभो मनखे हा सनत हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसमन अखरब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महजूफ़ 

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन 

221 1221 1221 122


दिल जोड़ के झन गोरी खुराफात करे कर 

हे थोर मया तोला मुलाकात करे कर 


हो जाय सराबोर गियाँ मोर ये तन मन 

दिल खोल मया रोज के बरसात करे कर 


डर छोड़ दे तँय कोन का बोलत हे कहत हे

दे ध्यान अपन काम म दिनरात करे कर 


रग रग म हवय तोर बहत खून वतन बर 

झन फेर कभू स्थिति ल आपात करे कर 


होही के नही छोड़ फिकर चिंता करे बर 

चुप 'ज्ञानु' लगा मन ल शुरूआत करे कर 


ज्ञानु

गजल--चोवा राम 'बादल'

 गजल--चोवा राम 'बादल'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सच बात हे सच्चाई के अब हार हो जाथे

अउ जीत लबारी के कई बार हो जाथे


रिश्ता नता के मोल गिरत जात हे अब्बड़

बिन स्वार्थ सधे मीठ हा सख्खार हो जाथे


हें सेंध खजाना मा मरइया छुपे बइठें

रखवार हे ठाढ़े तभो धन पार हो जाथे


रहि रहि के उभरथे सहे अन्याय के पीरा

आँसू भरे आँखी तने अंगार हो जाथे


हे नीक निचट लागथे सुन प्रेम के किस्सा

मन मिलथे नजर मिलथे तहाँ प्यार हो जाथे


फल आय भरोसा के मिले घाव ये गहिरा

हाँ पीठ मा अपनेच ले सौ वार हो जाथे


प्रहलाद ला जब घेर के तड़फाथे मुसीबत

तब खम्बा ले श्री विष्णु के अवतार हो जाथे 


चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


मिल साथ रहँय सब बड़े परिवार नँदागे।

रिश्ता नता के बीच रहय प्यार नँदागे।


लगगे बड़े चिमनी सबो गद खेत हमर मा,

धरसा सबो परिया लगे सब खार नँदागे।


बनगे बड़े बँगला बड़े बिल्डिंग सड़क अब,

सब बखरी बियारा सबे कोठार नँदागे।


बेकार घुमत हावे सबे मनखे अबड़ के,

युग आगे मशीनी जुना औजार नँदागे।


दिखथे कहाँ बर आम लगे अमली डहर मा,

बोहात नदी तरिया रहय टार नँदागे।


नँगतेच मिठावय चुरे हँड़िया मा फदक के,

वो कोदई के भात जिलो दार नँदागे।


दिखथे कहाँ अब बारू गजामूंग मितानी,

सीमेंट असन जमगे मया सार नँदागे।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


आये रहे व्यापार के शुरुआत करे बर।

मजबूर हवे देश हा आयात करे बर।


ये देश हमर खेत हमर चीज हमर हे

दूसर करा फोकट डरौ झन बात करे बर।


विश्वास करत आत हवन पोसवा मन के

मौका मिले चूके नही हे घात करे बर।


बिन नेवता हितकारी नता लाग जुड़ाथे

सुख दुख मा सकेलव मया ला तात करे बर।


घर द्वार शहर गाँव नगर देश बंटागे

अब कोन अही एक धरम जात करे बर।


आशा देशमुख

गजल-गजानन्द पात्रे

गजल-गजानन्द पात्रे

 *बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*

*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*

*212 1222 212 1222*


ज्ञान गुरु धरे अढ़हा तक सुजान होथे जी।

नेक कर्म ले मनखे हा महान होथे जी।


हौसला रखे चलबे साथ मा भरोसा जब

आसमान ले ऊँचा तब उड़ान होथे जी।


लोभ मोह के चक्कर मा पड़े कहूँ भाई

हाय हाय मा छूटत तब परान होथे जी।


मीठ मीठ चुपड़ी चुपड़ी करे जे हा बतिया ला

जान वोकरे अंतस मा गठान होथे जी।


तन सजा रखौ सच परिधान हो अहिंसा हा

झूठ पाप अउ हत्या के समान होथे जी।


जीत ले सबो के मन बाँध जग मया बँधना

प्रेम ले बड़े मीठा का जबान होथे जी।


सत्यबोध समरसता राह नित बताइस हे

फेर कब कहाँ सच्चाई बखान होथे जी।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-गजानन्द पात्रे

गजल-गजानन्द पात्रे

 *बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*

*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*

*212 1222 212 1222*



टोर फाँस भ्रम के सब ला गला लगाना हे।

गाँव घर सुघर सुमता जोत ला जलाना हे।


गोठ मीठ कर ले नित बाँट ले मया दुनिया

छोड़ आज कल चिंता हँसना अउ हँसाना हे।


ढाल बन खड़े रइहौ झन जुलुम कभू सइहौ

न्याय के सिपाही बन तीर बज्र चलाना हे।


लिख नवा इबादत इतिहास पुरखा के

थाम के कलम स्याही मान ला बढ़ाना हे।


सत्यबोध कहिथे सच ध्यान ला लगा के सुन।

स्वार्थ के सगा भाई मतलबी जमाना हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


छानी ले मया बरसे वो घर-द्वार कहाँ गे

पहुना ल कहै देवता संस्कार कहाँ गे।


धरती मा सरग लाने के हुंकार भरइया 

खुद ला कहे भगवान के अवतार कहाँ गे।


सब छोड़ के ये गाँव ला जावत हें शहर मा

रोके जो पलायन ला वो सरकार कहाँ गे।


सच लिखके हलाकान करै रार मचावै

अँगरा भरे आखर के वो अखबार कहाँ गे।


उद्योग ला उन हाट मा नीलाम करत हें

खोजत हे "अरुण" देश के रखवार कहाँ गे।



*अरुण कुमार निगम*

Friday 15 January 2021

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


लहर-तुकुर करत हवय सथीनहा नॅंगाय बर

रहे ल परही सावचेत सुख अपन बचाय बर 


जगर-बगर कहॉं बरन दिही दीया ल डीह के

जिकी घलो ल नार के जे आ जथे सुगाय बर


कभू सुहाति गोठ मोल दे परखही लोभ ला

पिया खवा दिही घलो ओ चेत ल हजाय बर


सुमत सलाह एकता बने रहय धियान दे

सहीं समय अभी कहॉं हे यार मुॅंह फुलाय बर


कहॉं ले होय डर नहीं बिगाड़ छिन म हो जही

उमर पहा जथे कुछू सिधोय बर बनाय बर


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*

1212 1212 1212 1212


महीना जेठ के हवय परत अबड़ जी घाम हे ।

बरसथे आग सूर्य हा जरत अबड़ जी चाम हे।


महल हा जगमगात हे जे भ्रष्ट लोग हे उँकर ।  

किसान कर्ज मा लदे कहाँ मिलत जी दाम हे। 


फरेब झूठ जालसाजी बढ़ गे हे समाज मा।

धरे रथे छुरी बगल मा मुँह मा बोल राम हे। 


बिना रुके बिना थके चलिन हवय जे राह मा। 

सही कहँव कि दुनिया मा उँकर अमर गा नाम हे । 


लड़व सबो जी देश बर मरव घलो जी देश बर।

शहीद होगे देश बर सबो करत सलाम हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


हाल-चाल पूछत हस हाल के ठिकाना का

कोन जाने कब आही काल के ठिकाना का।


तोर देह माटी के झन अकड़ कभू संगी

टूट के बगर जाही ढाल के ठिकाना का।


चार दिन के जिनगानी खेल आय चौसर के

कान धर उठाही वो चाल के ठिकाना का।


मोर-मोर कहिके तँय झन सकेल धन-दौलत

हाथ ले बिछल जाही माल के ठिकाना का।


नाच-गा "अरुण" रुमझुम साँस-साँस जी ले रे

कब कहाँ भटक जाही ताल के ठिकाना का।


*अरुण कुमार निगम*

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन मक्बूज

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 

1212 1212 1212 1212


कभू बने बनाय काम झन बिगाड़ संगी रे 

सुघर दिखत बगीचा बाग झन उजाड़ संगी रे 


मया के बोल बोल फेर झन बनय कभू इहाँ 

धियान रख सदा तहूँ ये तिल के ताड़ संगी रे 


पता चलय नही करे बिना बड़े या छोट काज हे

जथे भरम हा टूट ऊँट जब चढ़े पहाड़ संगी रे 


सुघर मिले हवय मनुज के देह बन मनुज रहा

नशा मा फँस के एला झन बना कबाड़ संगी रे 


कदम कदम मा 'ज्ञानु' तोला हे गिराय बर खड़े 

हवय बचाना शाख शेर बन दहाड़ संगी रे 


ज्ञानु

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...