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Sunday 27 December 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


कुछ न कुछ करके दिखाना हे जरूरी।

फर्ज मनखे के निभाना हे जरूरी।1


राही के रूके के कोनो ठाँव कस नइ।

घर मया के अब बसाना हे जरूरी।2


सच मा अड़बड़ हे जरूरी खाना पीना।

फेर पी खाके पचाना हे जरूरी।3


काम मा कोनो विघन ले बचना हे ता।

राह ले रोड़ा  हटाना हे जरूरी।4


सात फेरा लेय भर मा होय नइ कुछु।

संग जीयत ले निभाना हे जरूरी।5


मेचका जइसे कुआँ मा खुसरे झन रह।

सब डहर मा आना जाना हे जरूरी।6


सब समय मा अँड़ना अउ लड़ना हे फोकट।

देख बेरा सिर झुकाना हे जरूरी।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222 122 


उठे ला अउ उठाना चाहथस ना।

दबे ला अउ दबाना चाहथस ना।


करेस आँखी मुँदे अब्बड़ करम कांड।

अपन मुँह अब लुकाना चाहथस ना।


लबारी तोर तो तोपात नइहे।

सही ला तैं छुपाना चाहथस ना।


धरे जल मीठ बढ़त हस नदी कस।

समुंदर मा तैं समाना चाहथस ना।


करत हस फोकटे फोकट तैं तारीफ।

अपन बूता बनाना चाहथस ना।


मिही दे हँव गरी बर चारा तोला।

मुँही ला अब फँसाना चाहथस ना।


अबड़ मुश्किल हवे सत के डहर हा 

सही मा तन तपाना चाहथस ना।


निकल गे तोर बूता काम अब ता।

समझ पासा ढुलाना चाहथस ना।



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

 ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


आगाज से मतलब नही अंजाम चाही बने।

हाँ काम से मतलब नही परिणाम चाही बने।1


सूरज लुकाये रोज के गरमी घरी मा भले।

सरदी समय घर अंगना मा घाम चाही बने।2


देवय दरद दूसर ला बेपरवाह होके जौने।

पीरा भगाये बर उहू ला बाम चाही बने।3


बिन शोर अउ संदेश के तरसे घलो कान अब।

मन मा खुशी भर दै तिसन पैगाम चाही बने।4


आफत बुला झन रात दिन करके हटर हाय तैं।

जिनगी जिये बर जान ले आराम चाही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


Friday 25 December 2020

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*

1222   1222    122


मया के तरिया अब काबर अँटत हे। 

हवय इरखा अबड़ भाई बँटत हे। 


भुलागिन सब ददा दाई के दुख ला।

मया के मोल अब काबर घटत हे।


गरीबी ला हटाये के कसम हे।

ग़रीबी अब तो कागज मा हटत हे। 


खुसरगे चाइना सामान घर घर। 

कहाँ गारंटी एको नइ खँटत हे।


लड़त देरानी जेठानी अकारण। 

बड़े परिवार ककरो नइ पटत हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

सही मा नइ पता का भूल होगे।

मया के फुलवा कइसे शूल होगे।


करम मा मोर नइहे पथ बरोबर।

कभू चढ़ ता कभू बड़ ढूल होगे।


जुड़े कइसे हमर मन हा बता तैं।

मया के टुटहा अब तो पूल होगे।


मया के बिरवा झट जोरंग जाही।

निचट कमजोर अब तो मूल होगे।


महकही अउ कतिक दिन मोर तन मन।

मया टूटे पड़े अब फूल होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल -चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल -चोवा राम 'बादल'*


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


*1222 1222 122*



बने बहुरूपिया भरमाथे हम ला

असल मा बरगला जुझवाथे हम ला


कहूँ जाके फसल का बेच पाबो

गणित उल्टा गलत समझाथे हम ला


हवै कोनो गढ़े सुग्घर कहानी

सुने मा जेन हा बड़ भाथे हम ला


हवन भोला निचट तभ्भे ठगा थन

गुदा खा गोही ला पकड़ाथे हम ला


कभू खेती किसानी नइ वो जानय

उहू रो आँसू ला देखाथे हम ला


हिले हे चूल जेकर आज देखौ

चिमट कसके अजी चुलकाथे हम ला


झड़ी सावन के बन जा तैं हा 'बादल'

महक-माटी बने ममहाथे हमला


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122


भुला मैं मोर बनही गा बनौकी।

मया धन जोर बनही गा बनौकी।


मरय दरबार लबरा के मुहू हा,

बँधा सच डोर बनही गा बनौकी।


कमाये हे अबड़ के जस ददा हा,

बढ़ा, झन बोर बनही गा बनौकी।


जलन ला छोड़ के देबे पँदोली,

जगत मा तोर बनही गा बनौकी।


हवय जे हीन तैं संगी बनाले,

करत रहि सोर बनही गा बनौकी।


हवय वो छोट ढेकाना फलाना,

भरम सब टोर बनही गा बनौकी।


कहाना हे मनी चोट्टा कहूँ जी,

कहा दिल चोर बनही गा बनौकी।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


*1222 1222 122*



हवा के रँग कहानी ला लिखत हँव

प्रकृति के गुण जवानी ला लिखत हँव।


भरे बरसात हा आँखी तरी हे

लगन मिहनत किसानी ला लिखत हँव।


बहागे धार नदिया मा कतिक झन

बचे मन के जुबानी ला लिखत हँव।


तमाशा देखथे आगी लगाके

परे फोड़ा निशानी ला लिखत हँव।


मुड़ी तक बोरके दाई ददा ला

लड़कपन के फुटानी ला लिखत हँव।


मँगैया मन तिजोरी ला धरे हें

हमर मन के नदानी ला लिखत हँव।


अमीरी अउ गरीबी छोर दू ठन

नता रिश्ता मितानी ला लिखत हँव।


आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन


1222 1222 122


सदा सच बोल सत मा राह रत जी

पहा जाही उमर जिनगी हॅंसत जी


गुरू दाई ददा सज्जन सुधी बर

हृदय मा भाव रख आदर विनत जी


सगा नित हाथ आवय चार पैसा

कुछू व्यवसाय कर घर मा रहत जी


कलेचुप नेक कारज ला करे जा

समय आही कदर करही जगत जी


सदा संघर्ष कर धारा म सच बर

मरे मछरी सहीं झन जा बहत जी


चिटिक गुन सोच ले मनुवा थिरा के

हवय प्रतिकूल जब बेरा बखत जी


उदिम सुखदेव कोई लाख करलै

कभू नइ सॉंच होवत हे गलत जी


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222  122 


बिहनिया ले चिरइया गीत गावय 

सुने जे कान तेखर मन लुभावय।  


पहुँचथे जेन नदिया तिर बिहानी।

उही हर गीत के आनन्द पावय। 


गधा घोड़ा तको मा फर्क नइ हे। 

समे पाये सबो गंगा नहावय। 


पता जब हे इहाँ हे शेर माड़ा। 

बता कब मेमना नज़दीक जावय।  


रखाये नागमणि नागिन करा हे। 

लगा के दाँव जीवन कोन लावय।


ठिठुरथे जाड़ बरसा मा फिलत हे।

मगर ये बेंदरा कब छाँव छावय। 


सुते रहिथे हमेसा देख अजगर। 

भरे तन हे न जाने काय खावय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122


बढ़ावव‌ पाँव ला अघवाय बर हे।

चिटिक नइ आज गा पछवाय बर हे।


खड़े हे छोर मा हुरियात बइरी,

चलव झट बाट ला नपवाय बर हे।


रहव मिल के सबो जस हाथ मुटका,

हमर बल स्वाद ला चिखवाय बर हे।


कभू तो आही फर हा काम ककरो,

रहत सँग पेड़ ला लगवाय बर हे।


खुशी दे रोत मनखे वो सबो ला,

कठल‌ के खूब गा हँसवाय बर हे।


जगइया पाय सब खोथे सुतइया,

जगाके बात ये जनवाय बर हे।


परब वो रंग के आही फगुनवा,

मनी ला फाग मा नचवाय बर हे।


- मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- चोवा राम 'बादल '

 गज़ल- चोवा राम 'बादल '


*बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन* *फ़ऊलुन*

1222 1222 122


रुँधाये फरिका अब तुरते हटा दौ

अहम हे बाधा बड़ सब ला बता दौ


बढ़ाके हाथ आगू पाँव राखव

बुझे हे चेहरा मुस्कान ला दौ


करे हावय किसानी जानथे वो

 फसल के थोरको कीमत बढ़ा दौ


खदर के छानही फूटे हे कुरिया

कभू बैरी गरीबी ला हरा दौ


हमर हावय समस्या हम निपटबो

लगे हे आगी झन फोकट हवा दौ


हमर पइसा ला गुलछर्रा उड़ाथव

दवाखाना सड़क पुलिया बना दौ


ददा दाई खुशी सिरतो मनाहीं

करे मिहनत जी दू पइसा कमा दौ


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222  122 


गिरा के तँय उठाये आज काबर। 

 इहाँ तँय रेंग आये आज काबर। 


कछू स्वारथ भरे का तोर मन मा। 

सुते तेला जगाये आज काबर। 


करे सूखा मरत ले घाम करके। 

बिना बादर गिराये आज काबर।  


सदा दुतकार तँय मोला भगाये।  

मया अबड़े लुटाये आज काबर। 


तियासी भात नइ पूछे कभू तँय।

बरा मोला खवाये आज काबर। 


निकाले घर तको ले लात मारे। 

बहुत मोला मनाये आज काबर। 


रखे तँय दूर अबतक कोढ़ी जइसे।

अपन तिर मा बलाये आज काबर।  


हकन के  पाप जिनगी भर करे तँय।

डुबक गंगा नहाये आज काबर।


खजाना मोर हावय नाम का जी। 

मया अबड़े दिखाये आज काबर।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़


Thursday 24 December 2020

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

समुंदर के असन पानी धरे मा।

पियासे मर जबे तैंहर घरे मा।


सरग के चाह हे ता काम करथन।

चलो मरबों सरग मिलथे मरे मा।


अपन जिनगी पियारा हे सबे ला।

फरक हे बड़ कहे मा अउ करे मा।


जरस चाहे बरस वोला का करना।

नमक चुपरे सदा मनखे जरे मा।


मुकर जाथे कसम करिया खा नेता।

तभो आघू रथे वादा करे मा।


सुहावै नइ अपन मुख मा बड़ाई।

छलकथे गगरी हा थोरे भरे मा।


तरू होवय या होवय कोई मनखे।

झुके रइथे नॅवे रइथे फरे मा।


वो सुलझाही का झगरा आन मनके।

लड़ाई देख भागे जे डरे मा।


जिया भीतर बसावव सत मया मीत।

बुराई जाय नइ होरी बरे मा।


 जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गाशंकर

 छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गाशंकर

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन


1222 1222 122


पुलिस अउ चोर के गँठजोर हावै,

सबो मोहल्ला मा इहि सोर हावै ।


समय होथे महा बलवान जानव,

समय ऊपर रे काकर जोर हावै।।


डरव झन सेर भालू चितवा से अब,

रे मनखे आज आदमखोर हावै ।।


उजड़ गे बन कटागे रूख राई ,

कहाँ अब बन म कुहकत मोर हावै।।


जलत हे भाई ला देख भाई ,

कहाँ बँधना मया के डोर हावै।।


करम के फूटहा होगे किसानी ,

दिखे ठसठस ले भीतर झोर हावै।


रखे हस जेन ला रखवार दुर्गा,

उही सबले बड़े तो चोर हावै।।


दुर्गा शंकर इजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222  122 


किसानी ले सबो अब दूर होगे। 

चढाये रेघा बर मजबूर होगे। 


कहाँ बनिहार पाबे काम खातिर। 

सबो अपने अपन मा चूर होगे। 


लड़कपन मा बही कस जेन राहय। 

जवानी आय ले मशहूर होगे। 


अपन घर के बनव रखवार संगी। 

ढिलागे चोर मानो सूर होगे। 


लुका के राख ले हे सात पर्दा।

लगे टूरी न हो जी नूर होगे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

समुंदर के असन पानी धरे मा।

पियासे मर जबे तैंहर घरे मा।


सरग के चाह हे ता काम करथन।

चलो मरबों सरग मिलथे मरे मा।


अपन जिनगी पियारा हे सबे ला।

फरक हे बड़ कहे मा अउ करे मा।


जरस चाहे बरस वोला का करना।

नमक चुपरे सदा मनखे जरे मा।


मुकर जाथे कसम करिया खा नेता।

तभो आघू रथे वादा करे मा।


सुहावै नइ अपन मुख मा बड़ाई।

छलकथे गगरी हा थोरे भरे मा।


तरू होवय या होवय कोई मनखे।

झुके रइथे नॅवे रइथे फरे मा।


वो सुलझाही का झगरा आन मनके।

लड़ाई देख भागे जे डरे मा।


जिया भीतर बसावव सत मया मीत।

बुराई जाय नइ होरी बरे मा।


 जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन


1222 1222 122


कभू घुड़की कभू दुत्कार देथस

बिना सोचे रचारच मार देथस


पतीवरता ए रहि जाथे सुबक के

तहीं कोनो कुती मुॅंह टार देथस


ददा दाई हवय मइके म ओखर

मुड़ी मा दोष ला कच्चार देथस


बुड़े ले जेन हा तोला बचाथे

उही पत्नी ल सुनथन तार देथस


पती परमेश्वर के पद अपन बर

पुरुष पोथी सुना उद्गार देथस


बहू बेटीन झन झाकॅंय दुवारी

घुमे बर पूत ला संसार देथस


सुने जाने बिना तॅंय पक्ष ओखर

बिचारी पत्नी ला ॲंक्कार देथस


कभू सच न्याय नारी पूछ लेथे

कथा कहिनी सुना बेंवझार देथस


कथस घरमालकिन सुखदेव एती

जुआ मा धन समझ के हार देथस


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छ.ग.

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122  


बहुत देखे हवन हम तोर जइसे। 

कभू सपड़ाय नइ हे मोर जइसे। 


धरे जब चीर देहूँ टाँग दूनो। 

निकल अतड़ी जही सब डोर जइसे। 


कहे बरजे कहाँ मानत हवस तँय। 

सुधरबे लट्ठ खा के ढोर जइसे।  


सहे सकबे कहाँ तँय मोर गरमी।

खड़े इहचे डबकबे झोर जइसे।


बतर पाबे कहाँ तँय पेंट के जी। 

निकल पानी बहाही बोर जइसे। 


परे मुक्का कहूँ जब एक तगड़ा। 

निकलही चीख होवत सोर जइसे।


पहाती रात मा सुकुवा दिखा के। 

खुसर आये महल मा चोर जइसे।  



रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


हवा मा आजकल नर्मी बहुत हे।

मनुष मा फेर अब गर्मी बहुत हे।1


कलेचुप आँख तोपे काम टरका।

अधम मा लिप्त बेशर्मी बहुत हे।2


अपन दुख ले खुदे ला हे निपटना।

ना नेकी अउ ना तो धर्मी बहुत हे।3


बढ़े बेरोजगारी देख सब तीर।

पता नइ काम के कर्मी बहुत हे।4


रसायन हानिकारक हे कथस बस।

बना कम्पोस्ट चल वर्मी बहुत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


उगत हस अउ ढलत हस, का कहँव अब।

सहीं हस के गलत हस, का कहँव अब।1


बने हस बड़का पग नइहे धरा मा।

हवा मा उड़ चलत हस, का कहँव अब।2


भरोसा आन मन करही भला का।

अपन मन ला छलत हस, का कहँव अब।3


शिकायत एक या दू झन ला नइहे।

सबे झन ला खलत हस, का कहँव अब।4


फरे हँव कहिके देखावत फिरत हस।

हलाये बिन हलत हस, का कहँव अब।5


धरे उप्पर धरत हस धन रतन खूब।

समुंदर ले जलत हस, का कहँव अब।6


ना पाना के ठिकाना ना तना के।

करू फर तक फलत हस, का कहँव अब।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122 


भले बीमार हे पर काम करथे। 

बता दाई कहाँ आराम करथे। 


सबो के चेत मा दिन भर कमा के। 

अपन जिनगी हमर वो नाम करथे। 


जुड़ाये जाड़ मा सूरज लुकाये। 

रही गरमी मरत ले घाम करथे।  


रहे अड़हा चलइया कार के जी। 

कभू जाथे शहर मा जाम करथे। 


सुने जे बात ला कोनो बतावय। 

लगा मिर्ची मसाला लाम करथे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212   


मरना हवय सब जानथे तब ले डरावत रात दिन। का होय काली सोंच के जिनगी दरावत रात दिन। 


सब मोह माया मा फँसे किंजरत रथे दौरी असन। 

बाती असन जंजाल मा मनखे  बरावत रात दिन। 


मन मैल अंतस मा भरे इरखा जरावत तन हवय।

धुर्रा लगे झन देंह मा कुरता झरावत रात दिन।


सब पाप ला अंतस भरे ढोंगी बने ज्ञानी हवय।

भगवान के बड़ भक्त बन पूजा करावत रात दिन। 


दिनमान सब ला ज्ञान दे रसता बने बतलात हे।

अँधियार मा बइठे तहाँ दारू ढरावत रात दिन।  


जे उम्र म भगवान के करना रहिस हावय भजन। 

किंजरत हवय  वो मनचला आँखी चरावत रात दिन।


बढ़ गे हवय अब चोर मन हर रात तारा टोरथे।

जागत रहव कहिके सदा हाँका परावत रात दिन। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122  2122  2122  2122 


देश खातिर का करत हस सोंच के तो देख ले तँय।

लूट धन काबर धरत हस सोंच के तो देख ले तँय। 


कोन लेगे हे बता दे धन मरे के बाद सँग मा।

जानथस तब ले भरत हस सोंच के तो देख ले तँय।


तोर सेती लोग मन हर रोज के परसान रहिथें। 

सुख इंखर काबर हरत हस सोंच के तो देख ले तँय। 


खाय भाजी तेल बिन कंजूस मक्खी चूस सुन ले।

बिन दवा काबर मरत हस सोंच के तो देख ले तँय। 


एक रोटी तोर खाइस भूंख मा बिलखत बिचारा।

दाँत ला काबर दरत हस सोंच के तो देख ले तँय। 


दू कुकुर लड़थे लड़न दे बीच काहीं बात होही।

बीच मा काबर परत हस सोंच के तो देख ले तँय। 


रोज बिहना आ जथस तँय काय स्वारथ हे बता दे।

ये सुरज काबर बरत हस सोंच के तो देख ले तँय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसमन महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122  2122 2122 212 


बात हे जुन्ना मगर वो बात हावय काम के। 

कह गये पुरखा हमर सुन रात हावय काम के।  


तँय हपट दिन भर भले पर रात के घर आ लहुट। 

थक चुके जे तन सुते सुरतात हावय काम के। 


सूख गे हे खेत फाटत देख ले धरती तको। 

आ जवय पानी अभी बरसात हावय काम के। 


बाढ़ आये ले नदी के पार जाना बड़ कठिन। 

जान के ये पुल बड़े बनवात हावय काम के। 


जाड़ मा ठिठुरत हवय तन मन रजाई ओढ़ जी।

चाय काफी जो मिले पर तात हावय काम के। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


पाप के गगरी भरे का, छेदरा हावै तरी मा।

पुण्य दरदर खाय ठोकर, डार के डोरी नरी मा।


खुद ला पीना हे तभो ले, खुद ला जीना हे तभो ले।

आज देखव मनखे मन, घोरे जहर पानी फरी मा।


ना गियानी ना धियानी, बेंदरा जइसे हे मुँहरन।

मानते नइहे टुरा हा, जान अटके हे परी मा।


लौट के आबे तैं दुच्छा,बन शिकारी बन मा झन जा।

जान ले चारा के बिन अब, नइ फँसे मछरी गरी मा।


काम ना संजीवनी दे , प्राण लक्ष्मण हा गँवाये।

कंस रावण जी उठत हे , पेड़ पत्ता अउ जरी मा।


बीत गे सावन घलो हा, बिन झड़ी के का बतावौं।

रदरदारद बरसे पानी, दाई के रखिया बरी मा।


हाँड़ी हँड़िया नइ सुहावै, नइ सुहावै घर के भाजी।

सब भुलाये ढाबा होटल, मास मद अंडा करी मा।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


तोर उद्धार पढ़े मा होही।

ज्ञान गुण सत ला कढ़े मा होही।


पग धरा मा रही ता सुख मिलही।

दुःख आगास चढ़े मा होही।


होय नइ कुछु छुपा झन गलती ला।

झगड़ा पर दोष मढ़े मा होही।


गाँव घर बन के तरक्की निसदिन।

देखे सब सपना गढ़े मा होही।


झट मिलन आत्मा के परमात्मा ले।

नदिया कस आघू बढ़े मा होही।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुसम्मन सालिम

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 


2122  2122  2122  2122 


जान के बाजी लगा के देश सेवा जे करत हे। 

मान ले सच बात वो हर तोर दुख हर पल हरत हे। 


आज तँय अँटियात हावस चार पइसा पाय के जी।

वो बने रखवार तब्भे तोर घर पइसा भरत हे।  


बाज कस आँखी गड़ाये देख जोहत हे परोसी।  

तब डटे ऊपर सिपाही जब हिमालय हर ठरत हे


चिलचिलावत घाम रेगिस्तान के सीमा डटे हे।

आ कभू मैदान तब चलही पता कतका जरत हे। 


सोन ले जादा तपाये तब खरा सोना बने हे। 

काल आगू आ खड़े हो पर सिपाही कब डरत हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन 


2212  2212  2212   


बन के बड़े भगवान बस्ती मा बसे।  

पावत हवस बड़ मान बस्ती मा बसे। 


मउका मिले छोडच नही जानत हवँव।

काटे नरी सैतान बस्ती मा बसे।  


बइठे बिठाये मिल जथे धन धान भारी।

तँय जान इहँचे खान बस्ती मा बसे।  


सुनथे सुनाये गोठ इहँचे तोर जी।

भारी हवय जजमान बस्ती मा बसे। 


आये कहाँ ले तँय इहाँ भगवान बनके।

काबर बता सुनसान बस्ती मा बसे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122  2122  2122


दे दिए बनवास काबर राम ला तँय हर बता दे। 

भेज दे हच दूर काबर श्याम ला तँय हर बता दे। 


तँय करे अन्याय हावस जब अपन औलाद ऊपर।

अब भला कइसे के पाबे धाम ला तँय हर बता दे। 


जब करम उल्टा करे ता कोन तोला मान दीही।

मोर दाई कोन लेही नाम ला तँय हर बता दे। 


होय गे सुखियार सब झन खेत परिया अब परे हे। 

आज कल अब कोन सइही घाम ला तँय हर बता दे। 


मिल जवत हे खाय खातिर फोकटे के दार चाँउर।

कोन मिहनत कर जलाही चाम ला तँय हर बता दे। 


सब सवाँगा कर चलत हे पाँव धुर्रा नइ चढ़न दय। 

खेत के सब कोन करही काम ला तँय हर बता दे। 


आस राखे हस हमेसा जेब खाली झन रहय जी।

बिन कमाये कोन देथे दाम ला तँय हर बता दे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22     


आव हुसियार बनव संगी रे। 

चाकू कस धार बनव संगी रे। 


देख उल्लू बना के लूटत हे। 

ठोस दमदार बनव संगी रे। 


भोकवा जान हुरेसत रहिथें। 

आज तलवार बनव संगी रे। 


जे कटावय नही जी काटे ले।

रोठ तुम सार बनव संगी रे।


गाय बन के कभू झन राहव जी।

बिच्छी के झार बनव संगी रे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212  2212 


बरसात मा बखरी बने हरिया जथे। 

लौकी तरोई नार मखना छा जथे। 


रमकेलिया खीरा करेला चेंच अउ। 

भाजी घरो घर साग बन के आ जथे। 


जब आय जाड़ा तब लगे गोभी भटा। 

बंधी मुराई गाँठ सब ला भा जथे। 


दुश्मन तको अबड़े हवय ये साग के।

आ बेंदरा गरुवा किरा सब खा जथे। 


रखवार बन देखत रहे दिन रात जे।

मिहनत करे ते दाम अच्छा पा जथे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


लमा ले शोर सुमता गाँव के तैं।

हरस पंछी उही घर छाँव के तैं।


शहर मा मतलबी के मीत होथे

मितानी छोड़ कौंआ काँव के तैं।


बने रह दास कर सेवा जतन ला

अपन माता पिता गुरु पाँव के तैं।


भुलाबे झन अपन संस्कार संस्कृति

बढ़ा जग मान पुरखा नाँव के तैं।


बिपत के संग सँगवारी गजानंद

बने रह सुख दवा दुख घाँव के तैं।



गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122  2122  2122 



सोंच झन जादा मुसाफिर रात हे इहँचे ठहर जा। 

मोर कहना मान ले कुछ बात हे इहँचे ठहर जा। 


छाय हे चारो डहर घनघोर बादर देख ले तँय। 

लागथे आवत हवय बरसात हे इहँचे ठहर जा। 


होय अनहोनी लगत हे शोर होवत हे बहुत जी।

कुछ अलग ये कोलिहा नरियात हे इहँचे ठहर जा। 


सन सनासन चल हवा हमला कहत कुछ बात हावय।

काल सायद लागथे छुछवात हे इहँचे ठहर जा।

 

का सँदेसा लाय हावय बइठ बोलत हे अटारी।

देख घुघवा हर तो सुरतात हे इहँचे ठहर जा। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

1222  1222  122 


पढ़ाई जे करे ते पास होथे। 

ददा दाई तको के आस होथे। 


सुते रहिथे अलाली जे करे जी। 

मिले नम्बर तको बकवास होथे। 


बिहा पहिली समझ का होय रिस्ता।

रहे सारी हमेसा खास होथे। 


करे जल्दी लड़े बर मोर भाई।

सबो खेला म पहिली टास होथे। 


दिवाली मा दिवाला तक निकलथे

जिहाँ बावन परी के तास होथे। 


दिए भगवान सुग्घर तोर काया।

पिये दारू तहाँ ले नास होथे।


कहे भगवान के अस्तित्व नइ हे।

उही ला भूत के आभास होथे।


जियत भर ले कहे ये मोर चोला।

मरे मनखे तहाँ ले लास होथे। 


महाभारत करे कौरव न चाही।

लड़ाई बर घरो घर सास होथे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


*1222 1222 122*


अहम हा आजकल छानी चढ़े हे

मया के बोल क़ुरबानी चढ़े हे।


चमक हावय अबड़ बाजार में जी

पीतल मा सोन के पानी चढ़े हे।


लुभावन गोठ में फंसबे गिंया झन

तराजू बाट बेईमानी चढ़े हे।


चुनावी शोर मा चूल्हा गरम हे

फूटे गंजी म बिरियानी चढ़े हे।


धरम के नाम मा बँटगे हे मनखे

तखत मा आज अज्ञानी चढ़े हे।


मिलत हे एक के सँग एक फ्री मा

बने से देख नुकसानी चढ़े हे।


जमाना झूठ के सागर हे आशा

लहर के बीच जिनगानी चढ़े हे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

1222  1222  122 


जवानी मा बुढापा आय संगी। 

सफेदी बाल पूरा छाय संगी।  


बिहा पहिली सफा चट हे मुड़ी हर।

कहाँ टूरी भला अब भाय संगी। 


जवानी मा करे हे काम उलटा।

बुढापा आय अब पछताय संगी। 


उमर ढल गे मिलिस नइ एक टूरी। 

मिलिस बुढ़िया तभो अपनाय संगी।  


बिगड़ गे बात का करही बिचारा।

सबो के बात सुन खखवाय संगी। 


बियाये बर बियादिस सात लइका। 

सबो झन बाप ला गिंधियाय संगी।


करे सिंगार टूरी मटमटावय। 

दिखा के रूप वो भरमाय संगी। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


उहाँ ले ढोंग के शुरुआत होथे।

जिहाँ ले मनगढ़ंती बात होथे।


रहे सुमता न जे घर द्वार भाई

उहाँ कुमता भरे दिन रात होथे।


उही चलथे सदा सच राह मा सुन

बड़े जेकर जिगर औकात होथे।


भरोसा आजकल बाँचे कहाँ हे

इहाँ विश्वास मा भी घात होथे।


रखौ मन द्वेष ना फोकट गुमानी

मया जिनगी खुशी सौगात होथे।


बढ़े दिन दिन जिहाँ बेरोजगारी

सबो के दुख भरे हालात होथे।


बचा खुद ला रखे रहिबे गजानंद

भरे बिखहर मनुज के जात होथे।


गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


भरम के भूत ला झारेल लगही।

दरद दुख द्वेष ला टारेल लगही।


करे मनचलहा बनके काम मन हा।

मनाही हाँका अब पारेल लगही।


बुझत हे दीया हा इंसानियत के।

मया के तेल अब ढारेल लगही।


कमाये बर खुसी धन बल ठिकाना।

पछीना तोला ओगारेल लगही।


भरोसा मा दुसर के हाँकबे डींग।

बखत बेरा मा मुँह फारेल लगही।


नशा पानी ला नइ त्यागबे कहूँ ता।

लड़ाई जिनगी के हारेल लगही।


वतन के काम बर आघू आके।

सुवारथ के दनुज मारेल लगही।

 

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

1222 1222 122


खुदे दुख टार तभ्भे बात बनही

उठा हथियार तभ्भे बात बनही


नँगागे देख खेतीखार अउ घर

जमा अधिकार तभ्भे बात बनही


भरोसा झन बइठ दूसर के भाई

उठा पतवार तभ्भे बात बनही


दिखावय आँख दुश्मन छोड़ना नइ 

पकड़ के मार तभ्भे बात बनही


इहाँ भूलत हे लइकामन हा अब के 

बता संस्कार तभ्भे बात बनही


चलय नइ काम अइसन मा बनव खुद 

अपन सरकार तभ्भे बात बनही


कहूँ सब देख दुरिहाँँ 'ज्ञानु' भागय

बदल व्यवहार तभ्भे बात बनही


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 


1222  1222  122 

 

गरी खेले गुथे चारा निहारय। 

खड़े टूरा सबो पारा निहारय।  


खुसरना हे कलेचुप जेन घर मा। 

गये पाछू डहर ब्यारा निहारय। 


रहे मन डर समाये साँप हे का। 

जला के टार्च दोबारा निहारय। 


अमर जोही रहय कहिके दुल्हनिया।

बिदाई बेर ध्रुव तारा निहारय। 


सुखाये खेत चिंता मा किसनहा। 

ढिलाये बांध के धारा निहारय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222 1222 122


बिना पइसा के वो लटकाय हाबय।

हमर सब काम ला अटकाय हाबय।


पियाथे दारू ला बइठाय भीतर,

इहाँ पियई मना चटकाय हाबय।


हवय जी कोढ़िया वो हा जनम के,

बुता डर मा सदा मटकाय हाबय।


कहाँ पाबो हमन सुख के खजाना,

हमर बाँटा सबो गटकाय हाबय।


हमर बढ़वार ला नइ भाय चिटको,

दिखा के लोभ वो भटकाय हाबय।


जघा हे नाट ओमन पोगराहीं,

मुरुम माटी नँगत पटकाय हाबय।


कहाँ ले हारही हुँड़रा मनी सुन,

सदा ले बोकरा हटकाय हाबय।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


*1222 1222 122*



ये दुनिया मा तें जब ले आय सनिमा।

बड़े छोटे सबो ला भाय सनिमा।


लगे रंगीन सपना कस ये जिनगी

सरी दुनिया घरो घर छाय  सनिमा।


हवय परिवार घर अउ देश  कइसे

जगत ला आइना देखाय सनिमा।


कला निखरे अबड़ कन रूप धरके

मया ला भीतरी बैठाय सनिमा।


ये माया लोक के महिमा अजब हे

लगे जादू सहीं भरमाय सनिमा।


कभू मितवा कभू बैरी बने हे

हँसाये हे कभू रोवाय सनिमा।


जतिक हे राग धुन रस गीत आशा

सबो जन भाव ला पहुँचाय सनिमा।


आशा देशमुख

गज़ल- चोवा राम 'बादल '

 गज़ल- चोवा राम 'बादल '


*बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन* *फ़ऊलुन*

1222 1222 122


मुसीबत में बने पहिचान होथे

 सही मा कोन हा भगवान होथे


 कहाँ ले बाढ़ही ईमानदारी

 चढ़े कुर्सी मा बेईमान होथे


 मतौना हे जहर दारू के पानी 

दरूहा जान के अनजान होथे


 कदर का जानही  बाबू शहरिया

 पसीना गारबे ता धान होथे


 जुझारू मिहनती छत्तीसगढ़िया

 दू कौंरा बासी  चटनी शान होथे


नँदाये नइये सुंदर गाँव हाबयँ 

 जिहाँ बखरी अभो गौठान होथे


कलेचुप फोरियाबे राज 'बादल '

 इहाँ पर्दा तको के कान होथे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


बने हे बड़खा तिंखरे तो मजा हे।

सजा छोटे मँझोलन बर सदा हे।


नवा जुग हे चलव नित नैन उघारे।

गली घर गाँव सब कोती दगा हे।


अपन जिनगी सबला हे पियारा।

हे पहली जान तब काकी कका हे।


निराला हे गजब कुर्सी के खेला।

उही पद पइसा नेता ला पता हे।


जिहाँ के माटी खा बचपन कटिस हे

उहाँ अब आना जाना तक मना हे।


सिरागे जादा के चक्कर मा कतको।

इही लालच हा तो बड़खा बला हे।


बढ़े का कारखाना कस किसानी।

पवन पानी  सबे दूसर करा हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा (छग)

गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


बने बेरा कहूँ कोती नइ दिखे।

छँटे घेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


हे हाँवे हाँव चारो खूँट अड़बड़।

खुशी डेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


बगइचा बाग बर आँखी तरस गे।

फरे केरा कहूँ कोती नइ दिखे।


बबा ना डोकरी दाई के आरो।

घुमत ढेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


लुवागे अउ मिंजागे धान तभ्भो।

गँजे पेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


सँझा बिहना भजन गावत भगत के।

लगत फेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


मैं मेरा के जमाना मा अब तो।

तैं तेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


*1222 1222 122*


मया मा बेंदरी हा हूर  लागे

दिखे बिरबिट सहीं हा नूर लागे।


भले नइहे अबड़ धन धान पइसा

सुमत से घर भरे भरपूर लागे।


हवय कालिख बरोबर आज दाहिज

ददा हा धन बिना मजबूर लागे।


सुखी संतोष के अब्बड़ तरीका

गिरे महुआ घलो अंगूर लागे।


रखे हे स्वाद दुनिया मा मसाला

कहूँ चुरपुर कहूँ अमचूर लागे।



आशा देशमुख

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


1222   1222    122


खिरत हावय किसानी कोन करही। 

कृषक करजा म दबगे कोन भरही। 


चलिन गंगा नहाये नेता मन हा।

बतावा देश ला अब कोन चरही।


तरसथे बूँद बर प्यासे हे मनखे।

नदी के झरना बनके कोन झरही।


बुतावत हावै अब दीया सुमत के। 

मया के बाती बन के कोन बरही।


कहाँ कोनो फिकर हे देश के अब ।

भगतसिंह बनके फाँसी कोन चढ़ही।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


ठहर थोरिक बतावँव बात का हे। 

अजी सुन गाँव के हालात का हे।  


भगा गे एक टूरा संग टूरी।  

अभी झन पूछ ओखर जात का हे।  


लगा के झूल गे फाँसी बबा हर।  

मरे लाँघन भला वो खात का हे।


उठा के लेग गे हाथी ल बरहा।  

इहाँ बचबो हमर औकात का हे।


हवय चिखला पियासे लोग अब तक। 

सिरागे माल सब बनवात का हे।  


पियत हे खून मच्छर रात दिन जी। 

गली मा देख ले बोहात का हे। 


सुखागे हे बड़े तरिया इहाँ के।  

अभी झन पूछ की बस्सात का हे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज मुसद्दस महजूफ़

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

1222 1222 122


अपन मनके चलइया सब हवय गा

कमाना नइ खवइया सब हवय गा


नँदावत रीति अउ संस्कार भाई

निभइया नइ बतइया सब हवय गा


चलौ मिल बाँटके खाबो तो कहितिन 

कहाँ पाबे लुटइया सब हवय गा


सुघर लिख रचना कतको कोन पढ़थे

पढ़इया नइ लिखइया सब हवय गा


तुहँर सब माँग पूरा 'ज्ञानु' करबो 

करइया नइ कहइया सब हवय गा


ज्ञानु

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

 2122  2122  2122  2122


घात बेरा होगे रोवत हस बता का बात हावय। 

भीतरे भीतर ये गम हा तोला काबर खात हावय। 


चारों कोती हे दिखावा के जमाना काला कहिबे। 

जेन सरगम तक ना जानै वोहा भारी गात हावय। 


सुख मा सुरता नइ करे सिरतो बता भगवान ला तैं। 

पालही अब कोन तोला दुख के बादर छात हावय।


देख के दूसर के दुख ला नइ पसीजे हे करेजा। 

आज वोकर भाग मा बस आँसू के बरसात हावय।


बहगे हे जम्मो फसल हा आँसों के बरसात मा अब।

अन्नदाता का करय जब भाग करिया रात हावय।


संग जीबों संग मरबों नइ जुदा होवन कभू हम। 

तोर सुरता आज बैरी घेरी बेरी आत हावय। 


नइ रहय दुख हा "अजय" जीवन मा आथे जाथे येहा। 

आही तोरो दिन बने अब फूल तक मुस्कात हावय।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़*

*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन*


*1222 1222 122*


हवय दीवार ठाढ़े घर कहाँ हे

अढ़ाई प्रेम के आखर कहाँ हे।


बरसगे कोन कोती जा के बइरी

हमन खोजत हवन बादर कहाँ हे।


नवा फैशन ला अपनाए हवस तँय

बता तो लाज के काजर कहाँ हे।


तुँहर सरकार बनगे झम झमाझम

दिखै दफ्तर खुले अफसर कहाँ हे।


भरे गोदाम मा चाँउर खबाख़ब

"अरुण" उनकर बता नाँगर कहाँ हे।


*अरुण कुमार निगम*

Monday 21 December 2020

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122-2122-2122-2122


पाँव सत के रद्दा मा भाई बढ़ाले काम आही।

मूड़ आगू तँय बड़े मनके नवाले काम आही।


छोड़ आधा बीच मा झन काम ला कोनो कभू तँय 

आज ही भिड़के बनउका ला बनाले काम आही।


काम कोनो तोर आवय नइ तही सरबस अपन बर 

सोय मन ला चेतकर भाई जगाले काम आही।


सत हे ये सिरतोन फेकइया उठाके कतको हावय

पाँव ला अंगद सही अपनो जमाले काम आही।


काम के नोहय जिनिस तँय राख एला थोरको झन 

'ज्ञानु' तन मन ले अपन नफरत हटाले काम आही।


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122  2122  2122  2122   


तोर ले हे मोर रिस्ता मन तभे अकुलात हावय। 

चाह मन मा नइ हवय आँखी मगर इतरात हावय।  


मोला जाना दूर हे पर मन कथे थोरिक ठहर जा। 

मोर रसता ओ डहर तन तोर कोती जात हावय। 


देख झन मुड़ मोर कोती मोर साहस बढ़ सकत हे। 

तोर रुक-रुक रेंगना ले मोर मन ललचात हावय।  


छम छमाछम बाज के मोला बलावत तोर पैरी। 

तोर बेनी मा लगे गजरा तको ममहात हावय। 


अब लहुट ना हे मगर घिलरत हवँव मँय तोर पाछू। 

तोर अइठे केस मोला जोर ले उलझात हावय।


कोन अस मोला बता दे काय हावय नाँव गोरी। 

गाँव कतका दूर बाँचे देख बदरी छात हावय। 


ये मया जंजाल होगे छोड़थौं पर नइ छुटत हे। 

डोर बिन बँधना बँधाये का जनी का बात हावय।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


गोठ एके लान के झन घोर आगू जाय बर हे।

दूर हाबय ठाँव झन बिलहोर आगू जाय बर हे।


सोच रखथँव‌ मैं छुवँव जाके गगन चंदा चँदैनी,

अउ सबो ले चाह बड़का मोर आगू जाय बर हे।


नइ‌ रहँव‌ डेना भरोसा आत्मबल ले मैं उड़ाथँव,

आँट अड़गा बाट के सब टोर आगू जाय बर हे।


मानथँव‌ उपदेश गीता एक धरती एक  बेंड़ा,

ये जगत हित प्रेम तागा जोर आगू जाय बर हे।


बम मिसाइल गन तमंचा पाय नइ बिश्वास चिटको,

दे पँदोली शांति ला पुरजोर आगू जाय बर हे।


जेन‌ हिरदे हे गहिर बड़ कोन एकर थाह पाहय,

माफ करके लाख गलती तोर आगू जाय बर हे।


घर करय सब हिय मनुसता हे मनी के कामना‌ जी,

लाय बर हे दग्ग नावा भोर आगू जाय बर हे।


- मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


पाप के गगरी भरे का, छेदरा हावै तरी मा।

पुण्य दरदर खाय ठोकर, डार के डोरी नरी मा।


खुद ला पीना हे तभो ले, खुद ला जीना हे तभो ले।

आज देखव मनखे मन, घोरे जहर पानी फरी मा।


ना गियानी ना धियानी, बेंदरा जइसे हे मुँहरन।

मानते नइहे टुरा हा, जान अटके हे परी मा।


लौट के आबे तैं दुच्छा,बन शिकारी बन मा झन जा।

जान ले चारा के बिन अब, नइ फँसे मछरी गरी मा।


काम ना संजीवनी दे , प्राण लक्ष्मण हा गँवाये।

कंस रावण जी उठत हे , पेड़ पत्ता अउ जरी मा।


बीत गे सावन घलो हा, बिन झड़ी के का बतावौं।

रदरदारद बरसे पानी, दाई के रखिया बरी मा।


हाँड़ी हँड़िया नइ सुहावै, नइ सुहावै घर के भाजी।

सब भुलाये ढाबा होटल, मास मद अंडा करी मा।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122  2122  2122  


बाँध के बीड़ा किसनहा बोह मुँड़ लानत हवँय जी। 

अन्न के हर एक दाना खास हे जानत हवँय जी।  


काम सब आसान होथे धीर धर मिहनत करे ले। 

पा जथे हीरा तको ला जेन मन छानत हवँय जी। 


सीख चाँटी के करम ले जेन पग आगू बढ़ावय।

पा जथे मंजिल कठिन तक जेन मन ठानत हवँय जी। 


द्वेष राखे मन लड़ेबर खोजथे ओखी हमेसा।

बात मा दम नइ रहय पर बात ला तानत हवँय जी।


अब बड़े के मान नइ हे बात के नइ हे ठिकाना।

आज कल के लोग लइका बात कब मानत हवँय जी। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


छोड़ जस के काम केवल धन कमाये तैं मरत हस। 

छोड़ के जाना सबो ला जानके काबर भरत हस।


लोभी क्रोधी होके तैंहा नइ करे जस काम ला गा।

लोभ ईर्ष्या के कराही मा बता काबर जरत हस। 


पाप के मिलथे सजा ये जानके आँखी मुँदे तैं।

छोड़ दे हस तैं भलाई काम नइ काबर करत हस। 


जब बिपत हा घेर लेही छोड़बे झन आस तैंहा।

दीया बनके जलबे आफत ले अभी काबर डरत हस। 


घर चलाना हे कहूँ तब टार झगरा ला सबो गा। 

छोटे छोटे बात तैंहा जान के काबर धरत हस।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


बाँह उप्पर रख भरोसा भाग बनही धीर धर तैं।

मेहनत ले बोंय फुलवा बाग बनही धीर धर तैं।


ये मया के साफ पोनी हे भले लटियाय कस जी,

थोरकुन निरवार ले गा ताग बनही धीर धर तैं।


हे भले मनखे बँटाये जात भाखा मेड़ पारे,

सब मनुसता ले बँधाहीं पाग बनही धीर धर तैं।


झन बुझन दे वो लुकी ला जे हवय गा तोर अंतस,

देश हित बर दगदगावत आग बनही धीर धर तैं।


गा पिरित के गीत भइया सुर लमा के तैं ससन भर,

देखबे सब संग आहीं राग बनही धीर धर तैं।


भेद पानी औंट जाही जब समझ के आँच पाही,

स्वाद वाले सुख सुमत के साग बनही धीर धर तैं।


हार ला भुलजा मनी तैं तोर हिम्मत ला सजा रख,

तोर कोशिश हा शगुन के काग बनही धीर धर तैं।


- मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


जाड़ मा मैंहर जमे रेंहेंव, गरमी पा गलत हौं।

मैं पिघल के पथ बनाके, ठौर खोजत अब चलत हौं।


लाम गेहे खाँधा डारा, नाचथौं मैं हाथ उँचाके।

तोर उगाये छोट बिरवा, आज फूलत अउ फलत हौं।


मार पथरा फर लगे तब, पर उदिम कर फर लगे बर।

का भरोसा काट देबे, बिन हलाये मैं हलत हौं।


साँस के दिन तक रही अब, का ठिकाना जिंदगी के।

जेल के भीतर धँधाये बिन हवा पानी पलत हौं।


जोगनी के राज मा मैं, रोशनी धरके करौं का।

झट सुँई  घुमगे समय के, बिन उगे मैंहा ढलत हौं।


मौत औं मैं मौन रहिथौं, नापथौं मैं काम बूता।

तीर मा झट आ जहूँ बस, आज कल कहिके टलत हौं।


भूख मारे के उदिम हे, दर्द सारे के उदिम हे।

चांद तारा तैं अमर, मैं पानी मा भजिया तलत हौं।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'

 एमा मोर ले गलती होय हे जेला सुधारत हॅव।

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


मीठ बर आगू सबो करुहा खवइया नइ मिलय जी।

छाँव‌ चाही घाम मा पर रुख लगइया नइ मिलय जी।


स्वार्थ मा करथें मया सब पाँव‌ परथें काम हे तब,

मानथें रिश्ता बना के पर निभइया नइ मिलय जी।


कोन ला संसो इहाँ हे बाँच जय तरिया कुआँ हा,

पाट देहीं डार कचरा पर खनइया नइ मिलय जी।


गाय किंंजरत हें सड़क मा रोज रेता के मरत हें,

दूध घी चाही दही पर रख पलइया नइ मिलय जी।


हे खजाना ज्ञान के बड़ गीत कविता लेख कहिनी,

मेहनत ले बड़ लिखत हें पर पढ़इया नइ मिलय जी।


मूँद लेथें नैन झट ले देखथें अति ला तभो जी,

नीत खाती आज जग मा अब लड़इया नइ मिलय जी।


छोट आँखी के हवँय बड़ नइ गुनत हें माँ बहिन‌ ला,

गुन मनी लुगरा बढ़ा इज्जत बचइया नइ मिलय जी।


- मनीराम साहू 'मितान'


🙏🙏🙏

Friday 18 December 2020

ग़जल--चोवा राम 'बादल'*

 *ग़जल--चोवा राम 'बादल'*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*

फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन


2122 2122 2122 2122


मौन अक्षर मा तको बड़ गर्जना ललकार होथे

काट देते क्रूरता ला जे कलम मा धार होथे 


 दोष किस्मत मा लगाके रोते रहिथे आलसी हा

 मेहनत पतवार के बल जिनगी नैया पार होथे 


 दीन हे ते काय होगे जीत जाही एक दिन वो 

सत्य के झंडा फहरथे झूठ के तो हार होथे


 एकता के मोल जानौ एकता के मंत्र फूँकौ

 जुरके अँगरी मुटका बनथे जोर से तब वार होथे


 देख संगी टोरबे झन हे अबड़ अनमोल जेहा

 पूजा के धागा सही निर्मल मया के तार होथे


पुरखा मन हावयँ बताये चीख के अनुभव के गोली

 करु कसा अउ मीठ चुरपुर कतको हा सख्खार होथे


  हे नजर के फेर 'बादल' अउ  नजरिया के बदलना 

देखबे वो दिखही वइसे सोच मा संस्कार होथे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

Thursday 17 December 2020

गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


एक ले हे प्यार काबर, एक ले तकरार काबर।

एक झन बढ़िया हवे ता, एक हे बेकार काबर।


मनखे अस ता मान रख, खुद के असन तैं सब झने के।

कर कलेचुप काम बढ़िया, पारथस गोहार काबर।


नइ जुरिस जीते जियत मा, पार ना परिवार कोनो।

साँस रुकगे ता जुरे हे, आदमी मन चार काबर।


का जमाना आय हावै, हाट होगे जिंदगी हा।

सेवा शिक्षा आस्था मा, होत हे वैपार काबर।


पेड़ नइहे पात नइहे, गाँव चिटिको भात नइहे।

धूल माटी के जघा मा, राख के गुब्बार काबर।


तोर दिल मा हे मया अउ तोर दिल मा हे दया ता।

आँख मा अंगार काबर, हाथ मा तलवार काबर।


सुख मा सुरता नइ करस अउ, देख दुख भगवान कहिथस।

तोर दुख ला टार तैंहा, वो लिही अवतार काबर।


सत धरे बिन दशरहा अउ, का दिवाली दिल मिले बिन,

जिंदगी मा रंग नइ ता, रंग के बौछार काबर। 


कारखाना मा उपजही, धान गेहूँ अउ चना का।

पेट के थेभा इही ये, बेचथस बन खार काबर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 


2122  2122  2122  2122 

ओढ़ के सुत जा रजाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे। 

मान कहना मोर भाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे। 


काँप गे धरती तको हर हे सुरज बादर लुकाये। 

देख के झन कर ढिठाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे। 


देख सर्दी हो जही खाँसी तको हर हो सकत हे।

खाव झन अब तो खटाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे।  


हाथ मुँह जम्मो चटक गे पाँव तक चेर्रा हनत हे।

साँच कहिथे मोर दाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे।


काँप जाथे तन बदन हर पाँव पानी मा धरे ले। 

छोड़ दे अब तो नहाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे। 


पेंड़ मा जम गे बरफ हर देख तरिया नइ दिखत हे। 

कोन रसता अब बताई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे। 


सब तरफ फइले बरफ हे जीव एक्को नइ दिखत हे।

अउ बता कतका गिनाई जाड़ अबड़े बाढ़ गे हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


दे खुशी तैं बाँट के उजियार जग मा नाँव करले।

टार काँटा बाट ला चतवार जग मा नाँव करले।


तोर मिहनत के कहानी एक दिन सिरतो गढ़ाही,

खर पसीना माथ ले ओगार जग मा नाँव करले।


काल‌ के ला आज कर‌ना हे समे के माँग भाई,

माथ धरके झन बइठ बेकार जग मा नाँव करले।


हे सफलता हाथ तोरे ठान ले मन जीत खाती,

टाँग पूछी भागही झट हार जग मा नाँव करले।


कर्म तोरे हाथ हाबय धर्म रखले साथ मा जी,

प्रेम भजले हे इही बस सार जग मा नाँव करले।


जेन बोहे बोझ रइथे जानथे कतका गरू हे,

लोक हित बर देख लेके भार जग मा नाँव करले।


थामथे बढ़वार पग जे, सुन मनी पहिचान रख ले,

धर कुदारी आँट वो ओदार जग मा नाँव करले।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल -चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल -चोवा राम 'बादल'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


याद आथे गाँव मोला

लीम पीपर छाँव मोला


धाम चारों कस वो दाई

 तोर लागे पाँव मोला


देव ठाकुर शीतला के

झन भुलावय नाँव मोला


तोर कोरा मा मिलय बस

  मरिया माटी ढाँव मोला


घूम के जग देख डारेंव

दिखथे छल के दाँव मोला



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122  2122 


मोर मन के बात बोलँव। 

आज जम्मो राज खोलँव।  


देह मा अब कुछ बचे नइ। 

बाँस भिरहा कस मैं डोलँव।   


सुख मिले थोरिक भले हो। 

आज रिस्ता मन ल झोलँव।


बैर ला जम्मो मिटा के। 

प्रेम रस मा सब ल घोलँव।


नेक करनी अब करत हँव।

सोंच थौं कुछ पाप धोलँव। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122  2122 


नाव नदिया मा चला ले। 

संग तँय मोला बला ले। 


पा जबे कुछ दाम संगी। 

तन अपन थोरिक गला ले। 


जाड़ बाढ़े हे बहुत जी। 

तापे बर भुर्री जला ले। 


सूख गे हे खेत जम्मो। 

अब तनिक पानी पला ले। 


फोर देथे बेंदरा हर। 

टोर छानी छत ढला ले। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


विस्की अउ ना रम सही हे।

बड़ खुशी ना गम सही हे।1


तोर उजड़ही आशियाना।

बोल बारुद बम सही हे।2


का ठिहा का ठौर पाबे।

आस ना संयम सही हे।3


जादा मा डर हे जरे के।

चीज बस तब कम सही हे।4


मरगे मनखे मोर मैं मा।

छोड़ चक्कर हम सही हे।5


बारे घर बन ला उजाला।

ता रहन दे तम सही हे।6


चोचला बड़ हे बड़े के।

आम मन लमसम सही हे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122  2122 


आँसू ला बरसात कइहँव। 

केस कारी रात कइहँव। 


मँय लबारी मार ओला। 

कुछ मया के बात कइहँव। 


रूप चंदा कस दिखत हे। 

आज तरिया जात कइहँव। 


संगमरमर कस दमक गे।

देख वापिस आत कइहँव। 


रेंग झन कातिल अदा दे। 

हे कमर बलखात कइहँव। 


तीर छाती मा लगत हे। 

देख झन मुस्कात कइहँव। 


तोर आँखी देख गोरी। 

हे अजब हालात कइहँव।  


होठ मा हे रस भराये। 

बात गाना गात कइहँव। 


पट जही मोला पता हे। 

अब बता का बात कइहँव। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122   2122 


हाल बड़ बेहाल होगे।

जनता हा कंगाल होगे।


बेच डारिन देश धन ला

नेता मालामाल होगे।


योजना हे बस कलम मा

पर हकीकत झाल होगे।


दीन दुखिया नइ पुछाड़ी

सुख नही दुख काल होगे।


आज हमरे भाग मा बस

नून बासी दाल होगे।


नइहे कोनों सुख मसीहा

सबके बदले चाल होगे।


देख हालत देश पात्रे

खून मा ऊबाल होगे।



गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122   2122 


संत घासीदास गुरु के।

मन बसा विस्वास गुरु के।


कतरा कतरा हे समर्पित

जिनगी ये हर साँस गुरु के।


पाबे हर पग कामयाबी

छोड़बे झन आस गुरु के।


भटका दर दर खात हे

जे करे उपहास गुरु के।


शाम दिन अउ रात पात्रे

पाथे खुद ला पास गुरु के।


गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122


जिनगी के आधार रख तँय 

दिल मा सब बर प्यार रख तँय 


छोड़ अदरा बदरा मनला

ठोस ठाहिल सार रख तँय 


चल जही रख झन भले कुछ 

फेर हा संस्कार रख तँय 


दुक्ख देवइया कमी नइ 

हिरदे सुख भंडार रख तँय 


जीतना जग ला हवय ता 

नम सरल व्यवहार रख तँय 


कतको हावय फन उठइया

काँटे बर तलवार रख तँय 


काम आवय जें बखत मा

'ज्ञानु' संगी चार रख तँय 


ज्ञानु

गजल- मनीराम साहू 'मितान'

 गजल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 

2122   2122 


काज परहित कर भला हे।

घाम मा कुछ जर भला हे।


मार दे अँधियार बइरी,

दीप कस तैं बर भला हे।


सोरिया दुखिया मनुज ला

पीर ला तैं हर भला हे।


पाँव झन दे झूठ के डग 

पाप ले कुछ डर भला हे।


काय मरना भात खाती

बात बर तैं मर भला हे।


देख बइरी बड़ तपत हे,

जा नँगत के छर भला हे।


बाट चल चतवार के तैं,

झन रहय अद्दर भला हे।


भाय सब ला सुन मनी तैं,

बोल रख कोंवर भला हे।


- मनीराम साहू 'मितान'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुरब्बा सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122 2122


बइठ हरही गाय जोहन

हम चना रखवार नोहन


का मरे मछरी सहीं हम

धार मा पानी के बोहन


धार के बिपरीत चलके

चल मुकुट माथा म सोहन


लोकहितकारी शबद धर

लोक के हिरदे म पोहन


सुख मिले सुखदेव सब ला

शिव जपन के राम मोहन


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


ताल सुर बाजा सिरागे।

तइहा के खाजा सिरागे।1


मार देहू भाग जा मा,

मत मया आजा सिरागे।2


जातरी आगे कई के।

रंक का राजा सिरागे।3


फ्रीज सजगे हे घरो घर।

चीज सब ताजा सिरागे।4


मनखे मनके का ठिकाना।

सबके अंदाजा सिरागे।5


बन मा बन गे बाट बड़का।

साल अउ साजा सिरागे।6


खैरझिटिया अब खड़े रह।

आस दरवाजा  सिरागे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा

छत्तीसगढ़ी गजल-आशा देशमुख

 छत्तीसगढ़ी गजल-आशा देशमुख


बहरे रमल मुरब्बा सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122 2122


तोर करनी काम आही ,

खुद बुलाये राम आही।1


फिर चुनावी साल आ गे,

तोर कतको दाम आही ।2।


घाम देखे हार झन तँय,

छाँव देवत शाम आही।3।


 काम करले बेर हावय,

 फिर पिछू तो घाम आही।4।

 

कर ददा दाई के सेवा,

रेंग चारो धाम आही ।5।


 दुर्गा शंकर इजारदार

 सारंगढ़(छत्तीसगढ़)

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


मोर जिनगी आय काबर।

मन म बैरी छाय काबर। 


तोर मन में खोट भारी ।

तन ल तँय रंगाय काबर।


भूख नइ लागत रहिस तब

भात ला तँय खाय काबर। 


पेट टमटम ले भरे हे

खाना ला मँगवाय काबर। 


कोनो नइ मानय कहे ला 

फेर तँय समझाय काबर।


दुःख हे ससुराल मा जब

बेटी ला अमराय काबर।


चार दिन चलथे समझ ले। 

माल चीनी लाय काबर।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल -आशा देशमुख* 🌹

 🌹 *ग़ज़ल -आशा देशमुख* 🌹


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



आज दिल मा शेर उतरे

बात अब्बड़ देर उतरे।1


डार हा भुइयाँ छुवत हे

देख केरा घेर उतरे।2


चल करव जी काम जल्दी

आय संझा बेर उतरे।3


चार भाई एक बहिनी

सोच काकर मेर उतरे।4


अब बनाले अमरसा वो

आय आमा चेर  उतरे।5


नइ मिलत हे सीट बस मा

तेंहा काबर फेर उतरे।6


लान गाड़ा ला समारू

धान के हे पेर उतरे।7


बीज के उपकार अब्बड़

एक बोवव ढेर उतरे।8


जग चढ़े सीढ़ी प्रगति के

हे तभो अंधेर उतरे।9


आशा देशमुख

गजल- मनीराम साहू 'मितान'

 गजल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 

2122   2122 


लिख गजल ला तैं बहर मा।

गा बने जी लय लहर मा।


छोड़ दारू के नशा ला,

खोज झन जिनगी जहर मा।


गोठ करथस शान से तैं,

चार दिन जाके शहर मा।


नर्क‌ के भागी बने बर,

बोंत हस काटा डहर मा।


धान‌ बों जरई जमा के,

आत हे पानी नहर मा।


पाय बर मोती हवय तव,

खोज जाके तैं दहर मा।


झन‌ भुला हरि ला मनी तैं

सोरिया हर पल पहर मा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल-अरुण कुमार


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*


*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*


*2122 2122 2122 2122*


खेत मा मिहनत करव, का हे किसानी जान जाहू

घाम मा कइसे झुलस जाथे जवानी जान जाहू।


सेठ साहूकार बन के कार मा किंजरत हवव तुम

काँध मा नाँगर धरव हमरो कहानी जान जाहू।


छोड़ देबो हम किसानी ला तुँहर साहीं कहूँ तब

कीमती कतका हवय ये अन्न-पानी जान जाहू।


ठान लेबो हम जउन दिन पद सिंहासन डोल जाही

दम मा हमरे झूमथे ये राजधानी जान जाहू।


हम मया मा प्राण तक ला बाँट देथन "अरुण" छिन मा

आजमा के देखलव हमरो मितानी जान जाहू। 


*अरुण कुमार निगम*

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 


2122   2122 


देख मर के देश बर तँय। 

देश सेवा आज कर तँय। 


नाम होही तोर जग मा। 

पीर सबके आज हर तँय। 


एक दिन मरथें सबो झन। 

झन मरे ले आज डर तँय। 


सामने दुश्मन खड़े हे। 

चल उठा हथियार धर तँय। 


देश खातिर जान दे के।

हो जबे इकदिन अमर तँय। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122  2122 


रोज चुगली तँय करत हस। 

पाप के कोठी भरत हस। 


लोग देवत बतदुआ हे।

देख ले तिल-तिल मरत हस। 


हाड़ बाँचे देह मा बस।

पेंड़ पाना कस झरत हस। 


पा गये हस हक अपन ला।

फेर तँय हर नइ टरत हस। 


हो गये कुटहा बरोबर।

काखरो ले नइ डरत हस। 


खात हमरे छीन के अउ।

मूंग छाती मा दरत हस। 


तोर मन लालच हमाये।

घर भरे तब ले धरत हस। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम।

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम। 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 


2122  2122  

राह उरभट झन तें जा रे।

हे समे अब लौट आ रे। 


काम अइसन झन करे कर। 

लाज आवय मुँह उघारे। 


तास के पत्ता बरोबर। 

नाचबे सब बीच मा रे। 


रोज कहिथस जीत आथौं। 

तँय बता फिर कोन हारे। 


दाहरा के भोरहा मा। 

आज बाढ़ी झन तें खा रे। 


बस खवइया हे इहाँ सब। 

फँस जबे ता नइ उबारे। 


तोर जिनगी हर घुरत हे।

भाग दूसर के सँवारे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122  2122  2122 


मोर बेटा आज मोला घर निकाला कर दिए तँय।

मोर अंतस चोंट करके आँख आँसू भर दिए तँय।


मोर मिहनत के कमाये मोर घर अब मोर नइ हे। 

सँग गुजारा नइ चलय कह लान आश्रम धर दिए तँय।


बाल पन ले हर जरूरत तोर पूरा मँय करे हँव।  

मोर बर बासी तको नइ हे कहे अउ टर दिए तँय।


का कमाही काय खाही सोंच का नइ आय होही?

नान कन मोला कटोरा सोंचथौं काबर दिए तँय।


भूल गे तँय दिन पुराना जब जरूरत तोर आइस। 

गाँव के घर खेत बेचे रोज आके गर दिए तँय। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़जल--चोवा राम 'बादल'*

 *ग़जल--चोवा राम 'बादल'*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*

फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन


2122 2122 2122 2122


मन हा मंदिर बन जतिस वइसन कृपा हे नाथ कर दे

प्रेम के पावन अमृत ला सबके  अंतस घट मा भर दे


रात दिन तो घेरे रहिथे छल कपट के बैरी निसचर

मूँड़ मा बइठे अहम के भार ला भगवान हर दे


खून चूसत जेन हाबय कटकटा के चाब अबड़ेच

द्वेष के मच्छर के मुँह ला बइगा मंतर मार धर दे


तिजरा जर कस माया ममता घेरी बेरी करथे हमला

ज्ञान के गोली हमूँ खा लेबो कब आबे खबर दे


सत के मारग धर के रेंगयँ अउ अलख सत के जगावयँ

सिरतो बन जाही सरग ये धरती अइसन नारी नर दे



चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


भैरा होगे मंत्री मन कोंदा हा ठोंकत ताल हे जी

माफिया के राज मा गदहा उड़ावत माल हे जी। 


न्याय के दरबार मा निर्दोष के पेशी लगत हे। 

चोरहा मन छूटगे सिधवा के उधड़त खाल हे जी।


साधु बन लबरा घुमत हे सोर हे चारो डहर गा

कोन ला सिधवा बताबे सब के बिगड़े चाल हे जी।


गाड़ी मोटर रोड मा जमराज कस दउँड़त हवय अब।

देख के रेंगव रे भैया आघु ठाढ़े काल हे जी।


फेर आँसों भाव गिरगे अन्नदाता का करय गा।

सब टमाटर रोड मा हे खाने वाला लाल हे जी।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुरब्बा सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122 2122 2122 2122


पूछ झन पच्चीस बेखत काय चाही काय चाही

जाॅंच ला निष्पक्ष होवन दे हमन ला न्याय चाही


राजनीतिक स्वार्थ के तॅंय ऑंकड़ा बइठार झन

का सहीं का हे गलत अब तोर हमला राय चाही


सुख मिलय तब्भो बने हे दुख मिलय तब्भो बने हे

शान्ति सुमता ले रहन दे अब न कोई बाय चाही


नइ कभू खोजन खजाना नइ बनावन कारखाना

एक नॉंगर खेत अउ कोठा म बइला गाय चाही


मोर ॲंगना तॅंय पधार अउ तोर ॲंगना ऑंव मॅंय

छल नहीं 'सुखदेव' अब सद्भावना के चाय चाही


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

   कबीरधाम छत्तीसगढ़

ग़ज़ल--आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल--आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*


*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*


*2122 2122 2122 2122*



तोर मन तलवार बइहा मँय मया के धार लिखथंव

तैं धरे धन के तिजोरी मँय भरे परिवार लिखथंव।1


नींद में ललचाय आँखी कार बंगला मान पदवी

तेँ कहे कुरसी सुघर हे मँय सदा बनिहार लिखथंव।2



पाँव मा कालीन बिछ्थे हाथ मोबाइल धरे हे

तेँ कहे गुलदान रखदव मँय इहाँ औज़ार लिखथंव।3


स्वार्थ के आँधी चलत हे पेड़ डाली टूट जाथे

तेँ कहे भरबो अपन घर मँय दया उपकार लिखथंव।4


रोग राई फैल गे हे ठौर नइहे अब  दया बर

तेँ गुणा धन भाग करथस मँय दवा उपचार लिखथंव।5


बंट गए हे घर दुवारी कोठ रुंधना मा खंड़ागे

तैं गए गमला बिसाये मँय ह गहदे नार लिखथंव।6


हे अबड़ अंतर दुनो मा जान धरती अउ अकाशा

तेँ कुआं के मेचका अउ मँय सरी  संसार लिखथंव।7



आशा देशमुख

ग़ज़ल--इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 ग़ज़ल--इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122 2122 2122 2122


जन भलाई हे कहाँ अब मतलबी संसार होगे।

झूठ इरखा द्वेष मा इंसान अब मतवार होगे।


गाँव घर अँगना गली मा कोंन लावय भोर सुमता

प्रेम सुख बाती बिना दीया तले अँधियार होगे।


आजकल मनखे ल मनखे साँप बन के नित डसत हे

विष भरागे बात मा विस्वास मा गद्दार होगे।


घूस महँगाई गरीबी हा बढ़त हे बड़ दिनों दिन

आम जनता कौंर सुख पाये इहाँ लाचार होगे।


जाति मजहब मा पड़े हम दूर धंधा से गजानंद

अउ इहाँ चारों डहर परदेशिया व्यापार होगे।



*इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


जानले पहिचान ले जग मा पराया खास भाई

देखले दुख- सुख बखत मा कोन हावय पास भाई


सार जिनगी के इही हे जीत कभ्भू हार होथे

फेर अंतिम साँस तक तँय छोड़बे झन आस भाई


पाँव भुइँया मा अपन पहिली जमा कसके इहाँ रे 

जाने समझे बिन कुछू उड़ झन जबे आगास भाई


आज तक मूरख बनावत आत हावय जनता ला सब

पाय कुर्सी जेन हावय बस रचावय रास भाई


'ज्ञानु' बड़भागी हवस पाये जनम तँय रे मनुज के 

जिनगी हे अनमोल बड़ झन करबे सत्यानास भाई


ज्ञानु

गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


झन अँड़े रह बड़ हवा हे, डार कस खुद ला झुका दे।

जर जही घर बार कखरो, आग झन भभके बुता दे।



काँटा खूँटी काँद बोबे, ता तहूँ बदनाम होबे।

सब झने सँहराही तोला, प्रेम के पउधा उगा दे।


जड़ बिना नइ पेड़ होवै, मनखे न इंसानियत बिन।

नेव बिन मीनार ढहथे, कतको बड़ चाहे उठा दे।



मैं किसानी का करौं, अब कोन सुनथे मोर बयना।

जल पवन हा तोर से, आथे बुलाये ता बुला दे।


एक डरथे भीड़ ले अउ, एक चलथे भीड़ धरके।

घर घलो मा आही नेता, भीड़ मनखे के जुटा दे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


धीर धरके मीठ बोली बोल हाबय बड़ जरूरी।

शब्द जम्मो वाक्य हरदम तोल हाबय बड़ जरूरी।


जाय बर जब बाट हाबय संग रखले सावचेती,

हो गहिर मत रेंग आँखी खोल‌ हाबय बड़ जरूरी।


आय नइ कब्भू लहुट के जात हे वो बिन थमे जी,

काम करके कर समे के मोल हाबय बड़ जरूरी।


बोंय बर हाबय फसल‌ गा खेत मा जब ओनहारी,

खूब वो जोताय राहय ओल हाबय बड़ जरूरी।


बाँट ले सब ला‌ खुशी तैं दुख दरद के माँग बाँटा,

बाढ़‌ बर तैं पीट सुमता ढोल हाबय बड़ जरूरी।


हे दिखत लकड़ी निकामिल सोझियाही टेड़गा हा,

बिन फबक के गाँठ पिरकी छोल हाबय बड़ जरूरी।


घर करय झन‌ तोर अंतस सुन मनी ये किसकिसी हा,

झन पलन दे ध्यान दे झट कोल हाबय बड़ जरूरी।


- मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


चार दिन के जिंदगानी ए चिरैया फूल गोंदा 

मस्त चंचल औ जवानी ए चिरैया फूल गोंदा


मारना हे मार ले जतका लइकईपन मा मजा तँय 

फिर कहाँ पाबे नदानी ए चिरैया फूल गोंदा


अन उगाये बर पसीना खून बोहाये ल परथे

नौकरी नोहय किसानी ए चिरैया फूल गोंदा


लूट के खाथे उँमन अउ लूट जाथन हम सदा ही

काम आवय खानदानी ए चिरैया फूल गोंदा


 पेर जाँगर रोज हम दिन ला बिताथन 'ज्ञानु' दुख सुख 

 इहि हमर जिनगी कहानी ए चिरैया फूल गोंदा


ज्ञानु

ग़ज़ल--आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल--आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*


*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*


*2122 2122 2122 2122*


भाग बड़ हे तोर होवत हे सदा दिन मान कुरसी।

बेसुरा हे राग तबले तोर हे गुणगान कुरसी।


शान शौकत नाम पदवी आय मनखे के खजाना 

तोर खातिर प्राण के बाजी लगय बेजान कुरसी।2


अब कहाँ तीरथ बरत हे कोन अब सेवा करत हे

आज के भगवान माया योग जप तप ध्यान कुरसी।3


हे भले आकाश ऊँचा हे बड़े परवत समुन्दर

तोर का औकात मनखे हे अबड़ बलवान कुरसी।4


मीठ लबरा मन सुहावन बोल से लुटे खजाना

सत्य सेवा अउ धरम के माँगथे बलिदान कुरसी।5


आशा देशमुख

Tuesday 15 December 2020

गज़ल-अजय अमृतांशु

 गज़ल-अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


राम भजले सार हावय।

बाकी सब बेकार हावय।


देश आघू कइसे बढ़ही

नेता मन गद्दार हावय।


का जमाना आ गे भैया

शिक्षा अब व्यापार हावय। 


गुरु के महिमा होथे भारी।

ज्ञान के भंडार हावय।


नेता के दर्शन कहाँ अब ।

जनता तो लाचार हावय।


जीतही जी एक दिन वो।

आज जेकर हार हावय। 


प्यास सब जल्दी बुझा लव।

नदिया मा अब धार हावय।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


सोंच के बोलव तभे सब काम हा बनही सदा जी।

काम करबे तँय बुरा तब एक दिन मिलही सजा जी।


हे टिके बिसवास मा नइते खतम हो जाय दुनिया।

पाप होथे जान लव तुम कोनों ला झन दव दगा जी।

 

हे कथा कलजुग के भैया जान लव पहिचान लव सब। 

माँहगी सब चीज होगे आज बेचाबत हवा जी।


सब निकलगे काम मा जी छोंड़ के खटिया अपन जब। 

उठ तहूँ तैयार होजा बेरा ला झन तँय गँवा जी।


बेटा मन हावय मगन देखय अपन परिवार ला बस। 

खटिया मा हे दाई बाबू कोन लावय अब दवा जी।


अब भला के जुग कहाँ मोला बतावव संगी मन सब।

होम देवत हाथ जरथे कइसे करबे तँय भला जी। 


हे अजय चारों डहर अब राज लबरा मनखे मन के।

झूठ ला पतियाथे सब झन साँच कहना हे बला जी।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़जल--चोवा राम 'बादल'*

 *ग़जल--चोवा राम 'बादल'*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*

फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन फा़इलातुन


2122 2122 2122 2122


घाम लागय सास बड़की  छाँव सारी कस दुलौरिन

 भोंभरा जइसे सुवारी बड़ पदोथे रोज गउकिन


झाँझ-झोला अउ बँड़ोरा  दुश्मनी ढाने हवय गा

छटपटाथे जीव भारी प्यास मरथे घात छिन छिन


थपथपाथे बड़ पसीना चिपचिपाथे देंह कपड़ा

मूँड़ पिरवा होगे गरमी कोन तरिया तन ल बोरिन।


देख कूलर घुरघुराथे चुरमुराथे जाम पंखा 

तीप जाथे करसी पानी कामा शरबत आज घोरिन 


दुष्ट धमका आ धमकथे का बिहनिया का मँझनिया

ताव देखाथे सुरुज हा कतका ओकर हाथ जोरिन 



चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

ग़ज़ल--आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल--आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसम्मन सालिम*


*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*


*2122 2122 2122 2122*



खोज ले संसार भर मा नइ मिले दाई सहीं जी

जान बैरी अउ हितैषी नइ रहय भाई सहीं जी।1


यज्ञ पूजा स्नान गंगा दान भंडारा करत हें

मोर मन कहिथे सदा बड़का न सच्चाई सहीं जी।2


ज्ञान शिक्षा मान पदवी धन उमर मन बैठ जाथे

कोन अब्बड़ तेज बाढ़े आज महँगाई सहीं जी।3


हे उडे आकाश पंछी आसरा धरती हा देवय

नइ मिले आराम सुख अउ छाँव अमराई सहीं जी।4


आज सुख सुविधा अबड़ हे बैठ ले ए सी  कुलर मा

नींद सुख अउ शांति नइहे जान पुरवाई सहीं जी।5



आशा देशमुख

गज़ल - अजय अमृतांशु

 गज़ल - अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसम्मन सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122 2122


भाग मा संघर्ष हावय झन कभू आराम करबे।

खूब करके मेहनत तँय जग मा सुग्घर नाम करबे। 


तोर सो दाई ददा हे रुप हवय भगवान के जी।

सेवा करबे मन लगा के घर ल चारो धाम करबे ।


बैर रख के जीना संगी येहू कोनो जीना हावय।

टूट जावय घर ह भाई झन तें अइसन काम करबे।


बड़बड़ाना कुछ के आदत होथे सिरतो फालतू के

सार कहना ठीक होथे बात झन तँय लाम करबे ।


दिन हवय खेती किसानी के चलव करना हवय जी 

मुँधरहा ले खेत जाबों जादा झन तँय घाम करबे ।


साँझ के पंछी घलो आथे अपन जी खोंधरा मा।

बेरा बूड़त हे पहुँच जा घर अजय झन शाम करबे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गा शंकर इजारदार

 छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गा शंकर इजारदार


बहरे रमल मुसम्मन सालिम


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122 2122 2122 2122



आज लुच्चा अउ लफंगा मन के देखव राज हावय ,

बेंदरा मन के मुड़ी मा तो सजे जी ताज हावय ।1।


बाप बेटा संग बइठे आज पीयत हे रे दारू,

काकरो तो अंग मा चिटको कहाँ रे लाज हावय ।2।


छोड़ दे निर्मल कया पानी मिले के आस ला गा,

सरहा मछरी संग मा गुजगुज भरे तो गाज हावय।3।


बांसुरी डफली मँजीरा बिन सजे गाना बजाना,

रैंप डिस्को थाप बाजा मा कहाँ वो साज हावय।4।


तान सीना देश हित बर जेन ठाढ़े हे सिवाना,

ओखरे खातिर बचे तो देश के गा लाज हावय।5।


दुःख पीरा छोड़ लिखथे जेन कवि पदवी के खातिर,

पावनी साहित धरा बर वो कवि तो खाज हावय ।6।


हाथ मा भाला धराके बेटी ला सिंगार दुर्गा,

खोल बखरी मा तो किँजरत आज कतको बाज हावय ।7।


 दुर्गा शंकर इजारदार

 सारंगढ़(छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



नव के चल तब नाम होही।

अँड़बे ता संग्राम होही।1


पेट भरही भात बासी।

अउ बड़े बादाम होही।2


सोंचबे अउ करबे अच्छा।

मन मुताबिक काम होही।3


काम करबे नित बुरा ता।

बड़ बुरा अंजाम होही।4


नइ रही खेती किसानी।

कोठी का गोदाम होही।5


जब सिराही द्वेष दंगा।

घर गली तब धाम होही।6


राम कहना मानबे ता।

तोरो घर मा राम होही।7


जाड़ मा झन काँप जादा।

धीर धर झट घाम होही।8


कर करम नित खैरझिटिया।

 झट सुबे अउ शाम होही।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


बिन गुरू के ज्ञान भइगे।

माते रण मा म्यान भइगे।1


पाँव उठे नइ थोरको भी।

बात  मा ऊड़ान भइगे।2


मैल जमते जाय मन मा।

रात दिन बस स्नान भइगे।3


काँपे खुर्शी देख नेता।

जनता हे हलकान भइगे।4


देश हा कइसे सुधरही।

मंद मा मतदान भइगे।5


भाव कौड़ी के बिकत हे।

आज सत ईमान भइगे।6


आधा तोपाय आधा उघरा।

वाह रे परिधान भइगे।7


का दया अउ का मया अब।

हिरदे हे चट्टान भइगे।8


जाने नइ गुण ज्ञान तेखर।

होत हे गुण गान भइगे।9


तरिया परिया हरिया सब गय।

गोड़ा ना गौठान भइगे।10


मात गेहे बड़ मनुष मन।

का कहौं भगवान भइगे।11


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 12 December 2020

गजल- मनीराम साहू 'मितान'

 गजल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 

2122   2122 


बस उही हा काम के हे।

नाम जे सुखधाम के हे।


हे दिखत सच्चा असन जे,

सच कहँव वो नाम के हे।


पेर जाँगर बड़ कमाथे,

दाग सब वो घाम के हे।


खास मन‌ हें सब मजा मा,

भाग मा दुख आम के हे।


पा जथे जी मान‌ पछुवा,

खेल तो सब दाम के हे।


हे लहू हा लाल सबके,

बस फरक ये चाम के हे।


सुख कहाँ पाही मनी हा,

बस मा जब आराम के हे।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

 ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


का मनुष का जानवर तैंहा बुला पुचकार के।

आ जही सब तीर मा तैं देख दाना डार के।1


जानवर ले गय बिते मनखे दिखत हे आज के।

घर अपन उजरात हावै पर ठिहा ला बार के।2


बैर झन कर बैर झन धर बैर देही बोर गा।

फलही फुलही अउ महकही बोदे बिजहा प्यार के।3


बनके स्वार्थी का कमाबे धन धरे तजबे धरा।

जानवर बन काय जीना मीत ममता मार के।4


आदमी सिधवा डरत हे मोठ होवै चोर हा।

नइहे डर बदमास मनला डाँड़ कारागार के।5


सत सुमत अउ मीत तजके का धरत हस हाथ मा।

काटना अउ भोंगना तो काम हे तलवार के।6


काम आवै नइ गरब हा कंस रावण गय झपा।

मान कहना खैरझिटिया देख झन मुँह फार के।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल -आशा देशमुख🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख🌹


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


भाव ऊँचा राख लव जी शब्द के बाज़ार मा

स्वाद गुण दूनो भरव जी मन भवन भंडार मा।1


बीज मा जब खोट रहिथे खेत के का दोष हे

होय घाटा या मुनाफा कर करम व्यापार मा।2


देख झन सपना मुंगेरी जाग आँखी खोल तँय

घूम ले दुनिया भले  सुख शांति हे परिवार मा।3


लेनदारी देनदारी जिंदगी भर आय गा

आ यहू ला आजमा ले सुख मिले उपकार मा।4


नाम जिंखर हे अमर वो काम कइसन हें करे

सच डहर अब्बड़ कठिन पौंरी जरे अंगार मा।5


रोग राही बाढ़गे भटकत हवय  मनखे इहाँ

स्वाद संयम के घलो नुस्खा रखव उपचार मा।6


 लोभ काँटा मारके तौलत हवय मन लोभिया

सच लबारी ला रखे ईश्वर तराजू भार मा।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122 2122 2122 212 


बाँध के बीड़ा अगोरत हँव कका कब आय जी। 

फाँद के बइला ल हाँकत गाड़ी कब वो लाय जी। 


चार सौ आही बराती के सन्देसा भेज के। 

आय हावय  चार झन पकवान अब सिरवाय जी। 


साँप चाबिस एक दिन लबरा गुहारत रहि जथे। 

जानथे लबरा हरे कोनो कहाँ पतियाय जी। 


बाज उड़ियावत हवय आँखी गड़ाये देख ले। 

का पता कब कोन ला वो धर उड़ा ले जाय जी। 


चाय के चुस्की लगावत जेन मन बड़ कोसथे। 

चल तही अब कर दिखा कहि दे सुनत घबराय जी। 

रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122  2122  2122  212 


मोर अंतस के मया ला तँय जगाये कोंच के।  

राह रेंगत छेंड़ दे तँय मोर बाखा टोंच के। 


जब मिले तब मुस्कुरा के बोल बोले तँय गियाँ।

कर सवाँगा तँय रिझाये बाल कलगी खोंच के। 


कोन कहिदिस काँय हावय जे उदासी छाय हे।

रंग काबर उड़ गये सुवना बता तो चोंच के। 


का गलत होगे बता मुख मोड़ चल दे हच कहाँ। 

तोर बिन अब मोर का होही बता कुछ सोंच के।  


अब कहाँ तन प्राण बाँचे एक जिंदा लाश हँव।

लागथे तँय ले गये हच मोर हिरदय नोंच के। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल--चोवा राम 'बादल' *बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

 ग़ज़ल--चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


झन भरोसा कर कभू तैं वो बहानाबाज के

मूलधन ला कोन काहय आस नइये ब्याज के


अंग झलकत हे सरी कहिथे इही फैशन हवै

थोरको डर नइये बानी बात के ना लाज के


साल भर नइ होय हे पुलिया धसकगे देख तो

कोन पर्दा ला हटाही तोपे ढाँके राज के


गे रहिस बुलबुल बुले बर तो बिहनिया बाग मा

छटपटावत हे परे चंगुल मा अब तो बाज के


चार दिन के चाँदनी चक फेर कारी रात कस

हाल होथे मूँड़ ले उतरत गरब के ताज के


बाजथे कसके सुनाथे ढोल बाजा दूर तक

पोल रहिथे पेट भीतर कतको कस जी साज के


भादो सावन उड़गे धुर्रा जेठ मा बरसत हवय

नाश करदिस बैरी 'बादल' हा किसानी काज के



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122  2122  2122  212 


मोर अंतस के मया ला तँय जगाये कोंच के।  

राह रेंगत छेंड़ दे तँय मोर बाखा टोंच के। 


जब मिले तब मुस्कुरा के बोल बोले तँय गियाँ।

कर सवाँगा तँय रिझाये बाल कलगी खोंच के। 


कोन कहिदिस काय हावय जे उदासी छाय हे।

रंग काबर उड़ गये सुवना बता तो चोंच के। 


का गलत होगे बता मुख मोड़ चल दे हच कहाँ। 

तोर बिन अब मोर का होही बता कुछ सोंच के।  


अब कहाँ तन प्राण बाँचे एक जिंदा लाश हँव।

लागथे तँय ले गये हच मोर हिरदय नोंच के। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख🌹


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


संशोधित


जेन टूटे हे नता ला जोड़ के सुघ्घर बना।

द्वेष इरखा डंक बानी छोड़ के सुघ्घर बना।1


लान ईंटा गार माटी नेंव धरले अब गियाँ

घर अबड़ धसकत हवय अब तोड़ के सुघ्घर बना।2


रोज पानी बर भटकथस ये गली अउ वो गली

जे कुँआ सुक्खा पड़े हे कोड़ के सुघ्घर बना।3


आय गरमी दुख अबड़ पानी बिना तरसे फसल

सोझ जावय जे नहर वो मोड़ के सुघ्घर बना।4


फूल फल मेवा मिठाई सब जिनिस सउघे चढ़े

होय शुभ सब काम नरियर  फोड़ के सुघ्घर बना।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 


2122  2122  2122  212 


नाक नथली कान झुमका हार पहिरे तँय नरी। 

मुँह लिपिस्टिक आँख कजरा तँय सजे जइसे परी। 


कुछ कसर अब भी बचे हे थोपडा चमकाय बर।

गाल हर होही गुलाबी चल बना छत मा बरी। 


तँय रँगाये बाल ला फेसन अपन दिखलाय बर।  

लाल दिखथे बाल जम्मो जस रहे बर के लरी।  


रेंगथस तँय हर बिलइ कस देख छइयाँ ला अपन।  कद बढ़ाये बर लगाये हच खिला चप्पल तरी।  


काय करथस का पता पर तोर अब्बड़ शोर हे।

तोर रेंगे बर बिछाथे लोग मन लाली दरी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु *बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


फोटका पानी के होथे जिनगी हा तैं जान ले। 

जब कभू अँधियार होथे खुलथे रद्दा ज्ञान ले।


कोन कहिथे काम अड़बड़ हे कठिन मोला बता। 

तै कभू हिम्मत करे हस का बता ईमान ले। 


गाँव टापू बन जथे जी हर बछर बरसात मा।

पाट के दलदल बनाबों पोठ रद्दा ठान ले। 


चार कुदरा मार के थक गे हवस  सिरतो बता।

मेहनत भारी हवय हीरा निकलही खान ले ।


देशवासी मन मगन हे आज सब आजाद हे। 

अब अजय फहरे तिरंगा देख कतका शान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 


2122  2122  2122  212 

ओढ़ के सुत गे रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 

अब तहूँ ले ले रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


कँपकपासी लागथे हर दिन पहाती रात के। 

अउ हवय ता दे रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


डोकरी दाई तको बन मोटरा सुतथे सदा। 

राख के झन से रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


जे रहे कंजूस ओखर मन तको घबराय गे।

दाम दे लाये रजाई देख बाढ़े जाड़ ला।  


घूमना हे सोंच के आये  हवय शिमला सबो। 

धर सबो लाने रजाई देख बाढ़े जाड़ ला। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख🌹


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*



हाथ जोड़त हे हवा हा काल के गति देख के

रोय रावण आज मनखे के असुर मति देख के।1


दू घड़ी के आय आँधी हा उजाड़े बाग ला

साल भर के जाय मिहनत रोत हे क्षति देख के।2


हे गुणी बेटी तभो ले माँग हे दाहिज तिलक

माँग ओखर ही भरत हे बाप लखपति देख के।3


कोन कतका हे लिखत अउ कोन कतका हे पढ़त

लेखनी अइसे चलावव भाव लय यति देख के।4


छोटकुन आकाशअउ डबरा समुन्दर हा लगय

कब्र मा रोये सिकंदर लोभ के अति देख के।5


जेन मन उपजाय हावंय वो गरीबी मा जिए

खुश ददा दाई रथे बेटा के उन्नति देख के।6


आजकल के आश्रम या इंद्र के अमरावती

ज्ञान जप तप मोह मा लाखों मदन रति देख के।7


आशा देशमुख

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


2122  2122  2122  212


बाढ़गे अब सब जिनिस के दाम मनखे का करय।

हे सबो हलकान‌ नित दिन आम मनखे का करय।


जाड़ हा जी गय लुकाये कोन जानय हे कहाँ,

बड़‌ उराठिल‌ लागथे ये घाम मनखे का करय।


जात हे छेंवात अब तो बाढ़गे हावय उमर,

नइ मिलत हे खोजथें जी काम मनखे का करय।


लागथे मिहनत अबड़‌ पर भाव नइ पावय फसल,

होत हे नित दिन उधारी लाम मनखे का करय।


रात के हे राज देखव मुँह लुकावत दिन‌ फिरय,

आ जथे लउहे कुदावत शाम मनखे का करय।


ये महामारी बढ़त हे अति करत हे रात दिन,

नइ मिलत हे कुछु दवा‌ हे राम मनखे का करय।


बाप के पूँजी उड़ावय मूर्ख लइका रात दिन,

डूब गय सिरतो मनी के नाम मनखे का करय।


  - मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसमन महजूफ़

फ़ाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन 

2122 2122 2122 212


सीख रहना खुश सदा तँय भाग मा जतका मिले

बस खुसी हाँसी रहा  तँय भाग मा जतका मिले


देख झन अपनेअपन ला सब इहाँ अपने हवय

बिगड़े दूसर के बना तँय भाग मा जतका मिले


छोड़ रोना धोना होवय नइ कभू हासिल कुछू

खुद के दम जिनगी चला तँय भाग मा जतका मिले


भूख मा कोनो मरय झन तोर आगू मा कभू 

एक दू कौरा खवा तँय भाग मा जतका मिले


आदमी अस आदमी कस 'ज्ञानु' रेहेकर इहाँ

कखरो हिरदै झन दुखा भाग मा जतका मिले


ज्ञानु

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


नैन ले काजर नँदागे।

प्रेम के बादर नँदागे।


धन कमाए के चुलुक मा

अब मया-आखर नँदागे।


ट्रेक्टर आइस तहाँ जी

खेत ले नाँगर नँदागे।


बाप के जीते जियत मा

तोर सुग्घर घर नँदागे।


कोन बतलाही "अरुण" ला

बालपन काबर नँदागे।


*अरुण कुमार निगम*

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


काय के चिंता हवय सबके सहारा राम हे।

हे करम जेकर बने गा आज ओकर नाम हे। 


आज आये हे मिले बर सोंच मा परगे हँवव।

फेर काँही माँगही वो माँगना बस काम हे।


शांति हावय देश मा ये बात ला कइसे कहन ।

रोज के चोरी डकैती होना समझव आम हे। 3


रोज के चूल्हा जलत दाई ददा के छाँव मा।

हम सबो मिलजुल हवन कतका सुहानी शाम हे। 4


बात कलजुग के अनोखा हे समझ लव आज गा।

खून ले जादा तो अब पानी के बाढ़े दाम हे।


कोन जानी काय होवत आजकल अब देश मा।

रोज के हड़ताल भाई सब डहर बस जाम हे।6


आग बरसत हे सुरुज हा कोंन जानी होही का ।

जेठ के महिना सरीखा चरचरावत घाम हे।7


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसमन महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन 

2122  2122  2122  212


बोर बासी संग चटनी डोकरा झड़कत हवय। 

जेला शहरी आय बाबू देख के भड़कत हवय। 


थोरको बादर तको नइ हे अभी आकाश मा। 

फेर ये बिजुरी कका काबर भला कड़कत हवय।  


पेंड़ के पाना हलाये बर तको नइ हे हवा। 

कोन जाने काय सेती खिड़की हर खड़कत हवय। 


शोर उल्लू हर करत अउ कोल्हिया नरियात हे।

रात सुन्ना जान जिवरा मोर बड़ धड़कत हवय।


काय खुसरे मोर घर मा नइ दिखत काहीं मगर।

मोर घर के काँछ अपने आप जी तड़कत हवय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा *बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा

*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

2122 2122


सोंच के कर काम संगी। 

तब कमाबे नाम संगी। 


उठ बिहनिया रोज जल्दी। 

छोड़ दे आराम संगी। 


तोर मिहनत रंग लाही। 

मिल जही फिर दाम संगी। 


हो जवस करिया भले तँय।

देख झन तँय चाम संगी। 


आज बरसा काल जाड़ा। 

आ जही फिर घाम संगी। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख* 🌹

 🌹 *ग़ज़ल -आशा देशमुख* 🌹


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



दार ला मेलव करी मा।

हे अबड़ मिहनत बरी मा।1


खोटनी भाजी बना ले

डार अम्मट ला जरी मा।2


वो दया के गोठ करथे

फाँसथे मछरी गरी मा।3


मुँह हा सुघ्घर राम बोले

छेदना राखे तरी मा।4


श्याम सुंदरी ला निनासे

जे बने हे खुद खरी मा।5


बोझ मा बचपन लदागे

टाँग के बॉटल नरी मा।6


खोज झन मंदिर देवाला

बार दीया देहरी मा।7


का तुँहर बादाम काजू

स्वाद बड़ हे ठेठरी मा।


पीट झन तँय ढोल आशा

नाचथे जग बंसरी मा।9



आशा देशमुख

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


2122  2122  2122  212


मन सजे हे झूठ मा सत के कहाँ पहिचान हे।

जाति मजहब ला धरे जग मा बँटे इंसान हे।


गाँव अँगना खोर घर सुन्ना लगे सुमता बिना

बिन मया मन के दुवारी जस लगे शमशान हे।


माँ बाप रखथे आसरा बेटा बने सरवन कुमार

कलयुगी संसार मा अब मान ना सम्मान हे।


भोग पथरा मा लगे पाखंड के दरबार मा

बंद आँखी ला करे मनखे बने नादान हे।


हौसला खुद मेहनत के फल सदा मीठा मिले

नाम के नइ कर्म के होवत सदा गुनगान हे।



इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल -आशा देशमुख* 🌹

 🌹 *ग़ज़ल -आशा देशमुख* 🌹


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



काम कम बड़ दाम खोजे

बिन पता के नाम खोजे।1


छोड़ के परिवार ला वो

शांति सुख बर धाम खोजे।2


पाय दुख दाई ददा मन

पूत देखव राम खोजे।3


गुण मिले छत्तीस तब ले

सोन सुन्दर चाम खोजे।4


बोंत हे बँमरी सदा दिन

खाय बर वो आम खोजे।5


घर बुता छोड़े बहू हा

बाहिरी मा काम खोजे।6


सोच हा बीमार हावय

मूड़ पीरा बाम खोजे।7


नित बिहनियां जाप माला

साँझ  मितवा जाम खोजे।8


रोय बड़ संगीत आशा

जयकिशन खय्याम खोजे।9


आशा देशमुख

ग़ज़ल -चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल -चोवा राम 'बादल'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


जिंदगी मा बड़ कसर हे

ए गरीबी दुख के जर हे


खोजे नइ पाबे गुड़ी तैं

गाँव हा लहुटे शहर हे


आदमी काला कहे गा

साँप कस चाबे असर हे


का इहों हड़ताल हाबय

बंद काबर मन-शटर हे


सेवा कर दाई ददा के

देवता कस तोर बर हे


गाँव ला चल गा जतनबो

तोर घर हे मोर घर हे


हत्या करवा देही सच के

वो अभी तो बोले भर हे


दूरिहाके रहिबे चम्पा

नेता के छँइहा तो खर हे


चाय पीना छोड़ 'बादल'

तोर बाढ़े बड़ शुगर हे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुरब्बा सालिम

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुरब्बा सालिम 

फ़ाइलातुन   फ़ाइलातुन


2122         2122 


दुश्मनी ला काट जर ले। 

झन निकल तँय आज घर ले। 


का रखे हे जिंदगी मा। 

नेक संगी काम कर ले। 


होत हावय नेक चर्चा।

ज्ञान कोठी आज भर ले। 


दीन मन के काम आजा।

दर्द उँखरो आज हर ले। 


नइ दिखत हे खेत मालिक।

जा ससन भर आज चर ले। 


चार मा लफड़ा दिखे ता।

देख मौका पाय टर ले। 


झन करम उल्टा करे कर।

पाप ले थोरिक तो डर ले।  


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...