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Monday 5 October 2020

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बढ़िया करम कर रोज के।

सतगुण धरत चल खोज के।1


जौने निचट डरपोकना।

कविता करै वो ओज के।2


परिणाम बड़ होथे बुरा।

कखरो भी ओवर डोज के।3


नइ काम आये टेंड़गा।

हे माँग सिधवा सोज के।4


चंदन चुपर के माथ मा।

उपवास हे खा बोज के।5


पर ला कहे जे जंगली।

 ते ले मजा वनभोज के।6


होटल सिनेमा बार पब।

अड्डा हे मस्ती मौज के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


घायल करे भाला सबे।

लालच करे लाला सबे।1


नेता गिरी मा का कहन।

बदलत दिखे पाला सबे।2


कतको हे जिम्मेदार बड़।

नइ होय मतवाला सबे।3


सोना मिटावय भूख ना।

नइ भाय ऊजाला सबे।4


बेरा बखत पानी घलो।

नइ देय नल नाला सबे।5


फल फूल पाही पेड़ हा।

कटगे हवे डाला सबे।6


पिसथे गहूँ के संग घुन।

नइ हे बुरा काला सबे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बड़ हिरदे धड़के आजकल।

बड़ नैना फड़के आजकल।1


सुख चैन ला दे हँव गँवा।

चक्कर म पड़के आजकल।2


लगगे झड़ी मन भीतरी।

बिजुरी ह कड़के आजकल।3


कुहकत हवे मन कोयली।

दिल कतको तड़के आजकल।4


तोर मोर मया ला देख के।

दुनिया ह भड़के आजकल।5


भरके मया अंतस अपन।

चलथौं मैं अड़के आजकल।6


लेहूँ बना तोला अपन।

दुनिया ले लड़के आजकल।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


सबके बने मंजिल शहर।

बिन दिल के बनगे दिल शहर।1


सुनवाई करथे शान से।

बन बाग के कातिल शहर।2


जिनगी जिये बन जानवर।

मनखे मा नइ शामिल शहर।3


खेती किसानी सत मया।

सबला करे चोटिल शहर।4


का होथे जस ममता मया।

का जानही जाहिल शहर।5


आघू बढ़े के आस मा।

लेहे खुशी ला लिल शहर।6


हीरा बरत हे हाथ मा।

का जानही कंडिल शहर।7


बस एक दिन इतवार के।

होवै हरू बोझिल शहर।8


जी भैया तैं कान आँख मूंद।

हे मोर बर मुश्किल शहर।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम

 मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212


सबला पता ये माप हे

भुॅंइया ले भारी पाप हे


पापी बिना कहिदे भला

का पाप अपने-आप हे


तइहा ले देखत आत हन

सत्ता के मुॅंह चुपचाप हे


बेटा करा हे रेडचिफ

भुॅंभरा म उखरा बाप हे


आजो कुपरथा के डहर

अड़के खड़े सब खाप हे


सच के बड़ाई दूर तक

लबरा के एके धाप हे


सुखदेव अलखादे करस

बपुरा ॲंगूठा छाप हे


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹

 🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*


हर चीज के बोली लगे

खतरा म अब डोली लगे।1


जनता सुतत हे चैन से

रखवार ला गोली लगे।2


लिपटे तिरंगा शान से

लाली तिलक होली लगे।3


सुन्ना मया बिन हे महल

सुख धाम दू खोली लगे।4


कतको भरे भंडार हा

खाली तभो झोली लगे।5


अब रस नही हे फाग मा

हुड़दंग के टोली लगे।6


सबले बड़े भगवान ले

दाई के ये ओली लगे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन   मुस्तफ़इलुन 

2212   2212 


हुसियार बन बोलत हवे। 

सब राज ला खोलत हवे। 


कइसे गरीबन के सबो। 

धन धान ला झोलत हवे। 


लड़की अकेला देख के। 

मन हा उँखर डोलत हवे। 


नीचा दिखाये बर कका। 

हर बात मा छोलत हवे। 


झगरा लड़ाये बर सदा। 

मन मा जहर घोलत हवे। 


हमरो कमाई रात दिन।

मुसुवा बने फोलत हवे।   


भौजी समझ हमला कका।

देवर असन ठोलत हवे।


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212   2212   


गिधवा लगाये घात हे।

ये पेट सब करवात हे।  


बघुवा शिकारी बन धरे। 

बकरी ल मारत खात हे।


पंछी बिहिनिया जाग के। 

भोजन तलासे जात हे। 


चांटी बटोरय रात दिन।  

दाना तभे सकलात हे। 


जाला बनाये मेकरा। 

कीरा अपन अरझात हे। 


मुसुवा धरे बर साँप हर।   

खुसरे बिला तब पात हे


बछरू मरे जब भूख ता। 

गइया तको पनहात हे। 


मिहनत करइया हर करे। 

कब देखथे की रात हे। 


हावय असन मनखे तको। 

बस लूटे बर धमकात हे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹

 🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*


संशोधित


हर चीज के बोली लगे

खतरा म अब डोली लगे।1


जनता सुतत हे चैन से

रखवार ला गोली लगे।2


लिपटे तिरंगा शान से

लाली तिलक होली लगे।3


सुन्ना मया बिन हे महल

सुख धाम दू खोली लगे।4


कतको भरे भंडार हा

खाली तभो झोली लगे।5


अब रस कहाँ हे फाग मा

हुड़दंग के टोली लगे।6


सबले बड़े भगवान ले

दाई के ये ओली लगे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*



करथें नकल ला मूल कस।

लागे तभो ले भूल कस।


कतका इहाँ धन जोरबे

माया हवय गा धूल कस।


लकड़ी नहीं छेना नहीं

बरथे सिलेंडर चूल कस।


जिभिया उलावव सोच के

लागे कभू ये शूल कस।


तन बज्र जइसे हे लगे

रहिथे हृदय हा फूल कस।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212   2212    


दुख हर जनावय जान ले।

सुख नइ गनावय जान ले। 


कतकोन तँय रूठे रबे।

ओ नइ मनावय जान ले। 


खेती करे के साध हे।

चिखला सनावय जान ले। 


तरिया खने कतको कहे।

डबरा खनावय जान ले। 


भाई करे बाँटा कभू।

रिस्ता चनावय जान ले। 


झगरा बढ़े घर द्वार मा।

परदा तनावय जान ले। 


जे शांति के दुश्मन रथे।

ओ बम बनावय जान ले। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212   2212  


सच मान कलयुग आय हे।

पहिचान कलयुग आय हे। 


सब के रहत जब लेग जय।

तब जान कलयुग आय हे। 


छीनत रथे धनवान मन।

बइमान कलयुग आय हे। 


इज्जत लुटावत रात दिन।

शैतान कलयुग आय हे। 


हाँसत हवय रावण असन।

सुन कान कलयुग आय हे। 


कोई सहायक नइ बनय।

सुनसान कलयुग आय हे। 


कतका खराही अउ बता।

भगवान कलयुग आय हे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- मनीराम साहू मितान

 गजल- मनीराम साहू मितान


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन 

2212  2212 


भिथिया कपट ओदार गा।

मन खोट सब तैं मार गा।


सत के अलख नितदिन जगा,

तैं झूठ झिटका बार गा।


संतोष रख अंतस अपन,

लड़ना हवय बेकार गा।


मिलही सफलता एक दिन,

हिम्मत चिटिक झन हार गा।


सत ज्ञान दीया बार ले,

झन‌ पोंस तैं अॅधियार गा।


बइठे पुरय नइ ताल जल,

मिहनत हवय जग सार गा।


आलस भरे तन‌ त्याग दे,

होही तभे बढ़वार गा।


कर ले मनी हरि के भजन,

होबे तहूॅ भव पार गा।


- मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन   मुस्तफ़इलुन 


2212   2212 


फोकट म खाना चाहथस।  

बस गीत गाना चाहथस। 


ताकत दिखावत हस बड़ा।

का आजमाना चाहथस। 


पानी म पथरा मार के। 

भूचाल लाना चाहथस। 


बइठे बिठाये काम बिन।

तँय राज पाना चाहथस। 


बिन पंख के आकाश मा। 

काबर उड़ाना चाहथस। 


निशदिन नहाये पाप मा।

तँय स्वर्ग जाना चाहथस।


हथियार के तँय जोर मा। 

सब ला दबाना चाहथस।  


मुँह मा बचे नइ दाँत हे। 

तब ले पचाना चाहथस। 


बस बात करके थूक मा। 

लड्डू बनाना चाहथस। 


आँखी दिखा के भोकवा। 

हमला डराना चाहथस। 


आगी लगा फिर दे बुझा। 

तँय का जताना चाहथस।


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹

 🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*


पंडित रहै काजी रहै

दुनिया खुशी राजी रहै।


विधना रखव अतकी कृपा

रोटी सहित भाजी रहै।


जिनगी रचय जब खेल तब

बस जीत के बाजी रहै।


परिवार झन तरसे कभू

मुर्रा चना खाजी रहै।


मिहनत कमाई घर भरे

झन पाप के ब्याजी रहै।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- मनीराम साहू मितान

 गजल- मनीराम साहू मितान


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन 

2212  2212 


रुखवा असन‌ तैं काट झन।

मनखे हरॅय तैं बाॅट झन।


सुग्घर निभा देये बचन,

अब थूॅक के तैं चाॅट झन।


बड़का हवय ये छोटका,

सम हे सबो तैं छाॅट झन।


घिन बात ला गा जा भुला,

डोरी असन तैं आॅट झन।


लइका टिमाली कर जथे,

हर बात मा तैं डाॅट झन।


कर दे मदद दुखिया हवय,

खन‌ के मनुसता पाट झन।


देबे मया मिलही मया,

अंतस मनी रख आॅट झन।


- मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन   मुस्तफ़इलुन 

2212   2212 


फँस गे हवँव मझधार मा। 

देखत हँसय सब पार मा।  


फोटो निकालत हे सबो। 

शेयर करत हे चार मा। 


कइसे लगाहूँ पार जी।

दम नइ हवय पतवार मा।


इंशान खोजे नइ मिलय।

रकसा भरे संसार मा।  


गलती बता का साधु के।

मरगे बिचारा मार मा। 


गरुवा निकाला कर दिए।

भटकत हवय सब खार मा। 


फोलत हवय अमरूद ला।

बइठे सुआ हे डार मा। 


का नाक के चिंता कका।

कट गे हवय दरबार मा। 


चिंव ले तको नइ कर सकय।

दम हे अभी फटकार म। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...