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Friday 12 July 2019

छत्तीसगढ़ी गज़ल - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर के छत्तीसगढ़ी गज़ल

गज़ल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

चार दिन बचपना हे माफी मा
शेष जिनगी हिसाब कापी मा

आज उड़ ले अगास भर तोरे
कल समाना हे पाँव माटी मा

तोर लठिया अभी हे अँटियाले
एक दिन फुटही मूड़ लाठी मा

सोच के देख कोन ला भाही?
रोज कोदो दरइ हा छाती मा

कोइला राख कङ्गला करही
देख होरा भुँजइ ह छानी मा

चार पइसा किंजर कमा डारे
खोज डारे तैं खोट साथी मा

धरले सुखदेव सत के धारन ला
बइठना हे समय के चाकी मा

गज़ल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

संगवारी असाढ़ आगे हे
श्याम रंगी बदरिया छा गे हे

हारे हपटे गिरे थके झुलसे
फेर उल्हे के आस जागे हे

चैत बैसाख जेठ के झोला
तोर अगोरा करत सहागे हे

तँय झमाझम बने बरस आँसो
पउर मुड़ मा फिकर बसा गे हे

बूड़ झन जाय अब उबारव गा
भुँइ के भगवान अकबका गे हे

छेना लकड़ी जतन मगन बैठे
छानी परवा खदर छवा गे हे

तोर कर हे परोस ज्ञान अमरित
मंद-मउहा इहाँ बँटा गे हे

कर दे सहयोग बाँच जाहूँ मँय
हाथ पखना तरी चपा गे हे

अरतता अरतता अमरवाणी
आज सुखदेव ला सुना गे हे

गज़ल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

गोठियइया गजब हवैं भइया
पाँच सच्चा पचीस भरमइया

आदमी ला चरात हें अइसे
जस चराथे ग बरदिहा गइया

घाट भर हें बुड़ोय बर डोंगा
एक दुइ चार पार नहकइया

दे पँदोली चढ़ात हें बिरले
कोरी खइखा हें टाँग खींचइया

गाय गरुवा गली म घूमत हे
चैन के नींद सोय गोसइया

माँग के वोट मोठ ओ हो गे
रोज दुबराय वोट देवइया

नानपन के खियाल कर बेटा
तब समझबे ग कोने सम्हरइया

टोक दे थें सहीं करइया ला
पर गलत के न एक बरजइया

देख सुखदेव मूँद झन आँखी
जान चिन्ह ले छुड़इया अरझइया

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

Tuesday 9 July 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

 (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

 2122  1212  22
~~~~~~~~~~~~~
एक चिनहा अपन बनाले तैं
गाँव मा जस धरम कमाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~
काम जादा बड़े तो नोहै जी
पेड़ हर घर गली लगाले तैं
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बैठही रेंगईयाँ मनखे मन
छाँव एकाक तो सजाले तैं
~~~~~~~~~~~~~
जेठ के घाम जोर मारय जी
जल चिराई घलो पियाले तै
~~~~~~~~~~~~~
खाही बासी बइठ नँगरिहा मन
मेंड़ मा रुख बने जगाले तैं
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स्रोत गहिलात हर समय दिन दिन
लउहा बदरी ला झट बलाले तैं
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सुन मलरिहा बुता सबो होही
अब धरा ला हरा बनाले तैं
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छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

 (2)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122   2122   212

फेर बादर हा निचट तरसात हे
घूम फिरके कति मुड़ा मा जात हे

बड़ बिपत छागे इही सावन समै
चैत जइसे देखतो भभकात हे

पंप अउ ट्यूबेल के का काम हे
पानी गहिरागे न कछु टमरात हे

होत झगरा बड़ नहर के धार बर
रात दिन संसो गझावत आत हे

लागथे कुदरत भुलागे गाँव ला
नदिया-तरिया ला घलो अटवात हे

जीवमन तड़पत मरत हे प्यास मा
आन के करनी दुसर पेरात हे

पेड़-जंगल ही बलाथे पानी ला
आज के बेरा, इही समझात हे

सुन मलरिहा जल पवन प्रकाश सब
ये धरा ला तो इही महकात हे ।


गजलकार - मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़
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Tuesday 2 July 2019

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

मोर माथा म का लिखाये हे।
भाग मा मोर काय आये हे।

खीर पूड़ी बने रहे घर मा।
चोर करिया सबो ल खाये हे।

जेन ले मँय मया करे चाहँव।
तेन दूसर के सँग भगाये हे।

छोड़ दे आज ले गुलामी ला।
तोर पुरखा बहुत बचाये हे।

रात कस हो गये हवय दिन हा।
केंश कोनो सखी सुखाये हे।

जेन मुखिया बने करे गलती।
तेन थपरा तको जी खाये हे।

हारगे हे कतेक राजा मन।
जेन जनता रहे भुलाये हे।

पाँव ओखर उखड़ जथे साथी।
जेन के नींव डगमगाये हे।

भाग के लाज ला बचा पप्पू।
तोर पाछू कुकुर छुवाये हे। 

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

देख माटी नमी ल खोये हे।
दुःख भारी किसान ढोये हे।

धान पाबो बने यहू बारी
आस भारी सबो सँजोये हे।

देख के दुख किसान के भारी।
देव बरसा तुरत पठोये हे।

टोर जाँगर किसान हा बोवय।
धान भाँठा रखे सरोये हे।

चोर चोरी करे भगा जाथे।
कोन छेंकय सबो तो सोये हे।

आम कइसे मिले बता संगी।
जेन अँगना बबूल बोये हे।

मार देथे बने रहे हीरो।
हाथ आथे तहाँ ले रोये हे।

ओ मसीहा बने हवय भाई।
पाप के दाग सब ल धोये हे।

मान लेवव दिलीप के कहना।
घाम चुंदी कहाँ पकोये हे।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

जब ले बाई सुराग पाये हे।
जान मुश्किल म मोर आये हे।

दान दाता हवय इहाँ भारी।
भीख मंगा बहुत बनाये हे।

हार पहिरे गली म झन जाबे।
दिन दहाड़े बहुत लुटाये हे।

कोन बिसवास अब करे बतला।
भाई भाई ल अब ठठाये हे।

भाग जाथौं उँखर दुवारी ले।
देख करिया कुकुर बँधाये हे।

सोर करथे हमर ददा दाई।
दुःख पा के बड़े बढ़ाये हे।

जब ले बेटा दलीप के बाढ़े।
रात दिन बोल के पकाये हे।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (4)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

भूत ठाढ़े कहूँ दुवारी मा।
चीर देबो पकड़ के आरी मा।

जेन रेंगे सकय नही भाई।
तेन दउड़य परे तुतारी मा।

सास झगरा करे ल नइ जानय।
बीत जाथे समे ह चारी मा।

देख गोरी टुरी तको हावय।
मोर हिरदे लगे हे कारी मा।

छेंक नरवा रखव तको गरुवा।
आज घुरुवा बनाव बारी मा।

देव हर सब करा कहाँ रइही।
भेज देहे मया ल नारी मा।

मोर झगरा बने बढ़े हावय।
रोस आथे बड़ा सुवारी मा।

जेन गुस्सा रहे उड़ा जाथे।
देख आथे मया ह सारी मा।

सेठ के पेट का समाये हे।
माल पाये दुकान दारी मा।

देह कपड़ा भले रहय झन जी।
घीव खाले मिले उधारी मा।

दाम लेके सबो सताये हे।
भाग जाथे ग मोर पारी मा।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (5)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

छंद सीखे सबो सधाये हे।
जेन साधे उही ह पाये हे।

खोल आँखी बने बने देखव।
कोन काला कहाँ लुकाये हे।

आज अठरा घलो कहाँ रहिथे।
देख टूरा टुरी भगाये हे।

ओ जवानी रहय जवानी जी।
चार बाई बबा चलाये हे।

नाक अँगड़ी कभू करव झन जी।
जेन करथे ओ मार खाये हे।

चोर बनके चुराय हे दिल ला।
बेंच पइसा बहुत कमाये हे।

नाक नकटा के बाढ़ जाथे जी।
लाज ओला कभू न आये हे।

राम के नाम ला भजव भाई।
नाथ बिगड़ी सबो बनाये हे।

मौन रहिके रहय अपन घर मा।
मान जिनगी बने पहाये हे।

गजलकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

Monday 1 July 2019

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

बहर-2122-1212-22

चारो' मूड़ा बवाल होवत हे।
आनी' बानी धमाल होवत हे।

कोन आसो चुनाव जीतत हे
बस इही अब सवाल होवत हे।

वायदा जीत के अपन भूले
आज नेता दलाल होवत हे।

रोज के योजना नवा लावय
अब दिनोदिन कमाल होवत हे।

भूले' संस्कार आज के बेटा
बाप घर ले निकाल होवत हे।

रोज पीके चलय डगर मनखे
मंद हा जीव काल होवत हे।

आज चाऊँर मिल जथे सस्ता
फेर महँगा जी' दाल होवत हे।

मार महँगाई' के परे थपरा
आम जनता हलाल होवत हे।

'ज्ञानु' बीतत सजा बरोबर हे
जिन्दगी तंगहाल होवत हे।

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122-1212-22

आज मन हा उदास हे काबर।
देख दुनियाँ हतास  हे काबर।

रट्ट ले टोर देथे* हिरदै ला
जें बहुत दिल के* खास हे काबर।

भूल कइसे जहूँ मयारू ला
दूर रहिके भी* पास हे काबर।

देखले हाल अन्नदाता के
रोजके भूख प्यास हे काबर।

देखके सावचेत रह बेटी
आदमी बदहवास हे काबर।

मिलही* छइहाँ इहाँ कहाँ ले जी
पेड़ पौधा विनास हे काबर।

'ज्ञानु' आही कि नही ये* अच्छा दिन
आज ले फेर आस हे काबर। ।

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122-1212-22

चार दिन बर मिले हवय जिनगी।
फूल कस ये खिले हवय जिनगी।

आज ले नइ दिखिस हे अच्छा दिन
दुख दरद मा हिले हवय जिनगी।

कोन सुनथे गुहार का हमरो
जानके मुँह सिले हवय जिनगी।

कुछ मिलय तो सुझाव कुछु कखरो
मार  मंतर ढ़िले हवय जिनगी।

घाम का छाँव का कभू जाड़ा
'ज्ञानु' रोजे छिले हवय जिनगी।


छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (4)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122-1212-22

ओढ़ कथरी ल घीव खावत हे।
राग अपने ल बस सुनावत हे।

राम मुख मा जपत जमाना हे
अउ बगल मा छुरी दबावत हे।

लाज मरगे घलो इहाँ गिरगिट
रंग मनखे अपन दिखावत हे।

आज पहिचानना हवय मुश्किल
चेहरा सब अपन छिपावत हे।

नाम सरकार बस हवय भइया
काज कखरो कहाँ बनावत हे।

जोड़ रिश्ता मया मयारू हा
अब मया के चिन्हा मिटावत हे।

"ज्ञानु" अँधियार हे मया बिन ये
जग तभे प्रेम गीत गावत हे।

गजलकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम - चंदैनी , कबीरधाम
छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...