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Sunday 26 January 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

बहर-221  1222 221 1222

जब दाल गले नइ तब,चुपचाप रहे कर जी।
जब बात चले नइ तब,चुपचाप रहे कर जी।1

पर दोष टमड़ झन तैं, आगास अमर झन तैं।
आशीष फले नइ तब, चुपचाप रहे कर जी।2

सत स्वाद घलो चखले,ताकत ल बचा रखले।
काड़ी ह हले  नइ तब, चुपचाप रहे कर जी।3

कौवा के असन कतको,गोहार गजब पारे।
जज्बात जले नइ तब,चुपचाप रहे कर जी।4

जुगनू के असन बरथस,उजियार घलो करथस।
सूरज ह ढले नइ तब, चुपचाप रहे कर जी।5

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

Tuesday 7 January 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

बहर-221 1222 221 1222

तैं काम बने करबे, तब तोर तिरन आहूँ।
दीया के असन बरबे,तब तोर तिरन आहूँ।1

तनमन म मया घोरे, जिनगी म दया जोरे।
दुख द्वेष दरद दरबे,तब तोर तिरन आहूँ।2।

आमा के असन झुलबे,फुलवा के असन फुलबे।
सेमी के असन फरबे,तब तोर तिरन आहूँ।।3।

लगवार सहीं लगबे,रखवार सहीं जगबे।
कखरो ले कहूँ डरबे,तब तोर तिरन आहूँ।4

पुरवा म सजा सनसन,ऋतु राज बसंती बन।
पतझड़ के असन झरबे,तब तोर तिरन आहूँ।5

धन धान धरे रहिबे,गुण ग्यान धरे रहिबे।
सत शान जिया भरबे,तब तोर तिरन आहूँ।6

लत लोभ लड़ाई धर,बल बैर बुराई धर।
होली के असन जरबे,तब तोर तिरन आहूँ।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

221 2122 221 2122

महिनत बिना बता तो,काखर कदर इँहा हे।
पैसा लड़ाय सबला,माते गदर इहाँ हे।1।

अब कोड़िहा निकलगे,बइला विकास के जी।
बिजली नही न पानी,छानी खदर इहाँ हे।2।

खाये  पचा न पाये,फेकाय भोग छप्पन।
दुच्छा पड़े कढ़ाई,लांघन उदर इहाँ हे।3।

कोई पताल नापे,अमरे अगास कोई ,
नइहे ठउर ठिकाना,दुख दर बदर इहाँ हे।4।

इरसा गिधान बनके,ताके दया मया ला।
अब नोच नोच खाही,ओखर नजर इहाँ हे।5

अपने म सब रमे हे,आने ल कोन देखै।
पानी पवन बचाये,काखर गतर इहाँ हे।6।

ये कलयुगी मनुस के,बड़ बाढ़गे दिखावा।
जोड़े म धन लगे हे,का वो अमर इहाँ हे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 6 January 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-मिलन मिलरिया

छत्तीसगढ़ी गजल-मिलन मिलरिया

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222 221 1222

चक्कर मया के झिनपर, बाबू अझी पढ़ तो ले
दसवीं कै दफ़ा पढ़बे, एको कक्षा चढ़ तो ले।
''"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
जिनगी म बहुत मिलही, खेले कुदे के मौका
बेरा दिनो दिन भागत, थोकिन बने गढ़ तो ले।
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तै संग पढ़ैया धर, झन धरबे घुमैया ला
बस चेत जगाके तै, मति तोर गा मढ़ तो ले।
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घर मा हे ग़रीबी जी, ककरो तो भरोसा नइ
पढ़ना हे सहारा बस, रद्दा इही बढ़ तो ले।
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देखव ग मिलन भाई, गुनले रे बने तैहा
कह भीम चलेगे गा, पढ़ पढ़ना रे पढ़ तो ले।
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🇮🇳
मिलन मिलरिहा

Sunday 5 January 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन


बहर: 2212 122 2212 122

बूता बने तहूँ हा करबे त काय होही।
गिनहा डहर कहूँ तैं धरबे त बाय होही।1

रोटी ले जेन खेले अउ ऊँचनीच मेले।
फोकट लगाय नारा वो का भुखाय होही।2

तैं मार पीट करबे अपने अपन त मरबे।
खाके कसम मुकरबे तब हाय हाय होही।3

कइसे गुलामी ले हम,आजाद होय हावन।
लड़ मर सिपैहा बेटा जाँगर खपाय होही।4

अँधियार खोर घर मा अउ डर भरे डहर मा।
फैलाय बर उजाला अन्तस् जलाय होही।5

बिरवा ल एक ठन धर फोटू खिचाय कतको।
कइसे हमर बबा मन रुखवा लगाय होही।6

जब कोयली कुहुकही अउ रट लगाही मैना।
तब बाग अउ बगीचा मा फूल छाय होही।7

ये गाँव हे सुहावन,ये ठाँव हे सुहावन।
आके इहाँ मुरारी बँसुरी बजाय होही।8

बूता बड़े बड़े सब टर जाही खैरझिटिया।
जब काम धाम मा सबके एक राय होही।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 3 January 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन


बहर-221 1222 221 1222

भुर्री के मजा लेलौ,बड़ जाड़ बढ़े हावै।
सूरज के पता नइहे,बेरा ह चढ़े हावै।।1

बरसात म बरसे जल,गर्मी म बियापे थल।
जुड़ जाड़ के मौसम ला,भगवान गढ़े हावै।2

खुद काम कहाँ करथे,बइमान बने लड़थे।
अपनेच अपन अँड़थे,वो काय पढ़े हावै।3

गिन के हे बने मनखे,जे मान रखे तन के।
नित झूठ कहे जेहर,वो दोष मढ़े हावै।।4

सब बात हवा मा हे,मुद्दा ह तवा मा हे।
बहकाव म बह जावै,ओ मन न कढ़े हावै।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...