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Monday 28 September 2020

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बम्बर बरे अब पेड़ हा।

कइसे फरे अब पेड़ हा।1


 दै फूल फल औषध हवा।

का का करे अब पेड़ हा।2


मनखे जतन करथन कथे।

तभ्भो मरे अब पेड़ हा।3


घर गाँव बन रद्दा शहर।

काखर हरे अब पेड़ हा।4


बरसा घरी बुड़ जात हे।

लू मा जरे अब पेड़ हा।5


के दिन जी पाही भला।

दुख डर धरे अब पेड़ हा।6


जीवन बचा ले काट झन।

पँइया परे अब पेड़ हा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


झरना बने झरथे नदी।

सागर चरण परथे नदी।1


गाँव अउ शहर तट मा बसा।

दुख डर दरद दरथे नदी।2


बन बाग बारी सींच के।

आशा मया भरथे नदी।3


चंदा सितारा संग मा।

बुगबाग बड़ बरथे नदी।4


नभ तट तरू के दाग ला।

दर्पण बने हरथे नदी।5


बढ़ जाय बड़ बरसात मा।

गरमी घरी डरथे नदी।6


धर कारखाना के जहर।

जीते जियत मरथे नदी।7


तरसे खुदे जब प्यास मा।

दुख दाब घिरलरथे नदी।8


देथे लहू तन चीर के।

दुख देख ओगरथे नदी।9


जाथे जभे सागर ठिहा।

आराम तब करथे नदी।10


खुद पथ बना चलथे तभे।

तारे बिना तरथे नदी।11


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मख़बून मरफू मुखल्ला 

मुफाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212  212 122  


जनम लिए घर मा मोर आये खुशी लुटावय हमार बेटी 

चहक उठे घर महक उठे दर जे खिलखिलावय हमार बेटी। 


कभू रखे गोद मा सुलावय ददा कका अउ बबा तको हर।  

कभू झुलावत हे दाई पलना त मुस्कुरावय हमार बेटी। 


कभू अँगन मा ठुमक चलत हे कभू गली मा तको निकल जय। 

छमक-छमक छम बजे पजनिया बने बजावय हमार बेटी। 


पढ़े लिखे के समे ह आगे चलव पढाबो ग चेत करके। 

लिखे पढ़े मा सदा हे अउवल इनाम पावय हमार बेटी।


उड़े कभू मन अकाश चाहय उड़ा सके नइ जमाना डर के। 

नजर गड़ाये रहे शिकारी कहाँ उड़ावय हमार बेटी। 


बिहा करे के करव न जल्दी अभी समे हे तनिक ठहर जव। 

अभी जमाना ल हे दिखाना का कर दिखावय हमार बेटी।


कका ले काकी बबा ले दादी ममा ले मामी नता कहाये।

ददा ले दाई बिहाय भौजी नता निभावय हमार बेटी। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212 


नेकी के सुग्घर काम कर ।

जग मा अपन तैं नाम कर।


संघर्ष जिनगी भर हवय।

झन तैं चिटिक आराम कर। 


ट्रैफ़िक हवय बड़ जोर के।

रद्दा ल झन तैं जाम कर।


झन दाब कोनो झूठ ला। 

सच्चाई ला अब आम कर।


जल्दी पहुँचना हे शहर। 

बेरा बुड़त झन शाम कर।


दाई ददा घर मा हवय ।

तैं घर ल चारो धाम कर ।


सम्मान ले जीना हवय । 

इज्जत ला झन नीलाम कर।


जिनगी "अजय" बस युद्ध ये।

हर क्षण कहय संग्राम कर ।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे रजज मुरब्बा सालिम

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212 2212


दुनियाँ के कइसन ढंग हे

छिन छिन मा बदलत रंग हे


खुश नइ दिखय कोनो इहाँ

जिनगी मा सबके जंग हे


अंतर हे करनी कथनी मा

मति देख सुनके भंग हे


मन चंगा हे जेखर सदा

ओखर कठौती गंग हे



दुख के बखत चलथे पता 

 हे कोन दुरिहाँ संग हे


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212   2212 


काकी सुनावत बात हे।

बइठे कका कनवात हे।


लबरा लबारी मार के। 

उल्लू बनाये जात हे। 


घनघोर बादर छाय हे। 

जइसे लगे बरसात हे। 


जब काम हे तब राखथे। 

फिर मार देवत लात हे। 


बेटा हवेली मा रहे। 

माँ बाप कुटिया छात हे। 


तँय साँप ला झन पालबे। 

करथे सखा आघात हे। 


कतको सुरक्षित रख भले। 

ले चोर जावय रात हे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹

 🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*



झन जाव घर ला छोड़ के

लावव नहर ला मोड़ के।


जिनगी कहाँ पानी बिना

पीयव कुआँ ला कोड़ के।


रहिथे अलग सब फूल मन

माला रखे हे जोड़ के।


शुभ सोच हा आघू बढ़े

बाधक नियम ला तोड़ के।


भीतर भराये हे गुदा

खावव चिरौंजी फोड़ के।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

Saturday 26 September 2020

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


खाके कसम आये नही।

पानी पवन भाये नही।1


देखा बिना तोला बही।

दिल के दरद जाये नही।2


कूँ कूँ सुने बिन कोयली।

मन आमा मउराये नही।3


प्यासा पपीहा ला कभू।

नद ताल ललचाये नही।4


रोवात हस तैं जिनगी भर।

सपना म हँसवाये नही।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


काखर गहूँ काखर जवा।

काखर जहर काखर दवा।1


काखर तिजोरी हे उना।

छलकत भरे काखर सवा।2


काखर पुराना हे वसन।

काखर फटे काखर नवा।3


सिध्धो अघाये कोन हा।

रोटी चुरे काखर तवा।4


काखर हरे धरती गगन।

काखर अनल काखर हवा।5


काखर ठिहा उजियार हे।

काखर बचे काखर खवा।6


सब खेल ऊँच अउ नीच के।

काखर गड़ा काखर रवा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

  गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


अवगुण धरे कोरी उही।

बारत हवै होरी उही।1


मन नइ चले जेखर कभू।

सिरतों म हे खोरी उही।2


जाँगर खताये जेखरे।

सबदिन करे चोरी उही।3


निर्भस दिखे थक हार के।

खोजत हवै डोरी उही।4


मन हे निचट करिया तभो।

कहिलात हे गोरी उही।5


आधा भरे जेमन रथे।

बड़ करथे मुँहजोरी उही।6


कौवा ले करकस हे गला।

गावत हवे लोरी उही।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

  गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


धर चामटी शैतान बर।

का के मया बैमान बर।1


सब ला उड़ा के ले जथे।

मुश्किल हे का तूफान बर।2


गलती कहाँ खुद के दिखे।

किरिया कसम हे आन बर।3


बिल्डर बनाये बंगला।

डोली सिरागे धान बर।4


भरगे भरम मा हे जिया।

नइहे जघा भगवान बर।5


सागर सबे दिन खात हे।

आघू कुवाँ हे दान बर।6


सबला खबोसे बइठे हे।

कमती तभो इंसान बर।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹

 🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*


आये हवय बरसात हे

मिहनत करे शुरुआत हे।


सोना नही चाँदी नही

खेती हमर सौगात हे।

 

ये वज्र कस दुख  लागथे

बेटा हा मारे लात हे।


चाकू छुरी का मारही

सबले बड़े तो बात हे।


सुनले जरूरी सूचना

बैरी लगाए घात हे।


आवव पहेली बूझ लव

जम्मो धरम मा भात हे।


दाई करे अब्बड़ मया

जेवन परोसे तात हे।


हीरो हीरोइन के नशा

दारू के का औकात हे।


आशा बनाले खीर तँय

पुन्नी शरद के रात हे।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

  गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देख दुनिया के तमाशा ला कलेचुप।

खा मिलत हे ता बताशा ला कलेचुप।1


पीट झन तैंहर ढिंढोरा फोकटे के।

पूरा कर ले मन के आशा ला कलेचुप।2


जोड़े सब ला तोड़थे जालिम जमाना।

दरके मा तैं छाभ लाशा ला कलेचुप।3


सब जुरे सुख के समय मा जानथस तो।

झेल जम्मो दुख निराशा ला कलेचुप।4


फोकटे हे हाय हाये खैरझिटिया।

लेत चल नित चैन स्वाशा ला कलेचुप।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


जब ले पइसा कौड़ी एको पास नइहे।

मोर बर जल थल पवन आगास नइहे।1


आन मनखे का भला अब साथ देही।

खून के रिस्ता घलो ले आस नइहे।2


रट लगाके फड़ फड़ाके चूर हौं मैं।

मन पपीहा ला तनिक अब प्यास नइहे।3


जानवर तक मन मुताबित घूम लेथ

मोर मन पंछी ला ये अहसास नइहे।4


ठंड हावय घाम हावय दुख बरोबर।

सुख बरोबर मोर बर चौमास नइहे।5


छाय अँधियारी हवय चारो मुड़ा मा।

सुख खुशी के थोरको आभास नइहे।6


भोगते हस तैं सजा ला खैरझिटिया।

साथ देवै कोन कोई खास नइहे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122 2122


छल कपट ला छोड़ मिलके साथ चलबो।

टार मन के खोड़ मिलके साथ चलबो।


बाट जिनगी आत रइथे आॅट पथरा,

फेक देबो कोड़ मिलके साथ चलबो।


छोर मा बइरी तपत हे देख लव जी,

हम उॅकर मुॅह तोड़ मिलके साथ चलबो।


हाथ के मुटका दिखे ले बल झलकथे,

छोट बड़का जोड़ मिलके साथ चलबो।


पर भरोसा नइ बनय जी काम चिटको,

हो खड़े खुद गोड़ मिलके साथ चलबो।


कर्म करबो ठोस तब गा ये सफलता,

नइ सकय मुॅह मोड़ मिलके साथ चलबो।


भागही झट त्रास खा मनी ये लबारी,

सत्य के बम फोड़ मिलके साथ चलबो।


- मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 

2122  2122  2122  


मोर अँगना मा तुँहर का काम हावय। 

मँय चिंहत नइ हँव तुँहर का नाम हावय। 


जा कभू बाजार तब तो जान पाबे। 

खाय के सामान  के का दाम हावय। 


आज चूल्हा नइ जलय कतकोन घर मा। 

काम बिन अब पेट ला आराम हावय। 


जर जही चमड़ी निकल झन आज बाहिर। 

आग उगले कस लगत बड़ घाम हावय।  


चाँद जल करिया जही ओ देख तोला। 

दूध जइसन तोर गोरी चाम हावय। 


रात भर बइठे रहे महफ़िल सजा के। 

कोन बर बाँचे बता ये जाम हावय। 


राह थोरिक देख लेथन अउ कका के।

दिन निकल गे हे भले पर शाम हावय। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122


जनता बर जनता ला अब सरकार लिखबो

छोड़ डरना हम अपन अधिकार लिखबो


आँख हम ला अउ कहूँ कोनो दिखाही

बइरी मन बर तब तो हम तलवार लिखबो


जेन कुर्सी पाके मनमानी करत हे

तब तो ओखर घोर अत्याचार लिखबो


दूध कहिबो दूध ला पानी ला पानी

का सही अउ का गलत  हे सार लिखबो


भूख मा मरगे हज़ारो अउ मरत हे

'ज्ञानु' राजा ला हमर धिक्कार लिखबो


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन 

2122  2122  2122 


दूर ले भइसा समझ के तीर आगे। 

देख के हाथी बिचारा दूर भागे। 


कोलिहा खुसरे रहय जब शेर माड़ा। 

सब समझथे शेर ला ओ मार खा गे। 


गाँव मा गोरी शहर के एक आये। 

जेन देखय तेन समझय भाग जागे। 


पाय हे पारस बड़ा इतरात हावय।  

सोन खाही रात दिन कस आज लागे


शेर बकरी मास ला नइ खात हावय। 

खून मनखे के लगत ओ स्वाद पागे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


एक ले बड़ एक ये संसार मा हे। 

गोठियाथे दारु छोड़व बार मा हे।


जनता के कइसे भला हो सोंच तैंहा। 

जम्मो लुच्चा देख तो सरकार मा हे।


रौंदे ले फुलवारी ला कइसे बचाबों। 

लूटे बर रखवार इंतेजार मा हे। 


कांटा चारो कोती बगरे हे डगर मा। 

जम्मो अब रखवार अत्याचार मा हे।


फूल फुलवारी म लगथे देख सुग्घर।

बाग बँचतिस दोष तो रखवार मा हे।


खेल जब होथे अपन के बीच मा तब। 

जीत ले जादा मजा तो हार मा हे ।


पार होबे कइसे बिन गुरु के "अजय" तैं।

लहरा मा डोंगा फँसे मँझधार मा हे।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा,छत्तीसगढ़

गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देखा सीखी बाय लागे आज सबला।

कोन जन ये काय लागे आज सबला।1


चुप रहैया मनखे सिधवा नइ सुहाये।

बिगड़े मनखे गाय लागे आज सबला।2

 

चोचला बड़ बाढ़ गेहे चारो कोती।

संझा बिहना चाय लागे आज सबला।3


पथरा के दिल हे दया के नाम नइहे।

कुछु करे नइ हाय लागे आज सबला।4


साग भाजी घर मा हे ना घर मा मुर्गी।

दार तक बिजराय लागे आज सबला।5


सिर झुकाना सबके बस मा हे बता का।

भीख तक व्यवसाय लागे आज सबला।6


नाम होही काम करले खैरझिटिया।

तोर सपना आय लागे आज सबला।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफाइलुन फ़ाइलातुन मुफाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


मरे रथे तको मनखे ह वोट डारत हे। 

समझ म आत हे कइसे कका ह हारत हे।   


डकार मार के खादिस हजार टन चाँउर।  

गरीब माँग थे हक ला त मुँह ल फारत हे।


कमाय कुछ नही खाये बखत बने अघुवा। 

कहे जे काम करे मुँह अपन ओ टारत हे।  


बड़े ह मार के चलदिस मरत ले मोला जी। 

तहाँ ले आय हे छोटे गजब के सारत हे।


सबो गड़ाय हे आँखी जी लूट खाये बर।  

समझ रखे हे जी हलुवा ओ देश भारत हे। 


गरीब घर म कहे रोशनी करे परही। 

बने सियान ते जा झोफडी ल बारत हे।


जे सोंचथे करे गलती तको दबा देबो।

हे मीडिया बने हुसियार शोर पारत हे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


हीरा रतन के खान हे

ये मोर हिंदुस्तान हे।


झन मान के तँय बात कर

पथरा घलो भगवान हे।


जानव नहीं आजाद ला

हीरो तुँहर सलमान हे।


उनकर महल धन-धान हे

कुरिया हमर सुनसान हे।


तँय बोल धीरे से "अरुण"

दीवार के तक कान हे।


*अरुण कुमार निगम*

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्ताफ़इलुन मुस्ताफ़इलुन

2212  2212 


बखरी भरे हे नार जी। 

तरबो इही संसार जी। 


बाढ़े हवय महगाई ता। 

बोहाय सब मझधार जी।  


गरुवा तको घूमत हवे। 

रखवार नइ हे खार जी।  


नदिया उतारे नाव ला।

नइ हे धरे पतवार जी।


परदेश जा के बस गये।  

माँ बाप हे लाचार जी। 


सपना दिखाके लूट थे।

धोखा करे हरबार जी। 


लबरा हवस अबड़े कका।

मुख ला अपन तँय टार जी।


कतको रहे अड़चन सगा। 

हिम्मत कभू झन हार जी। 


दुश्मन हजारों हे इहाँ।

रख ले बने हथियार जी। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122   2122  2122*


तोर वो बोहत हवय रसधार महुआ

डूब के कतको मरे परिवार महुआ।1


का खुशी का दुख सबो मा तँय समाए

तोर बिन नइ होत हे व्यवहार महुआ।2



खेत डोली के भले ही ठप्प हावंय

तोर तो फूले फरे व्यापार महुआ।3


का खवाये मोहनी तड़पत हवय मन

तोर पाछू हे पड़े संसार महुआ।4


फैल गेहे रोग रोगी मन बढ़त हें

कोन करही बैद बिन उपचार महुआ।5


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

 गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


छोड़ ककरो दिल दुखाना प्यार कर ले 

जिंदगी के कोठी मा अब सार भर ले


फूल के आशा हे काबर शूल बोंके 

पाँव मा गड़ जाही उल्टा खुद से डर ले 


जिंदा झन राहय समाये मन मा रावण 

मार ओला खोज संगी  सच के सर ले


तैं भटकना त्याग देना काशी काबा 

कोनो दुखियारी के पीरा जाके हर ले 


जनता हे बेहाल सब्बो वादा कोरा

 होही का कुछ काम बढ़चढ़ बोले भर ले


  टोर बिलरा हे गरीबा के ये सीका

 पेट फूटत ले झड़क बाँचे ला धर ले


डारा पाना ला भिंजो मत बइहा ' बादल'

पौधा तो हरियाही पानी पाही जर ले


चोवा राम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


सच ले सबो अनजान हे।

घट मा बसे भगवान हे।।


पथरा लगावत भोग ला।

मनखे बने नादान हे।।


तन मोह धन अब छोड़ दे।

मिल जाना तो शमशान हे।।


सब बढ़ चलौ सत राह मा।

जग के तभे कल्यान हे।।


माँ बाप के कर ले जतन।

सच प्रभु इही गुनगान हे।।


सुख दुख नदी के धार दू।

मझधार मा इंसान हे।।


जग हाल ला अब देख के।

पात्रे बड़ा हैरान हे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122 2122


पा अपन अधिकार करतब झन‌ भुला तैं।

सोच गा हित चार करतब झन‌ भुला तैं।


आय कोनो घर दुखर्रा साथ माॅगत,

कष्ट दे गा टार करतब झन‌ भुला तैं।


हे अबड़ जग आज जी झगरा बढ़इया,

बाॅट ले गा प्यार करतब झन‌ भुला तैं।


हे ददा दाई चरन मा सुख हजारों,

पूज ले बइठार करतब झन‌ भुला तैं।


एक के बोझा बदलही चार लवठी,

ले तहूॅ कुछ भार करतब झन‌ भुला तैं।


मेहनत बल जग खड़े हे खर पसीना,

माथ ले ओगार करतब झन‌ भुला तैं।


आय घर बइरी ल देना ऊॅच पीढ़ा,

पाय हॅन संस्कार करतब झन‌ भुला तैं।


कर भजन रट नाम हरि के सुन‌ मनी नित,

हो जबे भव पार करतब झन‌ भुला तैं।


- मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹

 🌹*ग़ज़ल --आशा देशमुख*🌹


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

 *2212 2212*



जब ले करोना आय हे

दुनिया अबड़ डरराय हे


कइसे करे इलाज अब

लोगन इहाँ फिफ़ियाय हे।


का रूप धरलिस काल हा

अब तो हवा बइहाय हे।


मुँह कान बाँधे जग फिरे

छइहाँ घलो भरमाय हे।


अँगना गली फुलवा लगा

चारो डहर महकाय हे।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

 गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


नेता बने भगवान हे

जनता करत गुनगान हे


हें मूर्ख वोटर आज तक

धोखा तभे फुरमान हे


भाई मरत हे भूख मा

भइया अबड़ धनवान हे


दुख मा उजरगे चेहरा

हिरदे गली सुनसान हे


बेटा बिजी हे चैट मा

माँ-बाप हा  हलकान हे


बूता सिरागे हाथ बर

महँगाई लेवत जान हे


'बादल'बहुत तैं सोंच झन

का तोर दुनिया आन हे


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


सुक्खा नदी अउ ताल हे

लगथे अकाली साल हे।


पानी बिना जिनगी कहाँ

सब जीव मन बेहाल हे।


कटगे सबो वन पेड़ अब।

ठुड़वा दिखत डंगाल हे।।


नेता फिरे सेवक बने

पर पहिने गीदड़ खाल हे।


बाली सजे हे कान मा

बिगड़े टुरा के चाल हे।।


करुहा लगे दाई ददा

हितवा बने ससुराल हे।


पात्रे कहय सच बात ला

मिर्ची सही बड़ झाल हे।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122  2122


बोर के बासी खवा दे आज मोला। 

गुण हवय कतका पता हे राज मोला। 


देश के रक्षा करे बर जम खड़े हे। 

ओ सिपाही बर सदा हे नाज मोला।  


तोर खातिर मोर हिरदे हा तड़फ थे। 

जब तहूँ तड़फे त दे आवाज मोला।


बेसरम बनके बितावत हँव समे मँय।

अब कहाँ आथे कका गो लाज मोला। 


माल खाये हँव बहुत सरकार के मँय।

लोग कहिथें चोर के सरताज मोला।


बिन करे मँय काम पावत हँव मजूरी। 

अब करे नइ आय संगी काज मोला। 


मँय शिकारी बन करे हँव काम कतको।

अब समझबे झन सगा तँय बाज मोला। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


धरथे कहाँ सच बात ला।

भुलगे मनुज औकात ला।


थामे धरम के डोर जग

कहिथे बड़े खुद जात ला।


इंसानियत अब हे कहाँ

बइठे लगा कुछ घात ला।


पानी रितो सुख पेड़ मा

हरिया ले मन के पात ला।


मन के चकोरी ताकथे

अब तो अँजोरी रात ला।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


सरकार हे बेहाल जी ।

जनता मरत बिन काल जी।


मछरी फँसे एको नहीं 

डारे हवय बड़ जाल जी। 


कोरोना बैरी फैले हे,

बीतत हवय ये साल जी।


सिधवा ह मुँह ला ताकथे,

लबरा उड़ावत माल जी। 


अपराधी घूमत रोड मा।

सत्ता बने हे ढाल जी।


दिन रात चक्कर नेट के।

बिगड़त हवय अब चाल जी।


परके भरोसा मा खड़े। 

ठोंकत हे बैरी ताल जी ।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


हँसिया कस हे धार लइका आजकल के।

मिरचा कस हे झार लइका आजकल के।1


भाजी भाँटा देख के मुँह ला फुलोये।

झड़के क़ुकरी गार लइका आजकल के।2


बात बानी जान दे का पूछना हे।

काम बर मुँह फार लइका आजकल के।3


छोड़ देथे मोड़ देथे आस सपना।

थोरको खा मार लइका आजकल के।4


सोये सोये रोज सपना मा पहुँचथे।

चाँद के वो पार लइका आजकल के।5


घर ठिहा दाई ददा भाई भुलाके।

दूर जोड़े तार लइका आजकल के।6


फर लगे ना फूल लागे खैरझिटिया।

बनगे प्लास्टिक नार लइका आजकल के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

 'गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


छत मा टहल के देख ले

थोकुन मचल के देख ले


रेंगें अबड़ हस फूँक के

कभ्भू फिसल के देख ले


चारों मुँड़ा बेहाल हे

हालत फसल के देख ले


असली कती तिरियाय हे

जलवा नकल के देख ले


बस्सा जही जी हाथ हा

माछी मसल के देख ले


हाबय गिरावट जीन मा

कतको नसल के देख ले


पथरा बने काबर गड़ी

'बादल' पिघल के देख ले


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


तलवार ला तैं धार कर ।

बैरी ले पहिली वार कर ।


आँखी देखाथे जेन हा।

वोकर ले आँखी चार कर।


के दिन हवय जीना इहाँ ।

सब ले बने व्यवहार कर।


करथस नशा बेसुध हवस।

बरबाद झन घर द्वार कर।


माटी के करजा छूट तैं ।

झन देश के व्यापार कर।


फलफलहा कोनो भाय ना।

जब गोठ करथस सार कर। 


हावय गलत करना मया।

गलती "अजय"सौ बार कर। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122 2122 2122


सीख ले बेटा तहूॅं खेती किसानी

उम्र भर खेती दया हे अन्न पानी


याद करबे तॅंय ददा के बात काली

खॉंध मा परिवार के आही सियानी


आज हे बाजार के गुणगान भलते

कोन जानै काल के कविता कहानी


शेष जीडीपी कभू रिन मा खसलही

खेती कर हमला बनाही भागमानी


नौकरी बयपार के रोजी-मजूरी

यार करना हे बिना मारे फुटानी


जाॅंचते रहिबे रहच कोनो जघा मा

पॉंव तर भुइयाॅं मुड़ी ऊपर म छानी


आदमी सच्चा खरा हे जान जाबे

जेन ला सुखदेव लगही बातबानी


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम

 मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212


मुस्कात बाली धान के

चेहरा ये हिन्दुस्तान के


हे प्रार्थना हर दिन बितय

रोजा सरिक रमजान के


कामिल के हे कुटका भले

कपड़ा हे महॅंगा थान के


श्रीराम खुश हे तोर बर

रद्दा म हस हनुमान के


नइ फेल होवस कभू

चलबे सफलता ठान के


आसा सरग के का करी

सुख नइ मिलिस शमशान के


कॅंउवा के पाछू भाग झन

पिन्ना टमड़ ले कान के


ए मा मया मरहम लगा

ए घॉंव ए नैना-बान के


तॅंय स्त्रोत झन निरवारबे

'सुखदेव' सत के ज्ञान के


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


मनखे पड़े भ्रम जाल मा।

बइठे कुमत के डाल मा।


सुमता भुलाये आज जन

जिनगी दिखे दुख काल मा।


सच के डगर ला छोड़ के

चलथे असत के चाल मा।


का सोंच मा पड़गे हवस

चिंता दिखत हे भाल मा।


पात्रे लिखे सच बात जब

सब ताल दौ सच ताल मा।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

Thursday 24 September 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन

2122  2122  2122 


रात के काबर सुरुज नइ आय भाई। 

का सुरुज हर रात मा घबराय भाई।  


रात के चंदा कहाँ रहिथे अकेला। 

लाख तारा संग धर के लाय भाई। 


ये बिहा लड्डू  ह लालच देत रहिथे।

जेन खावय तेन हर पछताय भाई।  


पूस के जाड़ा म हलकू हा जड़ा गे।

रात के गइया फसल सब खाय भाई।


पेर जाँगर अन्न बोवत हे किसनहा। 

दाम पर बढ़िया कहाँ वो पाय भाई। 


पाक गे हावय फसल जब काटना हे। 

देख ले बादर कहाँ ले छाय भाई।    


जूठा पतरी तीर बइठे देख काकी।  

भूख के मारे इहाँ तिरियाय भाई।


रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122 2122


पाप के रद्दा धरे हे आज मनखे।

लूट खावत हे बने अब बाज मनखे।


हे करत घाटा नॅगत हे जेन अपने,

हे गिरावत आज मुड़ मा गाज मनखे।


कर चलत हे देख आधा देह उघरा,

काय होगे नइ करत हे लाज मनखे।


होय परजा ला कुछू नइ चेत हाबय,

बस‌ अपन बर हे करत अब राज मनखे।


कोलिहा बघवा कभू नइ हो सकय जी,

हे बने सरदार तन ला साज मनखे।


अउ कतिक गिरही कुछू ला नइ गुनय जी,

हे करत पी मंद खिकहा काज मनखे।


तेज गाड़ी के भगाई हे ग फैशन,

गय बदल अब गा मनी अन्दाज मनखे।


- मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122   2122  2122*



हे करम गुमनाम जी उत्पाद करके।

छल बने हे तोपचँद अनुवाद करके।1


ये गरीबी हा पहावत हे उमर ला

नइ मिलत हे न्याय हा फरियाद करके।2


सोन चिरिया के पड़े पाछू शिकारी

बाग ला रौंदे चले बरबाद करके।3


दुख सहे कब तक इहाँ कोंवर कली हा

अब उतारव जंग मा फौलाद करके।4


झन कहव कुछ चीज ला हावय नकारा

डार देवव खेत मा जी खाद करके।5


सोन पिंजड़ा मा सुआ कइसे रही खुश 

देख लेवव एक छिन आज़ाद करके।6


पोसवा मन के करव झन तो  गुलामी

मुड़ उठा आशा चलो सिंहनाद करके।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन

2122  2122  2122 


रूप चंदा कस जहर भीतर भरे हे। 

तोर अइसन चाल मा जनता मरे हे। 


सोंचथे शीतल हवा मा झूम जाबो। 

तीर जा के जानथे तन मन बरे हे। 


कल कलावत गात नदिया कस समझथें। 

डूबथें भीतर तहाँ चट-चट जरे हे।


फूल के खुशबू समझ घर लान डारे। 

फँस चुके रहिथे बिचारा का करे हे।  


रूप बदलत तँय रथस छड़-छड़ म गोरी। 

देख के बपुरा मुड़ी दिनभर धरे हे।  


छेड़ के तोला कका पछतात हावय। 

तोर प्रेमी मन कका ला बड़ छरे हे।  


तोर चाहत मा उड़ा गे माल जम्मो। 

बेवड़ा बनके कका रसता परे हे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दुर्गा शंकर इजारदार

 

गजल-दुर्गा शंकर इजारदार

बहरे रमल मुसद्दस सालिम


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


2122    2122    2122


भाग दोषी मान के झन कर बहाना।

बैठ झन चुपचाप जाँगर ला चला ना।।


आगी धरथे आदमी तो जान के रे ।

हाथ जरके दोष माढ़़त हे जमाना।।


मीठलबरा जान ले कर ले चिन्हारी।

काम ओकर आपसी मा हे लड़ाना।।


देश सेवा बर विधायक वो बने हे।

लूट दारिस देश भर लिस खुद खजाना।।


धान सरगे लाख टन गोदाम मा रे।

आदमी तरसत हवय एक एक दाना


खोज डारे देवता ला का ग पाये?

देवता दाई ददा माथा नवाना ।।


कर भरोसा खुद के दुर्गा पार जाबे ।

जोश कतका हे जमाना ला बताना ।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

*2122    2122    2122*


जाग संगी जाग रे नव भोर होगे

गाँव घर सब्बो डहर अंजोर होगे।


कोयली के कूक बोली मीठ लागे

देख बादर ला मगन तो मोर होगे।


छाँव सुमता बैठ सब मल्हार गाये

प्रेम के बरसा घलो घनघोर होगे।


का भरोसा साँस तन ये छोड़ जाही

झूलना कस जिनगी के डोर होगे।


देश खातिर जान जब जब वीर दे हे

धन्य तब तब माँ के अँचरा छोर होगे।


कोंन करही देश जनता के भलाई

चोर हे सब चोर हे जग शोर होगे।


सत्य ला थामे चले हे जे गजानंद

ओकरे तो नाम चारो ओर होगे।



गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


बाढ़ मा खेती सरे दाना कहाँ हे।

भूख मा मनखे मरत खाना कहाँ हे।


पेट के खातिर चलत पैदल उमन हा।

फेर उन ला नइ पता जाना कहाँ हे।


सिधवा पेरावत हवय जी कोर्ट मा अब।

दोषी होगे हे बरी थाना कहाँ हे।


रुपिया अउ डॉलर के हावय अब जमाना।

अब नँदागे कौड़ी अउ आना कहाँ हे।


जब भलाई काम के ठाने हवस तैं।

सोंच ले खोना हवय पाना कहाँ हे।


छोड़ के परदेस गे हे मोर जोही।

हे उदासी मन हा मस्ताना कहाँ हे


राग वइसन अब कहाँ मिलथे "अजय"जी। 

गीत सुग्घर नइ मिलय गाना कहाँ हे।


अजय अमृतांशु,भाटापारा

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122 2122


बड़ पदोथे रोज के बादर बदलगे।

स्तर चढ़त हे देख जी सागर बदलगे।


अब भुलावत हें सगे रिश्ता नता ला,

आदमी अन्दाज ले आगर बदलगे।


डारथच गा खाद युरिया तैं नॅगत के,

ठोस होगय खेत सब गादर बदल‌‌गे।


अब नॅदागय खेती के पुरखा चलागत,

यंत्र सब जुन्ना फसल नाॅगर बदलगे।


काम चिटको अब बने नइ होत हाबय,

मन‌ लगा के नइ करॅय चाकर बदलगे।


रात दिन बड़ फोरथे जी कूद खपरा,

नइ भगॅय उॅन खार सब माकर बदलगे।


भागथे उल्टा पवन‌ जे कष्ट पाथे,

सोच झन तैं अब मनी काबर बदलगे।


- मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122


पर भरोसा जिंदगानी नइ चलय जी।

बिन कमाये दाना पानी नइ चलय जी।


पाय अतका बड़ हवस जाँगर त कर कुछु

अइसने किस्सा कहानी नइ चलय जी।


कर डरे बिरथा नशा मा चूर होके

तोर अइसनहा जवानी नइ चलय जी।


चल जही कतको हँसी ठठ्ठा भले कर

फेर सुनले बदजुबानी नइ चलय जी।


कान पकगे अच्छा दिन आही सुन सुन

'ज्ञानु' अब अइसन सियानी नइ चलय जी।


ज्ञानु

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


काम ला छोटे समझ झन कुछु करे कर।

चोरी हा अपराध होथे जी डरे कर। 


भटके ला रद्दा बता मिलही दुआ सुन।

मिटही सब अँधियार दीया कस बरे कर।


रोज भाषण दे ले पाही काय जनता। 

ककरो पीरा ला कभू तो तैं हरे कर। 


खाली घूमत रहिबे धंधा करबे काँही।

मिलथे कोनो ज्ञान ता सुग्घर धरे कर। 


होथे झगरा तीर मा झन जा कभू तैं।

आय आफत येहा तैंहा बस टरे कर।


बाढ़ गे हे काया कुछ तो चेत कर ले। 

खाली खाये बर "अजय" झन तैं मरे कर।


दाना दाना मा सबो के हक हवय गा। 

पेट ककरो काट झन खुद के भरे कर।


अजय अमृतांशु,भाटापारा

Wednesday 23 September 2020

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

मुफाईलुन  फाइलातुन मुफाईलुन फेलुन

1212  1122  1212  22


भटक गे कोनो डगर ता दिखा कभू साहेब

मजाक कखरो इहाँ झन उड़ा कभू साहेब


बिखर जथे घलो परिवार बात छोटे मा

रिसाय कोनो अपन हे मना कभू साहेब


अलग अलग हे अपन राग सब अलापत हे

हवै जे तोर अपन राग ला लमा कभू साहेब


कहूँ गरीब के नइ कर सकस भलाई कुछु 

गरीब मन ला इहाँ झन सता कभू साहेब


भले दे झन दवा दाई ददा ला बूढ़त मा

बइठ के रोज इँखर संग गोठिया साहेब


जी घूँट घूँट के झन कीमती हे जिनगी बड़

चलत हे तोर का मन मा जता कभू साहेब


जरूर मन ला खुशी मिलही 'ज्ञानु' हा कहिथे

भुलाय मनखे ला रसता बता कभू साहेब


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बन महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


बना डरे बने घर ला सगा बधाई हो। 

सजाय हच बने दर ला सगा बधाई हो। 


कहाँ के पाय ते पइसा मिले खजाना का।  

लुटाय हच बने हर ला सगा बधाई हो। 


बिताय रात ल शमशान मेर तँय जा के।

भगाय हच बने डर ला सगा बधाई हो। 


सुने हवँव बिके बर तो ये सोन कस होही।

सकेल डारे ते फर ला सगा बधाई हो। 


पहिर "दिलीप'' ते मुड़ हेलमेट ला निकले।

बचाय हच बने सर ला सगा बधाई हो।  


रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

 गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


काय राखे हे ये तन मा सोंच लेना

सुख कहाँ हे जोरे धन मा सोंच लेना


हे महल ऊँचा अटारी फेर काबर

लोभ लालच हे लगन मा सोंच लेना


छल भरे मृगतृष्णा जइसे ये जगत हा

जीव जाथे तो थकन मा सोंच लेना


मान देबे मान पाबे संत कहिथें

सत पुरुष हे सबके मन मा सोंच लेना


ज्ञान के करके अहम कतको नसागें

आगि बरथे का बचन मा सोंच लेना


मन तपोवन कस बनाके राम जप ले

का मिले हे जाके वन मा सोंच लेना


हे बिछे बड़ जाल फँस जाबे तैं झटकुन

झन दिखा 'बादल' लड़कपन सोंच लेना


चोवा राम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुसद्दस सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122  2122 


बाण कजरेरी चलाये आज काबर।  

रूप चमका के गिराये गाज काबर।


जेन मन मा हे सबो ला बोल देते। 

मौन रहि के तँय छुपाये राज काबर। 


डाँट काबर खात रहिथस रात दिन तँय।

जे कहे तइसे करे नइ काज काबर। 


दाँत मा अछरा दबाये मुस्कुराके।

काय मन हाबय मरे तँय लाज काबर 


तोर रसता मोर ले विपरीत हावय।

फिर बता मोला दिहे आवाज काबर। 


रचानाकार--दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

मुफाईलुन फाइलातुन मुफाईलुन फेलुन

1212 1122 1212 22


बना डरे का अपन रूप आज मनखेमन

हे आँय बाँय करत रोज काज मनखेमन


झपट दिही वो पता नइ चलय कतक बेरा

बने फिरत हे इहाँ देख बाज मनखेमन


बने रे सोच समझ संग गोठ कर कखरो

समे पा खोल दिही तोर राज मनखेमन


भुलात कतको हे संस्कार अपन संस्कृति

करय न छोट बड़े के लिहाज मनखेमन


लगय बिरान नही आज अपने अपने बर

अबड़ गिरात हवय 'ज्ञानु' गाज मनखेमन


ज्ञानु

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

*2122    2122    2122*


बाँध ले गठरी मया तब मान पाबे।

नेक कारज ले इँहा पहिचान पाबे।।


देवता दाई ददा सुन आज भी हे।

राम सरवन कस कहाँ संतान पाबे।।


एक मनखे खून सबके एक कहिगे।

संत घासीदास ले सत ज्ञान पाबे।।


अंधविश्वासी धरे हे ढ़ोंग जन जन।

सत्य मारग मा कहाँ इंसान पाबे।।


मोर भारत देश मा बड़ एकता हे।

जान से बड़के तिरंगा शान पाबे।।


हे कटोरा धान के छत्तीसगढ़ हा।

लहलहावत खेत अउ खलिहान पाबे।।


जोर दून्नों हाथ ला कहिथे गजानंद।

दीन दुखिया सेवा ले भगवान पाबे।।



गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122   2122  2122*


देख परगे चाल मा कीरा कबीरा

बीज बड़का छोट हे खीरा  कबीरा।


पाँव पनही देह कपड़ा सुख सवारी

राज करथें रोग दुख पीरा कबीरा।


रात दिन भंडार मा बइठे घुना हा

ऊँट के मुँह जाय हे जीरा कबीरा।


रंग देखे भक्ति के रैदास रोवै

मंच लूटत आज के मीरा कबीरा।


कांस पीतल सोन चाँदी सब लुकावै

काँच ले शरमात हे हीरा  कबीरा।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

*2122    2122    2122*


सोंच थँव कब सत्य के उजियार होही

ढ़ोंग पाखँड मुक्त ये संसार होही


वोट कीमत लोग नइ जब जानही ता

दूर जम्मो वो अपन अधिकार होही


खाय पर के छीन जे हा भात रोटी

जान वो इंसानियत गद्दार होही


साध मतलब जब तलक इंसान रइही

दीन दुखिया साथ अत्याचार होही


ढूँढ़ ले पावच नही सुमता गजानंद

भाई भाई मा बटे परिवार होही 



गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर (छत्तीसगढ़ )

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


मया के अर्थ हा देखव बदल चुके हावय।

सुवा जिया मा सुवारथ के पल चुके हावय।1


लगाय कोन हा घायल के घाव मा मरहम।

बइद घलो तो जहर धर निकल चुके हावय।2


अगिन बरत हवे बम्बर सबे डहर छल के।

सबर बरफ सही सबके टघल चुके हावय।3


का हथकड़ी घलो हत्यारा हाथ मा लगही।

अवइया फैसला तक तो टल चुके हावय।4


भरोसा करबे भला कइसे कखरो उप्पर मा।

माँ बाप ला घलो तो पूत छल चुके हावय।5


का बाँच पाही मया के फसल कहूँ कोती।

अगिन दुवेश के सब खूँट जल चुके हावय।6


बता चढौ़ भला कइसे मचान मा मैंहर।

टिकाय सीढ़ी घलो तो फिसल चुके हावय।7


ठिहा ठिकाना कहाँ हे जियत मनुष मन बर।

मशान घाट मा नेंवान डल चुके हावय।8


जलाय चल बने आशा के जुगनू जी जीतेन्द्र।

डहर दिखइया सुरज हा तो ढल चुके हावय।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


मैं वो सहारा जे जिनगी सँवार देवत हँव। 

बहे ते बर बने तिनका उबार देवत हँव। 


गरीब जान के मोला ओ देत हे चाँउर। 

मैं रोज अद्धि ले बोतल डकार देवत हँव। 


गरीबी मा बिके घर खेत मोर पुरखा के। 

बचे न खाय के तब ले उधार देवत हँव।


रखे न जेब मे फूटी तभो ले राजा औ।

मँगे जे एक त वोला मे चार देवत हँव। 


मैं जानथौं हवे कतकोन झन इहाँ बैरी। 

नशा जहाँ चढ़े खुद ही कटार देवत हँव। 


रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे रमल मुसद्दस सालिम

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रमल मुसद्दस सालिम 

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन। फ़ाइलातुन 

2122  2122  2122   


मोर दाई तोर आशिष पाय हावँव। 

तोर किरपा ले जगत मा छाय हावँव। 


कोन मोला मार पाही अब बता दे। 

मँय कवच पहिरे लड़े बर आय हावँव। 


शेर कस गरजत रथौं बाहिर म मँय हर। 

सच कहँव बाई के आगू गाय हावँव। 


देखथौं कतकोन के आँखी दिखे नइ। 

ओखरो बर आज चश्मा लाय हावँव।


मँय दगा नइ कर सकवँ माटी ले संगी।

एख़रे देहे सदा मँय खाय हावँव।


कोढ़िया कतकोन मुँह ला फार बइठे।

ओखरो बर धान मँय उपजाय हावँव।  


मोर धरती मा कदम रखबे समझ ले। 

तोर बर बारूद मँय बिछवाय हावँव।


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122  2122 2122*


सब डहर सम्मान होगे हे बिकाऊ

सुख करम यशगान होगे हे बिकाऊ।1


रोज दिन होवत हवय चोरी चकारी

का कहंव दरबान होगे हे बिकाऊ।2


बिन सिफारिश के इँहा नइ काम होवय

अब सबो पहिचान होगे हे बिकाऊ।3


का रहय अब देश के भावी धरोहर

ज्ञान के संस्थान होगे हे बिकाऊ।4


अब कहाँ परिया दिखे हे गाँव मन मा

देख ले शमशान होगे हे बिकाऊ।5


खोज ले रिश्ता नता मा प्रेम बोली

कुछ मया मुस्कान होगे हे बिकाऊ।6


सोन चाँदी के लदे मंदिर देवाला।

आजकल भगवान होगे हे बिकाऊ।7



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122   2122  2122*



का सुनंव संगीत में तो ताल नइहे।

ये सिनेमा नाच एको हाल नइहे।1


बैद डॉक्टर मन कहँय खावव विटामिन

खाद के सेती लहू हा लाल नइहे।2


तोर दुख ला कोन सुनही रे मछरिया

लोग कहिथें छल मगर बर जाल नइहे।3


बाप के धन मा तें मारे हस फुटानी

तोर लइका बर इहाँ अब माल नइहे।4


देख दुनिया के इहाँ जंगल सफारी

बेहिचक अब तोर हिरनी चाल नइहे।5


पाँव फिसलत हे गिरत हे हर बखत वो

देख घोड़ा मा लगाए नाल नइहे।6


लोभ के घर मा बने छप्पन सुहारी

तोर थारी देख आशा दाल नइहे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल - मनीराम साहू मितान


बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122  2122 2122


ओकरे चारो कुती बड़ सोर हाबय।

खात हे सरबस लुका वो चोर हाबय।


हे नमन डंडा सरन बलिदान उॅनकर,

बड़ सुरक्षित आज जम्मो छोर हाबय।


स्वच्छता अभियान के हे बड़ असर जी,

साफ जम्मो बाट चातर खोर हाबय।


हे बतावत मेहनत ला गोड़ ओकर,

केंदवा ले गदफदाये पोर हाबय।


का करन जी होय हाबय दार सपना,

कोंहड़ा भाजी चुरे हे झोर हाबय।


मार लवठी के परे हा दिख जथे जी,

बोल मारे नइ दिखय कहँ लोर हाबय।


कोन जानय भाग ओकर का लिखे हे,

सुख हवय या दुख घटा घनघोर हाबय।


नइ टुटै टोरे कभू कइथे मनी हा,

सच अबड़ झिम्मट मया के डोर हाबय।


- मनीराम साहू मितान

गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'

 गजल--चोवा राम वर्मा'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


तोर गोई गोठ गुरतुर मोह लेथे

झुरझुरी कस देह ला बड़ पोह लेथे


चेहरा हा मार डुबकी नैन भीतर

हे मया हा कतका गहिरा टोह लेथे


रात दिन तरसाथे सुरता के बदरिया

 रासता हिरदे  नगरिहा जोह लेथे


भूँख कबके भाग गेहे का बतावँव

मिलकी नइ मारै पलक दुख बोह लेथे



प्यार ला बैरी बनाथे ये जमाना

दिल दिवाना ला उही हा सोह लेथे



चोवा राम वर्मा'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गज़ल- अजय "अमॄतांशु"

 गज़ल- अजय "अमॄतांशु"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


काम सिरतो कब भलाई के करे हस।

का कभू कखरो बता दुख ला हरे हस।


सीखबे तँउरे ल अब कइसे बता तैं।

बूड़ जाहूँ पानी मा तैंहा डरे हस। 


कर भला के काम सँग मा जाही येहा। 

मोह मा दौलत के काबर तैं परे हस।


होवै जिनगी मा उजाला सोंचथस तैं।

दीया बनके ककरो जिनगी मा बरे हस।


कइसे उठही बेटी के डोली दुबारा। 

एक घव दाहिज के आगी मा जरे हस।


टूटही काबर मितानी गोठ सुन ले। 

बात काँही नोहे काबर तैं धरे हस।


जनता करही माफ कइसे तोर करनी।

बनके गोल्लर देश ला अड़बड़ चरे हस।


अजय अमॄतांशु, भाटापारा

🙏

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे रमल मुसद्दस सालिम

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122 2122 2122


भूख मा कतको मरत हे देखले तँय

कतको अउ कोठी भरत हे देखले तँय


चुप्प ताँकत खड़े रहिगेन हम अउ

हाथ दूनो वो धरत हे देखले तँय


कोन कहिबे इहाँ भाईच भाई

एक दूसर बर जरत हे देखले तँय


देख बेटी ला बढ़त दाई ददा के

आँखी ले आँसू ढ़रत हे देखले तँय


बाप के बेटा सुने नइ 'ज्ञानु' अब तो

अपने मन के बस करत हे देखले तँय


ज्ञानु

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देख दुनिया के तमाशा ला कलेचुप।

खा मिलत हे ता बताशा ला कलेचुप।1


पीट झन तैंहर ढिंढोरा फोकटे के।

पूरा कर ले मन के आशा ला कलेचुप।2


जोड़े सब ला तोड़थे जालिम जमाना।

दरके मा तैं छाभ लाशा ला कलेचुप।3


सब जुरे सुख के समय मा जानथस तो।

झेल जम्मो दुख निराशा ला कलेचुप।4


फोकटे हे हाय हाये खैरझिटिया।

लेत चल नित चैन स्वासा ला कलेचुप।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 21 September 2020

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम

*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*



देउँता बइठे रहिन पुरखा के घर मा

सुख दुवारी मा रहिस खपरा के घर मा।


चल अनाथालय उहें दिन काटबो हम

अब ठियाँ रहिगे कहाँ बेटा के घर मा।


घर बड़े होगे तहाँ तारा लटक के

सुख मया जम्मो रहिस तइहा के घर मा।


सोच के करबे बिदा छेरी ला भाई

के दिना बाँचे रही बघुवा के घर मा।


लॉकडाउन मा कमइया मन के हालत

देख, बइठे हे "अरुण" बइहा के घर मा।


*अरुण कुमार निगम*

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


नयन ला निंदिया घलो नइ सुताय पहली कस।

थके गतर हा रथे नइ कमाय पहली कस।।1


रबड़ हा तनके घलो रूप मा अपन आथे।

तने मनुष हा कभू नइ हो पाय पहली कस।2


का कोठ के घलो अब कान संग आँखी हे।

जिया के बात रहे  नइ लुकाय पहली कस।3


अघाय जिवरा रहय ते ललात हे अभ्भो।

उदर हा फेर कहाँ हे भुखाय पहली कस।4


नवा जमाना मा कुछु भी नवा कहाँ हे देखा।

हे पेंट जींस मा कपड़ा कपाय पहली कस।5


धँधाय हे ददा दाई उड़ाय बेटा हा।

तिरथ बरत कहाँ बेटा कराय पहली कस।6


सरग सही लगे घर गाँव बन डिही डोंगर।

परेवा पड़की कहाँ अब उड़ाय पहली कस।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


बता तिहीं बिना काँटा गुलाब का आही।

गरीब घर खुशी धरके सहाब का आही।1


मँझोत मा हे कुवाँ अउ पिछोत खाई हे।

तिहीं बता तो समय अउ खराब का आही।2


हमर ठिहा मा खुशी आही बस फकत कहिथो।

सवाल हे अभो जसतस जवाब का आही।3


दिखे फसल भरे सावन मा बड़ दुबर पातर।

समय गँवाही ता फिर से शबाब का आही।4


छुपात मुँह ला फिरत रह जतर जतर कतको।

छुपाय चाल चरित ला नकाब का आही।5


मया पिरीत के धारा बहाय महतारी।

पिरीत के बता वोला हिसाब का आही।6


कभू इती ता कभू ओती बस भटकथे मन।

बताय बर बने रद्दा किताब का आही।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


जगे हमर मया बस देश बर तिमाही मा।

समाय फेर सदा दिन रथे सिपाही मा।1


सुने घलो नही आ कहिबे तेला कोनो भी।

निंगाय मूड़ मनुष मन इहाँ मनाही मा।2


सबे जिनिस हवे सागर मा मथ मथाही तब।

का पाबे घँस के बता नानकुन सुराही मा।3


सुहाय तोर मया बड़ सताय अउ सुरता।

बसे हे चेहरा मोरे कलम सियाही मा।4


हे कोन हा इहाँ पानी पवन ले ताकतवर।

ना धन ना जन सबे सिराही इहाँ तबाही मा।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


फुले फले कहाँ बाँस अउ बबूल कागज के।

न भौरा आय न तितली हे फूल कागज के।1


पड़े हे कोंटा मा फेकाय कतको फाइल पत्ता।

बिना रकम कहाँ झड़ पाही धूल कागज के।2


दया मया मिले कागज मा धन हरे कागज।

करे जिया घलो ला छल्ली शूल कागज के।3


घड़ी घड़ी टुटे कतको नियम धियम कानून।

बना डरे हे मनुष मन हा रूल कागज के।4


ठिहा ठउर घलो कागज जिया घलो हे कागज।

करे करम सबे मनखे हे भूल कागज के।5


खिंचाय हे इहाँ कागज मा जिनगी के रेखा।

करत हवे सबे तोफा कुबूल कागज के।।6


जमाना पूरा हे कागज हे माँग हे भारी।

निभात हवे सबे मनखे उशूल कागज के।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


जमाना हा तको सिरतो जहर पियाही जी

भरे हे काई तो हिरदे समझ सताही जी


गरीब हम सदा ले हन कहाँ अमीरी हे

नवाँ पहिनके निकलबे तहाँ  रिसाही जी


पता अभी चले हे मोरो ऊँट छोटे हे

पहाड़ के तरी मा हे वो थरथराही जी


तैं मैं सदा जुड़े तो हन सबो नता बाँधे

उदिम चली बने करबो अँजोर आही जी


करू कसा ला कभू झन तैं भाख 'बादल' तो

इही करम हा तो भवपार ले के जाही जी


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- मनीराम साहू मितान

 गजल- मनीराम साहू मितान


बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


रकम रकम के चहुक्का सुनत रथॅव‌ मैं हा।

भविष्य काल का लाही गुनत रथॅव‌ मैं हा।


कभू समझ मा परय नइ बने हे या गिनहा,

घटा बढ़ा के सरेखत चुनत रथॅव‌ मैं हा।


अपन‌ करम के सजा ला रथे भुगतना जी,

करत बिचार मुड़ी ला धुनत रथॅव‌ मैं हा।


करत जुगाड़ अपन के पिसत हवय जिनगी,

नठे नसीब के छानी तुनत रथॅव‌ मैं हा।


कमी सलाह के नइये मिलत रथे अबड़े,

अपन मने के सुपा मा फुनत रथॅव‌ मैं हा।


नवा बिहान हा आही खुशी धरे लाही,

अपन बनाव के सपना बुनत रथॅव‌ मैं हा।


कथे मितान बिना श्रम कभू न पेट भरय,

कमा शरीर घमा के भुनत रथॅव‌ मैं हा।


- मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 ग़ज़ल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


दिखे ना झूठ इँहा जोत सत जलाना हे।

खिले जे फूल सुमत पेड़ वो लगाना हे।


गरीब दीन दुखी के बनौ सहारा अब।

गिरे परे डरे ला मिल चलौ उठाना हे।


मिलै सबो ला मया दुःख कोनो झन साहय।

धरम करम रखे हित पाँव ला बढ़ाना हे।


जुआ नशा तो सदा चीज ला बिगाड़े हे।

उजाड़ हो खुशी झन घर सुखी बसाना हे।


परोपकार रहै तब सही भलाई हे।

विचार उच्च गजानंद जी बनाना हे।



गजानंद पात्रे "सत्यबोध " बिलासपुर

छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ

मुफाईलुन  फाइलातुन मुफाईलुन फेलुन

1212  1122  1212  22


भटक गे कोनो डगर ता दिखा कभू साहेब

मजाक कखरो इहाँ झन उड़ा कभू साहेब


बिखर जथे घलो परिवार बात छोटे मा

रिसाय कोनो अपन हे मना कभू साहेब


अलग अलग हे अपन राग सब अलापत हे

हवै जे तोर अपन राग ला लमा कभू साहेब


कहूँ गरीब के नइ कर सकस भलाई कुछु 

गरीब मन ला इहाँ झन सता कभू साहेब


भले दे झन दवा दाई ददा ला बूढ़त मा

बइठ के रोज इँखर संग गोठिया साहेब


जी घूँट घूँट के झन कीमती हे जिनगी बड़

चलत हे तोर का मन मा जता कभू साहेब


जरूर मन ला खुशी मिलही 'ज्ञानु' हा कहिथे

भुलाय मनखे ला रसता बता कभू साहेब


ज्ञानु

Friday 18 September 2020

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*



समाय मोर नजर मा वो मोहनी बनके

मया परीक्षा म बइठे वो  सोहनी बनके।


कमाए आज मुनाफा बजार मा भारी

मढ़ाय पाँव ल लक्ष्मी हा बोहनी बनके।


रचाय कैसे विधाता कभू कभू माया

ये देवकी हा  जने कोख रोहणी बनके।


बनाय कोन जगत मा ग दान ला दाहिज

दुहे हे दूध  अबड़ लोभ दोहनी बनके।


शहर डहर गली द्वारी म झूठ हा बइठे

चुपे हे आज सच्चाई बिछोहनी बनके।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


कपाट बंद हे तब ले हवा ह आ जाथे। 

लगे ले पूस महीना सबो जड़ा जाथे। 


कतेक राखबे मछरी लुकाय रँधनी मा। 

मिले जे गंध बिलाई चुरा के खा जाथे। 


गरीब मस्त हे चिंता करे नही कल के। 

कमाय रोज तहाँ खाय बर ओ पा जाथे। 


अमीर सोंचथे कइसे बढ़ावँ बिजनस ला। 

करे प्रपंच ओ भारी तभो ठगा जाथे। 


चुनाव आय ले घर-घर  बनत रथे कुकरी। 

समझ से हे परे पइसा कहाँ ले पा जाथे।


कभू-कभू करे किरपा हमार कुटिया मा।

बिना घटा के ये बरसा कहाँ ले आ जाथे। 


"दिलीप''तोर कहे कोन भला मानत हे। 

ते ओ धुआँ रहे जे ठंड आय छा जाथे। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*



सबो जगत ला  बनाए गुलाम ये रोटी

नता सगा मा कराए संग्राम ये रोटी।


नहाय रोज के मिहनत इहाँ पसीना मा

सदा सदा ले सहे शीत घाम ये रोटी।


सनाय हाथ कभू देख ईंट गारा मा

रहे सफेद बिहाने औ शाम  ये रोटी।


दिखे म लागथे बड़का महल अटारी हा

मुड़ी म बैठ कराए प्रणाम ये रोटी।


तहीं बता कभू भगवान हा करे तीरथ

सुरुज अँजोर नदी खेत धाम ये रोटी।


कभू थके नही दिन रात भूख हा चलथे 

मरे के बाद करे कोहराम  ये रोटी।


लगाय तर्क अबड़ तबले समझ नही आये।

कहाय भाग्य या मिहनत इनाम ये रोटी।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- मनीराम साहू मितान

 गजल- मनीराम साहू मितान


बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


बने हवय वो मदारी नचात हाबय जी।

दिखा दिखा डर सबला फॅसात हाबय जी।


अड़े हवय सच हे मोर बात मन जम्मो,

अपन भुजा बल अॅइठत दिखात हाबय जी।


बने करम नइ जानय करत रथे चारी,

डुबक डुबक बड़ गंगा नहात हाबय जी।


हवय मगन नित अबड़े बुता करै बाबू,

लहू चुरो खुद किस्मत जगात हाबय जी।


कमा कमा के सिहरथे किसान हा देखव, 

बजार जा बड़ सबले ठगात हाबय जी।


नॅगत उल्होत हे देखव लबार के जुग हे,

समे उलट गय सच्चा लजात हाबय जी।


धरम निभात कहाॅ हे मितान तक हा अब,

लगा कलंक बनौकी बनात हाबय जी।


- मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


मिले रहै सबो के दिल तभे मजा आही

बला बना के तो अपने तभे मया आही


गँवागे हे धरे मीठा जिनिस कहाँ खोजौं

धरे हवै वो दे दै चिटको तो दया आही


उघारे देखबो नैना तभे तो गम पाबो

गरीब हा सबे के काम तो सदा आही


लड़ा लड़ा के मिटाये हमेशा उन मन हें

अँजोरी रात के चंदा कहाँ बता आही


न चोंट सहला न कुछु बोलबे तैं जी पगला

सुदामा हच तैं तो 'बादल', त दुःख हा आही


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-मनीराम साहू मितान

 


गजल-मनीराम साहू मितान

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


छदर बदर हे सबो झन‌ कहॅव‌ बने कइसे।

मया भुले हे बड़े मन कहॅव‌ बने कइसे।


बुता बने हे किसानी करॅय नहीं तबहो 

अलाली बड़ हे भरे तन कहॅव‌ बने कइसे।


सरप असन हो गये हें नॅगत उछरथें बिख,

तने रथे गा सदा फन कहॅव‌ बने कइसे।


फरी पवन के बिना जी बढ़े हवय रोगी,

जहर घुरे हे सबो कन कहॅव‌ बने कइसे।


बिकत हवय गा नॅगत के गली गली दारू,

नशा करात हे अनबन कहॅव‌ बने कइसे।


करय नही वो कभू श्रम धरे गरीबी हे,

कथे भुलाय हे भगवन कहॅव‌ बने कइसे।


दया धरम ला बिसर के मितान हे बइठे,

भले भराय हे घर धन कहॅव‌ बने कइसे।


- मनीराम साहू मितान

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बन महजूफ़

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


हरेक बात हा ओखर लताड़ कस लागय।

कहे जो किटकिटा के दाँत जाड़ कस लागय। 


कबाड़ ले तको कतकोन घर चलत हावय। 

भले ओ घर तको ओखर कबाड़ कस लागय। 


शरीर बाढ़ गे हावय लगे बहुत भारी। 

जे देखबे त समझबे पहाड़ कस लागय। 


अवाज मा भरे हे जोश रोश आँखी मा। 

सुने म शेर के जइसे दहाड़ कस लागय। 


"दिलीप''हे बने ऊँचा सबो ल दिख जाथे। 

दिखे ओ दूर ले सब ला ओ ताड़ कस लागय। 


रचानाकार--दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


जमाना हा तको सिरतो जहर पियाही जी

भरे हे काई तो हिरदे समझ सताही जी


गरीब हम सदा ले हन कहाँ अमीरी हे

नवाँ पहिनके निकलबे तहाँ ले रिसाही जी


पता अभी चले हे मोरो ऊँट छोटे हे

पहाड़ के तरी मा हे वो थरथराही जी


तैं मैं सदा जुड़े तो हन सबो नता बाँधे

उदिम चली बने करबो अँजोर आही जी


करू कसा ला कभू झन तैं भाख 'बादल' तो

इही करम हा तो भवपार ले के जाही जी


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


बिगाड़ झन हो कि लागे शरम बताये मा।

समाज उठ के बिचारे करम बताये मा।


भले कठोर उराठिल सही रहे वाणी

बने मिठास रहे वो नरम बताये मा।


घुमा फिरा के कभू बात ला करव झन तो

तिली तहाड़ बनाये भरम बताये मा।


सदा सकेल के राखे कहात हे ज्ञानी

असल जिगर हे  कला जे धरम बताये मा।


हवा के संग मा मौसम ठकुरसुहाती हे

जमे हे बर्फ हा झन हो गरम बताये मा।


रहे हे संग विभीषण तभे मरे रावण

उठाय राम धनुष ला मरम बताये मा।


हृदय तरी बसे अमरित निकाल पी आशा

बुझे न प्यास हा मन के चरम बताये मा।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


उघारे नैन जे रेंगें झपाय ना कभ्भू।

कुँवा जे पानी ला देवे पटाय ना कभ्भू।


उदर के आग घलो तो बुझाय खाये मा।

भुखाये जौन हे मनके अघाय ना कभ्भू।


पढ़े गढ़े बिना गुण ज्ञान मान का पाबे।

मिले का घीव दही तो जमाय ना कभ्भू।


मनुष हरे जभे खाही तभे तो गुण गाही।

कुकुर घलो बिना रोटी के आय ना कभ्भू।


परे हे चाल मा कीरा सबे ला देय ओ पीरा।

जी काखरो बने मनखे जलाय ना कभ्भू।


अपन गियान ला देखात अधभरा फिरथे।

भरे के शोर भी चिटिको सुनाय ना कभ्भू।


असाढ़ मा कुँवा तरिया उबुक चुबुक करथे।

समुंद कोनो घड़ी अकबकाय ना कभ्भू।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Wednesday 16 September 2020

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


परोसा तीन गटकथें इहाँ के लोगन मन। 

भरे जे पेट मटकथें इहाँ के लोगन मन। 


दिखे भले ग ये सिधवा मगर बहादुर हें। 

बने ओ शेर हटकथें इहाँ के लोगन मन। 


लड़े मरे ल तो जब्बर इहाँ रहे छाती।

उठा-उठा के पटकथें इहाँ के लोगन मन। 


कहाय हे भले येमन इहाँ ग देहाती।  

बड़े इनाम झटकथें इहाँ के लोगन मन।  


करे भले न रहे काम कुछ गलत भाई। 

बिना करे ग लटकथें इहाँ के लोगन मन।


करे हे नाम ला रौशन कुछ एक पढहन्ता।

ओ शहरी मन ल खटकथें इहाँ के लोगन मन।  


कहे "दिलीप'' न माने रहे पिये दारू।

कभू-कभू तो भटकथें इहाँ के लोगन मन। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन  फेलुन

1212 1122 1212 22   


तहीं कहे बड़ा सिधवा इहाँ के लोगन मन। 

रहीं कहे बड़ा सिधवा इहाँ के लोगन मन।


बना बना के खवाथे बरा बिजौरी ला। 

सहीं कहे बड़ा सिधवा इहाँ के लोगन मन।  


बना के देवता करथे इहाँ सगा पूजा। 

महीं कहे बड़ा सिधवा इहाँ के लोगन मन।


ठठाय बिन न ओ छोड़य रहे बुराई जे।

कहीं कहे बड़ा सिधवा इहाँ के लोगन मन।  


कहूँ देबे कभू काहीं "दिलीप'' कब रखथें। 

नही कहे बड़ा सिधवा इहाँ के लोगन मन। 


रचानाकार--दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महजूफ़ 

मुफ़ाइलुन फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फेलुन

1212  1122  1212  22 


सजा न पाय कभू दोष जे मढ़े आथे।

भले ही झूठ कहानी मगर गढ़े आथे। 


हला हला के गिराये कहाँ गिरे नरियर। 

मिले उही ल ओ फल पेड़ जे चढ़े आथे।  


लिखाय राज हे ओमा मिले हे जे कागज। 

उही ह जान ग पाथे जे ला पढ़े आथे। 


उलझ के रहि जथे कतकोन मन इहाँ भाई। 

मिले उही ल ग मंजिल जे ला बढ़े आथे। 


गथाय सूत हे बढ़िया गजब पिरोये हे।

उही ह मान ल पाथे जे ला कढ़े आथे। 


रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम

*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


ददा बाबा ला बलाहू तभे मजा आही

बरा बना के खवाहू तभे मजा आही।


चुनाव आथे त सुरता हमर नँगत करथव

चुने के बाद मा आहू तभे मजा आही।


झरत हे आँखी ले आँसू जउन डहर देखौ

कहूँ जतन ले हँसाहू तभे मजा आही।


बड़े बड़े के चिरौरी करे मा का पाहू

परे डरे ला उठाहू तभे मजा आही।


महानगर ला सजाए ले पेट भरही का

किसान मन ला सजाहू तभे मजा आही।


महल अटारी मा सुविधा ला सुख बतावत हें

उदुप ले परदा हटाहू तभे मजा आही।


उदास साज उठावौ झुमर के आज "अरुण"

मया के गीत सुनाहू तभे मजा आही।


*अरुण कुमार निगम*


गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब महफूफ़ महफूफ़ महजूफ़ 

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफाइलु फ़ाइलुन

221  2121  1221  212 


घर मा हमर खुसर के ओ हमला नचात हे। 

राजा बने हमर बड़ा आँखी दिखात हे। 


अइसन करव उपाय ओ इँहचे ले भाग जय। 

लूटत हवय गरीब ला डण्डा उठात हे।


परदेशिया इहाँ बसे झोरत हे लोग ला। 

लालच दिखा दिखा के सबो खाय जात हे। 


उलझाके हम सबो ल ओ रोटी ग सेंकथे।  

हलवा अपन दहेल के चटनी चटात हे।


फोकट के ओ खवा के बना दे हे कोढ़िया।  

दारू के लत लगा के ओ निर्बल बनात हे। 


रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़


ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

221 2121  1221 212


कतको चले हवा तभो दीया बरत रहे।

साहित गुणी सुजान के कोठी भरत रहे।


कचरा सबो सकेल के आगी मा फूँक दे

भीतर समाय रंग जे इरखा जरत रहे।


गइया बँधाय द्वार मा पंछी मुँडेर मा

सुम्मत सुनाय मंत्र परेवा चरत रहे।


धरती रहे सिंगार मा मुस्कान ओढ़ के

नदिया तलाब खेत के पइयाँ परत रहे।


पुरवा झूले हिंडोलना जंगल औ डोंगरी

सुघ्घर पहाड़ के तरी झरना झरत रहे।


भागीरथी हा तप करें  गंगा ल लाय बर

जीयत मरत नहाय के पुरखा तरत रहे।


रुखवा नदी नहर हवे जिनगी के आसरा

दुनिया के जीव बर सबो फल फूल फरत रहे।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा




Monday 14 September 2020

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

*221 2121 1221 212*


होवत फसल बिनाश तो रखवार हे कहाँ।

उजड़त सुमत सुराज हा घर द्वार हे कहाँ।।


देखव जगह जगह दिखे पाखंड ढ़ोंग हा।

पर हित उठै जे हाथ मददगार हे कहाँ।


सब अन्धभक्ति मा परे बन चाटुकार अब।

देखव उठा नजर भला संसार हे कहाँ।।


दीया बुझा जही लगे अब तो विकास के।

घर मा गरीब दीन के उजियार हे कहाँ।


बेरोजगार हे युवा डिगरी धरे धरे।

जनता करे पुकार ला सरकार हे कहाँ।।


मतलब धरे सबो इँहा चुपचाप हे पड़े।

अधिकार हक लिये लड़े दमदार हे कहाँ।।


कर लौ नीति न्याय गजानंद हा कहे।

अन्याय के खिलाफ मा ललकार हे कहाँ।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी


बहरे मज़ारीअ मुसमन अखरब मकफूफ मकफूफ महजूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फाइलुन

221 2121 1221 212


रखदे कदम तरी म करेजा निकाल के

लगथे तभो ले कम खवा भेजा निकाल के


झन करबे गोठ बात ग अधिकार के कभू

दे देहुँ तोर बाँटा रे तोला निकाल के


रसता चलत चलत तहूँ गड़गे रे गोड़ मा

रो झन कदम बढ़ा इहाँ काँटा निकाल के


महँगाइ कइसे बढ़ही दिनोंदिन नही भला

बेचत सबो समान मुनाफा निकाल के


कतको बुता म व्यस्त रहा 'ज्ञानु' फेर तँय

सँगमा ददा के बैठ ले बेरा निकाल के


ज्ञानु

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


सागर कभू समाय ना गघरा गिलास मा।

पीये मा तक सिराय ना सौं पचास मा।1


मनखे कटत फिरत हवे अपने अपन जरत।

हावय मया जुड़ाव मा नइहे खटास मा।2


तरिया अँटाही कहिके चले मेचका समुंद।

मर जाय बीच राह मा सुख के तलास मा।3


अँधियार होय तब चले घुघवा शिकार मा।

हंसा हा चारा खोजथे दिन के उजास मा।4


कल्लात मनखे मन दिखे कुछु चीज बिगड़े तब।

बिगड़े बुता हा बनथे बता का भड़ास मा।5


बुझथे उदर के आगी ता कुदथे सबे इहाँ।

होवय घलो भजन नही लाँघन पियास मा।6


मन मा मइल रचत हवे झारे बहारे कोन।

मनखे जमे भुलाय हे तन के लिबास मा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday 13 September 2020

ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


पीरा अबड़ सतात हे कइसे करॅव बता।

अंतस मा घर बनात हे कइसे करॅव बता।


खिरगे गली हा गाॅव के रेंगत बनय नही,

कब्जा सबो जमात हे कइसे करॅव बता।


जम्मो कमात खेत ला अगुवा लिहिस नॅगा,

मिल कम्पनी लगात हे कइसे करॅव बता।


हरहूॅ सबन के पीर मैं देये रहिस बचन,

अब मुॅह अपन लुकात हे कइसे करॅव बता।


कइथॅव टमड़ ले कान ला हो मति गहिर सखा

कउॅवा ला वो कुदात हे कइसे करॅव बता।


पद पा फुले कका हवे फुग्गा असन‌ नॅगत,

अधरे अधर उड़ात हे कइसे करॅव बता।


हरकत रथॅव मितान ला चिटको सुनय नही,

लालच नदी नहात हे कइसे करॅव बता।


- मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़  

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 

221  2121  1221  212 


सरकार के जमीन मा नीयत गड़ात हे। 

तरिया सड़क पहाड़ ओ सब ला पचात हे।


गुनवान मन तको इहाँ गदहा बने फिरे। 

गदहा उड़ाय खीर गुनी घाँस खात हे। 


करथन कहे ओ काम कहूँ मेर नइ दिखय। 

चारो डहर विनाश के अँधियार रात हे। 


बन गे रहिस सड़क ह जी कागज सबूत हे। 

चोरी करे हे चोर ह ये साँच बात हे। 


खुद के पता रहे नही का मौत ओ मरे।

सब के भविष्य देख जे रसता बतात हे। 


बचपन ले पाल पोस के जेला करे बड़े। 

बेटा उही ह बाप ल मारत ग लात हे।  


कतको कहे "दिलीप'' कहाँ लोग मानथे।  

 करथे नशा ह नाश तभो ढोंके जात हे।


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

221 2121  1221 212


घर मा नवा बहू बने सुनथे शुरू शुरू।

संस्कार पाँव पैलगी करथे शुरू शुरू।


तन मा कछु लगे नही जुन्नाय रोग मा

मलहम दवा हा पीर ला हरथे शुरू शुरू।


गंजी नही मँजाय हे जुच्छा पड़े हवय।

पानी कुआँ तलाब मा भरथे शुरू शुरू।


दीया जलाय रोज के माचिस सिताय हे

तीली नवा नवा बने जरथे शुरू शुरू।


पंडाल ला सजाय हे होवत हे भागवत

पूजा कथा के बात ला धरथे शुरू शुरू।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


हो प्रभु सदा सहाय रहैं सब हली भली।

जुरमिल खुशी मनाय रहैं सब हली भली।


आतंक होय नास बचय झन जरी घलो,

हिन्सा मरय सिराय रहैं सब हली भली।


खप जाय व्याभिचार हा बेटी बली बनॅय,

पीरा ला दॅय हराय रहैं सब हली भली।


होवत रहै विकास हा सैनिक रहैं सबल,

बैरी ला थरथराय रहैं सब हली भली।


मनखे मरॅय न भूख गरीबी भगय हटय,

दुख झन कभू सताय रहैं सब हली भली।


झगरा हरय खियाय गा कपटी हृदय सरय

हिलमिल गला लगाय रहैं सब हली भली।


सेवा‌ करय मितान हा माॅ के सदा सदा,

सबले मया बढ़ाय रहैं सब हली भली।


  - मनीराम साहू मितान

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

*221 2121 1221 212*


बंदन करौं किसान ला मैं हाथ जोर के।

हावय सुरुज विकास इही आस भोर के।।


लावव नवा बिहान सुमत धर सुराज ला।

छत्तीसगढ़ के मान बढ़ै गाँव खोर के।।


हपटे गिरे परे डरे मनखे उठा चलौ।

पानी पिला पियासा ला रस प्रेम घोर के।।


राहय समय न एक बरोबर इँहा सदा।

झन हाँसहू गरीब दुखी जन निहोर के।।


सत काज बढ़ै हाथ गजानंद चाहथे।

आपस रखौ मया सबो मन भेद टोर के।।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


सब तीर मोर चरचा खुले आम हे इहाँ।

कोई बने हवे कोई बदनाम हे इहाँ।1


तैं कर दे  मोर जिवरा ला कतको कुटी कुटी।

टूटे फुटे जिनिस के घलो दाम हे इहाँ।2


बूता करैया हा कोई तैयार होय तो।

हर हाथ बर कई ठने जी काम हे इहाँ।3


कोनो दवा के नाम मा भागत घलो दिखे।

ता कोनो कोनो मन ला तिरत जाम हे इहाँ।4


मनभर तैं गोठ करले कहाँ होय रात हे।

ममता मया के गाँव मा शुभ शाम हे इहाँ।5


इंसान नेक कम मिले जादा छली ठगी।

छइहाँ ले बढ़के तो घलो बड़ घाम हे इहाँ।6


ईमान मनखे के बिके जइसे जमीन रे।

सच मा जिया के भीतरी का धाम हे इहाँ।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल--चोवा राम वर्मा 'बादल'

 छत्तीसगढ़ी गजल--चोवा राम वर्मा 'बादल'


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


मन भीतरी के आँखी ला तैं खोल देख ले

कचरा उगे हे तेन ला तैं छोल देख ले


मुरझा जथे गुलाब खिले घाम जोर मा

झर जाथे पंखुड़ी हा घटे मोल देख ले


सब ला अबड़ सुहात हे वो जादू जानथे

वोकर  सहीं जुबान तहूँ बोल देख ले


डोरी बँधाये जात के तो पाँव मा हवै

बाँधे हवच खुदे कभू तैं खोल देख ले


इँचथे कती कती वो पता सब ला चल जही

कथनी ले हटके करनी मा हे झोल देख ले


रखवार हे खड़े इहाँ चिड़िया भगाय बर

खावत हें बीजा ला तभो उन फोल देख ले


हावय जमाना धाँधली के जाँच मा तको

'बादल' मिले हे अंक सबो गोल देख ले


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

*221 2121 1221 212*


कहिगे सुजान मन बड़े गुरु संत ज्ञान हे।

ना छोटे ना बड़े सबो मनखे समान हे।।


सबके शरीर एक बने हाड़ मांस ले।

का भेद फेर हे बता अलगे निशान हे।।


धरके गरब गुमान चले जेन भी इँहा।

मुँह भार एक दिन उही गिरथे उतान हे।।


जाना सबो हे छोड़ इँहा तोर मोर का।

फिर भी बने फिरे सबो मनखे नदान हे।।


जग मा बटोर बाँट गजानंद तँय मया।

चल ले समय धरे सदा हर पल महान हे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

Thursday 10 September 2020

ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


पुरखा हमर लगाय हे रख तैं सॅवार के।

रुखवा सुघर जगाय हे रख तैं सॅवार के।


कोनो‌ मरय न‌ प्यास मा गुनके सियान हा,

तरिया कुआॅ खनाय हे रख तैं सॅवार के।


अॅउटा लहू किसान हा नॅगते कमाय जी,

अन ला सुघर उगाय हे रख तैं सॅवार के।


हाबय अबड़ अमोल जी जग हित तहूॅ बॅचा,

बिन जल अमाय बाय हे रख तैं सॅवार के।


स्वारथ अपन‌ सिधोय गा ओखी बिकास के,

महुरा पवन मा आय हे रख तैं सॅवार के।


धरती मा मोर राम के मैं कीच हे अबड़,

मनखे सबो सनाय हे रख तैं सॅवार के।


बिनती करय मितान हा करले जतन सखा,

प्यासे भुखाय गाय हे रख तैं सॅवार के।


- मनीराम साहू मितान

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


गियान गुण सत घलो धराथे, लगन लगाके धरत धरत मा।

सबे बुता हा सहज हो जाथे, घड़ी घड़ी बस करत करत मा।


धरे तिजोरी मा चार आना, दिखात फिरथे कई खजाना।

कहाँ छलकथे कभू बता तो, समुंद हा नित भरत भरत मा।


पता चले तुरते मूंद देवव, रहे भले कतको छोटे भुलका।

बड़े बड़े हउला हा उरकथे,टिपिर टिपिर नित झरत झरत मा।


जलाव आगी बुगी कभू झन, ठिहा ठउर बन शहर डहर मा।

बदल जथे राख ढेर मा झट, बड़े बड़े बन बरत बरत मा।


समय खुशी के सदा रहे नइ, रहे नही दुख घलो सबे दिन।

हतास झन हो निराश झन हो, विजय हबरथे हरत हरत मा।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Wednesday 9 September 2020

ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


छिन छिन उही मतात हे झगरा असन अबड़।

हपटा उही खवात हे पखरा असन अबड़।


फॅस लोभ मोह जाल मा गरजत अबड़ रथे,

अपने अपन उड़ात हे पल्हरा असन अबड़।


मारत हवय डकार जी खाये पिये नॅगत,

आॅसू अपन दिखात हे मॅगरा असन‌ अबड़।


मुॅह मा भरे हे गोठ हा करथे फलल फलल,

अपने करय बखान‌ ला डिॅगरा असन अबड़।


देये रहिन परान ला माॅ ले मया बढ़ा,

जस आज महमहात हे गजरा असन अबड़।


पुरखा रहिन खनाय जी तरिया बड़े बड़े,

अब देख बजबजात हे डबरा असन अबड़।


खपथे जरूर भान हे सिरतो समे परे,

तबहो तपत मितान हे अॅगरा असन अबड़।


- मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


करजा अपन उतार ले जीते जियत इहाँ

जिनगी सुघर सवाँर ले जीते जियत इहाँ


कहिथे बने रिहिस हे मरे बाद लोग मन

आदत अपन सुधार ले जीते जियत इहाँ


बेटा बहू ह तोर कतक सुनथे बात ला

हर रोज तँय पुकार ले जीते जियत इहाँ


मनखे ल सिरतो देथे बना लाश ये सही

दुख पीरा ला बिसार ले जीते जियत इहाँ


कुछ काम 'ज्ञानु' आय नही पद महल पहुँच

मद लोभ मोह टार ले जीते जियत इहाँ


ज्ञानु

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


खाये पिये हे तौन हा मरहा बने फिरे।

टन्नक घलो तो आज अजरहा बने फिरे।1


जानत हवे कहानी तभो मनखे मन इहाँ।

कछवा के चाल देख के खरहा बने फिरे।2


तंखा मिले के बाद भी कतको सफेदपोश।

दू पइसा अउ मिले कही लरहा बने फिरे।3


चिक्कन चरत हे चारा बचे आन बर कहाँ।

गोल्लर असन दिखे उही हरहा बने फिरे।4


उल्टा जमाना आय हे का मैं कहँव भला।

जौने फले फुले न ते थरहा बने फिरे।5


साहेब बाबू नेता गियानी गुनी धनी।

इँखरो तो लोग लइका लफरहा बने फिरे।6


काखर ठिकाना हे कहाँ कब वो बदल जही।

फुलवा घलो तो आज के धरहा बने फिरे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday 8 September 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


पत्ता असन हवा मा हाँ हलते रथे जिया।

बुझथे कभू कभू ता हॉं जलते रथे जिया।1


इरसा दुवेस देख के पलपल डरे मरे।

पाके मया दुलार ला पलते रथे जिया।2


सुख मा रहे हँसी खुशी सपना गजब गढ़े।

दुख मा बरफ के जइसे हाँ गलते रथे जिया।3


माया ला छोड़थे कहाँ मुख मोड़थे कहाँ।

फँस मोह के डहर मा बिछलते रथे जिया।4


कतको उदास हो सबे दिन रोते बस रथे।

कतको के हाँस हाँस कठलते रथे जिया।5


चुपचाप नइ रहय कभू पर ता अपन कहय।

सुख होय चाहे दुःख  मचलते रथे जिया।6


पथरा बने कभू ता कभू मोम तक बने।

बेरा बखत मा रूप बदलते रथे जिया।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


सागर मरत हे आज गजब प्यास देख ले।

थक गे उड़त उड़त इहाँ आगास देख ले।1


खाये नँगा नँगा के अघाये हवे जउन।

लाँघन के भाग मा हवे उपवास देख ले।2


पानी पी पीके कोसे सबदिन चलत फिरत।

हे मोर आज तो उही मन खास देख ले।3


बक खा धरे हे मूड़ ला जउने पढ़े लिखे।

पैसा मा पप्पू होगे हवे पास देख ले।4


भाजी भँटा के आज पुछारी हवे कहाँ।

खावत हवे हँसत सबे झन मास देख ले।5


माला मरे मा डारे मया बड़ घलो करे।

जीयत मा मनखे मन हवे बस्सात देख ले।6


मारे गजब फुटानी धरे चवन्नी चार।

खेलत हवे उही जुआ अउ तास देख ले।7


लइका के लगगे रे हवे लंका डहर लगन।

नइहे ठिहा परोस मा उल्लास देख ले।8


हे बोल बाला झूठ के चारो मुड़ा गजब।

सत ला घलो तो नइ मिले इंसाफ देख ले।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


पाना के नइ पता हवे बस डार सजे हे।

कुरिया मा साख नइ हवे अउ द्वार हे सजे।1


फँसगे हवे बड़े बड़े ज्ञानी गुनी धनी।

नकली मया मा माया के बाजार हे सजे।2


खाके अघाही कइसे भुखाये हवे जउन।

खाये पिये के कुछ नही उपहार हे सजे।3


कोठी उना किसान के सबदिन रथे इहाँ।

बैपारी के ठिहा मा चँउर दार हे सजे।4


थपड़ी अमीर मन पिटे करतब ला देख के।

जोक्कड़ परी असन इहाँ लाचार हे सजे।5


ऑफिस के बूता काम मा बँटगे दिवस घलो।

बुध गुरु हवे उदास ता इतवार हे सजे।6


बेंचाय भेदभाव के बिजहा सबे तिरन।

दलबल धरम के नाम मा बैपार सजे हे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


कइसे करय किसान ह पानी भरे हवय।

आगे सबो बुड़ान म खेती सरे हवय।


नॅगते चढ़त बजार हे पूरा नदी असन,

आतंक देख दाम के मनखे डरे हवय।


मरगे कका ह काल ग पानी दवा बिना,

आइस नहीं ग काम म धन घर भरे हवय।


बिन पाय काम देख जुवानी सबे खपै,

बेरोजगार राज म अबड़े मरे हवय।


कहना‌ तहूॅ ह मान ले माया तियाग दे,

जे हर जपे हे राम ल सिरतो तरे हवय।


दिन भर नॅगत कमाय पछीना बहा बहा,

बाॅटा कहाॅ गरीब के सुख हर परे हवय।


किम्मत कभू मितान के होवय नही सगा,

मनखे कहूॅ ग जेब‌ म रुपिया धरे हवय।


- मनीराम साहू मितान

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर


बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन


221 2121 1221 212


नइहे गुजर-बसर रे मयारू मया बिना

कट जाही जिन्दगी भले काशी गया बिना


लिख-लिख बडंकी मार के गाए गवाए जा

साहित गज़ल न गाना शबद मा थया बिना


बलिदान हो जगाही ओ कब-तक समाज ला

अब जनता सत्ता शास्त्र जगय' निर्भया' बिना


छत्तीसगढ़ के ऑंव कथस तॅंय गुरेर के

पतियान कइसे राम मया अउ दया बिना


सुखदेव झन भुलाबे ग पुरखा पया समान

सिरजै भवन महल न किला घर पया बिना


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


अलहन भरे पड़े हे तैं कर झन लकर धकर।

आये हवस ता जाबे तैं मर झन लकर धकर।1


हर घांव डुबकी मा मिले मोती घलो नही।

महुरा जहर भरे हे तैं धर झन लकर धकर।2


कइसे पता लगाबे कते साधु अउ छली।

अंजान के ठिहा मा ठहर झन लकर धकर।3


खाये के स्वाद लेले बइठ गोड़ ला लमा।

हावै बरी मा मुनगा चुचर झन लकर धकर।4


नइ हस बने पके ता का होही बता कदर।

ज्ञानी बने बिना तैं बगर झन लकर धकर।5


दाई ददा ला तिरिया अपन मा भुलाय रे।

सपना ला तोड़ मोड़ नजर झन लकर धकर।6


जिनगी के जंग जीतबे जोखा जमा बने।

तैयारी बिन समर मा उतर झन लकर धकर।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़ 

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाइलु फ़ाइलून

221 2121  1221  212  


भइसा सहीं ये देह ला कइसे करँव बता 

घर नानकन लगत हवे काहाँ टरँव बता। 


खा खाके मोटा गे हवय कतकोन मन इहाँ। 

निकलय उँखर ले तेल हा कतका छरँव बता। 


भगवान दे हवय बने खपरा ल फोर के।  

भारी हवय समान ह काहाँ धरँव बता।  


ये टेटका असन ह जी डरव्हाय रात दिन।

हाथी असन ये देह मा कइसे डरँव बता। 


अइसन जिनिस बता मरे ले जाय संग मा। 

बड़का हे मोर पेट ह काला भरँव बता। 


नदिया तको बँधा जही बइठे ले मोर जी।

जब आ जहूँ मैं काम त काबर मरँव बता। 


अब पूछथे दिलीप ह दर्पण ल देख के। 

मनखे हरँव की मँय ह जी दानव हरँव बता। 


रचनाकार--दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


भूले अपन अपन म हवय आज आदमी

स्वारथ भरे सदा ही करै काज आदमी


भाई बताबे सोच समझ के ग कोनो ला

मौका परे म खोल दिही राज आदमी


हावय इहाँ ग कतको बिगाड़े बनत बुता

पेरत वो बनके खाद कभू खाज आदमी


बस आँय बाँय काम इहाँ करथे देखले

आवय न चाल ले ये अपन बाज आदमी


रहिथे भले टुरा ह इहाँ 'ज्ञानु' लेड़गा

बाई रहय वो सोच थे मुमताज आदमी


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़ 
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाइलु फ़ाइलून
221  2121  1221  212 

धरती सुरज अकाश ये चंदा बनाय के। 
का जी नही भरिस हे चँदैनी बिछाय के। 

पानी हवा बरफ बना सुग्घर सजाय हस।  
का पाय तँय ह पेंड़ ल इहँचे उगाय के। 

दुनिया सुघर रहिस हवे अतकेच मा बने। 
काबर बनाय जीव ल लालच दिखाय के। 

सब जीव मन बने हवे मिल के सबो रथे। 
का काम हे बता इहाँ मनखे ल लाय के। 

मनखे ल तँय ह लाय त बढ़िया करे हवस। 
का पाय तँय बता दे ये मन ला लड़ाय के। 

ऊपर ले नइ दिखय बने दुनिया के हाल हा।
भगवान देख ले इहाँ धरती म आय के।

अब तो दिलीप तोर ये काँधा म आय हे।  
बिगड़े हवे जे हाल ला फिर से सजाय के।

रचनाकार--दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

*ग़ज़ल -आशा देशमुख*

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121  1221 212


मनखे उड़े अकास ऊँचाई अलग अलग।
मिहनत धरे दुकान कमाई अलग अलग।

दुनिया हवय बिमार जी रोगी भरे पड़े
डॉक्टर करे इलाज दवाई अलग अलग।

इस्कूल सबो के नींव हे मंजिल यहाँ बने।
शिक्षक वकील बैद के पढ़ाई अलग अलग।

बइठे किताब मन सबो साहित के देहरी
एके कलम दवात लिखाई अलग अलग।

खेती करे किसान हा मौसम ल देख के
बोयें सबो अनाज निंदाई अलग अलग।

जावत हवे जी सूत ह् कपड़ा के फेक्ट्री
कुरता रुमाल पैंट सिलाई अलग अलग।

आगी के संग बैठ के बोलत हे चाशनी
साँचा सुघर बनाय मिठाई अलग अलग।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़ 
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलू फ़ाइलून
221  2121  1221  212 

जंगल के राजनीति म कुछ खास बात हे। 
का-का हवय दिलीप ह तोला दिखात हे। 

राजा बने हे शेर त मंत्री सियार हे।  
हर दिन शिकार करके प्रजा ला ओ खात हे। 

चीता कुकुर तको परे पाछू ग खाय बर। 
बन के सलाह कार ये सब ला मिटात हे। 

हाथी विपक्ष मा खड़े चिंघाड़ थे बहुत। 
सहयोग बेंदरा करे कुछ हो न पात हे। 

भालू हे होशियार समे मा बदल जथे। 
रहिथे कभू विपक्ष कभू संग जात हे। 

बकरी हिरण डराय के जाही भला कहाँ। 
जे दिन बचे शिकार ले ओ दिन ओ रात हे। 

मरना हे एक दिन सबो ला मँय ह जान थौं। 
घुट घुट मरत हवे प्रजा अइसन हलात हे। 

रचनाकार--दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-चोवा राम वर्मा 'बादल'

 छत्तीसगढ़ी गजल-चोवा राम वर्मा 'बादल'

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121  1221 212

दुनिया हँसी उड़ाय हे सब दिन गरीब के
   दुख पीरा मा पहाय  हे सब दिन गरीब के

सूरुज ल देबो लान के वादा करे रहिन
काबर अँधेरा छाय हे सब दिन गरीब के

टूहूँ लमा के कौंरा ला उल्टा गपेड़ दिच
लूटे उही तो खाय हे सब दिन गरीब के

फाटे रथे बिंवाई ह  दूनों जी पाँव मा
काँटा तको छबाय हे सब दिन गरीब के

लाठी के जोर मा नँगा लिन हें  नसीब ला
चूल्हा तको भुँखाय हे सब दिन गरीब के


चोवा राम वर्मा 'बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
*221 2121 1221 212*

चमचागिरी करे उही मनखे के नाम हे।
सच के कहाँ हे मोल सदा झूठ दाम हे।।

माथा तिलक लगा बने पंडित बड़े बड़े।
दिखथे उही धरम के बड़का गुलाम हे।।

कपटी कपट करे सदा कुछ पाय मान बर।
रखथे छुरी बगल मा भले मुँह मा राम हे।।

भटके कहाँ इँहा उँहा प्रभु खोज मा बता।
घट भीतरी ला झाँक बसे चारो धाम हे।।

बिछड़े पिरित मिले कहूँ बड़का नसीब ले।
छलके मया मयारू खुशी प्रेम जाम हे।

सुन ले किसान के कभू तैं तो पुकार ला।
गर मा अकाल फँदा सहे जाड़ घाम हे।।

बनके सबो के मीत गजानंद जीत मन।
जग बैर पालना इँहा दुश्मन के काम हे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121  1221 212

माँ बाप जइसे देंवता पाबे भला कहाँ।
देबे दरद ता दिल मा समाबे भला कहाँ।1

सरकार सँग लगात हे दिनरात पेड़ सब।
सब्बे जघा भरे हे लगाबे भला कहाँ।2

झन छीत दाना फोकटे कोनो फँसे नही।
चतुरा हे चिड़िया जाल बिछाबे भला कहाँ।3

बसगे हवस शहर मा ठिहा खेत बेंच के।
आही विपत कहूँ ता लुकाबे भला कहाँ।4

रँगरँग के खाले रे बने जब तक पचत हवय।
बुढ़वा मा तीन तेल के खाबे भला कहाँ।5

कतको उपर उड़ा उगा डेना घमंड के।
माटी ले तोड़ के नता जाबे भला कहाँ।6

ना तोप बरछी भाला हे हिम्मत घलो नही।
शत्रु ला ता समर मा हराबे भला कहाँ।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मज़ारिय मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़ 
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन 
221  2121  1221  212  

इरखा म बस जरत हवे मनखे ह आज के।
आपस म लड़ मरत हवे मनखे ह आज के।

मनखे डरा के भाग थे मनखे ल देख के। 
बिसवास नइ करत हवे मनखे ह आज के। 

सब जानथे गलत सही तब ले झपा जथे। 
लालच म सब परत हवे मनखे ह आज के। 

भव पार जाय बर तो ग बस राम नाम हे
कचरा ले घर भरत हवे मनखे ह आज के। 

रहिथे मुड़ी नवाय ये जाथे जिहाँ सगा।
काखर ले बड़ डरत हवे मनखे ह आज के। 

ताकत सबो सिराय गे कचरा ल खाय के।
पतझड सही झरत हवे मनखे ह आज के। 

जाँगर बचे नही सबो दारू ह ले घले।
बस दाँत ला दरत हवे मनखे ह आज के। 

रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121  1221 212

अपने अपन जरे मरे का काम के उहू।
खुद के बिगाड़ा खुद करे का काम के उहू।1

छाती ठठाये बीर हरौं कहिके जौन हा।
रण मा लड़ाई ले डरे का काम के उहू।2

बेटा उही जे माने ददा दाई के बचन।
जे मूँग छाती मा दरे का काम के उहू।3

चिरहा बदन के ओनहा उन्ना घलो उदर।
कोठी मा धन भरे सरे का काम के उहू।4

तड़पे परोसी भूख मा लइका सियान संग।
झड़कत हवस घरे घरे का काम के उहू।5

रटते रटत बबा कका परदेसी मन इहाँ।
पग छोड़ घेंच ला धरे का काम के उहू।6

नारा सुनाथे सब तनी बस पेड़ पेड़ के।
छेरी सहीं मनुष चरे का काम के उहू।7

जे प्यास नइ बुझा सके कोनो पियासे के।
हावै समुंद कस भरे का काम के उहू।8

भागे भभूत मा धरे डर भूत आन के।
जब खुद के नइ विपत टरे का काम के उहू।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 4 September 2020

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121  1221 212


हिप्पी चुंदी कटाय हे ककवा बड़े बड़े।
नानुक छेदाय कान ह खिनवा बड़े बड़े।

कारी अँधेरी रात म जंगल चुपे हवय
हंसा के पंख नोचथे घुघवा बड़े बड़े।

बिलई के भाग जाग गे सींका हा टूटगे
गोदाम मा पलत हवे मुसवा बड़े बड़े।

जाना सबो ला पार औ माँझी दिखे नही
पानी हवे उफान मा नरवा बड़े बड़े।

चद्दर बिछाय हे फटे ओढ़े अकास ला
शेखी गड़ात हे इहाँ मड़वा बड़े बड़े।

साँसा के नार हा जरे आगी धरे सुरुज
काटत हवे विकास हा रुखवा बड़े बड़े।

संगी नही हे सत्य के जिभिया कटाय हे
शक्कर धरे ये झूठ के मितवा बड़े बड़े।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 
बहरे मज़ारिब मुसमन अखरब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़ 
मफ़ऊल  फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212  

लकड़ी तको नराज हे प्लास्टिक के आय ले। 
चुलहा तको नराज सिलिन्डर जलाय ले। 

रखथे लुका के खाय के सामान ला तको।
कहिथे सिरा जही सबो ह तोर खाय ले। 

बाँटे तको सके नही  पोटार के रखे।
का काम अइसे ज्ञान के मिहनत म पाय ले। 

गरजे चमक चमक के ओ डरव्हा के चल दिए। 
बरसे बिना का काम के बादर के छाय ले। 

लइका बियाय चार त परिवार बाढ़ गे।
पूरय नही अनाज ह कतको कमाय ले। 

ढुलमुल विचार के कभू बिसवास झन करव।
पेंदी बिना लुढ़क जथे लोटा मढ़ाय ले। 

कतको करे दिलीप बुराई भले इहाँ।
कहिथे सबो बने बने दुनिया ले जाय ले। 

रचनाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...