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Friday 31 July 2020

गजल विविध बहर में

गजल विविध बहर में- साझा गजल

गज़ल - अजय अमृतांशु

212   212   212   212

पाले हे झेल के दुख बतावय नहीं।
पीरा दाई ददा हा दिखावय नहीं।

किस्सा दादी के संगी नँदागे हवय।
लोरी गा के कहूँ अब सुलावय नहीं।

टूटगे मोर कनिहा कमावत हँवव।
लक्ष्मी जाथे कहाँ घर मा आवय नहीं।

खेत गहना धराये हवय भाई गा।
कर्जा लदकाय भारी छुटावय नहीं।

मेंहदी हाथ दूनों रचाये हवय।
बेटी दाहिज बिना अब बिहावय नहीं।

सोंच ले आय ककरो उहू बेटी तो,
सास ला तब बहू फेर भावय नहीं।

करथे बीमा फसल के बछर दर बछर।  
क्लेम पूरा तभो कैसे पावय नहीं।

अजय अमृतांशु, भाटापारा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

ग़ज़ल--आशा देशमुख*

*212  212  212  212*

राज कतको छुपाये  हवय डायरी
बात मन के लिखाये हवय डायरी।

भ्रष्ट सत्ता कहाँ कारनामा करे
पृष्ठ भीतर दबाये हवय डायरी।

गीत माला गुहे शब्द मोती बने
फूल पत्ता सजाये हवय डायरी।

प्रेम किस्सा कहानी अमर हे सदा
ठौर सब बर बनाये हवय डायरी।

पूछ ले कोन सन मा करे काम हे
वार तिथि दिन बताये हवय डायरी।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

1222 1222 1222 1222

उदासी छाय हे सब मा, लगे जस हार होगे हे।
फँसे हावय सबो घर मा, लगे मझधार होगे हे।    

बनावत हे बड़े पुलिया,रुके पर काम बरसों ले।
खटाई मा परे हे काम, पइसा पार होगे हे। 

नशा छोंड़व कहे सब लोग, पर मानत कहाँ हावय।
बिहनिया ले चले दारू,घरो घर बार होगे हे। 

रहे भाँठा बहुत हर गाँव, खेलन खेल हम संगी।
सबो ला घेर धनहा कस बना अब खार होगे हे।  

कभू डंका बजय जग मा, कहावय सोन के चिड़िया।
हमर ये देश हा सिरतोन अब बीमार होगे हे।

न दाढ़ी मूँछ आये हे न टूटे दाँत बचपन के।
मुड़ी मा बांध के पगड़ी बड़ा सरदार होगे हे। 

उमर कच्चा हवय नइ जान पावय का हरे दुनिया।
बिहाये बर करे जल्दी, का बेटी भार होगे हे। 

बबा बइठे मुहाटी डोकरी दाई फुलाये मुँह।
मया के रंग छलके ले लगे तकरार होगे हे। 

बने घर नाँव के जइसे, करोना हे महा सागर।
लगा के मास्क ला निकलव इही पतवार होगे हे। 

सिपाही नर्स डॉक्टर अउ सफाई जे इहाँ करथे। 
बचा के जान ये सब के, नवा अवतार होगे हे। 

घरों घर आज मोबाइल हवे टी वी तको संगी। 
सबो देखत रथे दिन रात,आँखी चार होगे हे।  

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल

अरकान-212 212 212 212  

का सही हे बता का गलत आज हे।
पात मिटकाय हे जड़ हलत आज हे।1

काखरो घर किसन अब कहाँ अवतरै।
कंस गाँवे गली मा पलत आज हे।।2

दुःख भोगत हवै रोज दाई ददा।
काय बेटा बियाये खलत आज हे।3

झूठ के बोलबाला सबे तीर मा।
हार थक सँच हथेली मलत आज हे।4

कोट के काम का मैं बतावौं कका।
उम्र भर देख पेशी चलत आज हे।5

धान बाढ़े नही ज्ञान बाढ़े नही।
बेत मा फूल अउ फल फलत आज हे।6

दुःख के रात कारी हा कइसे छँटै।
बिन उगे सुख सुरुज हा ढलत आज हे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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 सुखदेव: छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

212 212 212 2

वक्त हा तोला समझात का हे
तोर भेजा म हामात का हे

जॉंचले दिल लगाये के पहिली 
तोर घर- बार औकात का हे

तोला लेगत हवॅंव तोर मइके
तॅंय रिसाये हवस बात का हे

देख तो भोग छप्पन खवइया
तोर बनिहार हा खात का हे

काखरो ले मया हो जही ता
पूछबे झन सगा जात का हे

भींजथौं घण्टों सावन झड़ी मा
ए फुहारा के बरसात का हे

जीत पाइस नहीं दल बदल के
अब समझगे भीतर घात का हे

निज ऊंचाई ले जादा उचक झन
देख ले हाथ अमरात का हे

फूलमाला म सुखदेव जा झन
जस ले जादा ग ममहात का हे

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
  गोरखपुर,कबीरधाम

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अरकान 2122 2122 212
आज फागुनवाँ पवन के सोर हे
आमा हा मउँरे सजे घनघोर हे ।

बरछा मा पतझर हिलोरे रूख ला
चार कसही हा फरे लटलोर हे।

घूम फिर आथे बसंती हर बरस
लागथे बंधे मया के डोर हे।

बेल, बारी मा सजे पाके दिखय 
ओकरे सब मा चले अब जोर हे।

होत पतझर मा उड़ाथे पान हा
तब ले परसा हा खड़े सिरमोर हे।

संग मा नाचत रथे जी कोयली 
ये मया के बंधना के छोर हे

सादा सादा कपसा के पोनी उड़े 
लागे जइसे पाती देवत भोर हे

मिलन मलरिहा
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 ग़ज़ल
बहर-221-1221-1221-122

देखव तो कहाँ आदमी इंसान बने हे
ईमान सबो बेचके बइमान बने हे

नेकी ला सबो छोड़ के हथियार चलावय
ओखर ले कहाँ जीतबे शैतान बने हे

फोकट मा उदाली मारे फोकट के सियानी
ढ़ोंगी ले ठगाके गा सब अंजान बने हे

करना हे हकन के जी सबो काम इहाँ के
महिनत हा सबो मनखे के वरदान बने हे

तैं "मौज" बने देख ले आँखी ला उघारे
माँ-बाप इहाँ जान ले भगवान बने हे

द्वारिका प्रसाल लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ी गजल :- जगदीश "हीरा" साहू
2122 2122 212

*मया मा दगा*

तोर सुरता संग लेजा तोर वो।
छेदथे रहि रहि करेजा मोर वो।।

ये भरोसा नाम के बस जान ले।
दे दगा मोला मया ला जोर वो।।1।।

टूटगे सपना जिए के संग मा।
छोड़के तैं मोर दिल ला टोर वो।।2।।

आस नइहे अब जिए जान ले।
मार दे मोला जहर दे घोर वो।।3।।

का बतावँव मोर मन के बात ला।
लूटगे अँगना गली अउ खोर वो।।4।।

मार डारे बोज के मजधार मा।
काटथे लकड़ी ल जइसे गोर वो।।5।।

बोलथे होथे मया हा शांत ना।
टूटथे भारी करे तब शोर वो।।6।।

2 1 22    2 1 22  21  2

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
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 गज़ल (छत्तीसगढ़ी)
बहर : 221 1222  221  1222
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
नइ पेड़ इहाँ  जंगल मा  छाँव कहाँ पाबे।
दर्रात  सबो  भुइँया मा ठाँव  कहाँ पाबे।।

हर खेत पटावत हे अउ आज शहर बनगे,
दइहान  नँदागे  जी अब  गाँव कहाँ पाबे। 

वो  ज्ञान  बहाइस  गंगा  संत महा ज्ञानी,
रसखान-कबीरा-तुलसी नाँव कहाँ पाबे।

वो गाँव बने  लागय  परदेश नहीं भावय,
मिलजाय मया चिनहा कस घाँव कहाँ पाबे।

नइ भाय *विनायक* अब बदलाव सबो होगे,
अब खेल कबड्डी-खोखो दाँव कहाँ पाबे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
गज़लकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
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 इजारदार: छत्तीसगढ़ी गजल-
1222 1222 1222 1222

दरक गे हे सबो नाता मया धर के बने तुन ले ,
अपन माने के पहिली तँय अलग गोंटी बने टुन ले ।।

तैं सुनके भाग मत पीछू कि ले गे कान ला कौंवा ,
सुने हस कान मा जे बात वो तँय बात ला धुन ले ।।

पढ़ाई अउ लिखाई सँग सिखौना काम कतको हे ,
चढ़ा ढेरा मा आँटी जान अउ खटिया खुरा कुन ले ।।

बिना सोंचे विचारे काम करबे होत पछतावा ,
करे गा काम के पहिली नतीजा बर बने गुन ले ।।

कहाँ काशी कहाँ मथुरा अयोध्या धाम जाबे तँय ,
ददा दाई के सेवा कर सबो गा धाम के पुन ले ।।

खड़े रइही ग नेता हाथ जोड़े सब चुनावी मा ,
करे जो काम जनता के सुनो नेता उही चुन ले ।।

चिता चिंता मा बिंदी के फरक तो मात्र हे दुर्गा ,
करे झन खोखला तन मन उदिम करके बचा घुन ले ।।

गजलकार-दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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 पात्रे जी: छत्तीसगढ़ी गजल- 
212 212 212 212 

मान इज्जत कमा राख ईमान ला।
झन गँवाबे कमाये तैं पहिचान ला।।

फूल जइसे महक खुश्बू सच धरे।
झूठ फाँसी बरोबर लिये जान ला।।

छाँव सब ला मिले प्रेम बिरवा लगा।
गोठ मधुरस घुरे बोल इंसान ला।।

घट दुवारी बसे फेर भटके मनुज।
चर्च मंदिर तलाशे वो भगवान ला।।

पाठ मानवता पढ़ राख इंसानियत।
बाँट ले दीन दुखिया दया दान ला।।

देश सेवा बड़े जइसे माता पिता।
बेटा बनके सच्चा बढ़ा शान ला।।

सुन गजानंद तैं झन भुलाबे कभू।
जन्म भुइँया अपन खेत खलिहान ला।।


गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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 ग़ज़ल
बहर -फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन 
122 122 122 122

कुँआ बाउली के ग पानी सिरागे।
ननद भौजी के मीठ बानी सिरागे।।

उमर हे अठारा दिखय हाड़ा हाड़ा
नशा मा टुरा के जवानी सिरागे।

कहाँ कोनो जुम्मन कहाँ कोनो अलगू
सुवारथ म आके मितानी सिरागे।

करय दूध के दूध पानी के पानी, 
समारू के सुग्घर सियानी सिरागे ।

सरी खेती बेचागे फैशन म साहिर 
बबा के सँगे सँग किसानी सिरागे ।

शायर -जितेंद्र सुकुमार  'साहिर '
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ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222

ग़ज़ब ये दिन उदासी के गजब रतिहा पहावत हे, 
कि मनखे आज मनखे ला छुये बर भी डरावत हे ।

नहीं कोनो लड़ाई है न कोनो झगड़ा माते हे,
त काबर आज घर भीतर ले मनखे घुर घुरावत हे ।

कभू अँगना कभू रंधनी म दाई के चुरे जेवन
अभी चुलहा के रांधे भात ला भौजी लुकावत हे ।

कि टूटत आज हे परिवार कइसे हम बचाबो जी
 मया पीरा कभू सुख दुख ये जिनगी हर बतावत हे।

"शकुन"किस्सा बहुत लंबा हे काला मन के कहिबे तंय
इहाँ अड़बड़ हँसैय्या हे अपन  मन ला  मड़ावत हे ।।

शकुंतला तरार
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ग़ज़ल*
२१२२ २१२२ १२२
रात दिन आलस म बेरा पहाही।
हाथ ले किस्मत वो अपने लुटाही।

जेन जागे तेन सुख जग म पागे,
सब सुते मन पाछु माथा ठठाही।

हाथ खोले जेन सरबस लुटाही,
अउ लुटे ले कोन ओला बचाही।

हे भुलाए आज रस्ता ल सबझन,
सोच झन तँय तोर रस्ता बताही।

जाग के दुनिया ल कुकरा जगाथे।
कोन काली रीत अइसन निभाही।

*पोखन लाल जायसवाल*
*पलारी* ३०/७/२०२०
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कवि बादल: गजल (छत्तीसगढ़ी )

2122 2122 212

मोह माया ले अपन मुख मोड़ के
रेंग दिस पुरखा सबो ला छोड़ के

आज  बेटा हा उराठिल हे कहे 
बाप के हिरदे ल रट ले तोड़ के 

झन भरोसा आन के करबे गड़ी
कर भरोसा हाथ खुद के गोड़ के 

भाग जाहीं उन सबो हुशियार मन
ठीकरा ला तोर मूँड़ी  फोड़ के 

नींद भाँजत हे अजी रखवार हा
चल उठाबो जोर से झंझोड़ के 

पेट भर जी अन्न पानी मिल जही
काय करबे दाँत चाबे जोड़ के 

फेंक देही जेन ला माने अपन
देख "बादल" तोर जर ला कोड़ के

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

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बलराम चन्द्राकर जी: *गज़ल*

*(2122  2122  2122  212)*


तयँ मया मा मोर मन ला बाँध डारे जान ले,
अब मया अमरित पिया चाहे करेजा चान ले।

पैरी छम-छम तोर सुन के तार मन के बाजथे,
ये मया हर हे अधूरा तोर बिन पहिचान ले।

हे जमाना मोर बैरी ये मया ला देख के,
साँस मा तयँ गीत बनके रहिबे हरदम ठान ले।

मैं दिवाना तोर गोरी गोठ सुन ले मोर या,
तोर बिन नइ जी सकौं अब मोर चाहे प्राण ले।

प्यार ये 'बलराम' के रइही अमर गोरी सदा,
नइ दगा होवै कभू या हे कसम ईमान ले।


*बलराम चंद्राकर*
*भिलाई छत्तीसगढ़*
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Monday 27 July 2020

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध'

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध'
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

सुन बुधारू कका छोड़ दारू तहूँ।
नाश के जड़ नशा भर हुकारू तहूँ।।

दूध नोहर हवे आज कल देख ले।
बाँध ले गाय कोठा दुधारू तहूँ।।

कुछ बिचारे नहीं सत्य ईमान ला।
होय झगरा करे बर उतारू तहूँ।।

दोगला नीति के बात ला छोड़ दे।
देश खातिर बने जा जुझारू तहूँ।।

बात सच्चा गजानंद कहिथे सदा।
मंगलू सुन ले सुन ले समारू तहूँ ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- चोवा राम 'बादल'


गजल- चोवा राम 'बादल'

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212 

हाथ मा तोर हे जेन करना हवय
कइसे जीना हवय कइसे मरना हवय

तैं ठगा जाबे बइहा दगा हो जही
प्यार के नइ झमेला मा परना हवय

बाढ़ मा फनफनाथे नदी हा अबड़
एक ना एक दिन तो उतरना हवय

टें के तलवार ला तैं का करबे बता
कोनो चिड़िया के डेना कतरना हवय

पूछना ताछना छोड़ दे भाई रे
चल न धर रोजी तैं आज धरना हवय

रात दिन जरबे झन जी जरब आगी मा
जब रचाही चिता तब तो जरना हवय

ताली सुनके गजब झन गरब मा गरज
देखनौटी जी "बादल" लठरना हवय

गजलकार--चोवा राम 'बादल"
हथबन्द, छत्तीसगढ़
      '

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

राज कतको छुपाये  हवय डायरी
बात मन के लिखाये हवय डायरी।

भ्रष्ट सत्ता कहाँ कारनामा करे
पृष्ठ भीतर दबाये हवय डायरी।

गीत माला गुहे शब्द मोती बने
फूल पत्ता सजाये हवय डायरी।

प्रेम किस्सा कहानी अमर हे सदा
ठौर सब बर बनाये हवय डायरी।

पूछ ले कोन सन मा करे काम हे
वार तिथि दिन बताये हवय डायरी।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

का गलत का सहीं हे बता बात मा।
रोष जादा कभू झन जता लात मा।1

हाड़ अउ मांस के तन मा काके गरब।
काँपथे जाड़ मा जर जथे तात मा।।2

साग भाजी हवा अउ दवा दै उही।
जान हे जान ले पेड़ अउ पात मा।3

आदमी अस ता रह आदमी बीच में ।
बाढ़थे मीत ममता मुलाकात मा।।4

छोड़ लड़ना झगड़ना अरझ के मनुष।
तोर मैं मोर धन अउ धरम जात मा।5

भाँप के बेर ला लउठी धरके निकल।
नइ भगाये कुकुर कौवा हुत हात मा।6

हाँ बँटत दिख जथे धन रतन हा कभू।
नइ मिले अब मया मीत खैरात मा।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

भाग जा रे करोना कहूँ मेर तँय
आय काबर लहुट के इहाँ फेर तँय।

बस पूछी ला हलावत रथस रे कुकुर
आज कइसे गली मा बने शेर तँय।

मोर भाई सिपाही ग झन काँपबे
मार बैरी लगा लाश के ढेर तँय।

ये लुकाये हवय तेल बीजा तरी 
जोश जाँगर लगा के बने पेर तँय।

बाट देखत मयारू पहर बीतगे
आज काबर लगाए अबड़ बेर तँय।

भूख कइसे मिटाही किलो पाव मा
खेत कोठी लबालब भरे हेर तँय।

हे विधाता जगत मा बढ़ादे मया 
रोज आशा लगा जोर के टेर तँय।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोर जिनगी मा आबे अपन जान के।
मोला मितवा बनाबे अपन जान के।1

मोल मोरे गिराही जमाना कहूँ।
सोन कस तैं नपाबे अपन जान के।2

मोर दिल मा मया पलपलावत रही।
हाथ तैंहा बढ़ाबे अपन जान के।3

मान जाबे मया के सबे बात ला।
जादा झन तैं सताबे अपन जान के।4

मैं पतंगा अँजोरी सदा खोजथौं।
दीप बन जगमगाबे अपन जान के।5

असकटावत रबे तैं अकेल्ला कहूँ।
नाम लेके बलाबे अपन जान के।6

धन रतन देश दुनिया हवै फालतू।
जग मया के घुमाबे अपन जान के।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday 25 July 2020

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

कोन हावय जगत मा बिना दाग के।
धोय निर्मल करम हा बिना झाग के।

गीत संगीत खोजे नवा रोज धुन
का नकल कर सकँय कोयली राग के।

गोठ बोली घलो स्वाद देथे अबड़
बाँध लाड़ू परोसे बिना पाग के।

लोभ इरखा गरब छल कभू झन करव
लोग भोगत हे सुख दुख अपन भाग के।

रोज माली करय प्रभु सुनव प्रार्थना
सब कली फूल महकत रहय बाग के।

एक जइसे रहय नइ ये जिनगी कभू
भोग छप्पन मिले या बिना साग के।

देख तो घर गली खोर माते गियाँ
छाय हावय नशा रँग खुशी फाग के।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212 212 212 212

तोर बिन दिन पहावय नही का करौ
मन घलो मोर मानय नही का करौ

मोहनी डारे हे का मया के अपन
अन्न पानी सुहावय नही का करौ

रोज लड़ना झगड़ना करे फोकटे
चाहथे का बतावय नही का करौ

हाल बइहाँ बरन मोर हे सोच सोच
अउ ग़ज़ल हा लिखावय नही का करौ

एक जेखर रिहिस हे भरोसा इहाँ
साथ ओहर निभावय नही का करौ

बात कस बात राहय नही फेर वो
मन ले खुन्नस हटावय नही का करौ

'ज्ञानु' गहरा मया मा मिले ये
 जखम
घाव जल्दी मिटावय नही का करौ

ज्ञानु

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध'

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध'
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

सुन बुधारू कका छोड़ दारू तहूँ।
नाश के जड़ नशा भर हुकारू तहूँ।।

दूध नोहर हवे आज कल देख ले।
बाँध ले गाय कोठा दुधारू तहूँ।।

कुछ बिचारे नहीं सत्य ईमान ला।
होय झगरा करे बर उतारू तहूँ।।

दोगला नीति के बात ला छोड़ दे।
देश खातिर बने जा जुझारू तहूँ।।

बात सच्चा गजानंद कहिथे सदा।
मंगलू सुन ले सुन ले समारू तहूँ ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- चोवा राम 'बादल'


गजल- चोवा राम 'बादल'

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212 

हाथ मा तोर हे जेन करना हवय
कइसे जीना हवय कइसे मरना हवय

तैं ठगा जाबे बइहा दगा हो जही
प्यार के नइ झमेला मा परना हवय

बाढ़ मा फनफनाथे नदी हा अबड़
एक ना एक दिन तो उतरना हवय

टें के तलवार ला तैं का करबे बता
कोनो चिड़िया के डेना कतरना हवय

पूछना ताछना छोड़ दे भाई रे
चल न धर रोजी तैं आज धरना हवय

रात दिन जरबे झन जी जरब आगी मा
जब रचाही चिता तब तो जरना हवय

ताली सुनके गजब झन गरब मा गरज
देखनौटी जी "बादल" लठरना हवय

गजलकार--चोवा राम 'बादल"
हथबन्द, छत्तीसगढ़
      '

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

राज कतको छुपाये  हवय डायरी
बात मन के लिखाये हवय डायरी।

भ्रष्ट सत्ता कहाँ कारनामा करे
पृष्ठ भीतर दबाये हवय डायरी।

गीत माला गुहे शब्द मोती बने
फूल पत्ता सजाये हवय डायरी।

प्रेम किस्सा कहानी अमर हे सदा
ठौर सब बर बनाये हवय डायरी।

पूछ ले कोन सन मा करे काम हे
वार तिथि दिन बताये हवय डायरी।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल मनीराम साहू मितान

गजल मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212  212  212  212  

रोज दिन घाम मा वो खँटावत रथे।
जिन्दगानी के दिन ला घटावत रथे।

रोज रइथे दँते ताश मा कोढ़िया,
देख पर धन खड़े पटपटावत रथे।

दिन बितत हे सरी चापलूसी करत,
तीर बड़का के बड़ मटमटावत रथे।

सब हवयँ भोकवा मैं सुजानिक कहत
बीच सबके अलग वो छँटावत रथे।

राम नित हे जपत फेर खँइता हवय,
दाँत सब बर अबड़ कटकटावत रथे।

मान पाथे उही अउ पुजाथे घलो,
रात दिन जे दुसर दुख हटावत रथे।

नइ मिलय जी जघा हा नरक मा घलो,
बाप माँ बर मुरुख फटफटावत रथे।

जान ले एक दिन जाल फँसही खुदे,
पाठ हिन्सा पढ़ा जे रटावत रथे।

बाँट के तैं मया जोर सब ला मनी,
छल कपट मा मनुज सब बँटावत रथे।

मनीराम साहू मितान

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212 212 212 212

भूख हड़ताल मा बइठे तो छाय हे ,
आये के पहिली भर पेट वो खाय हे।।

आजकल के तो लइका सुनत हे कहाँ,
गोठ ओला सियानी कहाँ भाय हे।।

बेटा मारत हवय गा फुटाँगी बहुत,
बाप के तो कमाई म बउराय हे।।

आज परिवार के शौंक पूरा करत
बाप भारी तो कर्जा म बोजाय हे।।

खेत बंजर बहुत जल्दी हो जाही गा,
यूरिया डी.ए.पी .खेत डलवाय हे।।

दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़

Friday 24 July 2020

गजल- चोवा राम 'बादल'

गजल- चोवा राम 'बादल'

बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212 

हाथ मा तोर हे जेन करना हवय
कइसे जीना हवय कइसे मरना हवय

तैं ठगा जाबे बइहा दगा हो जही
प्यार के नइ झमेला मा परना हवय

बाढ़ मा फनफनाथे नदी हा अबड़
एक ना एक दिन तो उतरना हवय

टें के तलवार ला तैं का करबे बता
कोनो चिड़िया के डेना कतरना हवय

पूछना ताछना छोड़ दे भाई रे
चल न धर रोजी तैं आज धरना हवय

रात दिन जरबे झन जी जरब आगी मा
जब रचाही चिता तब तो जरना हवय

ताली सुनके गजब झन गरब मा गरज
देखनौटी जी "बादल" लठरना हवय

गजलकार--चोवा राम 'बादल"
हथबन्द, छत्तीसगढ़
      '

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

धरम अउ जात के झगड़ा फँसा देखत तमासा हे,
मजा ले राजनेता संग मा खावत बतासा  हे।।

हवै तो व्याकरण सम्मत कहानी छंद कविता गा,
सुने  बोले मा तो छत्तिसगढ़ी बड़ निक तो भासा हे।।

विनाशक बन उजाड़त आदमी जंगल पहाड़ी ला,
कहाँ अब चार तेन्दू जाम बमरी पेड़ लासा हे।।

समय हा बाँध डारे हे जकड़ के आदमी मन ला ,
भला रुकथे कहाँ पहुना कहूँ गा रात बासा हे।।

दिखावा के हँसी धरके हँसत हे आज के मनखे,
सही मा मन से वो तो गा हतासा अउ निरासा हे।।

मया कतका करत हँव तोला मैं पूछ मत पगली ,
लिखें हँव जान तोरे नाम देख न बेतहासा हे।।

भरे हे मीठ लबरा मन रहौ गा देख के दुर्गा,
हो जाथे छिन मा तोला अउ बदलते छिन मा मासा हे।।

दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गज़ल - अजय अमृतांशु

गज़ल - अजय अमृतांशु

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212   212   212   212

पाले हे झेल के दुख बतावय नहीं।
पीरा दाई ददा हा दिखावय नहीं।

किस्सा दादी के संगी नँदागे हवय।
लोरी गा के कहूँ अब सुलावय नहीं।

टूटगे मोर कनिहा कमावत हँवव।
लक्ष्मी जाथे कहाँ घर मा आवय नहीं।

खेत गहना धराये हवय भाई गा।
कर्जा लदकाय भारी छुटावय नहीं।

मेंहदी हाथ दूनों रचाये हवय।
बेटी दाहिज बिना अब बिहावय नहीं।

सोंच ले आय ककरो उहू बेटी तो,
सास ला तब बहू फेर भावय नहीं।

करथे बीमा फसल के बछर दर बछर।  
क्लेम पूरा तभो कैसे पावय नहीं।

अजय अमृतांशु
भाटापारा

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम
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212 212 212 212

तोर बिन दिन पहावय नही का करौ
मन घलो मोर मानय नही का करौ

मोहनी डारे हवय का मया के अपन
अन्न पानी सुहावय नही का करौ

रोज लड़ना झगड़ना करे रातदिन
चाहथे का बतावय नही का करौ

हाल बइहाँ बरन मोर हे सोच सोच
अउ ग़ज़ल हा लिखावय नही का करौ

एक जेखर रिहिस हे भरोसा इहाँ
साथ ओहर निभावय नही का करौ

बात कस बात राहय नही फेर वो
मन ले खुन्नस हटावय नही का करौ

'ज्ञानु' गहरा मया मा मिले ये
 जखम
घाव जल्दी मिटावय नही का करौ

ज्ञानु

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212 

रात मा चाँदनी खूब चमकत हवे।
भोर सूरज धरे आग दहकत हवे।।

सुन ले ज्यादा मया जाथे बन तो सजा।
छाय बादर सही खूब कड़कत हवे।।

आजा परदेश ले लौट के तैं पिया।
कर अगोरा दुनों आँख फरकत हवे।।

पालबे जेन ला चार कौंरा खिला।
बाद बनके उही साँप लहुकत हवे।।

गाँव ले जोड़ लिन छाँव नाता चलौ।
खेत नरवा नदी प्रेम छलकत हवे।।

जोत शिक्षा जला नोनी बाबू पढ़ा।
फूल बगिया सहीं ज्ञान महकत हवे।।

पेड़ समता उगे मन गजानंद के।
छाँव बइठे सबो आज चहकत हवे।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212 

ये तिरंगा हमर मान अभिमान हे।
एकता मा बँधे देश पहिचान हे।।

हे सिपाही खड़े तान के तो भुजा।
देश खातिर करे प्रान कुरबान हे।।

जय जवान-ए किसान-ए सदा हो विजय।
तोर जजबा बढ़े हिन्द के शान हे।।

सोन चिड़िया हवे मोर ये देश हा।
लहलहावत खड़े खेत मा धान हे।।

माथ पात्रे नवा के करत हे नमन।
देश रक्षा करे सर्व बलिदान हे।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल -मनीराम साहू

गजल -मनीराम साहू

बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम 
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212  212  212  212  

बात मन के कभू वो बतावय नही।
काय हे मन कुछू गोठियावय नही।

चेत हाबय कहाँ आज ला काल के,
बस उजारत हवय रुख लगावय नही।

नून डारत हवय जे जघा हे जरे, 
तापथे आँच आगी बुझावय नही।

छोट कपड़ा पहिर हे घुमत हाट मा,
गोठ औखर करत वो लजावय नही।

जानथे सच हवय वो कहत हे बने,
साथ देहवँ कथे तीर आवय नही।

हे दिखे मा सुघर चाल कीरा परे,
मंद पीथे अबड़ भात खावय नही।

खाय ढिल्ला घुमे वो हवय रात दिन,
जान मसमोट बछवा नथावय नही।

हे मनी पीर सिरतो समुन्दर असन,
तोर देये दरद हा जनावय नही।

मनीराम साहू मितान

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

रोज के पेट बर कुछ कमावत रहव।
जब तलक नइ मिले दाम जावत रहव। 

प्रेम के गीत मा का रखे गा हवय। 
वीरता के तको कुछ सुनावत रहव। 

ओ भगत सिंग आजाद के शौर्य ला। 
छंद मा लिख धरे ताल गावत रहव। 

झन अटकहू खड़ी लील रोटी सगा।   
देख लुगदी बनत ले चबावत रहव। 

काम आही बुढापा म सच मान ले 
रोज थोरिक अपन बर बचावत रहव।   

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212  212  212  212

आय हे साँप धरके सपेरा इहाँ
मौत जिनगी लगावत हे फेरा इहाँ।

हाड़ काँपे हवा संग पानी गिरे
जोर के आय धूका गरेरा इहाँ।

घर बनाये नवा तो डिजाइन (नमूना)रखे
पर दिखत नइहे गाला पठेरा इहाँ।

खेत बारी कहँय रोज मिहनत करव
लहलहावत  हवय गा लमेरा इहाँ।

घर मुहाटी गली रोज दीया बरे
राज मन मा करत हे अँधेरा इहाँ।

मान सुम्मत  मया के लगन छूटगे
अब दिखे लोभ स्वारथ के डेरा इहाँ।

अब कहाँ जाय आशा कती ठौर हे
बंद खिड़की महल काँच घेरा इहाँ।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल मनीराम साहू मितान

गजल मनीराम साहू मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम 
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222 1222

कहे ले वो नटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।
बढ़ा के पग हटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

कथे सिरतो बना देहूँ बने कस तोर कागज ला,
बड़े घुस ले पटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

पुजावत वो रहिस आगू नँगत ओकर रहिस महिमा,
दिनोदिन अब घटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

रहिस मिलके सबो ले वो हवय कुरसी मिले जब ले,
कपट छल ले सँटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

सुवारथ मा हवय बूड़े रथे दिनरात लुड़हारत,
मया देखा जटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

हवय सब नाँव मा ओकर मरय कब डोकरी दाई,
बहू बेटा रटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

दवाई ला रहिस देये मिटा जाही मुड़ी पीरा,
लगावत सर फटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

हरन हम पाठ के भाई लहू ये लाल परछो हे,
तभो मनखे बँटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

भले कइथे मनी हर जी बढ़ाबो मान माटी के,
समे आये कटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

मनीराम साहू मितान

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 

212 212 212 212  

बन मँदारी नचावत रथे रात दिन। 
घोर कातिल बचावत रथे रात दिन। 

हे सुरक्षा म तैनात पलटन इहाँ।
पेंड़ लाखों खचावत रथे रात दिन।   

कइसे खुसरे हे आतंकवादी बता।
हर जगा जब जचावत रथे रात दिन। 

सब कुकुर बाँध के जेल मा ठूँस दव।
शोर भारी मचावत रथे रात दिन।

जे हदरहा रथे नइ मरय लाज जी।
जाने कइसे पचावत रथे रात दिन। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-अरुण कुमार निगम

छत्तीसगढ़ी गजल-अरुण कुमार निगम

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
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212 212 212 212

जान लेबे अदौरी बरी के मजा
भूल जाबे चिकन के करी के मजा।

गाय गरुवा नहीं तो पहटिया नहीं
लूटबे कइसे अब बंसरी के मजा।

जइसे दारू पियइया के चाँदी हवै
वइसे लूटन दे बावन-परी के मजा।

तोप बम बिन न बइरी ह डर्राही रे
तँय तो बाँटत हवस फुलझरी के मजा।

आज शिवनाथ के घाट मा चल 'अरुण'
लेबो मन भर हमन गल-गरी के मजा।

*अरुण कुमार निगम*

Thursday 23 July 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

रहे बर बन जही घर पॉंच छै अउ सात माले के
हवय ए भीड़ बर नित दू बखत चिन्ता निवाले के

बिना जाने प्रकृति पर्यावरण के का हवय मरजी
चलन हे खोर घर ॲंगना सड़क कंक्रीट ढाले के

ददा दाई ह जोहय पर के मुॅंह ला पेट बर बिधुना
चढ़े हे शौंक बेटा ला अपन घर डॉग पाले के

कभू ये चीन के झगरा कभू नेपाल के नखरा
सही कइसे हिमाकत पाक के दिन-रात घाले के

कथें हे पोठ सौ बक्का ले जादा एकठन लिक्खा
तभे अब तक जिरह मन मा चलत आये हे लाले के

गरीबन अउ अमीरन मा इहू बड़ खास हे अन्तर
ए ला खाये के चिन्ता हे ओ ला चिन्ता निकाले के

डटे रह द्वार मा सुखदेव तॅंय जल्दी जवाब आही
समय नइहे समय कर अब समय के प्रश्न टाले के

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

चुलुक तैं मंद मउहा के, लगाबे झन कभू भैया।
ये दुनिया हाट माया के, ठगाबे झन कभू भैया।1

रतन धन साथ नइ जावै, मया हा काम नइ आवै।
बुझत दीया हरे तन, बगबगाबे झन कभू भैया।2

धरा के देवता आये, जगत मा तोला जे लाये।
ठिहा ले बाप माई ला, भगाबे झन कभू भैया।3

भरे बारूद घर भीतर, पड़ोसी ला डराये बर।
अगिन पर घर जलाये बर, दगाबे झन कभू भैया।4

गजब कन रूप नारी के, बहिन बेटी सुवारी माँ।
छुपे काली घलो रहिथे, जगाबे झन कभू भैया।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बिना पाना बिना डारा, फरौं कइसे बता दे तैं।
नयन मुँह बाँध के चारा, चरौं कइसे बता दे तैं।1

खुसी के नीर हा निथरे, करम गागर हवै फुटहा।
अपन जिनगी मा सुख ला मैं, भरौं कइसे बता दे तैं।2

भगाये बर अँधेरा जोत जइसे, चाहथों बरना।
भला बिन तेल बाती के, बरौं कइसे बता दे तैं।3

छली छलिया कथे कोनो, कथे कोनो निचट बइहा।
मयारू तोर मनके मैं, हरौं कइसे बता दे तैं।4

नँगाये सुख कहाँ मिलथे, करम बिन भाग का खिलते।
मुठा भर बाँध के रेती, धरौं कइसे बता दे तैं।5

खुदे के भार नइ सम्हले, झकोरा मा हले तन हा।
बने बर नेंव के पथरा, करौं कइसे बता दे तैं।6

छुटे नइ मोह हा तनके, रथे चिपके गजब जमके।
नवा पाना उगाये बर, झरौं कइसे बता दे तैं।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)



छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

चुलुक तैं मंद मउहा के, लगाबे झन कभू भैया।
ये दुनिया हाट माया के, ठगाबे झन कभू भैया।1

रतन धन साथ नइ जावै, मया मोह काम नइ आवै।
बुझत दीया हरे तन, बगबगाबे झन कभू भैया।2

धरा के देवता आये, जगत मा तोला जे लाये।
ठिहा ले बाप माई ला, भगाबे झन कभू भैया।3

भरे बारूद घर भीतर, पड़ोसी ला डराये बर।
अगिन पर घर जलाये बर, दगाबे झन कभू भैया।4

गजब कन रूप नारी के, बहिन बेटी सुवारी माँ।
छुपे काली घलो रहिथे, जगाबे झन कभू भैया।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

गजल -मनीराम साहू मितान

गजल -मनीराम साहू मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222

लिखवँ कइसे गजल मैं हा बहर मोला पता नइहे।
भरे सब भाव हिरदे के दहर मोला पता नइहे।

हवय मन आस एके जी दरस बस हो जतिस ओकर,
रथे जाके कहाँ ओकर शहर मोला पता नइहे।

हवय पीरा सतावत जी सँचर के मोर अंतस मा,
पिया के मार दवँ मै पर जहर मोला पता नइहे।

सुवारथ हे लगत हाबय करू नइ मीठ बोली हे,
उठत कतका मया जल के लहर मोला पता नइहे।

कथे दिल गा सुघर तैं हा मिलन के गीत सावन मा,
बने सुर ताल लय अउ धुन ठहर मोला पता नइहे।

लगावत फेर आफिस के खियागे मोर पनही हा,
कती अब जावँ उखरा मैं डहर मोला पता नइहे।

सुखागे खेत बरसा बिन छुटे हे बाँध के पानी,
चलत राहय बने कस वो नहर मोला पता नइहे।

सहत दुख घाम जिनगी मा सहज परगे हवय घाँठा,
कभू सुख लाय हे एको पहर मोला पता नइहे।

बगरगे हे मनी दुनिया पदोवत हे महामारी,
चलत हाबय बने सब तव कहर मोला पता नइहे।

मनीराम साहू मितान

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
1222 1222 1222 1222

बता के भोकवा मोला, अपन हर घर चलावत हे।
अरे कहिके सदा मोला अपन ओ तिर बलावत हे

ददा के बात नइ मानय न दाई के सुनय काँही।
गले नइ दार हा तबले अपन मर्जी गलावत हे।

दलाली खोखला कर दिस हमर ये देश ला भाई।
सड़क माटी पटाये छत बिना छड़ के ढलावत हे।

सबो झन जानथे फाँसी चढ़ाना बस हवय बाँकी।
बने कानून अइसे हे समे बस हा टलावत हे।

दिखावत हे सबो सपना पलटही भाग जनता के।
बने सरकार ककरो भी सदा जनता छलावत हे।

कलम के जोर मा बदलाव लाने बर लिखे पोथी।
पढ़य नइ आजकल कोनो समझ रद्दी जलावत हे

धरे पिस्तोल अपराधी बिना डर के घुसे घर मा।
लुटइया लूट के लेगे पुलिस डण्डा हलावत हे।

रचनाकार- दिलोप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

नफा खोजत उड़य नित बाज, देखे मा फरक हे जी।
मरे नइ लाजवंती लाज, देखे मा फरक हे जी।।1

मरे मनखे ला दफनाये, उहाँ कौने घुमे जाये।
हरे मुमताज के मठ ताज, देखे मा फरक हे जी।2

हवै दाई ददा लाँघन, लुटाये पूत पर बर धन।
करे माँ बाप कइसे नाज, देखे मा फरक हे जी।3

उहू बोलय विपत हरहूँ, यहू कहिथे खुशी भरहूँ।
सबे नेता हे एके आज, देखे मा फरक हे जी।4

बढ़े अउ ना घटे धन, कर खुजाये जेवनी डेरी।
दुनो मा होय खुजली खाज, देखे मा फरक हे जी।5

करे सबझन अपन मनके, करम बढ़िया कहत तनके।
बने गिनहा दुई हे काज, देखे मा फरक हे जी।6

गुमानी चार दिन के चोचला, टिकथे कहाँ जादा।
ढहे राजा घलो के राज, देखे मा फरक हे जी।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

उठा ले पाँव नेकी बर जहां मा नाम हो जाही ।
जतन माँ बाप के कर ले इँहे प्रभु धाम हो जाही ।।

सियासत देश के तो आज बिगड़े हे बहुत प्यारे ।
कहूँ तैं बोलबे सच न्याय कत्लेआम हो जाही ।।

बढ़े हे खूब महँगाई बता कइसे चलाबो घर ।
लगत हे धान ले ज्यादा सबो के दाम हो जाही ।।

धरे टँगिया तहूँ हा रोज काटत पेड़ काबर हस ।
सुवारथ आज के ये तोर कल दुख घाम हो जाही ।।

सबो ला नौकरी चाही इँहा बस आज सरकारी ।
बढ़त बेरोजगारी मा युवा नाकाम हो जाही ।।

बिता ले चार पल हँसके मया परिवार मा तैं तो ।
फिकर चिंता करे ला छोड़ जिनगी जाम हो जाही ।।

बराबर एक सब ला मान पात्रे हे कहत सुन लौ ।
तहाँ सब सिक्ख ईसाई सबो गुरु राम हो जाही ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध "
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222×4

कटावत रोज रुखराई बचाही कोन  सँगवारी
मिलय फल फूल अउ छइहाँ लगाही कोन सँगवारी

संभल के खुद चले परथे  इहाँ सिरतों सबो  सुनलव
भटक जाहू कहूँ रसता दिखाही कोन सँगवारी

तहूँ हस अउ  महूँ हँव मस्त अपने मा मितानी तब
सुदामा कृष्ण जस सिरतों निभाही कोन सँगवारी

बनाथे काम अफसर अउ ये नेता मन सदा अपने
सुवारथ के लगे चश्मा हटाही कोन सँगवारी

मया के आग भभकत हे जिया तरसे मिले खातिर
मयारू बिन लगा छतिया बुझाही कोन सँगवारी

दिखावत जेब खाली ला अपन पूछत हवय ओहा
बताऔ आज दारू ला पियाही कोन सँगवारी

भले बन जा बड़े तँय आदमी पइसा कमा कतको
ददा दाई सही तोला खवाही कोन सँगवारी

धरय नइ 'ज्ञानु' लइका आज के नाँगर के मुठिया ला
कभू मौका  परे धनहा मताही कोन सँगवारी

ज्ञानु

Wednesday 22 July 2020

ग़ज़ल-आशा देशमुख

ग़ज़ल

बहरे हज़्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

1222  1222  1222  1222

घटाना जोड़ जिनगी मा अबड़ हे मान पाई के
हवय सबले बड़े छइयाँ मया अँचरा ह दाई के।

रखव आँखी तरी पानी रहय जी मान अउआदर
लगे बानी घलो गुत्तुर बिना खाये मिठाई के।

नज़र के सँग फिसल जाथे कभू मनखे के नीयत हा।
यहू ला जानलव हरदम रहय नइ दोष काई के।

मिले जब मान पद बढ़िया कहूँ ला झन समझ छोटे
दया बर ठौर नइहे काय तब अइसन ऊँचाई के।

घुमावत हे छड़ी जेलर जगत के जीव मन कैदी
तजे तन मोह माया ला इही साधन रिहाई के।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

  गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

दरक गे हे सबो नाता मया धर के बने तुन ले ,
अपन माने के पहिली तँय अलग गोंटी बने टुन ले ।।

तैं सुनके भाग मत पीछू कि ले गे कान ला कौंवा ,
सुने हस कान मा जे बात वो तँय बात ला धुन ले ।।

पढ़ाई अउ लिखाई सँग सिखौना काम कतको हे ,
चढ़ा ढेरा मा आँटी जान अउ खटिया खुरा कुन ले ।।

बिना सोंचे विचारे काम करबे होत पछतावा ,
करे गा काम के पहिली नतीजा बर बने गुन ले ।।

कहाँ काशी कहाँ मथुरा अयोध्या धाम जाबे तँय ,
ददा दाई के सेवा कर सबो गा धाम के पुन ले ।।

खड़े रइही ग नेता हाथ जोड़े सब चुनावी मा ,
करे जो काम जनता के सुनो नेता उही चुन ले ।।

चिता चिंता मा बिंदी के फरक तो मात्र हे दुर्गा ,
करे झन खोखला तन मन उदिम करके बचा घुन ले ।।

गजलकार-दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल-चोवा राम 'बादल'

गजल-चोवा राम 'बादल'

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बुढ़ापा हा तको आही गरब झन कर जवानी के
नशा छिन मा उतर जाही चढ़े मउहा के पानी के

बना ले एक ठन किस्सा तहूँ हा प्यार कर अइसे
अमर हे नाम हा जग में अभो ले राधा रानी के

नता गोता रही जिंदा कदर तोरो उहाँ होही
करत रहिबे तहूँ सुरता बखत मा लागमानी के

सपट के काल हे ठाढ़े पता नइये झपट खाही
भरोसा फोटका कस नइये ककरो जिंदगानी के

कहाँ पाबे बने इज्जत निठल्ला घूमथच संगी
सबो कहिथें सुहाथे लात हा गइया दुहानी के

करोड़ों फूँक डारे हें तभो हालत हवय बिगड़े
सड़क बनगे हवय नदिया हमर तो राजधानी के

कहे हे तोड़ के लाहूँ सरग ले चाँद अउ सूरज
मरम ला जान ले 'बादल' करे वादा जुबानी के


चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222

इही आषाढ़ सावन मा मिले रेहेन सुरता कर
गियॉं घनघोर बारिश मा फिले रेहेन सुरता कर

उहॉं बिजुरी लउक जावै इहॉं बादर गरज जावै
गरजना मा झझक सॅंघरा हिले रेहेन सुरता कर

ओ कैंचीफॉंक सॅंयकिल तोर पाछू केरियल मा मॅंय
ए माड़ी कोहनी ला हम छिले रेहेन सुरता कर

अपन टोंटा ल अरझाले रहिस घानी-मुनी घुमके
ओ बछरू ला हमीं दूनो ढिले रेहेन सुरता कर

ओ परछी मा बिछे लुगरा छिटाही रंग मनभावन
ममादाई के कथरी ला सिले रेहेन सुरता कर

न जी सुखदेव इस्कुल मा रहॅंय अनबोलना ओमन
दु दल हम एक कर दल मा पिले रेहेन सुरता कर

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप वर्मा

गजल- दिलीप वर्मा
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
1222 1222 1222 1222

मटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।
छटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

सुने हँव प्रेम के बंधन बड़ा मजबूत होवत हे।
झटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

लगे करफ्यू बसो हे बंद गाड़ी तक दिखत नइ हे।
लटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

मया मा ताज बनवा के दिये जे मँय रहँव वोला।
पटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

बने ओ शेरनी जइसे समझ के मेमना मोला।
हटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

दुसर के बात मा आके समझ नइ पाय सच का हे।
भटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

चटक पानी असन मँय केश मा राहत रहे हँव जी।
फटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

रचनाकार- दिलोप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

मुकम्मल गजल -मनीराम साहू, मितान

मुकम्मल गजल -मनीराम साहू, मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222

भले हाबय निचट अड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
किसनहा देह हे हड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

करत रइथे सदा सेवा हवय ले भार माटी के,
नँगरिहा पूत वो गड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

उठय नित वो बिहनिया ले रखय जी खाँध मा नाँगर,
चलय धर बाट खड़बड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

दरर जाथे बुता तक हा कमाथे घाम पानी मा,
हिचकथे जाड़ बन जड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

कमावत कोइला परगे मुँहू मा हे परे झाँई,
लहुटगे हाथ रच्चड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

हवय वो भूख के बैरी पहाथे दिन गरीबी मा,
सुनत भासन निचट सड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

कमाथें एकरे ओखी हवयँ जे ऊँच मा बइठे,
बना के पाग सड़मड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

लिखत हाबय गजल मा जी मनी जे बात सिरतो हे,
करय नइ गोठ ला कड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।

मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222×4

कटावत रोज रुखराई बचाही कोन  सँगवारी
मिलय फल फूल अउ छइहाँ लगाही कोन सँगवारी

संभल के खुद चले परथे इहाँ सबो  सुनलव
भटक जाहू कहू रसता दिखाही कोन सँगवारी

तहू हस मस्त अपने मा महूँ हँव तब मितानी ला
सुदामा कृष्ण जस सिरतों निभाही कोन सँगवारी

बनाथे काम अफसर अउ ये नेता मन सदा अपने
सुवारथ के लगे चश्मा हटाही कोन सँगवारी

मया के आग भभकत हे जिया तरसे मिले खातिर
मयारू बिन लगा छतिया बुझाही कोन सँगवारी

दिखावत जेब खाली ला अपन पूछत हवय ओहा
बताऔ आज दारू ला पियाही कोन सँगवारी

भले बन जा बड़े तँय आदमी पइसा कमा कतको
ददा दाई सही तोला खवाही कोन सँगवारी

धरय नइ 'ज्ञानु' लइका आज के नाँगर के मुठिया ला
कभू मौका  परे धनहा मताही कोन सँगवारी

ज्ञानु

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बिना खाये उदर आगी, बता कइसे बुझाही जी।
विपत नाचत रही सिर मा, भला का नींद आही जी।

लगे सावन घलो बैसाख, आगी कस धरा हे तात।
कटागे रुख गँवागे सुख, मनुष अब जर भुँजाही जी।

बिगाड़े घर घलो ला ये, बिगाड़े पर घलो ला ये।
नसा हा नास के जड़ ए, खुशी धन तन सिराही जी।

ददा दाई ला धुत्कारे, खुशी सुख सत मया बारे।
सुने नइ बात ला बेटा, कहाँ जाके झपाही जी।

गरभ मा राख के नौ माह, झेलिस दुख गजब दाई।
निकम्मा पूत हा होवय, ता छाती नइ ठठाही जी।

भलाई के जमाना गय, करे पापी धरम के छय।
बुराई हा जगत मा, एक दिन लाही तबाही जी।

चले चरचा गुमानी के, दबे गुण ज्ञान  ग्यानी के।
धँधाये जेल मा सत ता, बुराई नइ हमाही जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल - अजय अमृतांशु


ग़ज़ल - अजय अमृतांशु

बहरे हज्ज मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222  1222 1222 1222

ददा बड़ गोहरावय काम लइका नइ करय काबर।
समय उल्टा ग होगे गोठ सिरतो नइ धरय काबर ।

हवय मनखे अबड़ हलकान अत्याचार बाढ़े हे।
दुराचारी करय झगराच मारे नइ मरय काबर।

सरत हे अन्न सरकारी भरे गोदाम मा भैया।
बतावव बाँट के सब अन्न ला
दुख नइ हरय काबर।

हवय कानून के रखवार मन के जिनगी खतरा मा।
पलय गुंडा मवाली मन बतावा नइ डरय काबर ।

हवय चारों डहर झगरा लड़ाई संग इरखा हे।
सुमत के बिरवा सिरतो आजकल गा नइ फरय काबर।

अजय "अमृतांशु"
भाटापारा,छत्तीसगढ़

Monday 20 July 2020

गजल - चोवा राम 'बादल'

गजल - चोवा राम 'बादल'

बहरे हज्ज मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222  1222 1222 1222

समस्या के बता दे हल कती कब कइसे मा होही
नहीं ते साफ कहिदे तैं कहाँ पइसा बिना होही

हमर तैं वोट ला पाके बने भैरा हवच बइठे
समे आही बता देबो तहूँ ला फेर का होही

उफनथे ढोड़गी अबड़े कभू पानी चिटिक गिरथे
उतर जाही वो थोकुन मा नदी ला तो पता होही

हँसी आवत हवय ए देख अदरा मेंछरावत हे
अबड़ के टिंग टिंगावत हे अजी बइला नवा होही

झपट लिच बाज कस बीमारी अब तो जीव नइ बाँचय
उड़ादिच छानही ला जे गरीबी के हवा होही

मया करबे मया पाबे इही हे सार जिनगी के
तउल झन तैं हा पइसा मा कहाँ वो हा मया होही

 ददा दाई ला जीते जी खवा ले प्रेम के कौंरा
उँकर बर मीठ बोली तोर सिरतो मा दवा होही

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

गजल-चोवा राम 'बादल'

गजल-चोवा राम 'बादल'

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

तुहँर तो कारखाना हे हमर उजरे तो बारी हे
कुकुर हावय तुहँर घर मा हमर घर गाय कारी हे

धरे वोमन हवयँ पइसा लुटाये हम ग रोवत हन
उँकर सब झूठ हे सच्चा हमर सब सच लबारी हे

बने जस मंथरा फिरथे परोसिन हा घरो घर मा
कभू एकर कभू ओकर करत बड़ चुगरी चारी हे

कभू झन देबे गारी रे बहिन अउ माँ के कोनो ला
तहूँ ला हे जे उपजाये उहू हा मातु नारी हे

हवै कुलकत बने कुरिया बहत हे प्रेम के धारा
 जिहाँ सबके सबो झन सँग पटत सुग्घर के तारी हे

जियत ले सुन ले सँगवारी बने कुछ काम कर ले तैं
अगोरत काल हे बइठे अजी तोरो  दुवारी हे

छिंचागे खेत मा बिजहा फँदागे बइला नाँगर हा
तहूँ अब आ जबे 'बादल' बरस जा तोर पारी हे

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

गजल -मनीराम साहू मितान

गजल  -मनीराम साहू मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222

हवय आये सुघर बेरा जगा लव भाग ला संगी।
करव झन आज मन ढेरा जगा लव भाग ला संगी।

रहय बढ़वार डग काँटा तुरत मिल लेस देवव गा,
हटा दव झार मुड़हेरा जगा लव भाग ला संगी।

जगइया पाय सरबस जी सुतइया हा कहाँ पाथे,
बनावय ओत झन डेरा जगा लव भाग ला संगी।

चलव मिलके समे सँग मा सबो झन बाँध कनिहा ला,
रथे सत मा समे फेरा जगा लव भाग ला संगी।

हवयँ आये सबो रीता पसारे हाथ जाना हे,
थमव झन मोर मैं घेरा जगा लव भाग ला संगी।

सुमत के बाँचही भिथिया कुमत के झन परय पानी,
पलानी पान बन पेरा जगा लव भाग ला संगी।

कँपाही हाड़ बइरी के सबो झन के बने झोत्था,
रहव जस झोरफा केरा जगा लव भाग ला संगी।

मनी के सँग चलव सब झन रखव झन झूठ कचरा ला,
चलावव सत्य खरहेरा जगा लव भाग ला संगी।

मनीराम साहू मितान

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222 1222 

बनाये हे बने कानून पर सब छूट जावत हे।
बने कानून के रखवार मन जब घूँस खावत हे। 

धरे रहिबे लुका कतकोन गठरी बाँध तँय पइसा। 
कुकुर मन सूँघ के आवय तहाँ सब ला नँगावत हे

सबो हर बंद हे जब ले करोना आय बीमारी।
तभो गुरुजन उठा बीड़ा मुबाइल मा पढ़ावत हे।

कभू झन आँकबे कम पेट हाथी कस रखे नेता।
रहे चारा सड़क पुलिया सबो ला खा पचावत हे।

रहय जेखर करा पइसा रखे वो जेब मा कानून।
करे कतकोन घोटाला कहाँ वो हर धँधावत हे।

ददा कंजूस बन पइसा सकेले हे बहुत भारी।
उदाली मार लइका हर सबो धन ला उड़ावत हे।

विदेसी मेम लाने हे बिहा करके हमर टूरा। 
बिहिनिया साँझ रतिहा रोज के नखरा उठावत हे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-चोवा राम 'बादल'

गजल-चोवा राम 'बादल'

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

समुंदर अउ नदी मा देख कतका प्यार होथे जी
बता मनखे सही उन मा कभू तकरार होथे जी

उफनथे एक के हिरदे जनाथे दुःख दूसर ला
जुड़े दूनो के सिरतो मा मया के तार होथे जी

हटा रद्दा के सब बाधा नदी खींचे चले आथे
उतर जाथे वो परबत ले कहाँ लाचार होथे जी

अजब हे प्रेम के दुनिया समझ कतको ला नइ आवय
समझथे वो मरम ला जे खुदे दिलदार होथे जी

भले बैरी बनैं कतको पतंगा कब ठहर पाथे
झपाथे लौ मा दियना के अबड़ मतवार होथे जी

असल हे वो जवानी हा लहू डबकत उही मा हे
 मिटे बर देश के खातिर सदा  तइयार होथे जी

जिहाँ स्वारथ चिटिक नइये भलाई बस भलाई हे
ददा दाई के बरजे मा तको    तो सार होथे जी

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

Friday 17 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहर-221 1222 221 1222

तैं काम बने करबे, तब तोर तिरन आहूँ।
दीया के असन बरबे,तब तोर तिरन आहूँ।1

तनमन म मया घोरे, जिनगी म दया जोरे।
दुख द्वेष दरद दरबे,तब तोर तिरन आहूँ।2।

आमा के असन झुलबे,फुलवा के असन फुलबे।
सेमी के असन फरबे,तब तोर तिरन आहूँ।।3।

लगवार सहीं लगबे,रखवार सहीं जगबे।
कखरो ले कहूँ डरबे,तब तोर तिरन आहूँ।4

पुरवा म सजा सनसन,ऋतु राज बसंती बन।
पतझड़ के असन झरबे,तब तोर तिरन आहूँ।5

धन धान धरे रहिबे,गुण ग्यान धरे रहिबे।
सत शान जिया भरबे,तब तोर तिरन आहूँ।6

लत लोभ लड़ाई धर,बल बैर बुराई धर।
होली के असन जरबे,ता तोर तिरन आहूँ।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)

छ्त्तीसगढ़ी गजल -ज्ञानु

छ्त्तीसगढ़ी गजल -ज्ञानु
221-1222-221-1222

मद लोभ अहम हिरदै मा पाल रखे काबर
भर जेब अपन रे भाई जंजाल रखे काबर

बड़ भाग मिलें ये काया मोल कहाँ जाने
शैतान सही रे बिगड़े चाल रखे काबर

तँय खूब कमाये धन रे नइ भाव भजन जाने
जें काम कभू नइ आवय वो माल रखे काबर

सिगरेट तँमाखू दारू रोज पिथस कसके
तँय हाथ अपन रे दुश्मन काल रखे काबर

नइ  'ज्ञानु' करे बस पीटत रोज ढिंढोरा रे
कुछु काम न कौड़ी के बदहाल रखे काबर

ज्ञानुदास मानिकपुरी

गजल दिलीप वर्मा

गजल  दिलीप वर्मा

बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222

सदा जे खाय हे पिज़्ज़ा कहे ये भात का होथे
रहे जे बंद कुरिया मा कहे बरसात का होथे

कभू सुनसान जंगल मा भटकबे रात के बेरा
समझ आही तभे भाई भयानक रात का होथे

कमाये तोर पूंजी ला कहूँ भाई हड़प लेही
समझ मा आ जही संगी करेजा घात का होथे

बहुत बरजे न मानय जेन लइका हर रहे उदबित
जरे जब हाथ हा चट ले समझथे तात का होथे।

बिना मैदान मा आये विजेता जेन बन बइठे
लपेटा में कभू आथे समझथे मात का होथे

भरे अभिमान मा राजा सतावय रोज जनता ला
हरा दे जेन दिन जनता त जानय लात का होथे

बताये बात ला सुन के बहुत झगरा मता देथे
समझ ओ बाद मा आथे,सहीं मा बात का होथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल दिलीप वर्मा

गजल  दिलीप वर्मा

बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222   

लगे सावन महीना मा घुमड़ के छाय हे बादर।
बरस बीते बहुत के बाद अइसन आय हे बादर।

कभू आके दिखा ठेंगा मिले बिन ओ मटक देथे।
समे ओखरा हवय जाने, बहुत इतराय हे बादर। 

बड़ा नटखट हवय उदबित बरज कतको कहाँ माने।
गरज के जोर से हमला बहुत डरव्हाय हे बादर।

सुरुज ला ढाँक राहत देत हे आसाढ़ के लगती।
समे पहिली लगे एसो बने भदराय हे बादर।

उठत हे जोर से लगथे प्रलय ये लान तक देही।
जवानी मा बने घपटे गजब करियाय हे बादर।

करामत कर दिखाये हे रहे परिया परे धरती।
किसानी देख एसो के बहुत मुसकाय हे बादर।

जवानी जोश जब मारे करय तांडव सहीं नाचा।
बड़ा भारी अपन ओ रूप तक दिखलाय हे बादर।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल मनीराम साहू मितान

गजल  मनीराम साहू मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222 1222 

गिरत हे नित अबड़ पानी बतावव जी करवँ मैं का।
चुहत हाबय खदर छानी बतावव जी करवँ मैं का।

भरे हाबय सरी भुइयाँ जलक के धान सर गे हे,
करत हे रोज मनमानी बतावव जी करवँ मैं का।

बढ़त हे रोग रोजे जी कहाँ ये हा थिरावत हे,
चुपे हें आज विज्ञानी बतावव जी करवँ मैं का।

बिगड़ गय बाट हिजगा मा हवै माते नँगत चिखला,
बने हें झार अज्ञानी बतावव जी करवँ मैं का।

चढ़े हे भाव भाटा के किलो मा हे बिकत भाजी,
बढे हे मोर हलकानी बतावव जी करवँ मैं का।

कहे ले नइ कुछू होवय सरग हे मोर भुइयाँ हा,
गजब हे झूठ बइमानी बतावव जी करवँ मैं का।

पनक गयँ झार बइठाँगुर चढ़त हें मूड़ मा देखव,
हवैं उँन झार वरदानी बतावव जी करवँ मैं का।

बिसर के आज सावन मा लुकाये हे कहाँ गुइयाँ,
करेजा मोर कर चानी बतावव जी करवँ मैं का।

समे के फेर अइसे हे मनी हितवा पलट गे हें,
हवैं बोलत करू बानी बतावव जी करवँ मैं का।

मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप वर्मा

गजल- दिलीप वर्मा
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलूनर
1222 1222 1222 1222

पढ़े ला जब कबे दिन रात लइका बोर हो जाथे
दिखाथे बस पढ़त जइसे निचट फिर ढोर हो जाथे

करे नइ काम जाँगर चोर कतको झन रथे ठलहा।
उदाली मार सिरवाथे तहाँ ले चोर हो जाथे। 

अलाली जे किसानी मा करे परथे तहाँ परिया। 
करे बिन काम खेती खार हर कमजोर हो जाथे।

दिखे बस पलहरा जइसे धुँआ जब छाय ऊपर मा
मिले चारों डहर ले झूम के घनघोर हो जाथे।

रहे कतको अँधेरी रात झन घबरा कभू भाई।
पहाती रात के सुकुवा दिखे फिर भोर हो जाथे।

मया अँधरा बना देथे समझ आवय नही काँही।
मिलन के धुन रथे तब साँप तक हर डोर हो जाथे

रहे अच्छा बुरा सन्देस फइले आग के जइसे।
लुकाये नइ सकय कोनो शहर भर शोर हो जाथे। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

 बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222

यहा होरी चुनर कोरी बता तँय काय कर लेबे।
लुकाये घर म हे गोरी बता तँय काय कर लेबे।

पढाये तोर ओ लइका रहे हुसियार जे भारी।
बने हैकर करे चोरी, बता तँय काय कर लेबे।

सबो ला ज्ञान बाँटत हे जिये के हौसला खातिर।
लटक गे खुद बँधे डोरी, बता तँय काय कर लेबे।

बनाये जेन तँय नेता दगा तोला ग देवत हे
उड़ाये माल सब तोरी बता तँय काय कर लेबे।

पधारे साँप हे घर मा मचावत रार हे भारी।
खुसर गे जे हवय मोरी बता तँय काय कर लेबे।

अबड़ रोवत हवय लइका सुते नइ रात हे आधा।
सुते नइ सुन के ओ लोरी बता तँय काय कर लेबे

दवाई दे हवय डॉक्टर जरूरी जान के तोला।
शुगर आगे दवा घोरी बता तँय काय कर लेबे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल -मनीराम साहू

गजल  -मनीराम साहू

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222

भगाबो दूर अँधियारी चलव मिलके परन करबो।
रहय बस चक्क उजियारी चलव मिलके परन करबो।

भला हाबय इही मा जी सफाई सब रखिन सँग मा,
रखन नइ तीर बीमारी चलव मिलके परन करबो।

अलग हाबयँ अँगुरिया सब बँधे ताकत बनाथें जी,
बनिन मुटका पटो तारी चलव मिलके परन करबो।

भले हे लाख अवगुन हा हवय गुन एक धरलिन हम,
करन नइ फोकटे चारी चलव मिलके परन करबो।

रहय जे एक के बोझा बनय जी चार के लवठी,
करिन हम काम सहकारी चलव मिलके परन करबो।

रखे लोहा सँचर जाथे तुरत गा रोग मुरचा हा,
गुनत ये बात सँगवारी चलव मिलके परन करबो।

कुछू तो बाँचही पइसा उपजही साग भाजी जब,
लगाबो छोटकुन बारी चलव मिलके परन करबो।

जिनिस जे फोसवा होथे उड़ा जाथे गरेरा मा,
सदा मिल हम रहिन भारी चलव मिलके परन करबो।

हवन हम खात जेकर ला पले हँन खेल कोरा मा,
करत रहिबोन रखवारी चलव मिलके परन करबो।

मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल-आशा देशमुख

ग़ज़ल-आशा देशमुख

बहरे हज्ज मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

1222  1222  1222 1222

परव दाई ददा के पाँव घर हा धाम हो जाही।
चलव सच के धरव रद्दा सबो शुभ काम हो जाही।

अपन स्वारथ अहम छोड़व कभू तो बाँटलव सुख ला
करव जी काज नेकी के तुँहर भी नाम हो जाही।

धनी ला खेत जाए बर उठावै नित सुवारी हा।
बिहनिया ले करव बूता  नही तो घाम हो जाही।

कहाँ तक ले छुपाही पाप करके राज अपराधी
हवा के संग घूमे बात चरचा आम हो जाही।

चुहक ले तँय भले आमा कहूँ कर फेंक दे गोही।
मया माटी दिखाही तब बने वो दाम हो जाही।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल - अजय अमृतांशु

ग़ज़ल - अजय अमृतांशु

बहरे हज्ज मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222  1222 1222 1222

ददा बड़ गोहरावय काम लइका नइ करय काबर।
समय उल्टा ग होगे गोठ सिरतो नइ धरय काबर ।

हवय मनखे अबड़ हलकान अत्याचार बाढ़े हे।
दुराचारी करय झगराच मारे नइ मरय काबर।

सरत हे अन्न सरकारी भरे गोदाम मा भैया।
बतावव बाँट के सब अन्न ला
दुख नइ हरय काबर।

हवय कानून के रखवार मन के जिनगी खतरा मा।
पलय गुंडा मवाली मन बतावा नइ डरय काबर ।

हवय चारों डहर झगरा लड़ाई संग इरखा हे।
सुमत के बिरवा सिरतो आजकल गा नइ फरय काबर।

अजय "अमृतांशु"
भाटापारा,छत्तीसगढ़

Saturday 11 July 2020

ग़ज़ल-आशा देशमुख

ग़ज़ल-आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
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212 212 212 2

जात के भीतिया तोड़बे का
टूट गेहे नता जोड़बे का।

मीठ पानी के झरिया  सुखागे
अब नवा अउ कुआँ कोड़बे का।

खेत बारी सबो बेच डारे
तँय बता सब नशा छोड़बे का।

आज कतको हवय गाँव सुक्खा
ये नहर के डहर मोड़बे का।

जीत के देश झंडा गड़ावय
एक फटाका तहूँ फोड़बे का।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी गजल-अरुण कुमार निगम

छत्तीसगढ़ी गजल-अरुण कुमार निगम

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

इही माटी मा जीना हे इही माटी मा मरना हे।
हमर सुरता करय दुनिया कुछ अइसन काम करना हे।

सुराजी के मजा ला जान पाही का कभू बइला
फँदाए हे जे घानी मा बँधे खूँटा किंजरना हे।

हमर छत्तीसगढ़ मा तो लिखे बर हें जिनिस लाखों
इहाँ दू चार कवि मन ला जरी मुनगा चुचरना हे

कमीशन खा के ठेकेदार मन करथें ढलाई तब
कहूँ पुल ला  दरकना हे कहूँ छत ला पझरना हे।

अमावस एक रतिहा के "अरुण" तँय काट ले हँस के
करय कतको जतन कोनो, चंदैनी ला बगरना हे।

*अरुण कुमार निगम*

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे मुतकारिक मुसम्मन अहज़जु  आख़िर
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212 212 212 2

बात का हे बता संगवारी
मन मा झन तँय लुका संगवारी

दुक्ख सुख तो लगे जिनगी भर हे
आँसू झन तँय बहा संगवारी

रोय मा होय हासिल नही कुछ
आस मन मा जगा संगवारी

देख काँटा डरा झन जबे तँय
पाँव आगू बढ़ा संगवारी

जाय मिल कोनो भटके कहू ता
रसता ओला दिखा संगवारी

कतको लइका ला दे रोज सुविधा
फेर सुग्घर पढ़ा संगवारी

तोर बड़ भाग पाये मनुज तन
हाँस के दिन पहा संगवारी

हाथ जोड़े करे 'ज्ञानु' बिनती
बैर मन ले हटा संगवारी

ज्ञानु

गजल-मनीराम साहू मितान

गजल-मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212 2

टोर झन जोर बनही बनौकी।
जग सरी तोर बनही बनौकी।

गोठ करबे सदा नीक कोंवर,
मीठ रस घोर बनही बनौकी।

छोड़ के द्वेष मन ला मिला ले,
गाँठ सब छोर बनही बनौकी।

वो बनाये हवै भेद भिथिया,
झन सजा फोर बनही बनौकी।

चार दिन हे रहे बर जगत मा,
छोड़ मैं मोर बनही बनौकी।

जस कमाये हवयँ तोर पुरखा,
नाँव झन बोर बनही बनौकी।

जे चलय पाप छल बाट ओकर,
तीर झन लोर बनही बनौकी।

उँन जनम देय लाये हवयँ जग,
रोज कर सोर बनही बनौकी।

सुन मनी तैं सदा राख सप्फा,
घर गली खोर बनही बनौकी।

मनीराम साहू मितान

Thursday 9 July 2020

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212  2

मोर छत्तीसगढ़ राज हावय ।
सोनहा धान के ताज हावय ।।

टोर जाँगर कमा ले तहूँ हा ।
मेहनत ले सजे साज हावय ।।

खून पानी समाये कभू झन ।
जान ले तोर का लाज हावय ।।

आदमी आदमी के हे दुश्मन ।
ये जमाना दगाबाज हावय ।।

छोड़ कल के तैं चिंता फिकर ला ।
जी ले जिनगानी जे आज हावय ।।

हे बताये सबो धर्म गुरु मन ।
नेक इंसानियत काज हावय ।।

मैं गजानंद माथा नवावँव ।
मोर गुरु मोर बर नाज हावय ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
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212 212 212 2 

मान जा बात रे आज झन जा।
हो गये रात रे आज झन जा। 

लोग देखत रथे कब बिछलही।
होय बरसात रे आज झन जा।

साँप बिच्छू असन आदमी हे।
कर दही घात रे आज झन जा। 

दाँव खेले हवय आज बैरी।
घुघवा नरियात रे आज झन जा।

जाल फेंके मया मा फँसाये।
ओ गजब ढात रे आज झन जा।

रात होगे हवय देख भारी।
नइ मिलय भात रे आज झन जा।

बढ़ जथे रात ताकत उखर जी।
खा जबे मात रे आज झन जा। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल- चोवा राम 'बादल '

छत्तीसगढ़ी गजल- चोवा राम 'बादल '

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

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*212  212  212  2*

चीजबस हा खचाखच भरे हे
देख तभ्भो जुठाही करे हे

बाँध के राख हे गाय हरही
रात भर खेत ला वो चरे हे

घेर के हें खड़े कोलिहा मन
शेर हा तो बता कब डरे हे

भूत होवय नहीं खाथे भय हा
जे डरे हे वो सिरतो मरे हे

गाँठ परगे मया डोरी मा अब
छोटकुन बात ला वो धरे हे

सच मा होथे अबड़ सत के ताकत
पानी तक मा दिया हा बरे हे

झन बरस अतको जादा तैं 'बादल'
तोर मारे तो बिजहा सरे हे


चोवा राम 'बादल '
हथबन्द, छत्तीसगढ़

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आख़िर
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212 212 212 2

बंद मुट्ठी हवय खोलबे झन।
देख फोकट के तँय बोलबे झन।   

देह हाड़ा बचाये हे दारू।
बस हवा के चले डोलबे झन। 

ज्ञान के बात मोला न आवय।
शब्द ला मोर तँय तोलबे झन।

आज कल बम हे गोटी सरीखे।
तँय चना जान के फोलबे झन।

तेज तर्रार हे तोर भौजी।
मान सिधवी समझ ठोलबे झन।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-मनीराम मितान

गजल-मनीराम मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212 2

झन बइठ ठेलहा कर कुछू कर।
लोग लइका अपन बर कुछू कर।

गोठ हाबय सुघर जी सिखोना,
चेत कर अउ बने धर कुछू कर।

दे भगा मार अँधियार बइरी,
दीप बाती सहीं जर कुछू कर।

धान पुन के हवय जी बढ़ाना,
खातू माटी असन सर कुछू कर।

हे तपत देख मेड़ो म बइरी,
कोदई कस बने छर कुछू कर।

शांति पाबे नँगत जान ले तैं,
दुःख पर के घलो हर कुछू कर।

काय पाबे अपन ला हरो के,
मूँग छाती म झन दर कुछू कर।

होय रुख ला घलो कष्ट पीरा,
बन के आँसू बता ढर कुछू कर।

बात कहिदे मनी सच गजल लिख,
थोरको आज झन डर कुछू कर।

मनीराम साहू मितान

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे मुतकारिक मुसम्मन अहज़जु  आख़िर
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212 212 212 2

झूठ बाज़ार मा अब बिकत हे
आज अपने अपन ला ठगत हे

चार पइसा कमालेस का तँय
तोर अभिमान भारी दिखत हे

लोभ लालच करत आज मनखे
पाप गठरी ला अब्बड़ भरत हे

देख सरपंच खरतर हे  भारी
ये बने काम करही लगत हे

हाल बेटा के का मैं बतावँव
रोज बेरा ढरे मा उठत हे

तँय रिसाये कहाँ हस रे बादर
देख तो धान मन अब मरत हे

एक दूनी ला जानय नही अउ
'ज्ञानु' कॉलेज मा वो पढ़त हे

ज्ञानुदास मानिकपुरी

Tuesday 7 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

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*212  212  212  2*

का करम मैं करौं तैं बता दे।
संग काखर धरौं तैं बता दे।1

पाँव पहली परौं जीत बिसरौं।
कोन मैंहा हरौं तैं बता दे।।2

काठ कच्चा भिंगौ अउ झड़ी मा।
कइसे बम्मर बरौं तैं बता दे।।3

रात दिन जीव शिव सब हे बैरी।
कोन ले मैं डरौं तैं बता दे।4

मुँह बँधाये हवै पेट उन्ना।
कइसे चारा चरौं तैं बता दे।5


जड़ न डारा न पाना बने हे।
का फुलौं अउ फरौं तैं बता दे।6

कोन दुरिहाय दुख डर दरद ला ।
पाँव काखर परौं तैं बता दे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा (छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
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212 212 212 2

काम कहिबे त टूरा मटकथे।
जोर से पाँव तक ला पटकथे। 

देश मा बाढ़े बेरोजगारी।
काम खातिर हजारों भटकथे।

बाढ़ गे हे नशा खोर भारी। 
रोज गुटखा गटागट गटकथे। 

रूप मा तोर बइहा बने हँव।
फेर भैंगा जे आँखी खटकथे।

तोर घर रात मँय नइ तो आवँव।
ओ गली के कुकुर मन हटकथे।

चार टूरा गली तोर देखँव।
का बता तोर सेती फटकथे?

तय करे नइ सकय जेन मंजिल।
तेन मनखे अधर मा लटकथे।

बीच मा जे करत हे दलाली।
रोज कतकोन ला ओ झटकथे। 

जे दुसर के करे जी बुराई।
ओखरे देह चिखला छटकथे।

बिन सुरक्षा बचाये ल जावय।
तेन दलदल म उँहचे सटकथे।

झन छुआछूत ला मान भाई।
मिल सबो ले मया बस चटकथे। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

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*212  212  212  2*

धन रतन वाले सोये हवे का।
हाथ खाली वो खोये हवे का।1

नूनछुर होय फल मेहनत के।
तन पछीना पलोये हवे का।2

उन्ना कोठी हे गोदाम छलके।
धान बयपारी बोये हवे का।3

माँगे मनमोहना के मया सब।
मन मगन मीरा होये हवे का।4

झूठ के मीत ममता मया हा।
रो रो अँचरा भिगोये हवे का।5

पस्त दिखथे रखइया फसल के।
हरहा बइला पदोये हवे का।6

जे कहे सब ला राखौ  सफाई।
भात खा हाथ धोये हवे का।7

बात इंसानियत के रटे जौन।
आन बर रोटी पोये हवे का।8

बीच मँजधार होके अकेल्ला।
राधा कस कोई रोये हवे का।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल

ग़ज़ल
बहरे मुतकारिक मुसम्मन अहजजु  आख़िर
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212 212 212 2

छोड़ के गाँव जाबे कहाँ रे
कोरा दाई के पाबे कहाँ रे

हाँस के रोज चुपचाप सहिले
कोन ला दुख बताबे कहाँ रे

चार दिन बर मिले जिंदगानी
का पता फिर उड़ाबे कहाँ रे

घपटे अँधियार चारों मुड़ा हे
देख दीया जलाबे कहाँ रे

कंस शकुनी के हावय जमाना
न्याय बर गोहराबे कहाँ रे

बस अपनआप मा हे मगन सब
गोठि दिल के सुनाबे कहाँ रे

सोय राजा इहाँ संग परजा
'ज्ञानु' कतका उठाबे कहाँ रे

ज्ञानु

गजल

गजल

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212 2

पात हे मान मन आन हाबय।
हे बढ़े शान मन आन हाबय।

कोचिया ला कहाँ होय घाटा,
हे नफा जान मन आन हाबय।

झार कोठी हवै सीघ ओकर
हे भरे धान मन आन हाबय।

देख के दीन मन के दशा ला,
देत हे दान मन आन हाबय।

वो पिये बेंच डोली सुते हे,
लात ला तान मन आन हाबय ।

भाट चारन बने हे नफा बर,
हे करत गान मन आन हाबय।

हे चलत बाट सच के मनी हा
पाय गुरु ज्ञान मन आन हाबय।

मनीराम साहू मितान

मुकम्मल गजल- मनीराम साहू

मुकम्मल गजल- मनीराम साहू

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212 2

तैं बरस जा रे पानी बरस जा।
हच तहीं जिन्दगानी बरस जा।

भोंभरा हे तिपत तैं जुड़ो दे,
अब चुहा दे ग छानी बरस जा।

रुख तवाँ के लगत हें बुढाये,
तै ह लादे जुवानी बरस जा।

तोर बिन आज हाबय ग तरसत,
हाँ सबो जीव प्रानी बरस जा।

खेत बाये हवै दनगरा बड़,
मूँद कर तैं सियानी बरस जा।

कर डरे हँन सबो हम तियारी,
काम खपरा पलानी बरस जा।

देख लगगे हवै अब ग अदरा
आव करबो किसानी बरस जा।

तैं रिसाये हवच का मनी ले,
मीत देखा मितानी बरस जा।

मनीराम साहू मितान

गजल- मनीराम साहू मितान

गजल- मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212 2

आय सावन हवय बोल बमबम।
माह पावन हवय बोल बमबम।

धान डोली जगे बाहरा के,
बड़ सुहावन हवय बोल बमबम।

देत हे वो खड़े होय भासन,
बस लुभावन हवय बोल बमबम।

पाट भर हे चलत बैर नरवा,
डरडरावन हवय बोल बमबम।

पाप हिन्सा डगर मा चलत हे,
सच्च रावन हवय बोल बमबम।

हे बिकत हाट ईमान बइला,
खूब दावन हवय बोल बमबम।

वो जमावत हवय दूध रिस के,
मैं के जावन हवय बोल बमबम।

बात धरले मनी तैं सबो के,
जे सिखावन हवय बोल बमबम।

मनीराम साहू मितान

गजल-आशा देशमुख

गजल-आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
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212  212  212  2

भाई दिल्ली अबड़ दूर होगे
स्वार्थ में पद अबड़ चूर होगे।

काम ज्यादा अउ कम हे मजूरी
पेट पापी हा मजबूर होगे

लोमड़ी हा धरे हाथ महुआ
अब्बड़ अम्मट ये अंगूर होगे।

जे रहिस सच धरम के पुजारी।
बेच ईमान मशहूर होगे।

देख चांटी तको ला डरावय।
आज कइसे बड़े शूर होगे।

काम अटके रहिस कई बछर ले
घूस में आज मंजूर होगे।

आज तँय हर बुला काल मँय हर।
शौकिया काम दस्तूर होगे।


आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर

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बहर--212 212 212 2

जब ये सावन ह रिमझिम बरसही
धान हा चोभियाही सरसही

देख के लहलहावत फसल ला
सब किसानन के मन हा हरसही

लकठियाही परब पोरा-तीजा
मन कई मइके कोती लरसही

धान हा माथ-अरोही कुॅंवरहा
सुख सरग साफ सॅंउहे दरसही

भैया सुखदेव हन हम शहर मा
मेंढ़ मा बइठे बर मन तरसही

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

Sunday 5 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*

*212  212  212  2*

कखरो कर आज ईमान नइहे।
देख इंसान इंसान नइहे।।1

नाँव फैले सबे खूँट जेखर।
गाँव घर बीच पहिचान नइहे।2

ऊँच मीनार अमरे गगन ला।
धान बर खेत खलिहान नइहे।3

फँसगे मनखे धरम जात मा देख।
अब कबीरा न रसखान नइहे।4

राज अउ पाठ परजा सँभालै।
राजा के तीर गुणज्ञान नइहे।5

चेंदरा बाँध मनखे फिरे आज।
तन ढँकाये वो परिधान नइहे।6

साँप बिच्छी डरे बाघ भलुवा।
मनखे कस कोई शैतान नइहे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

छत्तीसगढ़ी गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*
*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*
*212  212  212  2*

मान देबे तभे मान पाबे ।
का दया ले बड़े दान पाबे ।।

ढोंग पाखंड मा डूबे दुनिया ।
लोभ मन थामे इंसान पाबे ।।

मान सम्मान हक दे बरोबर ।
ग्रन्थ बड़का वो सँविधान पाबे ।।

गाँव गरुवा घलो अब नँदागे ।
अब कहाँ कोठा दइहान पाबे ।।

ज्ञान शिक्षा धरे दीप जोती ।
नइ बड़े गुरु ले भगवान पाबे ।।

बोल कर्कश कउँवा जुबानी ।
अब कहाँ कोयली तान पाबे ।।

नित गजानंद बाँटव मया ला ।
तब तहूँ जग मा पहिचान पाबे ।।

इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
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212 212 212 2

काम कहिबे त टूरा मटकथे।
जोर से पाँव तक ला पटकथे। 

देश मा बाढ़े बेरोजगारी।
काम खातिर हजारों भटकथे।

बाढ़ गे हे नशा खोर भारी। 
रोज गुटखा गटागट गटकथे। 

रूप मा तोर बइहा बने हँव।
फेर भैंगा जे आँखी खटकथे।

तोर घर रात मँय नइ तो आवँव।
ओ गली के कुकुर मन हटकथे।

चार टूरा गली तोर देखँव।
का बता तोर सेती फटकथे?

तय करे नइ सकय जेन मंजिल।
तेन मनखे अधर मा लटकथे।

बीच मा जे करत हे दलाली।
रोज कतकोन ला ओ झटकथे। 

जे दुसर के करे जी बुराई।
ओखरे देह चिखला छटकथे।

बिन सुरक्षा बचाये ल जावय।
तेन दलदल म उँहचे सटकथे।

झन छुआछूत ला मान भाई।
मिल सबो ले मया बस चटकथे। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- मनिराम मितान

गजल- मनिराम मितान
बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212  212  212 2

पात हे मान मन आन हाबय।
हे बढ़े शान मन आन हाबय।

कोचिया ला कहाँ होय घाटा।
हे नफा जान मन आन हाबय।

झार कोठी हवै सीघ ओकर
हे भरे धान मन आन हाबय।

देख के दीन मन के दशा ला,
देत हे दान मन आन हाबय।

वो पिये बेंच डोली सुते हे,
लात ला तान मन आन हाबय ।

भाट चारन बने हे नफा बर,
हे करत गान मन आन हाबय।

हे चलत बाट सच के मनी हा
पाय गुरु ज्ञान मन आन हाबय।

मनीराम साहू मितान

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

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*212  212  212  2*

धन रतन वाले सोये हवे का।
हाथ खाली वो खोये हवे का।1

नूनछुर होय फल मेहनत के।
तन पछीना पलोये हवे का।2

उन्ना कोठी हे गोदाम छलके।
धान बयपारी बोये हवे का।3

माँगे मनमोहना के मया सब।
मन मगन मीरा होये हवे का।4

झूठ के मीत ममता मया हा।
रो रो अँचरा भिंगोये हवे का।5

पस्त दिखथे रखइया फसल के।
हरहा बइला पदोये हवे का।6

जे कहे सब ला राखौ  सफाई।
भात खा हाथ धोये हवे का।7

बात इंसानियत के रटे जौन।
आन बर रोटी पोये हवे का।8

बीच मँजधार होके अकेल्ला।
राधा कस कोई रोये हवे का।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 4 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

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*212  212  212  2*

पाँव पड़थे जमी मा कहाँ रे।
हाल हावै हमी मा कहाँ रे।1

सत दया आस विश्वास के बिन।
फल मिले तिगड़मी मा कहाँ रे।2

करही पुन्नी असन का अँजोरी।
चाँद हा अष्टमी मा कहाँ रे।3

भोग छप्पन हदर के जे खावै।
जी सके वो कमी मा कहाँ रे।4

मारथे काटथे बनके बैरी।
वो हवै आदमी मा कहाँ रे।5

शांति सत छोड़ के होय पूरा।
काम हा तमतमी मा कहाँ रे।6

कइसे पानी पवन पेट भरही।
धान बाढ़े नमी मा कहाँ रे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

गजल

गजल- दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
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212 212 212 2

कान काबर उठाये हवच तँय।
बात सुन काय पाये हवच तँय।

लोग भूखा हवँय तोर कारण।
आज बिरियानी खाये हवच तँय।

ज्ञान पाये इहाँ लोग आवँय।
सोच मदिरा चढाये हवच तँय।

जीव हत्या कहे तँय बुराई।
आज बकरा पकाये हवच तँय।

तोर जोड़ी बसे दूर देशे।
रूप काबर सजाये हवच तँय? 

काम करके इहाँ जेन खावय।
तेन ला बड़ सताये हवच तँय।

बैर करना कहे तँय बुराई।
बात मन मा दबाये हवच तँय।

शान शौकत दिखाना गजब हे।
धन सबो ला लुटाये हवच तँय।

कोन आही बता तोर घर मा।
लाल मखमल जठाये हवच तँय।

राह काखर निहारे बता दे।
सेंट भारी लगाये हवच तँय।

कोन जाने रहे कब ले भूखा।
कोटना मुँह डुबाये हवच तँय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल-आशा देशमुख

ग़ज़ल-आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
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212   212  212  2


नौकरी के लगे आस भाई
नइ सिफारिश हमर पास भाई

भ्रष्ट सत्ता सिराही कभू तो
दिन बहुरही हे विश्वास भाई

रोग पाछू परे रात दिन हे
जान ले ये नशा नास भाई।

सरसती के कहावत हें बेटा
वो तो लक्ष्मी के हे दास भाई।

तन म छिड़कत हे इत्तर सुगंधी
मन कपट मारे बड़ बास भाई।

बैठ के खाव बारों महीना
काम माँगे ये चौमास भाई।

फोकटे के गरजथे समुन्दर
नइ बुझावय रे ये प्यास भाई।

रोज ऑफिस के चक्कर लगा झन
रख तहूँ आदमी खास भाई।

 शेखचिल्ली करे काय आशा
कर्म लिखथे गा इतिहास भाई।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

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*212  212  212  2*

तोर ले तो गजब आस हावै।
मोर मन तोर रे पास हावै।1

छाये प्लास्टिक जमाना मा अइसन।
लोटा थारी न गिल्लास हावै।2

रोज मातम मनावँव इहाँ मैं।
देख माते  उहाँ रास हावै।3

हात कहिके कुकुर ला भगायेन।
देख सबके उही खास हावै।4

भाये मुर्दा घलो नाक ला आज।
हिरदे धड़के तिहाँ बास हावै।5

हार जाहूँ कहे दौड़ घोड़ा।
खर धरे आस अउ घास हावै।6

साधु सपना सजाये सँवारे।
बस दिखावा के सन्यास हावै।7

राज के होय उद्धार कइसे।
राम के रोज बनवास हावै।8

जे उजाड़े सदा बन बगीचा।
ओखरे घर अमलतास हावै।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

गजल -चोवाराम वर्मा बादल

गजल -चोवाराम वर्मा बादल

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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फूल कस जिंदगी तैं बना ले
सहिके पीरा अपन मुस्कुरा ले

चार दिन के सजे मेला ठेला
घूम फिर के मजा तैं उड़ा ले

फाट छाती जही तोर दुख मा
चल ददा दाई ला सोरिया ले

आही असली मजा गा जिये मा
एको सपना नयन मा जगा ले

हाथ जोरे म हक नइ मिलै जी
बाज कस अब झपट के नँगा ले

साँप खुसरे हवै तोर घर में
मार डंडा भगा जी बँचा ले

एक ले दु भला होथे सिरतो
सोच 'बादल' तहूँ घर बसा ले

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212 212 212 2

नेक मनखे तको हर हपटथे।
देख लोगन ल तुरते सपटथे। 

मान कतको जलनहा इहाँ जी।
देख बाढ़त त रसता खपटथे।

भाग मा जब लिखाये अँधेरा।
साफ अम्बर म बादर घपटथे।

मुँह म रोटी रखे हाँस झन तँय।
आय चुपके बिलइया झपटथे।

देख के तोर दौलत खजाना।
चोर सिधवा बने चुप लपटथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल -,मनीराम साहू मितान

गजल -,मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
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212 212 212 2

कोन कइथे बड़े आदमी ये।
ऊँच मा बस खड़े आदमी ये।

जान पावय नही पर के पीरा,
सच्च दिल के सड़े आदमी ये।

झन बताबे अपन होशियारी,
युद्ध कतको लड़े आदमी ये।

घाम पानी चिटिक नइ बियापै,
देख माटी गड़े आदमी ये।

पोंस राखे हवै खूब लालच,
धन के पाछू पड़े आदमी ये।

पाँव छूले मनी तैं ह ओकर,
सत्य बर वो अँड़े आदमी ये।

मनीराम साहू मितान

गजल-आशा देशमुख

गजल-आशा देशमुख

बहरे मुतदरिक मुसम्मन अह ज़जु आखिर
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212  212  212 2

ऑनलाइन ये गोष्ठी चलत हे।
वाहवाही के खातू पलत हे।

काल बनके तेँ आये करोना
दुःख के दिन हा नइ तो ढ़लत हे।

बीज पानी बिना हे भताये
फ्रीज मा साग भाजी गलत हे।

चोरिया ले भगागे जी मछरी
केंवटा हाथ रोवत मलत हे।

फोकटे आगी बदनाम हावय
लोभ इरखा मा मनखे जलत हे।

धन सकेलत हवँय काल बर सब
येति स्वांसा हा सब ला छलत हे।

आस्वासन धरे मुँह हा शक्कर।
कागजी काम रोजे टलत हे।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
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212 212 212 2

साँच काहत हवँव जान ले तँय।
तोर होही भला मान ले तँय।

जे डगर मा बिछाये हे काँटा। 
ओ डहर में न जा ठान ले तँय।

सुध लमाये हवच जे गली मा।
छोड़ दूसर गली ध्यान ले तँय। 

जब पता हे बहुत हे बुराई।
जिंदगी ला तनिक छान ले तँय।

कोन तोला जलाही पता का।
हे समे दर अपन खान ले तँय। 

पेंड़ जम्मो कटागे शहर के।
छाँव खातिर छता तान ले तँय। 

हे भराये बहुत हे खजाना।
देन आये त ओ दान ले तँय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर

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बहर--212 212 212 2

वक्त हा तोला समझात का हे
तोर भेजा म आमात का हे

जॉंचले दिल लगाये के पहिली
तोर घर- बार औकात का हे

तोला लेगत हवॅंव तोर मइके
तॅंय रिसाये हवस बात का हे

देख तो भोग छप्पन खवइया
तोर बनिहार हा खात का हे

काखरो ले मया हो जही ता
पूछबे झन सगा जात का हे

भींजथौं घण्टों सावन झड़ी मा
ए फुहारा के बरसात का हे

जीत पाइस नहीं दल बदल के
अब समझगे भीतर घात का हे

निज ऊंचाई ले जादा उचक झन
देख ले हाथ अमरात का हे

फूलमाला म सुखदेव जा झन
जस ले जादा ग ममहात का हे

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...