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Sunday 29 November 2020

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


संशोधित


परिवार अउ संस्कार हा अनमोल हे।

काला बताबे आजकल बड़ झोल हे।


कैसे बढ़त हे लोग के बी पी शुगर

मुंह मा करेला नीम कस तो बोल हे।


नापत हवच आकाश धरती ला गियाँ

आबे लहुट के फेर दुनिया गोल हे।


मोहात हे मन  दूर के आवाज मा

आ तीर मा बाजत हवय ये ढोल हे।


कुरसी भले दिखथे अबड़ मजबूत कस

आ देख खाल्हे मा अबड़ जन खोल हे।


होगे हवँय कोंदा इहाँ दू पक्ष मन

झन बीच आ बइहा रे मन बड़ पोल हे।


शरबत समझ के झन तो कुछु आशा गटक

पानी तरी मा भी जहर के घोल हे।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-चोवाराम वर्मा बादल

 गजल-चोवाराम वर्मा बादल


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


 सुख दु:ख हे सबके लिखाये भाग मा

देथे परीक्षा सोन गल के आग मा


संगीत हा इंसान बर वरदान हे

होथे उदासी दूर सुनके राग मा


हे खजाना भोग सब्बो रोग के

अउ शांति मिलथे कामना के त्याग मा


काँटा तको हाबय जरूरी लागथे

रक्षा करे बर फूल के जी बाग मा


नाता बड़े होथे सबो ले प्रेम के

केशव अघा जाथे ग भाजी साग मा


हे देश के कानून मा ये खासियत

वो बाँध लेथे एकता के पाग मा


'बादल' रथे मीठा बचन मा रस अबड़

होथे फरक ये कोइली अउ काग मा



चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

 1,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


चूल्हा ले उठ सब खूँट छाये हे धुँवा।

आशा भुखाये मा जगाये हे धुँवा।1


रतिहा जलिस या फेर काँपिस जाड़ मा।

बन बाट ला  बिहना चुराये हे धुँवा।2


बड़ कोहरा बिहना दिखे जड़काल मा।

घर बाट ला मुख मा दबाये हे धुँवा।3


सिगरेट गाँजा बीड़ी  ले सबदिन निकल।

तनमन के बड़ बारा बजाये हे  धुँवा।4


चिमनी ले निकले ता करे अब्बड़ गरब।

आगास ला सिर मा उँचाये हे धुँवा।5


मिरचा निमक बारे भरम झारे मनुष।

हुमधूप के  देवन ला भाये हे धुँवा।6


चल खैरझिटिया छोड़ के चिंता फिकर।

उप्पर डहर सबदिन उड़ाये हे धुँवा।7


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन 


2212  2212  2212  

  

मन मोर नाचत हे घटा ला देख के। 

तन तोर नाचत हे घटा ला देख के। 


जंगल तरी खुसरे मयूरा हर तको। 

घनघोर नाचत हे घटा ला देख के। 


आगे किसानी दिन मगन हे खार हर।  

सब ओर नाचत हे घटा ला देख के। 


चट-चट जरय  जाही सिरा ये सोंच जी। 

अब खोर नाचत हे घटा ला देख के।  


खेलत हवय अब खोर मा लइका तको । 

कर सोर नाचत हे घटा ला देख के।


ठंडा हवा बन मनचला उड़ियात हे। 

झकझोर नाचत हे घटा ला देख के। 


देखव चिरइया हर तको लहरात हे। 

दे जोर नाचत हे घटा ला देख के। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन 


2212  2212  2212 


अबड़े रहीसी मारथे वो आज कल। 

छान्ही म आगी बारथे वो आज कल। 


काखर भरोसा मा बड़ा अटियात हे। 

डोमी असन फुँफकारथे वो आज कल।  


कतका खजाना हे भराये जेब मा।

जग भर म हाँका पारथे वो आज कल। 


मिल गे हवय हण्डा कहूँ ले लागथे।

दारू गली भर ढारथे वो आज कल। 


काखर भला वो चाहथे ये का पता।

जीतय नही बस हारथे वो आजकल। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुसद्दस सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212


हाँसी ठिठोली देख करथे कोन हा

दुख पीरा कखरो आज हरथे कोन हा


बस दूर अँधियारी करे बर कहिथे सब

दीया बरोबर फेर जरथे कोन हा


कहिथे मिटाना हे उमन आतंक ला

औ जाके सीमापार मरथे कोन हा


चाही जियादा खेत मा सब ला उपज

बन खातू माटी आज सरथे कोन हा


बघुवा सही गुर्रात रहिथे बेटवा 

दाई ददा ला 'ज्ञानु' डरथे कोन हा


ज्ञानु

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन 


2212  2212  2212  


सब जान के अंजान काबर तँय बने। 

रेते नरी बइमान काबर तँय बने। 


करनी सबो हे तोर हमला हे पता। 

सिधवा असन नादान काबर तँय बने। 


मनखे बने जानत रहे हन हम सदा। 

लालच म आ हैवान काबर तँय बने। 


नइ हे कका ताकत तनिक भी देह मा। 

तलवार धर सुलतान काबर तँय बने। 


खोजत रथे तोला सिपाही मन सदा।

सब चोर के पहिचान काबर तँय बने। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-चोवाराम वर्मा बादल

 गजल-चोवाराम वर्मा बादल


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


खजरी चरे कस वो सड़क खउराय हे

पँवरी म भ्रष्टाचार के रउँदाय हे


हावय मया बेटी रतन बर देख तो

बेटा ला सुंदर फ्राक वो पहिनाय हे


वो लागथे बस दूध के धोये असन

चिखला म बड़ अज्ञान के छबड़ाय हे


पथरा धरे हस मारबे झन सोच गा

जेहा उठाही फायदा उकसाय हे


पँवरी ला धरके गिड़गिड़ाइस दोगला

बूता सलटगे देख तो अँटियाय हे


हनुमान ला का रोकलिस करके कपट

वो कालनेमी कसके मुटका खाय हे


 चुपचाप 'बादल' गुनगुनाना सीख जा

गाना मुहब्बत के जगत का भाय हे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


खुद गल अरोये हार ता का काम के।

माँगे मिले प्रुस्कार ता का काम के।1


जल बर ललाये खेत बन अउ बाग हा।

बोहय गली मा धार ता का काम के।2


अँटियात हस अब्बड़ रतन धन जोड़ के।

नइहे सखा दू चार ता का काम के।3


कइथे सबो मन ले ही जीत अउ हार हे।

यदि बइठे हस मन मार ता का काम के।4


कर खैरझिटिया कुछु अपन दम मा तहूँ।

दूसर लगाये पार  ता का काम के।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 26 November 2020

गजल-चोवाराम वर्मा बादल

 गजल-चोवाराम वर्मा बादल


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


रसता मा काँटा हे बिझे चतवार दे

जाहीं अपट पथरा परे हे टार दे


माचिस धरे होबे त अइसे काम कर

अँधियार मा जाके दिया ला बार दे


हे लपलपावत देख वोहा जीभ ला

इरखा के डोमी चाब देही मार दे


जइसे अपन बर चाहथस सम्मान ला

तइसे तहूँ सम्मान अउ व्यवहार दे


मूँड़ी नवाँ के झेल झन अन्याय ला

हे खून हा तोरो गरम ललकार दे


काबर लमाथस बात जे हे फोसवा

दू शब्द के जी ठोंसहा उदगार दे


रहि रहि गरजथस फोकटे 'बादल' अबड़

सावन लगै फुरहुर झड़ी बौछार दे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल- अरुणकुमार निगम

छत्तीसगढ़ी गजल- अरुणकुमार निगम

*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


पथरा के घर मा रहिके तँय पथरा बने

पढ़ के बड़े इस्कूल मा बइहा बने।


तोला पढ़ाए मा नँदागे खेत घर

दाई ददा बर आज तँय करजा बने।


सीखे नहीं चिटिको रे जग-ब्यवहार ला

रट-रट के पोथी ला निचट सुवना बने।


पइसा कमाए बर बसे परदेस मा

संगी जँहुरिया बर घलो छलिया बने।


तोला "अरुण" समझे रहिस भगवान कस

मनखे के चोला मा तहूँ रक्सा बने।


*अरुण कुमार निगम*

छत्तीसगढ़ी गज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

 छत्तीसगढ़ी गज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


बेरा बखत ले पाय हस संज्ञा कलम तलवार के

आशा निवेदन तोर ले हे साथ दे उजियार के


ऑंसू ल अनदेखा करत अन्याय के ॲंगरी धरत

नइहे उचित लिखना कुछू जयगान मा दरबार के


कर जोर के जनता करा सेवा के अवसर पा घलिस

अब धन सकेलत हे अकुत जनता के बाना मार के


मनुवा ला कोन-ए दिस मतर माथा दिखे मतराय कस

तॅंय चिन्ह कलम ओ कोन ये हॉंसत हे महुरा डार के


हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई बौद्ध हो के जैन हो

सुखदेव हर एक नागरिक बर भाव रख परिवार के


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छ.ग.

Sunday 22 November 2020

ग़ज़ल-आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल-आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*



पानी हवा मा हे प्रदूषण प्राण कइसे बाँचही।

अपने उघारे देह तब सम्मान कइसे बाँचही।


पथरा लदागे खेत मा तरिया पटाव त हे घलो

नइहे चरागन गाँव मा दैहान कइसे बाँचही।


शिक्षा बने व्यापार अब लक्ष्मी तिजोरी में भरे

ज्ञानी धरे पोटार के तब ज्ञान कइसे बाँचही।


चोरी करत हे अंग के कई देवता बनके इहाँ

बोली लगे पूजा दया तब दान कइसे बाँचही।


गाड़ी सुवारथ के चढे रिश्ता नता मन छूटगे

रौंदत हवय लालच गरब मुस्कान कइसे बाँचही।


लालच अतिक अब बाढ़गे छोड़े नही तन के तिखा

लकड़ी बिना तरसे चिता शमशान कइसे बाँचही।


किंजरत हवय शैतान मन सेना सिपाही चुप हवय

आशा अबड़ सोचत हवय भगवान कइसे बाँचही।



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

Friday 20 November 2020

ग़ज़ल-आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल-आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*


घर द्वार हा मन जगमग करय चारों डहर उजियार हे

लक्ष्मी पधारे हे उँहा सुनता भरे परिवार हे।


खेती दिखत हे सोन कस कोठी भरत हे अन्न मा

हांसी खुशी घर घर बसे आये बड़े त्यौहार हे।


कातिक अमावस देख के पुन्नी लजावे हे अबड़

बैकुंठ अउ धरती सरग होवत हवय जयकार हे।


खाता बही गल्ला तिजोरी खोल के पूजा करय

मिहनत करम के हाथ मा बाढ़त हवय व्यापार हे।


गूँजय सुआ के गीत अउ गौरा गुड़ी सुघ्घर लगय

खनखन बजत हे धान हा सबके भरे कोठार हे।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


निंदिया नयन मा मोर तो, एको कनी आये नही।

कोठी उना हो या भरे, संसो फिकर जाये नही।1


उम्मर बढ़त जावत हवै, सुख चैन दुरिहावत हवै।

जे बचपना मा रास आये, तौन अब भाये नही।2


सीमेंट मा भुइयाँ पटा, लागत हवै बड़ अटपटा।

बन बाग तक गेहे कटा, कारी घटा छाये नही।3


पत्थर के दिल मनखे धरे, रक्सा असन करनी करे।

कइसन जमाना आय हावै, फूल हरसाये नही।4


अंधेर हे पर देर ना, विश्वाश मनके हेर ना।

पड़थे असत ला हारना, सत ला लगे हाये नही।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'

 गजल-  मनीराम साहू‌ 'मितान'


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


घर द्वार अँगना खोर मा कचरा बने लगथे कहाँ।

धरसा सड़क पग बाट मा पखरा बने लगथे कहाँ।


बनथे बनौकी धीर मा तन मन बिगड़थे क्रोध मा,

जम्मो अपन‌ के बीच मा झगरा बने लगथे कहाँ।


हे सावधानी बड़ जरूरी जब चलन हम बाट मा,

बाहन चलावत राह मा खतरा बने लगथे कहाँ।


चाहे रहय जी भोग छप्पन होय भाजी भात या,

हरि ला करे अरपन बिना सँथरा बने लगथे कहाँ।


जप राम माया एक सँग खुद घात मनखे कर जथे,

खाये महेरी खीर हा सँघरा बने लगथे कहाँ।


जब सोच होथे एक कस मनखे मितानी कर जथें,

सत बाट चलथे तेन ला लबरा बने लगथे कहाँ।


मौसम हिसाबत काम जे करथे सदा सुख पाय जी,

सुन ले मनी दिन‌ झाँझ मा कमरा बने लगथे कहाँ।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

Friday 6 November 2020

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  1212



आमा बँधाय चेर हे

आही रसा हा देर हे।1


जे घर बसय सुमत लगन

लक्ष्मी विष्णु कुबेर हे ।2


केरा फरे कटाय मा

उतरे तभो तो घेर हे 3


पग कान बिन चले सुने

अंतस लगाय टेर हे।4


सुधरे कहाँ समाज हा

दीया तरी अँधेर हे।5


गलती सुधार लव अपन

लहुटव अभी भी बेर हे।6


आशा लगन तेँ माँग ले

ईश्वर लगाय ढेर हे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-अरुण कुमार निगम

 गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून*

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन

     2212      1212


जय जय कहव किसान के

जय जय कहव जवान के।


गढ़ना हवय हमन ला जी

रद्दा नवा बिहान के।


हम प्राण देबो देश बर

मन मा चलव ये ठान के।


भारत के पूत आन हम

सीना ला चलबो तान के।


पुरखा के गोठ ला "अरुण"

चलबो हमेशा मान के।


*अरुण कुमार निगम*

गजल- मनीराम साहू मितान

 गजल- मनीराम साहू मितान


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन 

2212  2212 


घातक अबड़ मॅइता हवय।

तैं जान‌ ये खॅइता हवय।


मनखे सुखी हाबय उही,

जेकर करा सॅइता हवय।


सुख पाय बर दुख हे धरे,

घिरलत बबा चइता हवय।


बाॅटे हवॅय क्षतिपूर्ति उॅन,

बस नाॅव‌ के गॅइता हवय।


सब मा रथे आगू कका,

अबड़ेच खरबइता हवय।


हे पाप बड़ जग मा मनी,

जग मा सहज हइता हवय।


- मनीराम साहू मितान

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212   2212


गाथस बने तँय गाय कर।

दूसर घलो ला भाय कर । 


बाहिर म खाथस रोज के।

घर बर घलो कुछु लाय कर।


फूलत हवय जब देंह हा। 

कमती कभू तो खाय कर। 


छानी चुहत चारो डहर।

खपरा बने लहुटाय कर।


रहि शांत बनही काम हा।

फोकट के झन कंझाय कर।


शिक्षित रहय अब गाँव भर। 

शुभ काम मा अगुवाय कर। 


बेटी मिले सौभाग्य ले ।

सिरतो"अजय" सँहराय कर। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212


सत्ता के बिगड़े हाल हे।

गदहा उड़ावत माल हे। 


समझाले तँय समझय नहीं। 

सब झन के बिगड़े ताल हे।


दाहिज हवय दानव सरिक। 

ससुराल बनगे काल हे। 


चौपट हवय धंधा सबो।

बीतत हवय अब साल हे। 


दोषी निकल गे जेल ले। 

सिधवा के उधड़त खाल हे। 


सिधवा फँसे हे जीभ कस।

रिश्वत खवैया लाल हे। 


बेटी निकल पावत कहाँ। 

रेपिस्ट मन के जाल हे।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212 


आगू बढ़े के ठान ले। 

बढ़ना हवय ये जान ले। 


जीवन हवय संघर्ष जी।

अच्छा बुरा पहिचान ले।


दाई ददा होथे बड़े।

सिरतो म जी भगवान ले।


चिंतन करे ले ज्ञान हा।

रोजे निकलही खान ले।


राजा उही हा आय जी।

जीथे ग जेहा शान ले।


कोनो झुकावव मूँड़ी झन।

जीयव सबो सम्मान ले।


पढ़ लिख बने अउ जाग तैं।

सब कुछ मिलय जी ज्ञान ले।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - मनीराम साहू

 ग़ज़ल - मनीराम साहू


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन

2212  1212


सिरतो मरे बिहान‌ हे।

लबरा कहूॅ सियान‌ हे।


होवय नही भराव‌ जी,

लिलहर बने बॅधान‌ हे।


सारिल‌ जिनिस रखय नही,

ऊॅचा भले दुकान‌ हे।


आगे फसल डुबान मा,

मुड़ ला धरे किसान‌ हे।


कारज सिधय न एक हा,

बस बात मा धियान‌ हे।


बॅचथे कका कमाय ले,

पोट्ठे भले जवान हे।


देखत हवय फॅसाय बर,

फाॅदा धरे मितान हे।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू

 ग़ज़ल - मनीराम साहू


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन

2212  1212


बनकत अपन‌ बना‌ तहूॅ।

रोजे परब मना तहूॅ।


हिजगा लगा कमाय बर,

रुपिया कमा गना तहूॅ।


राखे हवच सकेल धन,

तरिया कुआॅ खना तहूॅ।


छॅइहा बइठ बघार झन,

चिटको घमा रना तहूॅ।


ठाहिल‌ रहे चटख जबे,

जइसे रबर तना‌ तहूॅ।


परहित नफा हवय अबड़,

शिवि कस कभू चना तहूॅ।


लदबद‌ मया मितान‌ के,

मिलके बने सना तहूॅ।


- मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212  1212 


चरचा हे छोर-छोर मा। 

काबर लुकाये कोर मा।  


सब ला लुभा सकत हवस। 

गुण हा भरे हे तोर मा।


खटिया धरे बबा हवय। 

दादी उँघाय खोर मा।  


निदिया कहाँ ले आय जी। 

माथा पिरागे शोर मा।  


सुन के अकल ह आ जथे। 

बदलाव देख चोर मा।  


रोवय नही ओ साग बर।

तन तन खवाय झोर मा। 


कइसे मया मिले "दिलीप"

दिल नइ हवय कठोर मा। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू

 ग़ज़ल - मनीराम साहू


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन

2212  1212


डॅट के बने कमाय कर।

जाॅगर अपन‌ चलाय कर।


आही समे म काम धन,

झन फोकटे उड़ाय कर।


काटत रथच जलाय बर,

रुखवा घलो जगाय कर।


पौष्टिक जिनिस रथे अबड़,

भाजी घलो ल खाय कर।


सेवा जतन गरीब के,

गंगा हरय नहाय कर।


जे सार हे निसार जग,

प्रभु ले लगन लगाय कर।


माॅगय कुछू मितान हा,

दे के मया बढ़ाय कर।


  - मनीराम साहू मितान

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन

2212   1212 


पैरी बजा रिझात हे। 

मोला उहाँ बलात हे। 


कर के श्रृंगार देख ले। 

ओ मोर तिर म आत हे। 


गजरा लगा के बाल मा। 

खोपा बने सजात हे। 


काजर अँजाय आँख मा। 

छतिया हमर कटात हे। 


लाली लगाय होठ ओ। 

लगथे गुलाब खात हे। 


झुमका झुला के कान मा। 

संगीत गुनगुनात हे।  


चुटकी चुटुक बजाइ के। 

झट ले भगाये जात हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212  1212 


सच के बड़ा उजार हे।

अउ झूठ के बहार हे।


पाखंड रूढ़िवाद के

जग मा बहत बयार हे।


अन्याय देख चुप रहे

वो मनखे चाटुकार हे।


नेता बने फिरे बड़ा

पर चाल दागदार हे।


कर लौ मदद गरीब अउ

बेबस जे बड़ लचार हे।


नइ तो कभू मिले इहाँ

मँगनी मया उधार हे।


जिंदा रखौ जमीर खुद

पात्रे कहत पुकार हे।


इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212  1212 


बइठे रथे अलाल हे ।

कुछु कहिबे ता बवाल हे।


अपराधी छूटगे हवय। 

सिधवा के उधड़े खाल हे। 


दाई ददा हे खेत मा।

वोला कहाँ खियाल हे।


बेरा हवय चुनाव के ।

नेता बिछाये जाल हे। 


मुसकुल हवै जी रेंगना।  

आघू मा ठाढ़े काल हे।


कोरोना के कहर हवै।

डर छाय सब के भाल हे। 


सिधवा "अजय" कहाँ मिलय।

बिगड़े सबो के चाल हे। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल --- चोवा राम'बादल'

 ग़ज़ल --- चोवा राम'बादल'


*बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून*

*मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन*

     2212  1212


हालत ल दिल के जाँच ले

टघले हे कतका आँच ले


हावय जहर हर बूँद मा

झन पी खिसक तैं बाँच ले


आगू निकलगे झूठ हा

पल्ला दउँड़  के साँच ले


माथा हा घूम जाही तोर

तैं पूछ झन जी पाँच ले


खसके हवय खबर सबो

इंसानियत के खाँच ले


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --- चोवा राम'बादल'

 ग़ज़ल --- चोवा राम'बादल'


*बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून*

*मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन*

     2212  1212


सँच बोलबे बिगाड़ हे

मनखे के मन दू फाड़ हे


सब चिथ डरिन किसान ला

ठकठक ले बाँचे हाड़ हे


मौसम बिगड़गे अब हवय

बइसाख मा असाड़ हे


चैनल खबर के बंद कर

तिल के बनाये ताड़ हे


गोली चला खड़े हे वो 

अउ मोर कंधा आड़ हे



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू

 ग़ज़ल - मनीराम साहू


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन

2212  1212


नइहे भला लुकाय मा।

मूड़ी अपन‌ झुकाय मा।


बइरी तपत हवय चलव,

आही मजा ठठाय मा।


सिट्ठा घलो सुहाय जी,

खावव कहूॅ भुखाय मा।


लाये हवच उधार जब,

काबर कचर चुकाय मा।


जे बात मन दुखाय हे,

हित हे सबो भुलाय मा।


रखले जमीन पाॅव गा,

नइ तो बनय उड़ाय मा।


मिलथे खुशी मितान ला,

सिरतो कलम चलाय मा।


-मनीराम साहू 'मितान'

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212  1212 


खाथस तहूँ खवाय कर ।

दोस्ती बने निभाय कर। 


भोंकड़ के खवई रोज के। 

सिरतो कभू अघाय कर ।


आथस ते रोज ये डहर। 

घर मोरो तो समाय कर।


बिरछा अधार जिनगी के।

झन काट के जलाय कर। 


माँगत हवय गरीब हा।

कुछु दे दे झन भगाय कर। 


दाई ददा अमोल हे। 

सेवा बने बजाय कर । 


आगी परोस मा लगय।

तुरते "अजय" बुझाय कर।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुसद्दस मखबून

मुस्तफइलुन मुफ़ाइलुन 

2212-1212


भारी हँसी कराय हस

करजा अबड़ लदाय हस


करथस दिखावा का मिलिस

खर्चा अपन बढ़ाय हस


टोरे भरोसा हर बखत 

वादा कभू निभाय हस


कोनो गिरें कहूँ बता 

का ओला तँय उठाय हस


खोजत हवस रे छाँव औ

का पेड़ तँय लगाय हस


भगवान कइसे दै दरस

मन के भरम मिटाय हस


बड़ भागी 'ज्ञानु' तँय हवस

गुरु के चरन म आय हस


ज्ञानु

ग़ज़ल ----आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ----आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून*

*मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन*

     2212  1212


कारज अभी भी दूर हे

पदवी नशा म चूर हे।1


मिहनत लगे मिठास में

देखव फरे खजूर हे।2


हावै सुगंध त्याग मा

बाती सहित कपूर हे।3


करिया भले ये तन रहे

वो तो मया के हूर हे।4


नइ तो भगा सके कुकुर

बनथे उही हा शूर हे।5


बदलत हवे समे घलो

तीरथ बने जी टूर हे।6


आशा निराश झन रबे

मंजिल मिले जरूर हे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-अरुणकुमार निगम

 गजल-अरुणकुमार निगम

*बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122        2122        212


पद रहिस पावर रहिस चमचा रहिस।

पलपलावत हाथ मा पइसा रहिस।


घर मा तुलसी के सुघर पौधा रहिस

वो जमाना मा कतिक एका रहिस।


सोन कस चमकय पसीना माथ 

मा

गोड़ मा चन्दन असन धुर्रा रहिस।


खोद के देखे हवँव मँय डोंगरी

का बतावँव खाल्हे मा मुसुवा रहिस।


बाँटथव दारू-रुपैया गाँव मा

का तुँहर घर सोन के मटका रहिस।


लूट के चल दिस चिरैया सोन के

वो मया के नाम मा धोखा रहिस।


कर भरोसा हार गे घर-द्वार ला

लोग कहिथें ये "अरुण" बइहा रहिस।


*अरुण कुमार निगम*

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा  

बहरे रमल मुसद्दस महजूफ़ 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122  2122  212 


रासता भटके बरोबर लागथे। 

देख ले छइहाँ घलो हर भागथे।  


मोर हालत देख के रोवय नही। 

ठेसरा के बाण जउँहर दाग थे। 


चोर कब घर मा खुसर जय का पता। 

देह सोथे आँख हर पर जागथे। 


मोर बर बासी रखाये काल के। 

ओ अपन बर खीर पूड़ी पाग थे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल ----आशा देशमुख*


*ग़ज़ल ----आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून*

*मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन*

     2212  1212



जड़ ला रखे उखाड़ के

घर के रखे उजाड़ के।1


कइसे रहे मया दया

आदत रखे बिगाड़ के।2


लालच गरब लड़े मरे

सुख ला रखे पछाड़ के।3


कोनो नता न हे सगा

दुख ला रखे पहाड़ के।4


आशीष के तैं पाँव पर

काबर रखे लताड़ के।5


मोती रतन के देश मा

धंधा रखे कबाड़ के।6


आशा हवे ये साँस हा

का मोल होही हाड़ के।7



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून 

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212  1212 


धरके गरब गुमान ला।

धोखा दिये परान ला।


करथे धरा सिंगार जे

दौ मान वो किसान ला।


दौ बेटियाँ ला हौसला

अउ देख लौ उड़ान ला।


मन मा रखौ दया धरम

मीठा रखौ जुबान ला।


मिल संग सब बढ़े चलौ

पाटव कुमत के खान ला।।


उठ जाग नींद ला तहूँ

लाबो नवा बिहान ला।


धर सत्यबोध गोठ नित

बाँधव मया गठान ला।



इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू

 ग़ज़ल - मनीराम साहू


बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन

2212  1212


झन कर बिगाड़ आन के।

हाबय सरू वो जान के।


होही सुफल‌ ग काज हा,

रखले हृदय म ठान के।


हावय कहत हरय बड़े,

करले कदर जुबान के।


का देखना ग दाॅत ला,

बछिया हरय जे दान के।


मनखे उही सुजान जे,

संसो करय बिरान‌ के।


कोनो कहाॅ हे पूर्ण जग,

झन कर गरब गियान‌ के।


देवय असीस मात जे,

ताकत हरय मितान के।


-मनीराम साहू‌ मितान

गजल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गजल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुसद्दस मखबून

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन 

2212 1212


आदत अपन सुधार ले 

झन देर कर बिचार ले


जाँगर चला कमा तहूँ 

आलसपना ल टार ले


पागा सियानी के मिले

अउ का पहिर बघार ले


ठलहा बइठ के झन तहूँ 

फोकट कभू पगार ले


जाथस जिनिस बिसाय बर  

ले 'ज्ञानु' फेर सार ले


ज्ञानु

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुसद्दस मखबून

मुस्तफ़इलुन मुफाइलन 

2212 1212


कखरो कुछू बिगाड़ झन 

घर कखरो तँय उजाड़ झन 


अनमोल जिनगी हे अबड़

भाई बना कबाड़ झन 


नदिया सही बहत रहा 

तरिया सही ग ठाड़ झन 


नइये कुछू ग फायदा

मुर्दा गड़े उखाड़ झन 


 नानुक हवय रे बात हा

कर 'ज्ञानु' तिल के ताड़ झन 


ज्ञानु

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122        2122        212


आदमी सब ले बड़े गुनवान हे।

भूल बइठे पर अपन पहिचान हे।


जन्मदाता नित नवा निर्माण के

सृष्टि रचनाकार भी इंसान हे।


श्रम लगन से छू बता दै आसमां

कर्म से मनखे बने भगवान हे।


ज्ञान के पोथी घलो मनखे रचे

संत गुरु आशिष बचन गुनगान हे।


तंत्र शासन ला घलो मनखे गढ़े

घर गलीचा खेत अउ खलिहान हे।


लोहपथगजगामिनी पक्का सड़क

कारखाना भी मनुज वरदान हे।


तोर श्रम पूजा बरोबर हे मनुज

फेर पात्रे बन फिरे अनजान हे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122        2122        212


आदमी सब ले बड़े गुनवान हे।

भूल बइठे पर अपन पहिचान हे।


जन्मदाता नित नवा निर्माण के

सृष्टि रचनाकार भी इंसान हे।


श्रम लगन से छू बता दै आसमां

कर्म से मनखे बने भगवान हे।


ग्रंथ गुरु साहेब गीता बाइबिल 

खोज मनखे हा करिस विज्ञान हे


तंत्र शासन ला घलो मनखे गढ़े

घर गलीचा खेत अउ खलिहान हे।


रेलगाड़ी बस नहर पक्की सड़क

कारखाना भी मनुज वरदान हे।


तोर श्रम पूजा बरोबर हे मनुज

फेर पात्रे बन फिरे अनजान हे।।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल ----आशा देशमुख*


*ग़ज़ल ----आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून*

*मुस्तफ़इलुन मुफाइलुन*

     2212  1212



जड़ ला रखे उखाड़ के

घर ला रखे उजाड़ के।1


कइसे रहे मया दया

आदत रखे बिगाड़ के।2


लालच गरब लड़े मरे

सुख ला रखे पछाड़ के।3


कोनो नता न हे सगा

दुख ला रखे पहाड़ के।4


दाई ददा के पाँव पर

काबर रखे लताड़ के।5


मोती रतन के देश मा

धंधा रखे कबाड़ के।6


आशा हवे ये साँस के

का मोल होही हाड़ के।7



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा



बुजुर्ग मन के बिम्ब ले रहेंव भाई

आशीष शब्द ल

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


छोड़ के गाँव कहाँ जाबे रे

कोन दुनिया मा ठियाँ पाबे रे। 


ईंटा पथरा के शहर मा बइहा

तँय मया गीत कहाँ गाबे रे।


सोन के मोह मया मा तँय हर

बेच ईमान कतिक खाबे रे।


खेत खलिहान बियारा बारी

जब बुलाही त लहुट आबे रे।


एक बिनती हे अरुण बर संगी

नैन मा भर के मया लाबे रे।


*अरुण कुमार निगम*

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


तोर बर मोर मया भारी हे। 

साठ के पार तभो जारी हे। 


रूप के मोह फँसे झन कहिबे।

मोर बाई ह निचट कारी हे।  


राम के नाम जपे नइ जानय।

रोज के रोज करत चारी हे।  


काट कतकोन कुढो देवत हे।

हाथ मा देख धरे आरी हे।


शौंक बर बेंच डरे हे सब ला।

मोर घर नइ बचे जी थारी हे। 


कोई नारी ल समझ झन अबला।

एक नारी सबो मा भारी हे। 


देख के आँख लड़ाबे भाई।

लाखो मा एक हमर सारी हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


*बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122        2122        212


झूठ के पाला म हे सच जान के

का ठिकाना हे जुबान ईमान के


गोठियाये ला तो अइसे जानथे

के खवा देही करेजा चान के


दिल ले दिल के हे मयासौदा कई

ऑंकड़ा नइहे नफा-नुकसान के


नइ करय इरखा परोसी हा कभू

कर भलाई ओखरो संतान के


अतिक्रमण अंते डहर हे सैंकड़ों

बात हे शमसान अउ दइहान के


न्याय सुख सुविधा सतत सत्ता सहित

होत हे धनवान अउ बलवान के


बोलही सच ये कहॉं सुखदेव बर

हे बिना मुॅंह माथ ऑंखी कान के


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छ.ग.

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22                 


सत्य बर पाँव बढ़ाबे जग मा।

फेर बड़ नाम कमाबे जग मा।


लूट के जाल बिछे हे पग पग

कइसे तँय खुद ल बचाबे जग मा।


कोंन हे तोर परख ले नइ तो

फोकटे चीज लुटाबे जग मा


जब तलक तोर चले ये साँसा

सत्य के साथ निभाबे जग मा


जीत अउ हार बरोबर धर ले

नाव सुख पार लगाबे जग मा।


तँय लगा पेड़ मया के सब बर

बैठ मन छाँव जुड़ाबे जग मा


सुन गजानंद भरोसा रख ले

बड़ गजलकार कहाबे जग मा


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रजज मुसद्द्स मखबून

मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन


2212 1212


देवव खुशी उदास ला

कुरखुॅंद गरीब आस ला


देखव कभू उदार प्रभु

ये बेंदरा बिनास ला


औंछार जल भजे मनुज

दारू भरे गिलास ला


फल के अहार कोन दय

बिन आस के उपास ला


बस्ता के बीच मा धरय

लइका कभू न ताश ला


होवय न चित्र देख के

अफसोस कैनवास ला


'सुखदेव' इत्र नइ ढॅंकय

खोंटा करम के बास ला


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छ.ग.

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122        2122        212


सृष्टि के कण कण छिपे भगवान हे। 

देख पाबे तब जभे पहिचान हे।


फेर बरसा होय आँसों जी अबड़। 

देख आफत मा फ़ँसे अब जान हे।


खाय बर तरसत हवय माता पिता ।

मौज मा बेटा हवय नइ ध्यान हे।


आँखी देखाथस अपन माँ बाप ला ।

पथरा ला पूजत हवस कुछु ज्ञान हे। 


सेवा कर दाई ददा के रोज तैं। 

बेटा बर माता पिता वरदान हे।


कतको दुख आइस तभो ले नइ डिगिन।

पइसा ले बड़का उँकर ईमान हे ।


काम आगे जे "अजय" मुसकुल समय। 

जान ले तैं नेक वो इंसान हे ।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल ---आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ---आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


तँय कभू राम कहानी सुन ले

ज्ञान के बात मने मन गुन ले।


एक ठन गीत अमर कर देथे

रख नवा भाव सहज सच धुन ले।2


बाग में फूल खिले हे सुघ्घर

वीर मन के पाँव बिछे चुन ले।3


भीतरी देख कतिक हे गोटी

धर बने ज्ञान के सूपा फुन ले।4


अब मया ताग कँदत हे आशा

धर नवा ऊन बने से बुन ले।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन


2122  1122  22


दादा दादी कथें नाना नानी

रोज के खा बने आनी-बानी


रस मलाई चिला सोहारी खा

सेव दरमी गोई आमा चानी


बेटा होये म कही राजा हम

बेटी होवय त कही ओ रानी


होही भोकण्ड बने लइका हा

तोर सॅंग मा पिबो कॉंके पानी


आज कुछ शेर लिखे के मन हे

खोज 'सुखदेव' उला बर सानी


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गोरखपुर कबीरधाम छ.ग.

ग़ज़ल ---आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ---आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


आय हे ज्ञान भरे के पारी।

अब नवा बाट धरे के पारी।1


झूठ के शान मिटा देवव अब

साँच के राज करे के पारी।2


सच मया मान जिये घुट घुट के

स्वार्थ के आय मरे के पारी।3


प्रेम के घाव लगावव मरहम

अब गरब द्वेष  जरे के पारी।4


दम्भ के मार कतिक दिन सहिबे

क्रोध ला आज छरे के पारी।5


मारथस लात ददा दाई ला

आय अब पीर हरे के पारी।6


सब डहर देख अमावस छागे

सुन दीया तोर बरे के पारी।7


मखमली सेज सुपेती सूते

बाँस के पाँव परे के पारी।8


गोठ रख सार मया के आशा

मोर मँय मोह झरे के पारी।9



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'

 ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


हे कहाँ ठहरे समे हा संगी

बान तरकस ले चले हा संगी


गीत ला झोंक मिलाके स्वर ला

नइ सुहावय तो कटे हा संगी


जीव लेही असो ये कोरोना

घेंच मा डोरी कसे हा संगी


बंद कब होही बतावयँ कोनो

लूटमारी ये मचे हा संगी


मूँह ताकत हे गरीबा बइठे

लूट खावत हे बड़े हा संगी


मर लगाये तैं हवस तो अँगठा

नइ मिलै गहना धरे हा संगी


सोच 'बादल' तैं अहम झन करबे

टूटथे  पेड़ तने हा संगी


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसद्दस मखबून मुसककन 

फाइलातुन फ़यलातुन फेलुन

2122 1122 22


भटके ला रसता बतादे भाई

नइया ला पार लगादे भाई


गोठिया पीठ के पाछू झन तँय 

बात जें साफ बतादे भाई


हो जथे भीड़ सड़क मा भारी

रोड ले गाड़ी हटादे भाई


देर ले बिहना टुरा सोवत हे

मारके थपरा उठादे भाई


औ कतक 'ज्ञानु' लगावौ चक्कर

आज तो काम बनादे भाई


ज्ञानु

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22                 


बात करु तोर सुने ला परगे।

रात भर माथ धुने ला परगे।


बाँट घर द्वार सबो ला डारे

संग माँ बाप चुने ला परगे


फूटहा मोर करम के दोना

भाग के ताग तुने ला परगे।


झूठ के बदरा दिखत हे भारी

धर सुपा सत्य फुने ला परगे।


धर्म सच कोंन करे अब रक्षा

सुन गजानंद गुने ला परगे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'

 ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


मातु तैं बिपदा के हारी बंदौं

बघवा हे तोर सवारी बंदौं


लाल के टिकली चुनरिया सेंदुर

सिर के तो शोभा हे भारी बंदौं


पाँव पैजनिया बजै वो छुमछुम

बिछिया टोंड़ा के हे तारी बंदौं


शुंभ ला मारे बधे महिषासुर

हाथ मा खाँड़ा के धारी बंदौं


फूल नरियर चढ़ा पूजा करथें

भक्त आ तोर दुवारी बंदौं


हे गरीबी दुखी हाबवँ जननी

देख ले मोर लचारी बंदौं


हे भवानी हे कल्याणी अंबे

सुन ले 'बादल' के पुकारी बंदौं


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


गाँव के गाँव शहर होवत हे। 

देख के खार तको रोवत हे। 


कारखाना बने धनहा डोली। 

आज माटी तको गुण खोवत हे।


गैस चूल्हा म बनत हे रोटी।

आज अँगरा म कहाँ पोवत हे।  


बोल गुरतुर ओ मया के खोगे।

बात मा लोग जहर मोवत हे।  


आज अपराध घरो घर होवय।

देख भगवान तको सोवत हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


चाँद कस रूप धरे गोरी ओ।

रूप बर काय करे गोरी ओ।


बोल मिसरी के डली कस लागे।

होठ ले फूल झरे गोरी ओ।


घाम के दिन म निकल झन जाबे।

भोंभरा पाँव जरे गोरी ओ। 


तोर मिल जाय झलक जोहत हे।

द्वार ले कोन टरे गोरी ओ।


नाम ले ले के सबो पागल हे।

तोर बर रोज मरे गोरी ओ।


चाह थे पर कहे घबरावत हे।

बोले बर लोग डरे गोरी ओ।


भाग खुलजाय मिले जेला तँय।

पाँव मा तोर परे गोरी ओ।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


साँच ला आँच कहाँ आवत हे। 

एक दिन झूठ ह बर जावत हे। 


झूठ कतकोन करे चालाकी। 

एक ना एक घँ पकड़ावत हे। 


पूछ परबे ग अचानक काँही। 

जेन गलती करे घबरावत हे।


चोर पकड़े ल सिपाही घूमे।

भूले भटके ल धरे लावत हे। 


जेन देवत रथे निशदिन धोखा।

लोग अइसन ल कहाँ भावत हे।


मोर घर तोर बसेरा हावय। 

खोजथे लोग कहाँ पावत हे। 


माँग के भीख  गुजारा करथें। 

रोज कुकरी बिसा के खावत हे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


भोरहा हो जथे कइसे करबे। 

चोरहा हो जथे कइसे करबे। 


रात दिन रोत रहे लइका हा। 

कोरहा हो जथे कइसे करबे। 


 भात राधौं भरे बाँगा तब ले। 

थोरहा हो जथे कइसे करबे।


डार लगवार बने डबकाथौं। 

झोरहा हो जथे कइसे करबे।   


मोर कनिहा म अटक जावत हे। 

तोर हा हो जथे कइसे करबे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन


2122  1122  22


ओ कदरदान के ताली लागे

सोनहा धान के बाली लागे


मोर अर्धांगिनी दिल के रानी

सुख सरग साथ म हाली लागे


ओ गहिर गोठ ददा कस करथे

दाई के पोरसे थाली लागे


राखथे बाग बगइचा हरियर 

मोर घर-बार के माली लागे


गिदगिदाए म भरोसा जमथे

हर नवा नोट ह जाली लागे


देख 'सुखदेव' हटा के चश्मा

मोला हर खून ह लाली लागे


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


चाँद कस रूप धरे गोरी ओ।

रूप बर काय करे गोरी ओ।


बोल मिसरी के डली कस लागे।

होठ ले फूल झरे गोरी ओ।


घाम के दिन म निकल झन जाबे।

भोंभरा पाँव जरे गोरी ओ। 


तोर मिल जाय झलक जोहत हे।

द्वार ले कोन टरे गोरी ओ।


नाम ले ले के कका पागल हे।

तोर सूरत म मरे गोरी ओ।


चाह थे पर कहे घबरावत हे।

तोर तिर आय डरे गोरी ओ।


भाग खुलजाय मिले जेला तँय।

राह मा तोर परे गोरी ओ।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'

 ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


ठान ले अउ बने रसता धर ले

जीत जाबे तहूँ मिहनत कर ले


झन भुलाबे गा जनम भुइँया ला

ठाढ़े रुखवा रथे खोभे जर ले


माटी के माटी मा मिल जाही जी

तैं जिंयत ले दिया बनके बर ले


सोन नइये त का होगे भाई

हिरदे मा ज्ञान के धन ला भर ले


देख लेबे बँधा जाही वो हा

प्रेम के डोरी ला झटकुन बर ले


तैं फँदाये परे हस माया मा

नाव हरि नाम हे भव ले तर ले


पेड़ हा फरके लहस जाथे जी

सोच 'बादल'अभी नँवके झर ले


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22                 


ज्ञान के खान कहौं गुरु तोला।

मोर भगवान कहौं गुरु तोला।


झूठ ले दूर रखौ नित जग ले

सत्य ईमान कहौं गुरु तोला।


पा दया तोर बढ़े हँव आगू

हौ कदरदान कहौं गुरु तोला।


देव बलिहार हवय गुरु आगे

योग सत ध्यान कहौं गुरु तोला।


मान यश नाम सबो तँय देये

मोर पहिचान कहौं गुरु तोला।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल ---आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ---आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


बैठ के खाय अटारी बिकथे

शान मा खेत दुवारी बिकथे।


एक दाना नही  हे खाये बर

ये नशा हाट म थारी बिकथे।2


कोन जाने रहे का मजबूरी

देह बाजार मा नारी बिकथे।3


सब डहर पेड़ दिखे हे जंगल

का कहे आज मुखारी बिकथे।4


ये नशा आय अबड़ दुखदाई

लोभ के द्वार जुआरी बिकथे।5


सोन सँग बैठ के चमके पथरा

पान के संग सुपारी बिकथे।6


सोन चाँदी के महल मा आशा

देख कागज मा पुजारी बिकथे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 

बहरे रमल मुसद्दस मखबून मुसककन

फाइलातुन फ़यलातुन फेलुन 

2122 1122 22


दीन दु:खी ला सताना नइये

फोकटे धाक बताना नइये


अइसने आग लगे बुझ जाथे

चारी चुगली के लगाना नइये


दिन गरीबी मा भले गुजरे जी

माँगे बर हाथ बढ़ाना नइये


रोज तकलीफ भले मिल जाये 

राग दरबारी के गाना नइये


हाथ मा नून धरे रहिथे सब

घाँव ला 'ज्ञानु' दिखाना नइये


ज्ञानु

गजल- मनीराम साहू‌ मितान

 गजल- मनीराम साहू‌ मितान


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


श्याम सुखधाम बने लगथे गा।

बोल श्री राम बने लगथे गा।


हाॅ दुनो नाम सुघर तारक हे,

जप सुबह शाम बने लगथे गा।


कट जथे बेर मुहाचाही मा,

बात सॅग काम बने लगथे गा।


चाय के स्वाद घलो अगराथे ,

जाड़ मा घाम बने लगथे गा।


हे अटल जेन डिगय नइ चिटको,

सत्य के खाम बने लगथे गा।


जोंत हा होय नॅगत के सिरतो,

खेत हा लाम बने लगथे गा।


मातु के पाॅव बजत घुॅघरू के,

सच्च छुम‌छाम बने लगथे गा।


कर मनी काज किसानी के तैं,

पा फसल दाम बने लगथे गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22                 


हौसला राख तभे बढ़ पाबे।

जीत के ऊँचा शिखर चढ़ पाबे।


जान ले पीर पराई दुनिया

भाव जन दर्द खुदे पढ़ पाबे।


तँय कलम वीर सिपाही बन जा

फेर इतिहास नवा गढ़ पाबे।


संग धर गोठ सियानी मन के

जिनगी के सार तहूँ कढ़ पाबे।


बन गजानन्द पुजारी सत के

झूठ मा साँच तभे मढ़ पाबे।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22                 


सोज रसता म चले आ जाबे। 

देख के साँझ ढले आ जाबे।  


कोयली कूक अभी पारत हे। 

जइसे ही आम फले आ जाबे।  


तोर रसता ल निहारत रइहँव।

रात के दीप जले आ जाबे।   


घाम के बेर कहूँ आना हो।

आम के छाँव तले आ जाबे। 


मोर हालत म दया झन करबे।

छाती मा मूंग दले आ जाबे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22                 


देश के शान तिरंगा भारत

सबके अभिमान तिरंगा भारत।


केसरी त्याग हवे पहिचानी

वीर पहिचान तिरंगा भारत।


श्वेत सुख शांति दिये जनगण ला

बाँह बज्र तान तिरंगा भारत।


देथे संदेश हरा हरियाली

समृद्धि वरदान तिरंगा भारत।


सुन गजानंद गरब सब करथे

जन बसे प्रान तिरंगा भारत।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल ---आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ---आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


होय बरसात भराये पानी

भाग सबके ग जगाए पानी


भाव मनखे के कतिक हे गहरा

जब समे आय बताये पानी।2


तन भले हे सजे गहना गुरिया

मन मया नैन सजाये पानी।3


भोग छप्पन हा घलो हे सिठ्ठा

मान लोटा मा मढ़ाये पानी।4


बात बोली के लगे जब आगी

घर मया बोल बुझाए पानी।5


जब अबड़ खाय अजीरन होवै

पेट के रोग पचाए पानी।6


द्वार मा आय बड़े या छोटे

पाँव ला धोय मनाए पानी।7


जोर के चीज तिजोरी राखे

सब अबिरथा हे गँवाये पानी।8


मोह के रंग रँगे हे आशा

देह के राख नहाए पानी।9



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन


2122  1122  22



धीरे कन आन ये मन हा होही

रात के बाद बिहनहा होही


मान लिस बात बड़े साहब हा

ओखरो बाप किसनहा होही


प्लेटफारम म उॅंघावत हावय

देश परदेश जवनहा होही


ए कका ए न बड़ा ए एहा

खास पगरैत मितनहा होही


खेत सुखदेव अभी ए भर्री

धान बोंवाय ले धनहा होही


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22                 


आज ईमान कहाँ दुनिया मा।

साँच इंसान कहाँ दुनिया मा।


ढ़ोंग ला थाम सबो बइठे हे

सोच विज्ञान कहाँ दुनिया मा।


हे मचे होड़ बढ़े बर आघू

ज्ञान के दान कहाँ दुनिया मा।


झूठ के राग अलापत हे सब

सत्य के गान कहाँ दुनिया मा।


कब गजानन्द गरीबी मिटही

दीन बर ध्यान कहाँ दुनिया मा।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन


2122  1122  22


कोन शक्कर म कथन पागत हे

लूट ब्यौहार सहीं लागत हे


छोटकन बात म गोली-बारी

गॉंव अपराध डहर भागत हे


मरगे बिश्वास नता हे घायल 

रोजकन बात म बम दागत हे


जबले चूल्हा ह अलग होये हे

सास ले आघू बहू जागत हे


देख सुखदेव नजर हे केती

लोकतन्तर के भये का गत हे


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल- मनीराम साहू‌ मितान

 गजल- मनीराम साहू‌ मितान


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


गोठ एको के ठिकाना नइ हे।

फोकला हे सबो दाना नइ हे।


राॅधथे जी बरा मुॅहू मा अबड़े,

जेब एको धरे आना नइ हे।


गोठ बनकत के कहाॅ धरथे जी,

सच्च भलई के जमाना नइ हे।


हें भुले झार अपन‌ करतब ला,

अब वो संस्कार पुराना नइ हे।


सुन लिखय दीन रपट ला लउहे,

राज अइसन बने थाना नइ हे।


बोल‌ करुवात हे अब मनखे के,

नीक कस एक ठो हाना नइ हे।


हे कहत आज मनी मोहर ला,

छाप पयहा के लगाना नइ हे।


- मनीराम साहू 'मितान'


गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22             


सोज रसता म चले आ जाबे। 

बइठे रइहूँ ते उहाँ पा जाबे। 


जेन भावय नही  फूटे आँखी।

छोड़ अइसन के इहाँ का जाबे। 


घाम मा मोर कहूँ तन जरही।

बन के बादर बही तँय छा जाबे। 


लाल लुगरा फबे तोला गोरी।  

रेंगबे राह गजब ढा जाबे।


चेहरा लाल बहुत होवत हे।

तोर गुस्सा ले लगे खा जाबे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22             


कोन मछरी गरी मा आही जी। 

जेन चारा भरे मुँह खाही जी। 


रात के बार दिया ला रखबे। 

नइ ते पति तोर ओ घबराही जी।  


मान जा बात बिहा करवा ले।

बाद मा ये टुरा अटियाही जी।


जा के जल्दी ते लहुट आ जाबे।

नइ ते दूसर ल ओ छुछवाही जी। 


रोस मा ओ कहे तोला होही।

सोंच के बाद म पछताही जी। 


बात बिगड़े त बना सुमता ले।

नइ ते लाठी ह बरस जाही जी।


जेन बादर ह गरज थे भारी। 

सोच झन ओ कभू बरसाही जी। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


कोटना मा भरे पानी रखबे। 

बाँध के तोर जवानी रखबे। 


काम आही समे निपटाये मा।

सुरता सब तोर कहानी रखबे। 


पूछ सकथे करे का तँय अब तक।

याद सब बात जुबानी रखबे। 


देख झन फूट जवय पानी मा। 

छाय सुग्घर ते पलानी रखबे। 


जाने कब सार निकाले पड़ जय।

संग अपनो ते मथानी रखबे।



रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल ---आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ---आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


खेत मा धान लुवैया खोजय।

छेल्ला हे गाय चरैया खोजय।1


आज के गीत हवय कनफोड़ू

बाँसुरी राग बजैया खोजय।2


चीज तइहा के नँदा जाही का

रीत पुरखा के मनैया खोजय।3


देश ला छोड़ बने परदेशी

गाँव घर द्वार रहैया खोजय।4


पाप कुरसी के तरी अब्बड़ हे

राज के बात लिखैया खोजय।5


देख पग पग मा हवे भटकन जी

साँच हा बाट बतैया खोजय।6


ये मया मान चिरावत हावै

ताग सुमता के सिलैया खोजय।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


पूछ झन मँय ह अभी हँव कइसे। 

बात हे झूठ बता दँव कइसे।


सोन के भाव बढ़े हे भारी। 

वो अँगूठी कहे मँय लँव कइसे।


आज खर्चा बिहा के बाढ़े हे।। 

ज्यादा पइसा ल बटोरँव कइसे। 


मोर दामाद निचट दरुहा हे।

मोर बेटी ल पठोवँव कइसे। 


सास घर आय लड़ावत हावय।

ये मुसीबत ले मे बाचँव कइसे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'

 ग़ज़ल --- चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


ढेर कचरा के लगे हे मन मा

अउ गड़े आँखी हे पर के धन मा


बाँट लेना अभो घर घर जाके

जइसे बाँटस दिया तैं बचपन मा


खोल भीतर के नयन कर दरशन

माँ बिराजे हे सबो धड़कन मा


हाल का पूछना ये दुनिया के

धुँगिया हाबय भरे तो घर बन मा


फोटका फूट जथे पानी के

झन गरब करबे कभू ये तन मा


दोस्त हाबय उही असली जानौ

काम आथे सदा जे अड़चन मा


कइसे मौसम हवे बदले 'बादल'

धुर्रा कइसन हे उड़त  सावन मा



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


मोर अँगना म सगा आये हे। 

कोन टूरी ल भगा लाये हे। 


देख थे खोर ला घेरी बेरी। 

का जनी कोन ल घबराये हे। 


कब के लाँघन हवे पहुना मोरो।

घेंच के आत ले वो खाये हे। 


टूरा हावय भले बिटबिट करिया। 

टूरी ला चाँद असन पाये हे। 


एक दिन घर म पुलिस आ धमके। 

देख मोला बड़ा धमकाये हे। 


का जनी काय करे हँव गलती।

सोच के मन बड़ा पछताये हे। 


जेन अपराध करे पकड़ा थे।

जेल मा जाय के लुलवाये हे।


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल ---आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल ---आशा देशमुख*


*बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन*

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122  1122  22


मीत बिन मन ल मढ़ावय कइसे

लेत बैराग मनावय कइसे11


दाँत के संग रहे ये जिभिया

आय गोटी ल चबावय कइसे।2


प्रेम के रोग अबड़ दुखदाई

बैद कर जाँच करावय कइसे।3


लोग रंगीन लगाये चश्मा

बाट सादा ला दिखावय कइसे।4


जेन मिटकाय हवे सूते कस

फोकटे नींद उठावय कइसे।5


बात बानी हा लगे नइ ओला

भोथरा धार पजावय कइसे।6


धन गुना भाग म उलझे रिश्ता

लोभ हा ब्याज घटावय कइसे।7


जोंक कस चूस के अइठे पइसा

पुण्य के भाग कमावय कइसे।8


भूख के काय धरम हे आशा

भात के जात बंटावय कइसे।9



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल-मनीराम साहू

गजल-मनीराम साहू

 बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


काज उपकार भुलावव झन गा।

मुॅह सुवारथ मा लुकावव झन गा।


खूब हे मोल मया के जानव,

गोठ करुवाय सुनावव झन गा।


मूड़ ले भार रहव‌ जी जागत,

लाय मन‌ ढेर उॅघावव झन गा।


आग अंतस मा रहय माटी हित,

मिल रखव‌ बार बुझावव झन गा।


जब हवय हाथ बना दव कारज,

आज धॅय काल घुमावव झन‌ गा।


होय बढ़वार मनुसता के नित,

फोकटे मार सुतावव झन गा।


फेंक दव कोड़ मनी सॅग मिल के,

बैर के कोठ उठावव‌ झन गा।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन


2122  1122  22


गॉंव मा कोन हमावत हावय

जे अमरबेल जनावत हावय


चार सथरा ल गवाही धरके

हार पथरा म चढ़ावत हावय


पॉंव परलोखिया के पहिचानव

का सुवारथ म ओ आवत हावय


खेत घर बारी दुवारी ॲंगना

भेद भाॅंड़ी ले खॅंड़ावत हावय


हाय!पुतरा ल समझ के छौना

गाय बपुरी ह दुहावत हावय

 

जागरण गीत गजल गा गा के

जाग सुखदेव जगावत हावय


-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


देश के नाँव जवानी होही ।

खून जब देबे कहानी होही। 


पीरा निर्धन के तभे दिखही गा।

तोर आँखी जभे पानी होही। 


काय करना हे बता झन वोला। 

वोला सब याद जुबानी होही। 


रोटी मिलथे कहाँ अब भूखे ला।

बेंदरा मनके सियानी होही।


नइ मिलिस सुख कभू जिनगी भर जी।

दुःख सँग मोर मितानी होही।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212


दिनमान तँय दियना ला बारे तोर बुध ला का कहँव

मन छोड़ के तन ला सँवारे तोर बुध ला का कहँव


उड़गिन चिरइया मन सबो चुग-चुग के चुकता खेत ला

पाछू नँगत सोचे-बिचारे तोर बुध ला का कहँव


माया मा अरझे अउ मया ठुकरा दे घर परिवार के

तँय आरती धन के उतारे तोर बुध ला का कहँव


आधा अधूरा ज्ञान मा विद्वान बड़का बन के रे

बनते उदिम ला तँय बिगारे तोर बुध ला का कहँव


कल-कारखाना घर बसाए बर "अरुण" धनवान के

खलिहान जंगल ला उजारे तोर बुध ला का कहँव


*अरुण कुमार निगम*

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212


माटी बने काया हवय झन कर गरब पहिचान ले।  

सब एक दिन माटी मिले काहत हवँव सच मान ले। 


राजा मरे रानी मरे मरथे प्रजा बाँचय नही। 

फिर का फिकर करबे कका तँय का हरस सच जान ले। 


कखरो कहे ला मान के झन कर कका तँय काम जी। 

अपनो समझ मा सोंच ले का हे सही तँय छान ले।  


रहना हवय सुख चैन से झन कर बुराई काखरो। 

परही छड़ी नइ ते कभू रहते समय मन ठान ले।


बरसात गरमी जाड़ ले तोला बचाही हर समय। 

नइ हे महल घर द्वार ता एकात छपरी तान ले।


घर भूत के डेरा लगे बगरे हवय सामान हर। 

करही जतन घर के बने बाई बिहा घर लान ले। 


रखबे कभू झन चाह ज्यादा हो जथे गड़बड़ सगा।

रइही अधूरा आस ता आबे लहुट समशान ले। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


बइला अघावत नइ हवय भूसा तनिक तँय डार दे। 

पाचन बढ़ाये बर कका तँय नून छीटा मार दे। 


धुँगिया बनत हावय बहुत आँखी तको करुवात हे। 

थोरिक छिड़क के तेल आगी ला बने तँय बार दे। 


लाँघन मरत हावय बहुत बिन काम के कतको इहाँ। 

हर हाथ खातिर खोल के कुछ काम अब सरकार दे। 


करके सियानी तँय बहुत पइसा कमाये हस कका। 

देखत हवस तँय हाल ला थोरिक तहूँ चतवार दे।


दाई गुहारत हन सबो आये हवन हम द्वार मा। 

बन काल कोरोना बढ़े तँय आय विपदा टार दे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212


तन दाम दू कौड़ी हवे अउ कर्म जग अनमोल हे।

कर ले करम सत ला धरे गुरु संत के ये बोल हे।


काबर करे मन लोभ तन के संग कब ये जात हे

पानी सही तन बुलबुला मन मीठ शरबत घोल हे।


अब टेटका कस रंग बदलत हे मनुज कर जात जी

बइठे कुआँ घट टरटरावत मन बने भिंदोल हे।


बनहू कभू झन दोगला पर चार पइसा छीन के

मिलही सजा सब पाप के दुनिया इही तो गोल हे।


बंदन सजा के माथ मा बन के फिरे पंडित बड़े

पात्रे कहे थामे उही जग ढ़ोंग अउ मन पोल हे।



इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212


छत्तीसगढ़ के नाम ऊँचा कर बने मन ठान के।

छलकत रहे सुख संपदा निस दिन कटोरा धान के।


भुइँया इही गुरु संत के बानी कबीरा दास जी

सत जोत गुरु घासी जलाये राह दे गुरुज्ञान के।


तिवरा चना गेहूँ उगे सरसो सुहावन खेत मा

भंडार लोहा सोन चाँदी हे खनिज सुख खान के।


पंथी सुवा करमा ददरिया गीत नाचा नीक हे

होरी हरेली अउ दिवाली हे परब पहिचान के।


पात्रे कहे मिलके बढ़ौ छत्तीसगढ़ के मान बर।

कोनों दिखावय आँख गर तब मार झापड़ तान के।



इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गज़ल --आशा देशमुख*

 *गज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*



आगी धरे पानी धरे जग भीतरी बानी चले।

बइला लगाए टोप ला घूमे रहट घानी चले।


राजा चढ़े हे पालकी मा अउ धरे तलवार ला

संसार भर के भाव गुण लेके धरे ज्ञानी चले।


नानुक रहे गोटी भले पानी डूबा देथे तभो

कतको गरू सामान धर सागर म जलरानी चले।


पउँरी जरे हे घाम मा तन हा ठिठुरथे जाड़ मा

दिनरात के घेरा बने सुख दुख म जिनगानी चले।


धन मान ला चिंता धरे बइठे हवे पोटार के

जग बर सबो सुख ला लुटाके चैन से दानी चले।


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गज़ल -चोवा राम 'बादल*

 *गज़ल -चोवा राम 'बादल*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*


ये तन म जब तक जान हे लड़ना हवय संसार ले

देखौटी ककरो प्यार ले गुस्सा भरे दुत्कार ले


वो बाट जोहत नौकरी के दु:ख पावत हे अबड़

ये जिंदगी हरिया जथे छोटे से तो बैपार ले


तलवार लहरा के अबड़ हारे हवयँ खटकार मन

अउ जय निहत्था पा गइन सत्य के हथियार ले


उल्टा चलागन आय हे आथे हँसी जी देख लौ

हितवा बने हें आन मन अउ दुश्मनी परिवार ले


चट ले जरोथे बोल के का प्रेम वो बाँटत हवै

आगी लगे बुझही कहाँ अंगार हा अंगार ले


सब ठीक हे सब ठीक हे सब ठीक हे झन बोल गा

कनिहा हमर टूटत हवै महँगाई के बड़ मार ले


परबत तको हा डोलथे जब एक हो जाथे मनुज

'बादल' पतेवा नइ हिलै फोकट करे गोहार ले


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गज़ल -चोवा राम 'बादल*

 *गज़ल -चोवा राम 'बादल*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*


अँधियार ला काबर सकेले मोटरा कस जोर के

भर ले तहूँ अंजोर ला अज्ञान बँधना छोर के


दिन रात के चक्का चलत रहिथे बिघन आथे अबड़

छोटे से जरई हा निकल जाथे ये धरती फोर के


लूटत हवै सरेआम रोकै आज वोला कोन हा

डरगे हवैं राही सबो हथियार देखे चोर के


उड़थे हवा मा पाँव धरती मा कभू राखय नहीं

प्रेमी सहीं वो कहिथे ला देहूँ मैं चंदा टोर के


मिरचा ला छोटे जान के तैं हा बिकट के चाब झन

परही अभी पानी पिये ला कसके शक्कर घोर के 


बसगे हवै चितचोर करिया आँखी मा वो मोहना

मुरली बजइया जे लगाथे माथ पाँखी मोर के


धुर्रा उड़त हे बाढ़गे हाबय भयानक ताव हा

भुइँया जुड़ाही आज 'बादल' तैं बरसना झोर के



चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


लागत हवय फिर आय हे चारो डहर बड़ शोर हे। 

चल देखथौं जा के उहाँ ये साल काखर जोर हे।


तँय थोथना ला बोर के खा ले नरी के आत ले। 

पर नइ अघावस तँय कभू  लालच भरे मन तोर हे।  


कतको बता मानय नही करथे अपन मन के सदा। 

खींचत रथे हर बात ला सच जान निच्चट ढोर हे।


राँधे रहे हँव बोकरा खाहूँ बने दमकाय के। 

खा दिस बिलइया हर सबो  बाँचे तको नइ  झोर हे।


बाढ़त करोना हे बहुत वैक्सीन बन नइ पाय हे।

लगथे मचाही रार ये छतिया ह धड़कत मोर हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल-आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल-आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*


संशोधित


सोना नही चाँदी नही असली खजाना ज्ञान हे

कतको लुटाले चीज ला बड़का तो विद्यादान हे।1


मनखे बँटागे  जात मा मजहब धरम के आड़ मा

लावय दिवाली हा खुशी लाये खुशी रमजान हे।2


सब जीव मन बइठे हवे जी सत असत के बाट मा

जतका इहाँ भगवान हे वतका घलो शैतान हे।3


दरबार में जप तप खड़े पूजा हवन अउ प्रार्थना

चिखला सनाये पाँव  तब ले शुद्ध तो ईमान हे।4


भंडार खोली हा भरे जुच्छा हवय व्यवहार हा

गुत्तुर लगय पबरित मया मन मोहथे मुस्कान हे।5


उनमन धरिन हे कारखाना मिल महल व्यापार ला

हावय हमर कर खेत बारी घर भरे धन धान हे।6


अब का रखे हे नाम मा तँय पूछथस परदेशिया

आशा भरे हे जिंदगी सुमता मया पहिचान हे।7


आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

ग़ज़ल-अजय अमृतांशु

 ग़ज़ल-अजय अमृतांशु


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212  2212  2212


हे घाम अड़बड़ जोर के चट चट जरत सब चाम हे। 

कइसे बतावँव मोर दुख अड़बड़ तपत अब घाम हे। 


कुछु बोल देबे गोठ नित 

होना हवय हंगामा जी। 

दोषी डरय नइ आजकल कतको बुरा अंजाम हे। 


धोखा हवय जग मा अबड़ काला बनाबे संगी तैं। 

छूरी बगल मा हे धरे लबरा के मुँह मा राम हे।  


इंसानियत अब नइ दिखय  कलजुग हवय ये जान ले।

इंसान तब मिलही कहाँ हैवान घूमत आम हे। 


खादी पहिर घूमत हवय माला गला मा डार के ।

नामी हवय बस नाम के पर सबसे गंदा काम हे। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212


महिना नवंबर एक तारिख सबला जय जोहार जी।

छत्तीसगढ़ निर्माण सपना मिल करिन साकार जी।


अरपा पखारय पाँव पावन आरती शिवनाथ हा

पूजा करे हसदो नदी इंद्रावती श्रृंगार जी।


आशा बने उम्मीद सबके आज आघू हे बढ़े

गूँजत हवे सबके हृदय संगीत बन ये तार जी।


सुख दुख धरे बितगे बछर सुन आज पूरा बीस हा

कर लौ मनन छत्तीसगढ़ बर होय का उपकार जी।


तनगे इहाँ बड़ कारखाना मील क्रेशर खान हा

तब ला हमर होये कहाँ हे देख लौ उद्धार जी।


भाखा तरसगे मान खातिर अउ किसानी दाम बर।

परदेशिया के फेर बढ़िया हे चलत व्यापार जी।


कहिथे कटोरा धान के छत्तीसगढ़ ये धाम ला।

माथा नवा परनाम भुइयाँ मोर बारम्बार जी।


इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- - मनीराम साहू‌ 'मितान'

 गजल- - मनीराम साहू‌ 'मितान'


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


सब धान‌ पैरा खेत के ये झन बरय करलव परन।

रखलव‌ तुमन चारा बना ये झन‌ बरय करलव‌ परन।


सब नाॅव‌ गॅइता रुख लगा देथव खुला मा छोड़ गा,

राखव‌ जतन रुॅध बाॅध के ये झन‌ मरय करलव परन।


मिल खाव‌ जम्मो बाॅट के कमती रहय या जासती,

लॅगटा दुखर्रा दीन‌ के दुख हा हरय करलव परन।


जीलव भजत प्रभु राम ला दिन‌ चार जिनगी हाॅस के,‌ 

दव‌ छोड़ रद्दा पाप के चोला तरय करलव परन।


मनखे सबो हॅन‌ एक गा तुम खाॅध जोरे मिल चलव,

सुख पाॅय जी झन भाग ककरो  दुख परय करलव परन।


धर मेहनत के बाट ला लेवव जगा खुद भाग ला,

कोठी हा धरती मात के सरलग भरय करलव‌ परन।


बिनती मनी सुन लेव गा झन लाव काॅकर मन कभू,

नित देख सुमता देश के बइरी जरय करलव‌ परन।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

गज़ल -चोवा राम 'बादल*

 *गज़ल -चोवा राम 'बादल*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*


आधा अधूरा आस हे आधा अधूरा जिंदगी

रिश्ता के डोरी टूटगे अउ टूट  गे हे पालकी


काहत रहिस हे गीत गाना राग धरके प्यार के

का प्यार सिरतो सार हे वोमा हवै काबर ठगी


कालेज के लहुटत ले बेटी हा अबड़ डर्रात हे

मनखें सड़क मा हें तभो हिरदे मा हाबय धुकधुकी


इंसान हा इंसानियत के पा जही जे दिन मरम 

सचमुच उही दिन हो जही वोकर सफल गा बंदगी


झूठा निकलथे बाद मा वादा करे खाये कसम

विश्वास होवय अब नहीं लागथे बस दिल्लगी


संस्कार के सब नाश कर दिस आधुनिक औलाद हा

वो बाप ला कहिथे नमस्ते नइ करै जी पै लगी


हे नाथ किरपा कर कभू माँगत हववँ पइँया परे

झट जर जवय 'बादल' के अंतस मा समाये गंदगी



चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुस्समन सालिम 

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212 2212 2212 2212


रिश्ता नता ला आज दुनिया मा निभावत कोन हे

दुख के बखत कखरो इहाँ ढाँढस बंधावत कोन हे


भूले करम अउ हे धरम मनखे इहाँ सब स्वार्थ मा

काँटा परे रस्ता हवय देखव उठावत कोन हे


आवय नशा जड़ नाश के हावय फँसत अउ आदमी

पद पइसा पाँवर के नशा मा थाह पावत कोन हे


दाई ददा अउ गुरु इहाँ साक्षात इन भगवान हे

सच जानके इँखरे तभो सेवा बजावत कोन हे


करमा सुआ पंथी भड़ौनी नाच गम्मत ददरिया

भूले मया के गीत ला सब 'ज्ञानु' गावत कोन हे


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


हमरो बदलही भाग हर अइसन समय आवत हवय। 

सन्देश ले आये हवा मन मोर लहरावत हवय। 


मौसम बदल गे देख ले परिवेश तक सुग्घर लगे। 

आ के चिरइया आँगना संगीत मा गावत हवय। 


हरियाय हे धरती गगन नदिया तको मुस्कात हे। 

बादर गरज बिजुरी चमक अब देख इठलावत हवय।  


रतिहा चमक के चाँद हर अँधियार मेंटत आज हे। 

दिन मा सुरुज ऊर्जा भरे चहुँ ओर दमकावत हवय। 


सागर हिलोरा मार के आकाश छूना चाहथे। 

जेमन पसीना गार थे मंजिल उही पावत हवय।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


*बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212  


खुद जाग के सब ला जगा होही बिहनिया तब कका। 

कर योग तँय आलस भगा होही बिहनिया तब कका। 


पढ़ लिख बने हुसियार बन सब मोह ला तँय छोड़ दे।

लालच म आ के झन ठगा होही बिहनिया तब कका।


बन कोढ़िया झन बइठ तँय चारी करत दिन भर इहाँ।

चल काम मा मन ला लगा होही बिहनिया तब कका। 


मन तोर बड़ अँधियार हे सब के बुरा बस सोंचथस।

आही सुरुज बनके सगा होही बिहनिया तब कका


मन आस रख कर काम तँय मिलही सफलता एक दिन।

अंतस जले जब बगबगा होही बिहनिया तब कका।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल-आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल-आशा देशमुख*


*बहरे रजज़ मुस्समन सालिम*

*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन  *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*

*2212  2212  2212  2212*



लक्ष्मण सही जी गीत माटी के गवैया कोन हे।

कण कण बसे जन जन बसे पीरा चिन्हैया कोन हे।1


फागुन धरे हे रंग आमा डार कुहके कोयली

रग रग खुशी भीगत हवय अइसन भिगैया कोन हे।2


गाड़ी मरारिन हा चढ़े पइसा घलो नइ पास मा

मन के दशा डर भाव ला पढ़के लिखैया कोन हे।3


गहदे तुमा के नार कस ये मन अबड़ झुमरत हवय

पबरित मया के बंधना ढेराअटैया कोन हे।4


बइठे सिंहासन पद गरब रमजे दरी ला पाँव मा

हपटे गिरे मन सँग चलव अइसन कहैया कोन हे।5।


हउँला रखे हे दोहरा तिरिया चलत हे बोह के

गहरा भरे हे भेद गा अइसन लिखैया कोन हे।6


ताजा हवय गोंदा चँदैनी आज तक ममहात हे

घुनही बँसुरिया ला मधुर सुर मा बजैया कोन हे।7



आशा देशमुख

एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'

 गजल-  मनीराम साहू‌ 'मितान'


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


रद्दा अपन चतवार के चलते रहव बढ़ते रहव।

छोड़व फिकर अँधियार के चलते रहव बढ़ते रहव।


होवय नही चिटको कठिन लव ठान मन होही बुता,

अड़गा बिघन सब टार के चलते रहव बढ़ते रहव।


दीया बरय घट प्रेम के हाॅसी खुशी जिनगी चलय,

भिथिया कपट ओदार के चलते रहव बढ़ते रहव।


हे योजना अड़बड़ अकन आवव सबो लेवव‌ नफा,

कहना हवय सरकार के चलते रहव बढ़ते रहव।


हाबय भला सप्फा रखव घर द्वार अउ अँगना अपन,

राखव‌ गली खरहार के चलते रहव बढ़ते रहव।


चंचल‌‌ अबड़ होथे ये मन पोसे रथे तिसना गजब,

सँइता रखव‌ बइठार के चलते रहव बढ़ते रहव।


लिखथे मनी दिल‌ ले‌ गजल करथे दुवा सब बर सदा,

भल बर कथे संसार के चलते रहव बढ़ते रहव।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रजज मुस्समन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलन

2212 2212 2212 2212


कइसे जमाना आय हे लाचार हे दाई ददा

ईलाज पानी बिन दवा बीमार हे दाई ददा


बेटा बहू मन मस्त गुलछर्रा उड़ावय रोज के 

औ एक दाना बर अपन मुँह फार हे दाई ददा


हरियर रहत ले सब चुहकथे रोज अड़बड़ के इहाँ 

जबले बुढ़ापा आय सुक्खा डार हे दाई ददा 


जिनगी खपा देथे अपन उन सोच लइका खुश रहय

औ अबके लइकामन ला लगथे भार हे दाई ददा


सेवा बजाले 'ज्ञानु' जीते जी इँखर तँय खूब रे 

जप तप इहाँ सब ब्यर्थ हे बस सार हे दाई ददा


ज्ञानु

गजल- मनीराम साहू‌ 'मितान'

 गजल-  मनीराम साहू‌ 'मितान'


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


नित दिन कहूॅ भगवान के करबे भजन होही भला।

हिनहर सबो इंसान‌ के करबे जतन होही भला।


दाई ददा हें देव कस इॅकरे चरन मिलही सरग,

झन तैं सता सेवा बजा करले नमन होही भला।


ओखी करत बढ़वार के नरवा नदी झन पाट तैं,

काटॅव नही रुखवा अबड़ करले परन होही भला।


नित रेंग ले कुछ दूर गा ओधय नही ब्याधा कभू,

चंगा बना के राख तैं खुद के बदन होही भला।


जे जान देथे देश हित मरके अमर वो हो जथे

बन‌जा भगत आजाद अउ गाॅधी असन होही भला।


डोलय नही पत्ता घलो भगवान के मरजी बिना,

पर कर्म तोरे हाथ हे कुछ कर मनन होही भला।


सुन ले मनी अति मीठ हा करुहा जनाथे जान ले,

करहूॅ बुता सब नेत के तैं दे बचन होही भला।


- मनीराम साहू‌ 'मितान'

गजल

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