छत्तीसगढ़ी गजल- इंजी गजानंद पात्रे"सत्यबोध"
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
(221 1222 221 1222)
ये माटी सही तन के,अभिमान करे मनखे।
हे कोंन अपन दूसर,पहिचान करे मनखे।।
ले बाँट मया जग मा,हे चार पहर जिनगी।
सब छोड़ इहें जाना,नादान करे मनखे।।
बड़ लोभ करे माया,मन बाँध धरे गठरी।
धन जोर इहाँ ख़ुद ला,धनवान करे मनखे।।
मँय बात बतावत हँव,सुन कान करे खुल्ला।
सतकर्म सदा जग मा,बलवान करे मनखे।।
वो नाम कमाथे जी,अउ मान सदा पाथे।
जे सत्य अहिंसा ला,परिधान करे मनखे।।
हे नाश नशा दारू,घर द्वार सबो उजड़े।
सुख शांति खुदे तन ला,शमशान करे मनखे।।
सत जोत जला पात्रे,धर मानवता दीया।
अब कर्म बनय पूजा,गुनगान करे मनखे।।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*****************************
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
(221 1222 221 1222)
सब पेड़ इहाँ कटगे,अब छाँव कहाँ मिलथे।
बड़ घाम सहे प्रानी,सुख ठाँव कहाँ मिलथे।।
अब बाग बगीचा के,फल फूल सुखागे हे।
छतनार चमेली के,वो नाँव कहाँ मिलथे।।
जब गीत मया गूँजय,हर गाँव गली पारा।
भगवान लगय मनखे,वो पाँव कहाँ मिलथे।।
चौपाल हवय गायब,गय गोठ सियानी हा।
मन मीत जुरे राहय,वो गाँव कहाँ मिलथे।।
परिवार घलो बटगे,अब दूर सगा पात्रे।
जब दर्द मया राहय,वो घाँव कहाँ मिलथे।।
इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"