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Saturday 30 January 2021

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


धरके धीर जे चले ते मनखे धीर हे कहाँ।

देश बर जे मर मिटे ते शूर वीर हे कहाँ।1


साधु रूप धर दनुज किवाड़ खटखटात हे।

सीता छटपटात हे लखन लकीर हे कहाँ।2


तोर मोर फेर मा वतन के बारा हाल हे।

माता भारती के तन बदन मा चीर हे कहाँ।3


हन गियानी कहिके मनखे लोक लाज बेच दिस।

बेच दिस दया मया बचे जमीर हे कहाँ।4


धन खजाना के घमंड मा मरत हे आदमी।

मीत सत मया दया हा मनखे तीर हे कहाँ।5


जेती देख तेती बस जहर के बरसा होत हे।

सबके जे गला मा उतरे मीठ खीर हे कहाँ।6


जीव शिव हा तंग हे मनुष गजब मतंग हे।

मंद पीये मांस खाये नीर छीर हे कहाँ।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


भाव के उफान मा ये डायरी भरत हवे।

दुख दरद हँसी खुशी हृदय तरी झरत हवे।


जेन काठ भीतरी हमाय हे घुना करत।

चूल के धधक धधक ये आग मा जरत हवे।


गाय भैंस नइ रखे नंदात जाय कोटना

गाँव के सुमत मया ल कोन हा चरत हवे।


लोभ मोह बाढ़गे जमाय पाँव रोग हा

दूर होत हे नता  सगा पना ढरत हवे।


खेत खार हे अबड़ तभो जिये गरीब कस

लोभ कोचिया अपन ही जेब ला भरत हवे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212  


जाड़ बाढ़ गे हवे बता नहाये जाय बर। 

का जरूरी हे कका नहाना भी ह खाय बर?


छोड़ के रजाई जाना हर तको न भात हे। 

जान बूझ के मरे ल जाय का नहाय बर। 


हाथ गोड़ काँपथे सुने कका ये जाड़ के।  

कोन हर बनाये जाड़ ला भला सताय बर। 


दिन घलो निकल जथे फुसुर-फुसुर रुके नही। 

ये सुरुज तको बने न आय जी तपाय बर। 


दिन बिताव शॉल ओढ़ भुर्री ताप के भले। 

रात लाद कतको कम हे जाड़ ला भगाय बर।


मुँह तको धुले नही उठे नही हे खाट ले।

रात के पहात ही लड़े बिहानी चाय बर। 


घुरघुरासी लागथे नहाय बस के नाम ले। 

पर रथे तियार मन ह आनी बानी खाय बर।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Friday 29 January 2021

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


मोह के गरी मा मन ला कभू लहन झन दे।

सत मया के मंदिर मा झूठ छल रहन झन दे।1


चाल हा रही बढ़िया हाल ता रही बढ़िया।

काम कर गलत कोनो ला कुछू कहन झन दे।2


कीमती हे पानी पानी हरे जी जिनगानी।

फोकटे कहूँ कोती भी कभू बहन झन दे।3


वीर बनके चलते जा धीर बनके चलते जा।

अति घलो जिया ला जादा कभू सहन झन दे।4


आग राग इरसा के भभके चारो कोती बड़।

मीत मत मया के मीनार ला दहन झन दे।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)



ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


प्यार रंग मा सने फिरत हवस बही बने।

बाप माँ ला भूल गेस कोन ता कही बने।1


ध्यान ला जमा के रख गियान गुण कमा के रख।

लेवना तथे निकलथे दूध जब दही बने।2


मनखे मनके सोच ला समझ सके कहूँ नही।

सबके सब हवे गलत ता कोन हे सही बने।3


हंस के सुभाव देख हाँसथे सबे इहाँ।

कोकड़ा के भेष धर गरी सदा लही बने।4


हाँ नही कहत रहव ग देख ताक के समय।

हर जघा न हाँ बने न हर जघा नही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


पथरा के जिया मोम कभू होय नही का।

अंतस हा बता तोर कभू रोय नही का।1


काटे चिरे के काम करत रोज हे मनखे।

भगवान घलो मन मा मया मोय नही का।2


तैं चील असन आँखी गड़ा रोज डराथस।

थक तोर घलो नैन कभू  सोय नही का।3


मन हा कहूँ हे करिया करे काय ता तरिया।

मन मैल ला सतसंग घलो धोय नही का।4


दाना घलो नइ होय तभो करथे किसानी।

थक हार कमइया हा गहूँ बोय नही का।5


नित डाँटथे फटकारथे बेटा ला बरजथे।

रिस बाँध के रोटी बता माँ पोय नही का।6


कोनो ला कहे कुछ ना मनाये कभू दुख ना।

परिवार के बोझा ला ददा ढोय नही का।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सुख चैन सबो तोर सखा भंग हो जाही।

का आन खुदे से घलो यदि जंग हो जाही।


बन पुरवा बसंती कहूँ बन बाग नचाबे।

बेरंग पड़े जिनगी हा सतरंग हो जाही।


चलबे बने पथ मीत मया सत धरे सबदिन।

डर दुःख दरद तोर निचट तंग हो जाही।


कोठी मा रतन धन रही अउ बाँह मा ताकत।

ता बैरी जमाना घलो हा संग हो जाही।


सब बर मया धरके बढ़े चलबे सबे दिन तैं।

दुश्मन घलो हा देख तोला दंग हो जाही।


चंगा रही तनमन तभे देवारी चमकही।

होरी मा सराबोर सरी अंग हो जाही।


जब घेर लिही गम हा डराही नही मन हा।

गमगीन जिया मा घलो तब उमंग हो जाही।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


चारा के बिना मछरी गरी मा लहे कइसे।

धन कोड़िहा के घर मा भराये रहे कइसे।


छानी ला सजाये मा ठिहा ठौर टिके नइ।

नेवान जे घर के बने तेहा ढहे कइसे।


बड़ बाढ़गे हे गरमी हवा मा नही नरमी।

बिन पेड़ पतउवा के पवन जुड़ बहे कइसे।


घर गाँव गली खोर मा रोवत हवे बेटी।

अतलंग जमाना के सदा वो सहे कइसे।


माँ बाप के करजा हवे बेटा के उपर बड़।

बेटा ला जतन बर ददा दाई कहे कइसे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पाठ प्रेम के सिखाथे गीता अउ कुरान गा,

प्रार्थना अजान पूजा मा भरे इमान गा ।।


कोनो धर्म नइ करे सुन आदमी म भेद रे,

ढोंग बाज मन चलाथे आड़ मा दुकान गा ।।


जात पाँत के लड़ाई नइ भलाई काकरो,

आपसी के भेद छोड़ एकता के गान गा ।।


होथे का अनेकता म एकता इहाँ परख,

संग रहिथे सिक्ख,बौद्ध ,हिन्दू मुस्लमान गा।।


ऊँच नीच भेद छोड़ एक होके तो रहव,

आही संगी मानले तभे नवा बिहान गा।।


क्रांति के मसाल भभका तैं बनेच जोर से,

रूख के अँकड़ ल तो निकालथे तुफान गा।।


विश्व देंखे घूम घूम पाक चीन जर्मनी,

सबले ऊँचा विश्व मा तो भारती के शान गा ।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


गे समे फिरय नहीं चिभिक लगाय काम कर।

कर सकत हवस तहीं चिभिक लगाय काम कर।


काम जे धरे हवस बिगड़ जही का सोच झन,

हे सबो सही सही चिभिय लगाय काम कर।


पड़ अपन बिरान मा पिछड़ जबे गा जान ले,

झन जमा कपट दही चिभिय लगाय काम कर।


पाँच तत्व‌ के बने निसार हे गा देह हा,

नाँव‌ बस‌ जगत रही चिभिय लगाय काम कर।


सब मजा करत हवँय ना‌ सोचबे ये बात गा,

सोच योग्य हँव मही चिभिय लगाय काम कर।


ज्ञान अइसे चीज हे जतिक बँटय बढ़य नँगत,

बाढ़ ये बनय पही चिभिय लगाय काम कर।


करनी हा लिखात हे मितान सुन सबो उँहा,

सब हिसाब हे बही चिभिय लगाय काम कर।  


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


नान कन भले रथे मगर रथे चलाक जी। 

आ जथे दबे-दबे तहाँ करे वो खाक जी। 


बम धरे बड़े-बड़े कथे उठा पटक दुहूँ। 

रोज के डरा- डरा जमा डरे हे धाक जी। 


हाथी सोंचथे ये चाँटी मोर का बिगाड़ही। 

चाँटी चढ़ जथे कहूँ त काट खाये नाक जी। 


जानथव सचिन लिटिल ग मास्टर कहाय जे।  

सेन वार्न हर डरे डराय देश पाक जी। 


नान कन भले रहे ये भुसड़ी हर मगर कका। 

रात भर जगाये खून पी भरे खुराक जी। 


फाँस के गड़े ले रो डरत हवय ये आदमी। 

साँप के जहर ले आदमी मरे चटाक जी। 


नान-नान चीज काम ला करे बड़े- बड़े। 

मान ले दिलीप बात झन समझ मजाक जी। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


रात ला बिताये बर तको ठिकाना नइ हवय। 

राख घर म ले अपन वो अब जमाना नइ हवय। 


कोन चोर बन जही त कोन मार भागही। 

माथ मा कहाँ लिखाये हे फलाना नइ हवय। 


दूर के ममा चले न दूर के बुआ चले। 

साँच पूछबे त आज कल बहाना नइ हवय। 


रोड मा तड़फ-तड़फ मरत हवय कतेक झन। 

रेंगथें कतेक पर गिरे उठाना नइ हवय। 


भूँख मा बिलख-बिलख गरीब रोत हे भले। 

खात हे कुकुर ह आदमी के खाना नइ हवय। 


जे मिले रखे चलव गलत सही न देखिहव। 

होत हे गलत भले जी मुँह बजाना नइ हवय। 


शेर राजा हे जिहाँ उहाँ कहे के काम का। 

चीर फाड़ तक दिही जी आजमाना नइ हवय। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*

*

तुलसी चौंरा हे कहाँ कहाँ बँधाय गाय हे,

द्वार मा कुकुर से सावधान तो लिखाय हे।।


 बाप बेटा मा बता भला कहाँ सुमत हवय,

 नाता रिश्ता हर घलो इहाँ गजब घुनाय हे।।

 

चार दिन के प्यार मा तो लइका होगे हे अँधा,

चार दिन के चांदनी मा बाप मां भुलाय हे।।


 देख ले रसायनिक ये खातु के प्रभाव मा,

 खेत खार मेड़ पार घात तो बँदाय हे।।


रोज रोज वोट माँगे आत हे चुनाव बर,

मंत्री पद के पात पाँच साल ले लुकाय हे।।


दाना पानी देख लोभ मा झँपापे झन कभू,

होशियार हे शिकारी जाल ला बिछाय हे।।


जान ला गँवाय हे जवान मन तो देश बर ,

शान ले तभे तिरंगा आज फरफराय हे ।।


 दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


तीन रंग के तिरंगा हे प्रतीक शान के।

हे कफ़न शहीद वीर हौसला जवान के।


त्याग के अमिट निशानी रंग केसरी हवे।

दे उबाल खून मा गा गीत शौर्य गान के।


श्वेत रंग शांति दे रखे अमन ये देश मा।

बाँधे सुमता अउ सुमत सबो ला एक मान के।


रंग तो हरा कहे हो देश हा हरा भरा।

नारा हिंद जय जवान बोल जय किसान के।


बार बार हे नमन, मसीहा भीम राव ला।

लोक तंत्र के महान ग्रंथ संविधान के।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

रोज के कचर-कचर जे पान खाये आत हे। 

हाल चाल देश अउ विदेश के सुनात हे। 


नेता के हे नाम काम दूसरा करत हवय।

कोन पाय कुर्सी देश कोन मन चलात हे।


जेन हे अमीर नेता ओखरे कहे करे। 

राजनीति हे गुलाम कहिके वो बतात हे। 


कोन देश शक्ति शाली कोन हर गरीब हे। 

एक पान खात जम्मो चित्र वो दिखात हे। 


कोन हे खिलाड़ी जेन खेल मा रमे हवय। 

कोन हे बिकाऊ जेन खेल मा हरात हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


देशभक्त ओ कहाही लोक के जुबान मा

आस्था रखे चलत हे जेन संविधान मा


भावना ल मोर संगी छू टमड़ के देख ले

राष्ट्रगीत मा हे दिल परान राष्ट्रगान मा


शान से धजा तिरंगा लहरे चीरकाल तक

जल म थल म बल सकल म अउर आसमान मा


फूट डारबे कहॉं ले देश भर नता म हें

भोजली कका बड़ा दीदी बबा मितान मा


तैं किंजर किंजर के खोज तोर तरनतारनी

मैं परमपिता के दरश पाए हॅंव किसान मा


जाड़ घाम के फिकर न कष्ट चतुर्मास के

मैं निहारथॅंव प्रभू ल सेना के जवान मा


हे सफल करम धरम कलम के कलमकार के

जिन्दगी के भाग बर लिखे गढ़े गियान मा


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


शान मान बेटी हा माँ बाप के तो लाज हे।

फूल ये गुलाब प्रेम गीत लय ये साज हे।


बेटी रानी लक्ष्मी बाई ज्योतिबा के रूप ये।

वीरता मिसाल जान सादगी के ताज हे।


आसमान छू बताये हौसला के पंख धर

त्याग ममता ला धरे करे महान काज हे।


नव बिहान भूत वर्तमान अउ भविष्य के।

बेटी देश राज के विकास अउ सुराज हे।


झन जले दहेज आग बेटी हा धियान दौ।

सत्यबोध प्रार्थना करे सदा समाज हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

रात कारी ला भगाये जस सुरुज ह आय जी। 

मेहनत सुरुज असन ये जिंदगी के ताय जी। 


चाँद देख के चकोर सोंच मा परे हवय। 

कोन हर बनाये रूप मोर मन लुभाय जी।  


ईंट गारा ले बनाये हस बने भवन कका। 

घर तभे कहाय जब सबो म सुमता छाय जी। 


दीप ला जलाये ले अँधेरा दूर हो जथे।  

मन म जे अँधेरा तेन कइसे के भगाय जी।  


जब किसान छोड़ दय करे किसानी तब बता। 

कोन कारखाना तब ग रोटी ल बनाय जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Saturday 23 January 2021

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बाग बगिया हें सजे बसंत के बहार हे

मस्त हे हवा चलत मतौना खेत खार हे


कोन हे सुभाष कस मरय खपय जे देश बर

राजनीति अब सिरिफ तो लागथे व्यपार हे


आदमी के काम सब हवय अबड़ निसाचरी

हाय राम हाय राम धरती के पुकार हे


जिंदगी मा धूप छाँव दु:ख सुख लगे रथे

 कमती हे अँजोर हा डपट के अंधियार हे


नइ खिराही तोर धन भुखाय ला खवाय मा

रोटी दे खवा भिखारी हा खड़े दुवार हे



छूट ले गा भाई सेवा करके  करजा ला अपन

देहे दाई हा जनम ला दूध के उधार हे


कहना कन्या ला सगा सहीं  गलत हे मान्यता

सोरियाथे बाप हा वो बेटी बर दुलार हे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


धान उगाबों चल सखा धरे कुदाल हल सखा।

बेटा अन किसान के सबे के बनबों बल सखा।1


जेन आन तेन रहिबों कोन कहिही का बता।

फोकटे करत दिखावा रूप झन बदल सखा।2


हे हमर दिमाग मा भराय बड़ गियान गुण।

काय करना आन मनके फोकटे नकल सखा।3


करबों काम ला हमर गा करबों नाम ला अमर।

काम मा कभू दुसर के देन नइ दखल सखा।4


कोठी उन्ना नइ रही खजाना उन्ना नइ रही।

तोर मोर जिंदगी तभो रही सफल सखा।5


बात मान बड़का मनके कर सहीं करम धरम।

पश्चिमी पवन चलत हे तैंहा झन फिसल सखा।6


एक दिन किसान के जवान के मितान के।

नाँव गाँव बड़ चमकही बात हे अटल सखा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


सत्यनाम नाम हा सदा जगत मा सार जी

बानी घासी दास गुरु समाज मा सुधार जी


लोभ झूठ क्रोध चिंता भ्रम अगन समान हे

तोड़ दुख के फाँस जाला सुख डगर निहार जी।


पाँच तत्व काया सृष्टि तोर मोर जान ले।

सत पुरुष ले जोड़ राखौ साँसा के तो तार जी।


सत करम करत कमा ले नाम मान ज्ञान तैं।

मोह के बने महल मा घोर अंधकार जी।


सत्यबोध बाँध ले सुमत के डोर गाँव घर।

भाई भाई मा दिखत हे आपसी दरार जी।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पेट बड़ खनाय हे सही मा अउ अघाय के।

अन्न पानी नइ तको हे भाग मा भुखाय के।1


जेन करजा लेत बेरा पाँव ला परत रिहिस।

तेन नाम लेत नइहे करजा ला चुकाय के।2


लत मनुष के गे बिगड़ नजर घुमाले सब डहर।

काम धाम हे करत पिरीत सत भुलाय के।3


छोट अउ बड़े खड़े लिहाज छोड़ के लड़े।

बाप ला घुरत हे बेटा आँख तक उठाय के।4


रेल चलथे पाट मा ता गाड़ी घोड़ा बाट मा।

आदमी उदिम करत हे रात दिन उड़ाय के।5


राग रंग साधना ये साज बाज साधना।

साधना लगन हरे जिनिस नही चुराय के।6


तोप ढाँक लाख चाहे दिख जथे बुराई हा।

 नइ लगे गियान गुण ला काखरो गनाय के।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


रूप ला निखार गोरी भाग ला सँवार ले। 

आ गे हे बुढापा चेहरा म पेंट मार ले।  


देख-देख मुस्कुरात हे टुरा पलट-पलट। 

वो कहे सके नही तहीं तनिक पुकार ले। 


देख के लजात हे कि देख के डरात हे। 

ये उही टुरी हरे कका बने उतार ले। 


टेस मार के दिखाय हाथ फेर मूँछ मा।

चेंदवा मुड़ी तको ल तोप झन उघार ले। 


हाल सोंच के अपन ते जिनगी झन खराब कर। 

चार दिन बचे समे चलाये बर उधार ले।


बीबी रोज डाँट के कराय काम रात दिन।

बाँचना हे कम से कम डराय बर कटार ले।


आज कल टुरी कहाँ मिलत हवय बिहाय बर। 

देख ले चलत हवे टुरा म दिल ल हार ले।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 ,*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


मोर सँग तो आजकल कलम अबड़ रिसात हे।

भाव भागथे कती इहाँ उहाँ  लुकात हे।


हाथ पाँव जोड़के मुहर लगाय बर कहिन

पाँच साल हो गए हे अंगूठा दिखात हे।


काल काल हे कहत न आय काल हा कभू

ठेलहा वो बैठ के अपन समय गंवात हे।


तेँ रहा अपन जगह हमू हवन अपन जगह

 पाक साफ रह बने कुचाल नइ सुहात हे।


जानथन रे ढोरगा कतिक अकन भरे हवच

देख तो समुंद के चरू घलो लजात हे।


आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


हर समय हरेक के हरेक सॉंस हा कहे

गॉंव के हवा शहर ले शुद्ध साफ स्वच्छ हे


देख धून्ध कोहरा कहे शहर के आदमी

गॉंव मा घलो हमार मेर घर-दुवार हे


मंतरी करा न पूछ जल हवा के हाल ला

ऑंकड़ा बताही कार्यकाल मा फरी बहे


हव कहे म हे भलाई बात ओखरे सहीं

मूर्ख मूड़पेलिहा सो ज्ञान-गोठ नइ लहे


लाम-लाम फेंक के सुजान ला झने थहा

हे गहिरमती उफल जबे ग पॉंव नइ थहे


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


आय हे बसंत देख बाग मा बहार हे।

फूल के सुगंध हा पवन उपर सवार हे।1


मौर बाँध आमा हा मुचुर मुचुर गजब करे।

लाल लाल रंग मा पलास के सिंगार हे।2


भौंरा गुनगुनात हे ता तितली मन लुभात हे।

कूह कूह कूह कोयली करत पुकार हे।3


माड़े हे चना गहूँ मसूर सरसो अरसी हा।

साग भाजी तक सजे हे खेत जस बजार हे।4


आइना सही लगे नदी कुँवा के नीर हा।

बन गगन के रूप मा चमक धमक सुधार हे।5


राग छेड़ के पवन गवात हे नचात हे।

पात सुर मिलात हावे जइसे रे सितार हे।6


घाम नइहे जाड़ नइहे नइहे संसो अउ फिकर।

सबके मनके भीतरी उठे खुशी गुबार हे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

होत हे उजाड़ गाँव छोड़ के न जाव जी।

गाँव ला बनाये बर ग हाथ सब बँटाव जी। 


खेत खार हे अधार जिंदगी चलाये बर। 

बिन फसल बने नहीं ये बात सब बताव जी। 


जान ले जहान हे सम्हाल जिंदगी रखव। 

दारू पी के कार गाड़ी झन कभू चलाव जी। 


जोश-जोश मा कतेक होश खो मरत रथें।

गाड़ी जब चलाव हेलमेट भी लगाव जी।


जिंदगी म दुख कभू त सुख तको मिलत रथे।

नान-नान बात मा तो जान मत गँवाव जी। 


जेन काम कर सकव उही सदा करे करव।

होशियारी मार संगी नाक मत कटाव जी। 


लाल मुँह के बेंदरा दबे ग पाँव आत हे। 

छेंक छाँक के धरव तहाँ मरत ठठाव जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


संत घासी दास गुरु करे सुमत के काम हे।

देश दुनिया मा तभे तो आज ऊँचा नाम हे।


जोत सत्य के जला करे उजाला ज्ञान के

गुरु कृपा मिटे जगत के द्वेष बैर घाम हे।


टोर फाँस जाति पाति धर्म के महानता

नाम ले बड़े सदा ही नेक कर्म दाम हे।


सादा झंडा आसमान हे प्रतीक सत्य के।

शांति चिन्ह प्रेम के तो जोड़ा जैतखाम हे।


घासी गुरु जनम धरे परम पिता के रूप मा

माटी कर नमन पवित गिरौदपुर के धाम हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

212 1212 1212 1212


राख होगे देह हा तभो ले मस्ती छाय हे। 

बिहनिया ले देख फेर दारू पी  के आय हे ।


दुःख सुख लगे रथे ये जिंदगी के खेल मा।

का ले जाही सोंच कोनो जतका भी कमाय हे। 


कुल मिलाके मरना हावे साल भर किसान के। 

पानी हा गिरे नहीं जी खेत हा सुखाय हे। 


चारो कोती झिल्ली कचरा बगरे हे गली गली। 

घूम घूम खात हे तभे मरे जी गाय हे।


धर कलम बहाना छोड़ नाम होही तोर जी।

अब नवा जमाना हे अपढ़ ला कोन भाय हे।


हिंसा करके कोन हा "अजय" बता रहिस सुखी ।

शांति ले रहिन सदा उही हा सुख ला पाय हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्बूज मक्बूज मक्बूज 

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 

212 1212 1212 1212


काम हा बनाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ

चिखला मा सनाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


छाँव कब तलक ले मिलही रोज के कटात हे

पेड़ ला लगाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


आज लइका मन हमर गलत भटक गे रसता हे

राह सत धराय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


झूठ फइले इस कदर भरम मा परगे मनखे मन 

का सही बताय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


जेन सोय सोच  करना का हे कुंभकर्ण बन 

चेचका उठाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


नइ सुनय न समझे गुहार मुखिया जब हमर

ओला बस हटाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


ऊँगली बिकट उठाथे 'ज्ञानु' बात बात मा

आइना दिखाय मा ही बनही चुप्प बइठे नइ 


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

राम नाम के सिवा कहाँ इहाँ अधार हे। 

राम नाम ला जपे तभेच बेड़ा पार हे।  


आदमी बिना कहे रहे सके नहीं इहाँ। 

चुगली मा रमे रथे मिले जहाँ भी चार हे। 


जेन भागथे इहाँ पढ़े लिखे के नाम ले।

रोज के बहाना मार देत जी बुखार हे।


आदमी के बाढ़ आय रोके ले रुके नही।

जेन कोत देखबे कतार ही कतार हे। 


आदमी न आदमी के काम आय आज कल। 

आदमी ही आदमी ल मारथे कटार हे। 


गाँव छोड़ के शहर म जेन भी रहत हवे। 

गाँव के रहइया ला कहे कि वो गँवार हे।


मोर गाँव मोर देश मोर खेत कह जिये। 

तोर जान जाय ले रहे नहीं तुँहार हे। 


खेत खार गाँव छोड़ लोग जात हे शहर। 

कोन देखथे किसान पाँव मा कुठार हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


आँट जा भले अपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।

फेंक के तुरत खपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


काकरो मिटय थकान आय नींद शांति ले,

देबे गा चिटिक थपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


कालनेमी कस कहूँ मिलय कभू गा बाट मा,

जान बइरी के कपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


मुँह लुकाय झन रबे गा करबे जेन‌ धर्म हे,

लेबे हक अपन झपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


मोह रोकही डगर कहत थिरा ले आव तैं,

जाबे झन तहूँ लपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


त्रास हा डराय बर अजीब खेल कर जथे,

देखबे गा झन सपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


सुन मितान बात ला रबे कभू ना स्वार्थ मा,

कर भलाई तैं डपट बढ़ात रहिबे पाँव ला।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


काम हित मा चार के करे बिना बनय नही।

सख जतिक हे कष्ट ला हरे बिना बनय नही।


मूँद झन‌ नयन सखा लड़त हवय ये जान के,

बीच मा सियान बन परे बिना बनय नही।


देख आत नइ हवय समझ हमर ये बात हा,

भूत लात के हवय छरे बिना बनय नही।


तम बढ़ात हे अपन गा शक्ति तैं हा देख ले,

कर अँजोर दीप कस बरे बिना बनय नही।


हे कहत सियान हा भला हवय हमार गा,

बात हे गियान के धरे बिना बनय नही।


सींच तैं पछीना खेत सोन हा उबज जही,

कोठी मोर मात के भरे बिना बनय नही।


हे सवाल शान के तिरंगा के मितान सुन,

जाय प्रान देश हित मरे बिना बनय नही।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 

काल-काल जे करे समे सदा वो खोय हे। 

काल आय ना कभू जे काल आय रोय हे।


आज के समे गवाँ जे काल मा टिके रहे।

जान लव वो जान के समे ले हाथ धोय हे।


नाम तँय कमाय बर नवा-नवा उदिम करे। 

काम एक जे करे उही के नाम होय हे। 


घण्टी ला बजा-बजा जगात हे कभू-कभू। 

भाग के उठाय ले उठे कहाँ वो सोय हे। 


तोर कान ला पकड़ समे परे म लेगही।

बात वो सुने नही जे देंवता पठोय हे। 


तोर काम देख-देख दाई अउ ददा दुखी।

काम कुछ तो कर बने जे तोर ले सँजोय हे। 


आखरी समे रहे सबो भगाय जाय जी। 

कोन पाय कोन खाय कोन हा पचोय हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

212 1212 1212 1212


हो जथे कभू कभू जे गलती वोला जान दे। 

छोड़ के जी भेदभाव तँय सबो ला मान दे। 


अब गरीब झन सुतय जी भूखे पेट देश मा ।

खाय देहू मिल सबो उहू ला रोटी खान दे। 


काम सब अपन करव रखव कभू न द्वेष ला। 

चारी चुगली झन सुनव कभू अपन न कान दे। 


दाई अउ ददा दुनो इलाज बिन मरत हवय। 

काम धाम होत रइही गोली ला तो लान दे। 


माँहगी जमाना कइसे होही सब गुजारा अब।

खरचा हे बड़े बड़े गा तनखा ला तो आन दे।


छोड़ पाप सॉंग देशभक्ति ला सुनव सबो।

हे स्वतंत्रता दिवस जी राष्ट्रगीत गान दे। 


आज बेरा हे "अजय" ले करजा छूट देश के।

मोह माया छोड़ तैंहा देश बर परान दे। 

    

अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


खप जथे सरी उमर नाम कुछ कमाय मा

देर नइ लगय चिटिक कमाय ला गँवाय मा


झन दुखाना दिल अजी गरीब के हँसी उड़ा

हो जही भसम सबो दुखी के निकले हाय मा


बात बात मा उलझ के हो जथे बवाल बड़

बात बिगड़े बन जथे मिला के मन बनाय मा


भेदभाव ला बढ़ा जे एकता ला डस डरिस

राजनीति जीतगे प्रजा ला तो लड़ाय मा


क्रांति के बिगुल बजै दसों दिशा हा काँप जय

संग दे उठा कदम मशाल अब जलाय मा


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पेड़ खूब हे कटत गा कोन‌ दय जवाब ला।

रोज रोज हे घटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


कर डरिन बिगाड़ डार कचरा सब सकेल‌ के,

ताल कूप हें पटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


जल नँगत चुहक डरिन जी छेद कर जघा जघा,

धरती ठाड़ हे फटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


जेन हा करय सुरक्षा घाम तेज ताव ले,

रहि अगास नइ खँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


चेत हे कहाँ चिटिक फसल‌ जहर डरात हे,

घुरवा खाद हे छँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


टोर फोर कर डरिन सबो नदी पहाड़ बन,

अब समुद्र हे डँटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


खाय वो कसम रहिस गा लाहूँ मैं सुधार सब

अब मितान हे नटत गा कोन‌ दय जवाब ला।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*

 *ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


फूल प्रेम के खिले हृदय सदाबहार हो।

बैर भाव तज चलौ सुमत के ना उजार हो।


बोल मा मिठास रख दया मया हो वास मन

दीन हीन अउ गरीब जन परोपकार हो।


छोड़ चाह नाम के कदम बढ़ा ले कर्म पथ।

पाँव पाछु झन हटाबे जीत हो या हार हो।


कर खरीदी साँच के धरे तराजू धर्म हित

लोभ मोह स्वार्थ के लगे जिहाँ बजार हो।


सत्यबोध के कलम चले मिटाये ढ़ोंग जग।

रूढ़िवादी ना कभू जमाना जन सवार हो।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


खान पान बोल चाल सब बिगड़ गे आज के

चेहरा बनावटी दिखत हवे समाज के।


खात हे अलाल मन मरत हे भूख मिहनती

कोन तय करे बताय मोल का अनाज के।


राखले कई बछर तभो बढ़े न मूलधन

सरसरात बाँस कस बढ़े हे पाँव ब्याज के।


ठौर अब दिखे नही कहाँ थिराय साँच हा

हर जगह पुजाय मान गौन चालबाज के।


झोपड़ा तको नही महल के गोठ बात हे

माँगथे दहेज मा ए सी कुलर बजाज के।


आज शुद्ध हे कहाँ मिलावटी हवे हवा।

बड़ उड़ात हे मजाक  रीति अउ रिवाज के।


दल बदल चलत हवें सड़क बनाम खोचका

जेब स्वार्थ के भराय आय दिन सुराज के।


आशा देशमुख

ग़ज़ल --आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


झाड़ फूँक टोटका फँसाय मंत्र जाल मा

जाव रोग के इलाज बर ग अस्पताल मा।


जानले सखा कई रखे चरित्र दोहरा

भेड़िया के हे नियत छिपे हे शेर खाल मा।


गुण बिना बिहाव मा दहेज हे अबड़ सगा

आय चामसुन्दरी परे हे कीरा चाल मा।


नीम होत हे करू तभो समाय गुण अबड़

मीठ गोठ हा तको कपट छुपाय गाल मा।


खुश अबड़ सियान मन दया धरम सिखात हे

पूत देखले इहाँ नजर रखे हे माल मा।



आशा देशमुख

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

212 1212 1212 1212


देश बेच देही इन सबो डहर दलाल हे ।

भूख मा मरे किसान मुसुवा खात माल हे। 


कोन ला सुधारबो समझ सके  न कोई जी

छोड़ देहे लोक लाज देख बिगड़े चाल हे। 


गाड़ी घोड़ा बेधड़क चलत हवे जी रोड मा।

देख के चलव सड़क मा चारों कोती काल हे।


हे गरीब बाप हा दहेज़ दे सकय कहाँ।

बेटी बाढ़गे हवे ददा के बारा हाल हे।


देश के विकास ला घुना हे खात रात दिन।

आजकल सबो जघा जी घूसखोर लाल हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्बूज मक्बूज मक्बूज

212 1212 1212 1212


कुछ हमर सवाल के जवाब दे ला परही अब 

होत ये बवाल के जवाब दे ला परही अब 


मोहा सब जथे इहाँ तुँहर तो सुनके गोठ ला

ये का कमाल के जवाब दे ला परही अब 


सब जिनिस के भाव सुरसा मुँह सही बढ़त हवै

दाल बिन थाल के जवाब दे ला परही अब 


आही के नही इहाँ कभू तो अच्छा दिन हमर

देख फट्टे हाल के जवाब  दे ला परही अब 


आय लोटा धर रहेव भर तिजोरी गय तुँहर

बेहिसाब माल के जवाब दे ला परही अब


का करेव नइ करेव मुखिया पा के कुरसी ला तुमन

'ज्ञानु' पाँच साल के जवाब दे ला परही अब


ज्ञानु

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


ले मया मा बाँध तार पाग ला बना‌ तहूँ।

जाग उठ के भाग चल गा भाग ला बना‌ तहूँ।


आन ये बिरान ये करय इही दुराव‌ बड़,

जोर ले नता कुछू गा लाग ला बना‌ तहूँ।


खाय जेन बाँट के असीस पाय खूब गा,

जे नँगत मिठाय प्रीत साग ला बना‌ तहूँ।


पाय बाढ़ ला सबो पलय फलय सदा सदा,

रंग रंग फूल के वो बाग ला बना‌ तहूँ।


आय रीता हाथ तैं पसारे जाय बर हवे,

लेगबे गा पुन्य दान डाग ला बना‌ तहूँ।


शान हा तिरंगा के घटय नही बढ़े रहय,

तोर माटी ले मया के ताग ला बना‌ तहूँ।


ऊँच नीच झन‌ कभू गा पोंसबे हृदय अपन,

सुन मितान भाव सम के राग ला बना‌ तहूँ।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


रात दिन कमाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।

नेत मिल मढ़ाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


द्वेष भाव बाढ़ ला मुढ़ेर देथे जान‌ लव,

प्रेम गीत गाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


नइ मिलय कुछू कभू गा खींचहू ता गोड़ ला,

खाँध मा चघाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


पाय मोती ला सदा बुड़य गहिर मा जेन हा,

त्रास मन भगाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


आड़ मा हे दम कहाँ तुहाँर बाट छेक लय,

सोच ला उठाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


जे अँड़य टुटय सदा ये बात सत्य सार हे,

माथ ला नवाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


मान लव सबो सखा हे बात सच मितान के,

एकता बनाव भाई भाग ला‌ जगाव गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


टेटका के दौड़ सिर्फ बारी तक ही आय जी। 

मेचका के दुनिया हा कुआँ म ही सिराय जी। 


बात गोपनी रखे कहे पचे न बात हा।

काँव-काँव करके देख सब ला वो बताय जी।


शेर जइसे राजा के जी आन बान शान देख।

भूख लागथे तभो ले घाँस नइ तो खाय जी। 


देख ले पहाड़ कस मिले हे देह हाथी ला । 

हो जथे गुलाम वो दिमाक नइ तो पाय जी। 


हाँव-हाँव ये कुकुर ह दुरिहा ले करत रथे।

बेंदरा कभू-कभू पकड़ मरत ठठाय जी। 


कोयली के बोल मीठ सब्बो ला सुहात हे।  

मन रहे दुखी तहाँ कहाँ कछू ह भाय जी।


लोमड़ी चलाक हे समे परे बदल जथे। 

जेन हे गधा इहाँ उही ल वो फँसाय जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


दोष खुद के नइ दिखै मुँदाय जब नजर रथे

खोंट खोज आन के गिनात का कसर रथे


कुछ कहे करे मा कुछ भरोसा हा टिकै नहीं

एक हे जुबान हा तभे बने कदर रथे


घाव मिट जथे लगे कटार के करे दवा

चोट फेर बात के हरा सरी उमर रथे


रूप रंग दगदगात चाल ढाल खीक कस

सोन के कलश समझ भरे कभू जहर रथे


हाथ पाँव जोर मत सजोर बन नँगा ले हक

चूहथे पसीना तोर माथ तरबतर रथे



प्यार मा पिघल जथे पहाड़ दिल कठोर हा

प्यार सच्चा नइ मरै सदा अमर अजर रथे


साध ले निशाना चेत भटका मत कहूँ

अनमना मा काम धाम हा शटर पटर रथे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


झन‌ कहा लबार बात बोल सत्य बोल गा।

दुख दरद बढ़ात काकरो हृदय न छोल गा।


राख झन कपट कभू नता जगा मया बढ़ा,

बैर भाव ला भुला बनाय गाँठ खोल गा।


हे मनुज उहू सखा बढ़ा मदद मा हाथ गा,

तैं गरीब जान‌ के दबा कभू न कोल गा।


थोक तो बिचार गा सदा करय बिगाड़ ये,

जा कमा बचा तहूँ नशा‌ करे न डोल गा।


सच खदान‌ ज्ञान के हवँय बड़े सियान मन,

झन‌ अपन‌ बघार आजमा कभू न तोल गा।


हे नफा जे बात मा बिसर कभू न दोब झन,

जा सबो ला दे बता खुशी ले पीट ढोल‌ गा।


गोठ छोट हे भले भराय ज्ञान खूब हे,

सुन बने धियान दे मितान जान‌ मोल गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महजूफ़ 

मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन 

221 1221 1221 122


हे कोन पुछैया ग इहाँ दीन दुखी के 

धर हाथ चलैया ग इहाँ  दीन दुखी के 


मिल जाथे अबड़ हाँसी गरीबी के उड़ैया

हे कोन चिन्हैया ग इहाँ दीन दुखी के 


बस मुँह ले जताथे मया सब घाव म मरहम

हे कोन लगैया ग इहाँ दीन दुखी के 


मिल कोनो जतिस स्वार्थ अपन छोड़ के अब

दुख पीरा हरैया ग इहाँ दिन दुखी के 


सब काम बनत ' ज्ञानु' मितानी ल निभाथे

नइ साथ निभैया ग इहाँ दीन दुखी के 


ज्ञानु

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बाप के कमाई बेटा पानी कस बहात हे,

दिन के दारू भठ्ठी रात ताश मा पहात हे।।


एक बूंद पानी नइ तो आत हे गरीब घर ,

मंत्री के कुकुर स्विमिंग पूल मा नहात हे।।


हाड़ माँस तोड़ के  कमाथे गा किसान हर,

खेत मा तभे लगे तो धान लहलहात हे।।


बेटा जीये सौ बछर माँ कामना करत हवै,

माँ मरे तो जल्दी आज बेटा मन दहात हे।।


भाई भाई बीच मा तो आज दुश्मनी  हवै,

भाई देख भाई मन के जी कहाँ सहात हे ।।


गोड़ मा परे हे फोरा जल्दी फोर दार तँय,

जिंदगी रहत ले रे नहीं तो डहडहात हे।।


काम नाम से बड़े ये जानले जगत मा जी,

काम के प्रताप राम नाम महमहात हे।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212


दान पुन करे करव जी पुण्य ला भरे करव। 

पाप के कमाई खाये पाप ले डरे करव। 


लोभ मोह मा फँसे पिसाय देख जिंदगी। 

सोंच के डगर चलव जी सोंच के करे करव। 


चार दिन के जिंदगी म ऊँच नीच पाट के। 

राह मा दुखी मिले त दुःख ला हरे करव। 


जिंदगी के राह मा बहुत झने बिछल जथे।

देख झन गिरय ग थाम हाथ ला धरे करव। 


देश बर लुटाये जान जेन आन बान ले। 

तेन पाँव के तरी म फूल कस झरे करव। 


जेन खून सींच के कमाय मान हे इहाँ।

देख शान ला उँखर जी दाँत झन दरे करव। 


खेल युद्ध देखना तो दूर ले बने लगे।

जोश मा लड़ाई बीच देख झन परे करव।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222 212 1222 


डोकरा के रसता ला डोकरी निहारत हे। 

बड़ भुखाय होही जी कहिके आगी बारत हे। 


बात नइ करत हावय बेटा हर ददा ले जी।

जानथे ददा सब पर जान के तिखारत हे


श्याम खाय माखन ला रोज चोर कस आवय।

खात भर ले खावय फिर गगरी ला कचारत हे। 


केमरा के आगू मुँह बाँधना मना राहय।

आय ले करोना के कोन हर उघारत हे। 


जन्म ले गरीबी के मार ला सहे जे मन।

काम धाम करके वो भाग ला सँवारत हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - दिलीप कुमार वर्मा

 ग़ज़ल - दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


लालच म फँसे तँय कका का पाय ठगा के।   

कतको रखे चिरमोट वो ले जाही नगा के।


माटी के बने देह हा माटी म समाही। 

फोकट करे अभिमान तें मेंकब ल लगा के। 


सोना के महल मोर करा एक रहिस हे।  

जम्मो ल उझारे कका मोला ते जगा के।


पतवार के बिन नाव चलाबे भला कइसे। 

तँय घाट ला हथिया डरे मजदूर भगा के।


बइठे बबा काँपत हवे नइ शॉल न स्वेटर।

जाड़ा ल भगावत हवे बीड़ी ल दगा के। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

 मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


पापी के बढ़त जात हे संख्या ह दिनों-दिन

ये बात ल अलखात हे गंगा ह दिनों-दिन


अन्याय निहारय खुदे के घर म नियकहा

होवत हे शरमसार व्यवस्था ह दिनों-दिन


अश्लील दुअरथी सबे गाना हे सुपरहिट 

ये जान के पछतात हे भाखा ह दिनों-दिन


गुस्सैल घमंडी हठी मुड़पेल निरंकुश

होवत हे सबे देश के सत्ता ह दिनों-दिन


रिस्ता नता के बीच म बिस्वास मया के

कमजोर परत जात हे धागा ह दिनों-दिन


जननी के अनादर समे दिन-रात करत हे

बाढ़त हे अनाचार के घटना ह दिनों-दिन


बयपार नशा के बढ़े जस नार लमेरा 

पहिदन लगे घर-घर जुआ सट्टा ह दिनों-दिन


होवत हे धरम-जाति के नित गोठ उखेनी

समता के मरत जात हे आशा ह दिनों-दिन


सुखदेव गरीब आदमी के पेट उना हे

बड़हर के भरत जात हे ढाबा ह दिनों-दिन


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल-अरुणकुमार निगम

गजल-अरुणकुमार निगम


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


राजनीति आज के बजार हाट कस लगे

हर दुकान के रिवाज लूट-पाट कस लगे।


गाँव छोड़ के मजूर मन चलिन शहर डहर

गाँव रोजगार बिन मसान घाट कस लगे।


आम आदमी के भाग मा बजट के सुख कहाँ

नाम के मिले जे छूट भेल-चाट कस लगे।


फूँक झोपड़ी अपन शरण मा सन्त के चलव 

संत के बचन सदा सरग-कपाट कस लगे।


देश के अनेकता मा एकता हवै "अरुण"

तोर काशमीर मोर मैनपाट कस लगे।


*अरुण कुमार निगम*


(कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे गीत के धुन गुनगुनाये ले ये बहर मा लिखना आसान होही)

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


चल बाट धरम के बने तकदीर बनाले।

फफरी हवे जस‌ तोर गा दलगीर बनाले।


नइ भाय कभू बात जे सुनके लगे करुहा,

सहँराय सबो बोल‌ ला तैं खीर बनाले।


तैं खात हवस भटका चलत मोह डगर मा,

जप राम कभू श्याम जी मन थीर बनाले।


बलवान‌ नँगत के हवे अक्षर ये अढ़ाई,

पबरित मया मन्दिर ला हृदय तीर बनाले।


सेवा बजा माटी के गा कर्तव्य निभा ले,

नाँगर चला खुद आप ला तैं बीर बनाले।


जाथे नठा गा काम हा लउहा करे ले बड़,

तैं बाँध के सँइता बुता ला धीर बनाले।


बन जा मनी छानी दुखी ला छाँव करे बर,

जाहय गा सँवर जिनगी ये तन कीर बना ले।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 *बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


विश्वास करे ता करे काकर ये जमाना,

थाना के सिपाही ह तो लूटत हे खजाना।


माँ बाप ला जीयत मा रे डंडा ले तैं मारे,

का होत मरे बाद रे गंगा में नहाना।।


वो भूख से मरथे करे जो काम किसानी,

लाला के तो कोठी मा ठसाठस भरे दाना।।


मतलब के बँधे डोर मा हे आज के मनखे ,

बस नाम के रहिगे हवै रिश्ता के निभाना।


सुख भोग करे संग मिले आज हे कतको,

दुर्गा कहाँ संगी भला दुख मा तैं बताना।।

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


आगे नवा गा देखते मा साल बदलगे।

जुन्ना हा भगागे गा हमर हाल बदलगे।


चक्कर परे हाबय कका निन्यानबे के सच,

कीरा परे हे चाल बुढ़त काल बदलगे।


वो बात ला मानय बने जी दुलरू श्रवण कस,

जब ले बहू आये हवे वो लाल बदलगे।


हाबय जी जमाना हा मिलावट के अभी कुन

खाँटी कहाँ पाहू सबे अब माल बदलगे।


बनगे हवे जी काल जिनावर के मनुज मन,

ढिल्ला हवें सब गाय जी गोपाल बदलगे।


पाइन नही गा जान कुछू छोट मछरियन,

फँदगें सबो केवट के लगे जाल बदलगे।


पाबे कहाँ अब साज गुदुम मोहरी के धुन,

छत्तीस गढ़ी के मनी सुर ताल बदलगे।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


बनके बड़े अगुवा‌ सबो बइमान लहुटगें।

लंगू सँगे झंगू सबो धनवान‌ लहुटगें।


बल पाँय हवें खूब कहाथें सरू ओमन,

देखव जमा के सींग गा मरकान लहुटगें।


माथा लगा चंदन बने उँन बाबा फिरँय गा,

जानँय नही अड़हा सबो गुन खान लहुटगें।


बसगें जा शहर मा हरें गाँवे के मनुज कुछ,

लइका सबो खेलाय गा अनजान लहुटगें।


चोराँय गा भुट्टा फरे बारी के अबड़ उँन,

भोगाय हें बड़ देख जी अब डान लहुटगें।


उँन आँय जी बाँको रहें बगरी घलो अबड़े,

दुबराज कहाथें सबे निक धान लहुटगें।


बोइस मनी मिहनत ले सबे खेत अपन गा,

होगें चरी सिरतोन जी गउठान लहुटगें।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


साँचा बनाके चीन ले जापान निकलगे।

पथरा म छिनी हा पड़े भगवान निकलगे।


कोंदा कहे भैरा सुने सब भेद छुपाये

माटी के बने कोठ के मुँह कान निकलगे।


पूजा करे संसार हा भगवान समझ के

ये फूल कली देखके शैतान निकलगे।


ये सोन कहे मोर सही कोन चमकही

पूँछी घुमाके आग ला हनुमान निलकगे।


बैठे हे ददा ज्ञान के ऊंचा हे सिंहासन

धन का करे बेटा इहाँ दरबान निकलगे।


दस गाँव के मुखिया रहे मारे हे फुटानी

जनता के अँगूठा तरी सब शान निकलगे।


ये बात पते के हवे सुनले बने आशा

रक्षा करे बर जुल्म ले संविधान निकलगे।


आशा देशमुख

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


निर्धन के कभू  दुःख दरद देख हरे कर। 

जतका हो सके तोर ले तैं सेवा करे कर। 


मनखे बड़े होथे बने कारज करे ले सुन।

सिरतो हवे ये बात ला गँठिया के धरे कर।


अगुवा घलो पछवा जथे बेरा कहे तोला। 

घन घोर हे अँधियार हा बन दीया बरे कर।


रखवारी मा महतारी के सब चीज लुटा दे। 

होथे बड़े जी देश हा चिंता मा मरे कर। 


चलना हवे सच्चाई मा तँय सोंच समझ ले। 

कतको रहे मुसकुल भले झन थोर डरे कर। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 ग़ज़ल - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*

*221 1221 1221 122*


घर गाँव गली खोर ह वीरान पड़े हे।

बिन दाई ददा जिंदगी सुनसान पड़े हे।


चौपाल गुड़ी गोठ नँदावत हे दिनों दिन

बिन गरुवा बिना गाय के दइहान पड़े हे।


मतवार सबो आज डगर झूठ थामे

लाचार दुखी नित्य ही ईमान पड़े हे।


परदेशिया उद्योग लगा राज करत हे

अउ देख हमर भाग म शैतान पड़े हे।


मझधार खड़े नाँव सदा तोर गजानंद

पतवार खुशी बीच म तूफान पड़े हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222  212  1222

बिन बुलाय पहुना हर जान के पदोवत हे। 

बैठ खाय तनतन ले तान के पदोवत हे।  


खाय बर तो हक्का हे जानथौं मगर हद हे।

आधा रात के मछरी लान के पदोवत हे।


सास मोर नइ भावय फेंक देथे खाना ला।

जानथौं बने हे पर ठान के पदोवत हे।


चार दिन ह नइ होए हे सड़क बने संगी।

बीच राह मा गड्ढा खान के पदोवत हे।


नाक के नथनिया ला नाक मा रहन दे वो। 

तोर झूले झुमका ये कान के पदोवत हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212  1222  212  1222 


भीख मांग जीयत हे राम के बहाना मा।  

रोज दारू पीयत हे शाम के बहाना मा। 


पाँव घर म नइ राखय घात खोर किंजरा हे।  

रात भर वो नइ आवय काम के बहाना मा। 


हे जनम के कइयाँ पर कोसथे वो महँगाई

भाजी भात खावत हे दाम के बहाना मा। 


कोढ़िया जनम के हे दोष देत दूसर ला।

बैठ के बितावत हे घाम के बहाना मा। 


चार डाँड़ नइ जानय जेन हर लिखे बर जी।

कविता ला चुरावत हे नाम के बहाना हे। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन


221 1221 1221 122


रावण ह बने ज्ञान के भंडार रहिस हे। 

अउ कुम्भकरण भाई ह खूंखार रहिस हे। 


पर एक विभीषण रहे भाई म जे छोटे। 

दोनो ल मरादिस बड़ा हुसियार रहिस हे। 


सीता बिना बनवास मा रावण मरे कइसे।

सीता के हरण मारे के आधार रहिस हे। 


लछिमन चले हे संग म का काम बता दे। 

रावण के टुरा मेघ के हथियार रहिस हे।


हनुमान बिना काम कहाँ हो भला पूरा। 

भगवान वो शिव शक्ति के अवतार रहिस हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


ऊपर चढ़े मनखे बड़े नइ आय समझ मा।

रइथें सदा दिल के सड़े नइ आय समझ मा।


परिवार भुला के रथें गा जेन मगन बड़,

मनखे पिये उन्डे पड़े नइ आय समझ मा।


रहिथे सदा रिश्ता बना इंसान सँगे मा,

आने हरे कहिके खँड़े नइ आय समझ मा।


वो मीठ करे गोठ सदा पोठ धँवा के,

तिल ताड़ बना के लड़े नइ आय समझ मा।


बाँटय दिखा कमती रहे पर जादा बतावय,

कतको खुदे हाबय झड़े नइ आय समझ मा।


रहि साथ गरीबी के सदा खेत कमाथे,

दिन रात वो माटी गड़े नइ आय समझ मा।


कइथे मनी मैं तो सदा ले लँगटा हवँव‌ गा,

हे सोन जी कुरता जड़े नइ आय समझ मा।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल--चोवा राम 'बादल'

 गजल--चोवा राम 'बादल'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


हे दाग लगे खादी चिराये दिखे हावय

 छलिया हा कपट पासा ला जम के चले हावय


चुपचाप पितामह तो रहिस मूँड़ गड़ाये

अउ द्रोपदी रो रो के बँचावव कहे हावय


पहिचान के देखव तो मुखौटा हे लगाये

घुलमिल के हमर बीच मा बैरी बसे हावय


पक्का हे इरादा हा त मंजिल मा पहुँचबे

मकड़ी हा बुनत जाला का वो नइ गिरे हावय


 मर खप वो भले जाही तभो दम लगा लड़ही

अन्यायी के आगू मा निहत्था भिंड़े हावय


हे चाह उहाँ राह ए सिरतोन मा होथे

विकलांग पहाड़ी के उपर मा चढ़े हावय


हे चाल चलन बिगड़े हवा काय तो लगगे

भाई के लहू धार मा भाई सने हावय



चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सब जानथे संसार मा ईमान बड़े हे

व्यपार करे बर इहाँ तो झूठ खड़े हे।


हे एक डहर मान मया एक डहर छल

कइसे घुसे सुमता उहाँ तो लोभ अड़े हे।


दिन रात चले तोर सँगे संग गरीबी

जा देख अपन खेत खजाना हा गड़े हे।


पानी नही आँखी तरी बंजर हवे जिनगी

अब कोढ़िया के हाथ मा मिहनत ह सड़े हे।


अँधियार में झन खोज पहावत हवे रतिया

आ देख सुरुज माथ रतन सोन जड़े हे।


आशा देशमुख

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


बैरी हवे सब दिन के तभो हितवा बनत हे। 

आँखी मा हवय आँसू गटर पाछू खनत हे। 


औकात हवे मनखे के दू आना के भाई।

का कहिबे तभो छाती बड़े भारी तनत हे ।


वर्दी के हवय भारी बड़े रौब बतावँव।

दोषी हवे छूटे तभे सिधवा ला हनत हे।


का कहिबे हकीकत इही हे देश मा भाई।

अब गोडसे के बर्थ डे पार्टी हा मनत हे।


जानत हे लबारी हे महापाप कहे सब। 

ये लद्दी मा काबर तभो मनखे हा सनत हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसमन अखरब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महजूफ़ 

मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन 

221 1221 1221 122


दिल जोड़ के झन गोरी खुराफात करे कर 

हे थोर मया तोला मुलाकात करे कर 


हो जाय सराबोर गियाँ मोर ये तन मन 

दिल खोल मया रोज के बरसात करे कर 


डर छोड़ दे तँय कोन का बोलत हे कहत हे

दे ध्यान अपन काम म दिनरात करे कर 


रग रग म हवय तोर बहत खून वतन बर 

झन फेर कभू स्थिति ल आपात करे कर 


होही के नही छोड़ फिकर चिंता करे बर 

चुप 'ज्ञानु' लगा मन ल शुरूआत करे कर 


ज्ञानु

गजल--चोवा राम 'बादल'

 गजल--चोवा राम 'बादल'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सच बात हे सच्चाई के अब हार हो जाथे

अउ जीत लबारी के कई बार हो जाथे


रिश्ता नता के मोल गिरत जात हे अब्बड़

बिन स्वार्थ सधे मीठ हा सख्खार हो जाथे


हें सेंध खजाना मा मरइया छुपे बइठें

रखवार हे ठाढ़े तभो धन पार हो जाथे


रहि रहि के उभरथे सहे अन्याय के पीरा

आँसू भरे आँखी तने अंगार हो जाथे


हे नीक निचट लागथे सुन प्रेम के किस्सा

मन मिलथे नजर मिलथे तहाँ प्यार हो जाथे


फल आय भरोसा के मिले घाव ये गहिरा

हाँ पीठ मा अपनेच ले सौ वार हो जाथे


प्रहलाद ला जब घेर के तड़फाथे मुसीबत

तब खम्बा ले श्री विष्णु के अवतार हो जाथे 


चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


मिल साथ रहँय सब बड़े परिवार नँदागे।

रिश्ता नता के बीच रहय प्यार नँदागे।


लगगे बड़े चिमनी सबो गद खेत हमर मा,

धरसा सबो परिया लगे सब खार नँदागे।


बनगे बड़े बँगला बड़े बिल्डिंग सड़क अब,

सब बखरी बियारा सबे कोठार नँदागे।


बेकार घुमत हावे सबे मनखे अबड़ के,

युग आगे मशीनी जुना औजार नँदागे।


दिखथे कहाँ बर आम लगे अमली डहर मा,

बोहात नदी तरिया रहय टार नँदागे।


नँगतेच मिठावय चुरे हँड़िया मा फदक के,

वो कोदई के भात जिलो दार नँदागे।


दिखथे कहाँ अब बारू गजामूंग मितानी,

सीमेंट असन जमगे मया सार नँदागे।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल -आशा देशमुख

 ग़ज़ल -आशा देशमुख


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


आये रहे व्यापार के शुरुआत करे बर।

मजबूर हवे देश हा आयात करे बर।


ये देश हमर खेत हमर चीज हमर हे

दूसर करा फोकट डरौ झन बात करे बर।


विश्वास करत आत हवन पोसवा मन के

मौका मिले चूके नही हे घात करे बर।


बिन नेवता हितकारी नता लाग जुड़ाथे

सुख दुख मा सकेलव मया ला तात करे बर।


घर द्वार शहर गाँव नगर देश बंटागे

अब कोन अही एक धरम जात करे बर।


आशा देशमुख

गजल-गजानन्द पात्रे

गजल-गजानन्द पात्रे

 *बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*

*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*

*212 1222 212 1222*


ज्ञान गुरु धरे अढ़हा तक सुजान होथे जी।

नेक कर्म ले मनखे हा महान होथे जी।


हौसला रखे चलबे साथ मा भरोसा जब

आसमान ले ऊँचा तब उड़ान होथे जी।


लोभ मोह के चक्कर मा पड़े कहूँ भाई

हाय हाय मा छूटत तब परान होथे जी।


मीठ मीठ चुपड़ी चुपड़ी करे जे हा बतिया ला

जान वोकरे अंतस मा गठान होथे जी।


तन सजा रखौ सच परिधान हो अहिंसा हा

झूठ पाप अउ हत्या के समान होथे जी।


जीत ले सबो के मन बाँध जग मया बँधना

प्रेम ले बड़े मीठा का जबान होथे जी।


सत्यबोध समरसता राह नित बताइस हे

फेर कब कहाँ सच्चाई बखान होथे जी।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-गजानन्द पात्रे

गजल-गजानन्द पात्रे

 *बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*

*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*

*212 1222 212 1222*



टोर फाँस भ्रम के सब ला गला लगाना हे।

गाँव घर सुघर सुमता जोत ला जलाना हे।


गोठ मीठ कर ले नित बाँट ले मया दुनिया

छोड़ आज कल चिंता हँसना अउ हँसाना हे।


ढाल बन खड़े रइहौ झन जुलुम कभू सइहौ

न्याय के सिपाही बन तीर बज्र चलाना हे।


लिख नवा इबादत इतिहास पुरखा के

थाम के कलम स्याही मान ला बढ़ाना हे।


सत्यबोध कहिथे सच ध्यान ला लगा के सुन।

स्वार्थ के सगा भाई मतलबी जमाना हे।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


छानी ले मया बरसे वो घर-द्वार कहाँ गे

पहुना ल कहै देवता संस्कार कहाँ गे।


धरती मा सरग लाने के हुंकार भरइया 

खुद ला कहे भगवान के अवतार कहाँ गे।


सब छोड़ के ये गाँव ला जावत हें शहर मा

रोके जो पलायन ला वो सरकार कहाँ गे।


सच लिखके हलाकान करै रार मचावै

अँगरा भरे आखर के वो अखबार कहाँ गे।


उद्योग ला उन हाट मा नीलाम करत हें

खोजत हे "अरुण" देश के रखवार कहाँ गे।



*अरुण कुमार निगम*

Friday 15 January 2021

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


लहर-तुकुर करत हवय सथीनहा नॅंगाय बर

रहे ल परही सावचेत सुख अपन बचाय बर 


जगर-बगर कहॉं बरन दिही दीया ल डीह के

जिकी घलो ल नार के जे आ जथे सुगाय बर


कभू सुहाति गोठ मोल दे परखही लोभ ला

पिया खवा दिही घलो ओ चेत ल हजाय बर


सुमत सलाह एकता बने रहय धियान दे

सहीं समय अभी कहॉं हे यार मुॅंह फुलाय बर


कहॉं ले होय डर नहीं बिगाड़ छिन म हो जही

उमर पहा जथे कुछू सिधोय बर बनाय बर


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*

1212 1212 1212 1212


महीना जेठ के हवय परत अबड़ जी घाम हे ।

बरसथे आग सूर्य हा जरत अबड़ जी चाम हे।


महल हा जगमगात हे जे भ्रष्ट लोग हे उँकर ।  

किसान कर्ज मा लदे कहाँ मिलत जी दाम हे। 


फरेब झूठ जालसाजी बढ़ गे हे समाज मा।

धरे रथे छुरी बगल मा मुँह मा बोल राम हे। 


बिना रुके बिना थके चलिन हवय जे राह मा। 

सही कहँव कि दुनिया मा उँकर अमर गा नाम हे । 


लड़व सबो जी देश बर मरव घलो जी देश बर।

शहीद होगे देश बर सबो करत सलाम हे।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


हाल-चाल पूछत हस हाल के ठिकाना का

कोन जाने कब आही काल के ठिकाना का।


तोर देह माटी के झन अकड़ कभू संगी

टूट के बगर जाही ढाल के ठिकाना का।


चार दिन के जिनगानी खेल आय चौसर के

कान धर उठाही वो चाल के ठिकाना का।


मोर-मोर कहिके तँय झन सकेल धन-दौलत

हाथ ले बिछल जाही माल के ठिकाना का।


नाच-गा "अरुण" रुमझुम साँस-साँस जी ले रे

कब कहाँ भटक जाही ताल के ठिकाना का।


*अरुण कुमार निगम*

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन मक्बूज

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 

1212 1212 1212 1212


कभू बने बनाय काम झन बिगाड़ संगी रे 

सुघर दिखत बगीचा बाग झन उजाड़ संगी रे 


मया के बोल बोल फेर झन बनय कभू इहाँ 

धियान रख सदा तहूँ ये तिल के ताड़ संगी रे 


पता चलय नही करे बिना बड़े या छोट काज हे

जथे भरम हा टूट ऊँट जब चढ़े पहाड़ संगी रे 


सुघर मिले हवय मनुज के देह बन मनुज रहा

नशा मा फँस के एला झन बना कबाड़ संगी रे 


कदम कदम मा 'ज्ञानु' तोला हे गिराय बर खड़े 

हवय बचाना शाख शेर बन दहाड़ संगी रे 


ज्ञानु

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन मक्बूज 

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन

1212 1212 1212 1212


का घाम छाँव मा लड़ाथे नानजात मन अबड़

शहर का गाँव मा लड़ाथे नानजात मन अबड़


बताँव का हवय परे ग कीरा चाल मा इँखर

फँसा के दाँव मा लड़ाथे नानजात मन अबड़


निकल जथे इँमन लगा के आग जाँति पाँति के 

धरम के नाँव मा लड़ाथे नानजात मन अबड़


निपट जतिस तो लोकतंत्र के तिहार शाँति ले

सदा चुनाव मा लड़ाथे नानजात मन अबड़


कहूँ तो जीत गे चुनाव 'ज्ञानु' फेर पूछ झन 

हे ठाँव ठाँव मा लड़ाथे नानजात मन अबड़


ज्ञानु

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


धान अन्न बेचे बर जाये भाव तो नइहे।

माँग कोन कइसे सुनही चुनाव तो नइहे।


हाथ पाँव थक जाथे रात दिन हवे चलना

घाम शीत बरखा चलथे पड़ाव तो नइहे।


कोन बंद करही दानव दहेज के मुँह ला

नेवता शहर भर भेजे हियाव तो नइहे।


लाभ बस अपन देखें साथ नइ निभाये हे

प्रश्न के लगे लाइन हे सुझाव तो नइहे।


खेत में फसल ला अब तो खड़े खड़े बेचें

फ्लेट के जमाना आये पटाव तो नइहे।


लूट लूट के मेवा खाये भरे तिजोरी ला

लेवना सही बोली पर लगाव तो नइहे।


ये सफर हवे जिनगी के चलो चलो आशा

हाँफगे चले हस थोकिन चढ़ाव तो नइहे।


आशा देशमुख

ग़जल- अजय अमृतांशु

 ग़जल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222 212 1222


होही माटी सब कुछ काबर बता धरत हावस। 

पाई पाई जोड़े काबर बता मरत हावस।


भोगना हवय सब ला कर्मदंड जे हावय।

फेर काम गंदा काबर बता करत हावस।


योजना बनत हे अब स्वार्थ सिद्धि के खातिर।

देश नोहे चारा काबर बता चरत हावस।


हे हिसाब सबके भगवान के रजिस्टर मा। 

पाप के घड़ा ला काबर बता भरत हावस।


काम कर हमेंशा सच्चाई के डगर चल के। 

जब डगर हे सच के काबर बता डरत हावस। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़जल- चोवा राम 'बादल'

 ग़जल- चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222 212 1222


कर्म के कलम धरके भाग हम लिखे करबो

ज्ञान के उघारे आँखी चलौ पढ़े करबो


मोह के हरा चारा लालची बना देथे

मेंछराथे मन बछवा नाथ ला कसे करबो


घर तभे तो घर होही जब उहाँ अपन होही

भूल चूक अपने के नइ कभू गने करबो


पाँव मा गड़े काँटा हा अभर पिराथे बड़

लोचनी मया के धर वोला तो इँचे करबो


बिरथा हे बने छप्पन भोग सोच लेवव गा

भूखहा के दू कौरा भात मा रहे करबो


चोवा राम 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

ग़जल- चोवा राम 'बादल'

 ग़जल- चोवा राम 'बादल'


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222 212 1222


छूट जाही धन दौलत एक दिन तैं मर जाबे

कर कमाई पुन के संगी उही ला धर जाबे


मस्ती मा कबीरा गाले बने उलटबाँसी

बस जबे सबो के दिल तैं भले उजर जाबे


पक्का जान लेबे गा जिंदगी अउँट जाही

पानी कस कहूँ डबरा मा भरे ठहर जाबे


घेंच ला अँकड़ के चलबे डगर त का मिलही

फेंक दे अहम ला तब प्रेम बन बगर जाबे


धूल झन नजर ककरो झोंकबे  कभू 'बादल'

सोच ले नजर ले सबके तुरत उतर जाबे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222


काम धाम करबे तब नाम तोर होही गा।

सत्य बाट चलबे तब जग मा शोर होही गा।


छोड़ दे नशा ला ये आय रोग-बीमारी,

चक्क साफ बढ़िया जिनगी के खोर होही गा।


देखबे जी पीरा के रात ये पहाही झट,

सुख सुरुज निकल आही लउहे भोर होही गा।


भाग के भरोसा मा काम हा बिगड़ जाथे,

गढ़ खुदे अपन किसमत तोरो जोर होही गा।


एक हो के रहिबो तब भाग जाही बइरी मन,

शांति अउ बिना भय के झार छोर होही गा।


बाँध ले मया मा तैं आव गा सबो झन‌ ला,

प्रेम ताग जुर जुर के पोठ डोर होही गा।


देख तो निचट खबड़ा अपखया मनी होगे,

कोनो जान पाइस नइ वो हा चोर होही गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

🙏🙏🙏

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्फ़ूफ मक्बूज मुखन्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलन 

212 1222 212 1222


हे गिरे कहूँ कोनो मिलगे उठावत चल

भूलगे हवय कोनो रसता दिखावत चल 


गड़ घलो कभू जाथे कोन जानथे भाई

रसता मा परे काँटा खूँटी हटावत चल 


काम आय नइ घर ला टोर कभू ये देथे

लोभ अउ सुवारथ के कचरा ला जलावत चल 


नइ बना सकस कुछु कखरो बिगाड़ झन भाई

हो सकय अपन ता भाई हाथ ला बँटावत चल 


हाथ पाँव तँय कतको मार होना जें होथे

बस अपन करम के डंडा इहाँ ठठावत चल 


भूलना कहूँ तोला दुख दरद अपन हावय

बनके मस्तमौला गाना मया के गावत चल 


सोच दूर हे मंजिल 'ज्ञानु' हटबे पीछू झन 

छोड़ डर फिकर संसो पग अपन बढ़ावत चल 


ज्ञानु

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222


जीव‌ हा जरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।

आगी कस बरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


मार के बड़े मन हा रोज के लबारी ला,

जेब ला भरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


देख के गरीबी ला मन कचोट जाथे गा,

आँसू हा ढरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


बोल हा हवय चोक्खी छेदथे गा छाती ला,

खीला अस थरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


काँही के फिकर नइहे बाट फेंकथे कचरा,

घुर असन सरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


मन हवय गा बइहा कस सोन नइ चिन्हय ये हा,

राख बर मरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


मोर पीरा नइ जानय हे मितान साथे मा,

घाव खोधरत रइथे कोन‌ ला बतावँव‌ मैं।


ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222


हे परे भुयाँ कोनो बात के फिकर नइये।

मंद हे जहर महुरा घात के फिकर नइये।


जाड़ हे जनावत बड़ लागथे अकड़ जाही,

पूस के दरद दायी रात के फिकर नइये।


खाय बर मरत हे वो अधचुरा हवय जेवन,

जर जवय भले मुँह हा तात के फिकर नइये


बोज मुँह मा गुटका ला वो थुकय अबड़ के जी,

सर जही गा कचरा कस दाँत के फिकर नइये।


तास मा रमे हे वो कर्ज मा लदाये हे,

काय खाहीं लइका मन भात के फिकर नइये।


देख तो वो टूरा हा होले कस पढ़त हाबय,

पर जही तमाचा हा लात के फिकर नइये।


हे मितान झगराहा बाप ला लड़त रइथे,

देये हे जनम वोला मात के फिकर नइये।


ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


पाय हे बहुरिया बड़ नेंग मुँह दिखौनी के।

सास के अभी तक झुमका हवय पठौनी के।


साग भात रांधव खावव मिले कहाँ रोटी

भाव बाढ़गे अब चाँउर गहूँ पिसौनी के।


हे कभू कभू धरमी कराय  तीरथ ला

दान धन धरमशाला में करव रुकौनी के।


अब किसान मन गरमी मा डबल फसल बोयें

लागथे अबड़ बिजली बोर नल पलौनी के।


साग पान लागे सुघ्घर मढ़ाय पसरा मा

ले भले किलो भर लालच रहे पुरौनी के।


आशा देशमुख

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


आज नइ दिखे सुख बाँटे तिसन युवा कोनो।

काँटा ला डहर के काँटे तिसन युवा कोनो।1


नइ मिले कहूँ कोती दीया धरके खोजे मा।

मीत ममता सत ला छाँटे तिसन युवा कोनो।2


आज के जमाना मा नइ मिले इहाँ काबर।

काम हे गलत ता डाँटे तिसन युवा कोनो।3


देख जेला तेहर बस अमृत धन धरइया हे।

नइ मिले जहर ला चाँटे तिसन युवा कोनो।4


दरुहा मँदहा मिल जाथे पर कहाँ कभू मिलथे।

डोर एकता के आँटे तिसन युवा कोनो।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



2,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


चाँद का सुरुज का, हे सब जहान कागज मा।

पर हमाय नइ मनखे के, बियान कागज मा।1


गोभ देथे छाती ला गोठ बात भाला कस।

मीठ मीठ हावे सबके जुबान कागज मा।2


बिन ठिहा ठउर के कतको गली गली भटके।

ऊँच ऊँच बड़ बन गेहे मकान कागज मा।3


नइ दिखाय एक्को कन प्यार व्यार मिलथे तब।

सब मितानी तक देखाथे मितान कागज मा।4


जेला देख तेला बस चाह हावे कागज के।

लागथे मनुष मनके हे निशान कागज मा।5


सुख घलो हे कागज मा दुख घलो हे कागज मा।

सोय मनखे मन देखाथे उड़ान कागज मा।6


काई कस जमे मन मा तोर मोर के मैला।

हे पुराण कागज मा अउ कुरान कागज मा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


आज नइ दिखे सुख बाँटे तिसन युवा कोनो।

काँटा ला डहर के काँटे तिसन युवा कोनो।1


नइ मिले कहूँ कोती दीया धरके खोजे मा।

मीत ममता सत ला छाँटे तिसन युवा कोनो।2


आज के जमाना मा नइ मिले इहाँ काबर।

काम हे गलत ता डाँटे तिसन युवा कोनो।3


देख जेला तेहर बस अमृत धन धरइया हे।

नइ मिले जहर ला चाँटे तिसन युवा कोनो।4


दरुहा मँदहा मिल जाथे पर कहाँ कभू मिलथे।

डोर एकता के आँटे तिसन युवा कोनो।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



2,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


चाँद का सुरुज का, हे सब जहान कागज मा।

पर हमाय नइ मनखे के, बियान कागज मा।1


गोभ देथे छाती ला गोठ बात भाला कस।

मीठ मीठ हावे सबके जुबान कागज मा।2


बिन ठिहा ठउर के कतको गली गली भटके।

ऊँच ऊँच बड़ बन गेहे मकान कागज मा।3


नइ दिखाय एक्को कन प्यार व्यार मिलथे तब।

सब मितानी तक देखाथे मितान कागज मा।4


जेला देख तेला बस चाह हावे कागज के।

लागथे मनुष मनके हे निशान कागज मा।5


सुख घलो हे कागज मा दुख घलो हे कागज मा।

सोय मनखे मन देखाथे उड़ान कागज मा।6


काई कस जमे मन मा तोर मोर के मैला।

हे पुराण कागज मा अउ कुरान कागज मा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-अरुण कुमार निगम

 गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


छानी ले मया बरसे वो घर-द्वार कहाँ गे

पहुना ल कहै देवता संस्कार कहाँ गे।


धरती मा सरग लाने के हुंकार भरइया 

खुद ला कहे भगवान के अवतार कहाँ गे।


सब छोड़ के ये गाँव ला जावत हें शहर मा

रोके जो पलायन ला वो सरकार कहाँ गे।


सच लिखके हलाकान करै रार मचावै

अँगरा भरे आखर के वो अखबार कहाँ गे।


उद्योग ला उन हाट मा नीलाम करत हें

खोजत हे "अरुण" देश के रखवार कहाँ गे।



*अरुण कुमार निगम*

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222


हे कहाँ पवन मा दम दीया तैं बरत रहिबे।

कर अँजोर चिटकुन अँधियार ला हरत रहिबे।


मार तैं भले खाबे कोंहा अउ लबेदा के,

मीठ बाँटबे गा तैं आमा कस फरत रहिबे।


पी दरद पहा लेबे ज़िन्दगी गरीबी मा,

बन किसान सिधवा‌ तैं पेट ला भरत रहिबे।


आज जेन लइका हे वो सियान बनही गा,

दे जघा अवइया ला पान कस झरत रहिबे।


नाक झन कटय भाई घर समाज परिहा मा,

मान खूब पावच वो काम ला करत रहिबे।


काम आत रहिबे तैं पर के बाढ़ खाती बर,

साल साल घुरवा के खातू अस सरत रहिबे।


हे असीस मा बड़ बल सुन मनी बने तैं हा,

तैं सदा बड़े मन के पाँव‌ ला परत रहिबे।


- मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन

212 1222 212 1222


सार हे जी प्रभु जी के जाप ला भुलाबे झन।

जोर धन नँगत के खुद आप ला भुलाबे झन।


पुन्य मा बदल लेबे कर्म ला बने करके,

मूड़ मा चढ़े हावय पाप ला भुलाबे झन।


ओतके लमाबे गा गोड़ हा ढका जावय,

हे कतिक चदरिया के नाप ला भुलाबे झन।


बाट हे पहाड़ी जी रेंगबे सम्हल के तैं,

डर रथे गिरे के बड़ झाप ला भुलाबे झन।


पाय हस बड़े पद ला दिन गइस गरीबी के,

हाँस हाँस झेले दुख ताप ला भुलाबे झन।


जे गरीब के सुनथे काम जे कराथे गा,

लोभ के डगर चलके छाप ला भुलाबे झन।


तोर बर अपन‌ जिनगी जेन मन‌ खपाये हे,

देव‌ हें मनी उँन माँ बाप ला भुलाबे झन।


 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 गज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे हजज़ मुसम्मन अशतर मक्फ़ूफ मक्बूज मुखन्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन 

212 1222 212 1222


तँय सदा इहाँ सुग्घर करबे काज सँगवारी 

दुनिया हा तभे करही तोर नाज सँगवारी


काम ला अपन कल के छोड़ झन भरोसा मा

जेन करना हावय तँय करले आज सँगवारी 


भाँय भाँय मोटर गाड़ी चलत अबड़ हावय

कब झपा जही कइसे बन ये गाज सँगवारी


झन समझ जबे पुरखौती अपन पहिर एला

आज तोर कल कखरो होही ताज सँगवारी 


तोर छोड़ दुनिया मा 'ज्ञानु' कोन हावय मोर

बात बात मा होथस अउ नराज सँगवारी 


ज्ञानु

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*



राम नाम के चढथे नाव पार हो जाथे।

 शब्द भीतरी जाये तब ओंकार हो जाथे।


झन समझ कहूँ ला नानुक धरे रथे गुण ला

रस गुदा सूखे तुमड़ी तक सितार बन जाथे।


देख टेड़गा लकड़ी ला जलाय चूल्हा मा

सोझ जाय खाँधा रुख के मिंयार बन जाथे।


झार ला धरे बइठे कोन खाय  मिरचा ला

तेल आँच में कड़के तब बघार बन जाथे।


बैठका करे आखर मन सही गलत का हे

शुद्ध भाव निखरे तप के विचार बन जाथे।


बैर मीत दूनो हा मुँह तरी करे बासा

बात घाव ला भरथे या कटार बन जाथे।


सान सान के माटी चाक मा घुमाए हे

गुरु घलो इहाँ विधना कस कुम्हार बन जाथे।



आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम

फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन


212 1222 212 1222


बिन बुलाए आना हे बिन पठोए जाना हे

आए जाए के जग मा लाखठन बहाना हे


आज भर बसेरा हे काली आए पहुना बर

काली भोर संझा रतिहा ले रथ रवाना हे


जिन्दगी म होने हे मीठ अउ करू अनुभव 

एक के करत सुरता एक ला भुलाना हे


सावचेत रहना हे हर समे करमपथ मा

चोट चूक मा करही ताक मा जमाना हे


देश के सुमत समता बर कलम चलायेके

संगी नेक वादा सुखदेव ला निभाना हे


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गोरखपुर कबीरधाम छत्तीसगढ़

गजल--चोवा राम 'बादल'

 गजल--चोवा राम 'बादल'


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


इंसान हा शैतान के तो रूप धरे हे

नस नस मा लहू के जगा दारू हा भरे हे


चश्मा ला हटा देख त सच्चाई हा दिखही

कुछु भेद बिना काम सरी राम करे हे


अइली सुधा खा खाके तैं झन मोटा रे भाई

तन मा चढ़ा के चर्बी कई  मनखे मरे हे


दू कौंरा हमर पेट मा लटपट के का गेइस

इरखा मा उहाँ जरजरा के कतको जरे हे


जोतइया हा नागर के अपन हक ला हे माँगत

मुँह तोर गा 'बादल' बता काबर के थरे हे


चोवा राम 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

Sunday 10 January 2021

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


बहुत खराब हे डगर ये जिंदगी के जान जी।

सम्हल-सम्हल के चल नही ते गिर जबे उतान जी।

 

लिखे हवस जे नाम ला ते रेत मा उकेर के।

लहर बहाय लेगही रहे नही निशान जी। 


अकाश मा सुरुज हवे जे रासता दिखात हे।  

तभो हवय बहुत इहाँ हपट मरे बिहान जी। 


गियास ला अँजोर मा जलाय ले भला कहाँ। 

दिया जलाय रात जेन पुण्य के समान जी। 


बहुत बढ़त हवय इहाँ गली सड़क म भीड़ हर। 

चलाव कार गाड़ी ता रखे करव धियान जी।


गरीब जान के बहुत सतात हे ये जिंदगी। 

कहाँ पता ये जिंदगी ल मोर खान दान जी। 


'दिलीप' देख ले शहर जलत हवय उदास हे। 

उदिम कछू करव नही ते नइ बचे परान जी। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


जहर घुले हवै हवा, उजार खेत खार हे

विकास दूरिहाय हे, विनाश हा दुवार हे


अमीर लूट लूट के,गरीब के नसीब ला

अपन बनाय भाग वो, कुबेर मा सुमार हे


अगास ला अमर डरे,पहुँच गयेस चाँद मा

लदाय मूँड़ मा करज,इहीच तोर हार हे


मिली भगत हवै तभे,शिकार हे किसान हा

कपट करेंट मा चटक, जही बिछाय तार हे


कहाँ कहाँ इलाज बर, दउँड़ अजी लगावँ मैं

दवा समझ खवाय हे,उही धरे अजार हे


लड़े हवैं दहेज बर,उसर-फुसर बहू ल उन

करे रिपोट जाय बर,तुरंत वो तियार हे


लमा लमा के घेंच ला, बबा बने सपेट ना

अबड़ मिठात हे कढ़ी, गढ़ाय तो लगार हे


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


बने बनाय ला बिगाड़ दे बसे उजाड़ दे। 

चलत हवय का मन बता खड़े तको उखाड़ दे।  


पता नही का मन भरे तिलिल मिलिल करत रहे।

पढ़त रहे टुरा बने तभो कका ते झाड़ दे। 


भटक गये डगर बहुत पकड़ डगर म लान जी। 

कहूँ न माने बात ता तनिक कका दहाड़ दे। 


बहुत गरब भरे पुटानी मार के चिढात हे। 

उठा-उठा पटक बला समर म तँय पछाड़ दे।


लड़े मरे के साध हे लगे ये चीन ला बहुत। 

उठा के बौना ला पटक जमीन मा ते गाड़ दे।  


तुलुल मुलुल करत हवय ये देख पाक ला तको। 

पकड़ के मार काट दे नही ते चीर फाड़ दे।


बहुत खुसी रहिस हवय मिले जे नेवता 'दिलीप'।

पता नही का सोंच तँय बलाय के लताड़ दे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


जनम जनम ये लोक मा, रही धरा के देवता।

जनम दिये तिही हरे, सही धरा के देवता।1


दया मया पा हाँसही, बने करम मा नाँचही।

करम रही गलत त, टोकही  धरा के देवता।2


खवाय हे पियाय हे, उठाय हे सुताय हे।

तभो कभू कहे कहीं, नही धरा के देवता।3


कहूँ दिखाही आँख पूत, खाही चैन सुख ल लूट।

मता सकत हवै, दहीं मही धरा के देवता।4


कपूत पूत बन जही,बबूल बर हा बन जही।

फसल तभो हाँ हाँस, रोपही धरा के देवता।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*



लगे हे आजकल सबो ल रोग हा छपास के।

हज़ार भर खरच करे न दाम सौ पचास के।


धरे कलम दवात ला रँगाय पृष्ठ ला बने

दिखे न काव्य छंद रस न गुण धरे समास के।


बड़े बड़े खनाय खोचका सही हवय डगर

खबर गजट निकालथे गली सड़क विकास के।


नदी तलाब हे पटात बोर छाय सब कती

शराब नीर सँग बिसाय दाम हे गिलास के।


लगाय बीज स्वार्थ के मया नता करू करू

कहूँ करा दिखे न कंद मूल फल मिठास के।


अँधेर  बाढ़गे अतिक लजाय रात हा घलो

सुरुज तको गुनत रहे का मंत्र हे उजास के।


सबो डहर उड़ाय धूल बड़ रिसाय हे हवा

डरात मन तभो कहे दिया जला ले आस के।


आशा देशमुख

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


बड़े-बड़े दिखाय स्वप्न आज खोखला लगे। 

पता चले सही गलत अवाज खोखला लगे।  


बहुत रहिस विचार एक बार सिर म ताज हो।

मिलिस बहुत प्रयास से त ताज खोखला लगे


करिस हवय प्रपंच देश ला तको हिलाय बर। 

खुलिस हवय वो राज जान राज खोखला लगे। 


बहुत कराय काम हँव जतात चित्र छाप के। 

उखड़ गये वो काम धाम काज खोखला लगे। 


पहिर घुमत रहे कभू जे जीन्स टॉप ला 'दिलीप'। 

उही ह बहु बने लजाय लाज खोखला लगे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


बहुत जरूरी काम के कहाँ रथे धियान जी। 

लरा परा म नाम के कहाँ रथे धियान जी। 


लुटाय जात हे कका रचे हवय बिहाव जब।

खुसी म कोनो दाम के कहाँ रथे धियान जी।


लकर-धकर निकल जबे कभू कहूँ ग जाय बर।

शहर म चौक जाम के कहाँ रथे धियान जी।


रहे न खाय के फिकर समे पता कहाँ चले।

बुता चलत अराम के कहाँ रथे धियान जी


निकल गये कभू कहूँ रहे जो दोस्त यार सँग।

सफर म काम धाम के कहाँ रथे धियान जी।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*

 *ग़ज़ल - चोवा राम 'बादल'*


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


नँवे ला सीख ले अभी,गिराय ला उठाय बर

लगा तभेच जोर तैं, पहाड़ ला हटाय बर


कहे म का रखे हवय,गरज गरज के बात ला

बरस बरस के मिट गड़ी, फसल बने उगाय बर


कतेक काट लेबे सिर, कलम लगे उल्हा जही

उमर खपाय हें बहुँत,दया मया ला लाय बर


विचार हा खराब हे,अटेलिहा के देख ले

धरे हवय तभो छड़ी,घड़ी घड़ी डराय बर


कई ठो दाँत टूटगे, चगल के देख लिन हवयँ

चना फुटेना हम नहीं, चबा चबा के खाय बर


सिमेंट दे न छड़ बिछा, वसूलबे  पता हवय

खदर अबड़ गँजाय हे, हमार घर छवाय बर


दबा नहीं न दब कभू,उठा के रेंग मूँड़ ला

जिहाँ जरूरी शान हे,त छोड़ दे लजाय बर



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


चलत चलत मा मिल जथे सरल सहज डहर घलो।

खुशी के हो या फेर गम के कट जथे पहर घलो।1


लहर के काम हे किनारा मा ढकेल लानना।

कभू कभू डुबाय देथे बीच मा लहर घलो।2


रतन निकलही धन निकलही कहिके लालची बने।

मथव झने समुंद ला निकल जथे जहर घलो।3


पलोय नइ सके कभू जे खेत खार बाग बन।

हवे इसन मा फोकटे बड़े बड़े नहर घलो।4


ललात हावे गाँव हा विकास ला बुलात हे।

विकास के विनास मा सहम गे हे शहर घलो।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


बिठाय नाव मा बहुत करत नदी ल पार हे। 

सम्हल-सम्हल चलात हे जबर नदी के धार हे। 


बनाय हौसला चले पहाड़ मुड़ नवाय जी। 

अगर कहूँ डराय जान ले तहाँ ग हार हे। 


बड़ा विचित्र हाल होय लोक तंत्र मा तको।

चलाय देश ला तको कहे कि जे गँवार हे। 


लकर धकर करे कका अतेक काय हड़बड़ी। 

सम्हल-सम्हल के रेंग नइ ते गिर जबे उतार हे। 


नशा करे दिमाक नास हो जथे ये जान ले।

पता चले नही नशा म एक हे कि चार हे। 


कभू सजे सजाय हाट बाट गाँव के रहे।

शहर डहर चले सबो त गाँव सब उजार हे। 


बढ़े हवय जी दाम आज खाय के समान के।

उलझ नही ते साग बर बने हवय जी दार हे। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


सियान के बताय हा, सियान के सिखाय हा।

बखत पड़े मा काम आथे, टरथे हाय हाय हा।


कमाई आम आदमी के काम आय देश के।

खपे खुदे के कोठी मा अमीर के कमाय हा।


अमीर का गरीब के घलो पुछारी होत हे।

ठठाय मूड़ रोज रोज बीच के सताय हा।


भुखाय के उना हे थाल भूख प्यास बनगे काल।

उसर पुसर के खात हावे रात दिन अघाय हा।


उही मनुष हे काम के जे काम आय आन के।

अपन उदर ला पाल लेथे घोड़ा गदहा गाय हा।


अँकड़ गुमान जौन तीर तौन बाँटही का खीर।

रुतोय नीर जागथे का बीजहा घुनाय हा।


नवा जमाना के नवा फलत फुलत हे चोचला।

फभे बदन मा ओनहा फटे छँटे कपाय हा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*

1212 1212 1212 1212


सबो रहय सुखी सदा सबो ला आन बान दव। 

खड़े हवन दुवार शारदे हमन ला ज्ञान दव।


चलत हे खेल खाय के सबो जिनिस ला देश के।

चलव करिन जतन बने सबो डहर धियान दव। 


करत हे बैरी वार देश खतरा मा परे हवय। 

हवय ये बेरा युद्ध के लड़े महू ला जान दव।


लड़त हवय जो देश बर सीमा म डटे हवय।

जवान हे अडिग खड़े चलव उमन ला मान दव। 


रखव कभू ना बैर भाव द्वेष छोड़ दव सबो।

मिलव सबो ले प्रेम से मया के बंशी तान दव। 


नजर रहय सबो डहर घुसे सकय ना शत्रु हा।

उठा कटार काट बैरी के गला ल लान दव। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल -आशा देशमुख*

 *ग़ज़ल -आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


बसे बसाय गाँव छोड़ के चले कमाय बर

मया तियाग के चले हे देवता मनाय बर।


अहम धरे जलन हवय लड़ात हे इहाँ उहाँ

जहर भराय मीठ बोल आग ला लगाय बर।


दिखात शान हे अबड़ नही हे घर म फोकला

उधार के सबो जिनीस जिंदगी चलाय बर।


कभू दया धरम धरे नही कभू रखे मया

सनाय हाथ खून जाय तीर्थ मा नहाय बर।


भराय ला भरत हवे ग राज पाट झूठ के

गिरे पड़े हवे गरीब कोन हे उठाय बर।


आशा देशमुख

Saturday 9 January 2021

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


झुले नइ कान में बाला सहीं काबर।

गला मा नइ हवे माला सहीं काबर।


उड़न दे पाँख फैलाके जगाके आस।

मया ला रोकथस ताला सहीं काबर।


जिया ला जीत गुरतुर बात तैं कहिके।

जिया ला  गोभथस भाला सहीं काबर।


बढ़े बाँटे मया ये जानथन तभ्भो।

मया ला बाँटथस लाला सहीं काबर।


पियासे के बुझावत प्यास बढ चल तैं।

नदी होके रथस नाला सहीं काबर।


हरे कहिथस अटारी पोगरी तोरे।

ठिहा मोरे धरमशाला सहीं काबर।


हरँव छत्तीगढ़िया मैं सबे ले अँव रे बढ़िया मैं।

बुनत रहिथस भरम जाला सहीं काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 8 January 2021

गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बहरे रमल मुसम्मन सालिम

 गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


बात मा बूता बने ता, तोप ताने कर कभू झन।

पर ठिहा ला बारे बर, बारूद लाने कर कभू झन।1


काम करथस रीस धरके, रेंगथस खुद तैं टमर के।

पर बिगाड़ा होही कहिके, खाई खाने कर कभू झन।2


जानथस खुद के ठिकाना, कोन कोती हावे जाना।

फोकटे परबुध मा उलझे खाक छाने कर कभू झन।3


घाव तन के भर जथे पर, नइ भरे मन के लगे हा।

बात करुहा बोल जिवरा, कखरो चाने कर कभू झन।4


का भरोसा दे दिही कब कोन मनखे तोला धोखा।

भेद अंतस भीतरी के खोल आने कर कभू झन।5


ओनहा कपड़ा असन सब छूट जाथे मैल तन के।

मैल मन के जाय नइ तैं, मन ला साने कर कभू झन।6


धूल धुँगिया के असन तो रोज के अफवाह उड़थे।

आँखी मा देखे बिना कुछु बात माने कर कभू झन।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




गजल- मनीराम साहू 'मितान'

 गजल- मनीराम साहू 'मितान'


बहरे रमल मुसम्मन मखबून महजूफ़

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन 

2122 1122 1122 22


करले तैं आज अपन‌ काम समे भागत हे।

भजले तैं नाम सिया राम समे भागत हे।


फाँस बगराय हवे देख अबड़ चारों कुत,

कालनेमी मैं करत शाम समे भागत हे।


झन‌ डराबे गा कभू डँट के करे मिहनत ले,

आ तिपो ले गा अपन चाम समे भागत हे।


बड़ करे हावे जतन‌ गा ददा दाई तोरे

पूज ले गा तें चरन धाम समे भागत हे।


आय नइ काम चिटिक तोर अपन‌ कोनो हा,

दुख बढ़ा झन तें अबड़ लाम समे भागत हे।


पाय हाबस जी मया प्रेम नँगत के सबले,

दे मया ला तें चुको दाम समे भागत हे।


चल‌ धरे बाट ला तैं सत्य के सुख पाबे गा,

कर मनी तें हा अपन नाम समे भागत हे।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*

*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*

*1212 1212 1212 1212*


उठा नजर ला देख ले कहाँ रमे धियान हा।

लगे हे आग जाति धर्म नित जलत मकान हा।


गिरे परे उठा चले मसीहा अब वो हे कहाँ

लगे हे दाँव जिंदगी अधर मा हे परान हा।


बिरान हे गली बगीचा गाँव घर सबो जगा

मिले नही सुने ला मीठ कोयली के तान हा।


उठा कलम सदा सही दिशा धरे नियाव के

तभे पढ़े लिखे के मोल सार गुरु के ज्ञान हा।


कहे हे बात सत्यबोध थाम राह नेक जी

तभो ले भैरा हे पड़े सबो के आज कान हा।



इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" 

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़

मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


1212 1212 1212 1212


ददा कका बबा सबो रखे हवे ग आस हे। 

टुरी दिखाय जेन ला कहे टुरा कि पास हे। 


तलास मा खपत हवय शरीर हा सियान के।

उमर बढ़े बहुत हवय मिले नही हताश हे। 


टुरा मगर कहाँ कहे रखे हवय जे चाह ला। 

बताय कब करीना अस टुरी मिले त रास हे। 


जवान के विचार ला बबा कहाँ समझ सके। 

बिहाय दिस हवय तहाँ टुरा बहुत उदास हे। 


हवे ग फूल एक ठन  हजार भौरा आय हे। 

लड़े मरे अगर कहूँ समझ तहाँ विनाश हे।  


रहे जे भाग मा मिले उदास हो लड़व नही। 

सँवार लव ये जिंदगी समझ जहू का खास हे। 


लगे भले पहाड़ कस कभू-कभू ये जिंदगी।  

'दिलीप' चल बिना रुके कहाँ पहाड़ उचास हे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल

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