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Monday 2 December 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढी गजल-खैरझिटिया

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222 221 1222

जे काम बिगाड़े वो डिहवार बने नोहे।
माखूर चरस मद के बैपार बने नोहे।1

ब काम बने होथे,तन मन रथे जब बढ़िया,
सब जीव जगत बर जर,बोखार बने नोहे।2

चकचक ले उघर जाथे,फोकट के दिखावा सब।
बिन दुःख दरद के आँसू धार बने नोहे।3।

जस नाँव ह भारत के चारों मुड़ा मा बगरै।
जे शान ल  बोरे वो सरकार बने नोहे।4।

सब जीव जिनावर ला झन मार कभू खावव।
ना मास बने नोहे ना गार बने नोहे।5।

जादा खुशी ला देवव अउ आस गिरा देवव।
वो जीत बने नोहे ना हार बने नोहे।6।

दुरिहाय अँजोरी हा सब दुःख दरद ला जी।
घर गाँव गली घपटे अँधियार बने नोहे।7

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Tuesday 19 November 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


2122 2122 212

खोट धर झन खोद खाई फोकटे।
कर धरम बर झन लड़ाई फोकटे।1

शांति के संदेश देवै सब धरम।
कर न दूसर के बुराई फोकटे।2।

चक्ख ले नमकीन खारो अउ करू।
रोज के मेवा मिठाई फोकटे।3।।।।

बैर इरखा हे जिया मा तोर ता।
भाई भाई के रटाई फोकटे।4।

सत सुमत धरके सदा सत काम कर।
तोर ठग जग के कमाई फोकटे।5।

जीव शिव सबके हे दुर्लभ जिंदगी।
काट झन बनके कसाई फोकटे।6

खैरझिटिया नाप ले गुण ज्ञान ला
खेत घर मन्दिर नपाई फोकटे।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Tuesday 24 September 2019

छत्तीसगढ़ी गजल


छत्तीसगढ़ी गजल- इंजी गजानंद पात्रे"सत्यबोध"

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

(221 1222  221 1222)

ये माटी सही तन के,अभिमान करे मनखे।
हे कोंन अपन दूसर,पहिचान करे मनखे।।

ले बाँट मया जग मा,हे चार पहर जिनगी।
सब छोड़ इहें जाना,नादान करे मनखे।।

बड़ लोभ करे माया,मन बाँध धरे गठरी।
धन जोर इहाँ ख़ुद ला,धनवान करे मनखे।।

मँय बात बतावत हँव,सुन कान करे खुल्ला।
सतकर्म सदा जग मा,बलवान करे मनखे।।

वो नाम कमाथे जी,अउ मान सदा पाथे।
जे सत्य अहिंसा ला,परिधान करे मनखे।।

हे नाश नशा दारू,घर द्वार सबो उजड़े।
सुख शांति खुदे तन ला,शमशान करे मनखे।।

सत जोत जला पात्रे,धर मानवता दीया।
अब कर्म बनय पूजा,गुनगान करे मनखे।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*****************************

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

(221 1222  221 1222)

सब पेड़ इहाँ कटगे,अब छाँव कहाँ मिलथे।
बड़ घाम सहे प्रानी,सुख ठाँव कहाँ मिलथे।।

अब बाग बगीचा के,फल फूल सुखागे हे।
छतनार चमेली के,वो नाँव कहाँ मिलथे।।

जब गीत मया गूँजय,हर गाँव गली पारा।
भगवान लगय मनखे,वो पाँव कहाँ मिलथे।।

चौपाल हवय गायब,गय गोठ सियानी हा।
मन मीत जुरे राहय,वो गाँव कहाँ मिलथे।।

परिवार घलो बटगे,अब दूर सगा पात्रे।
जब दर्द मया राहय,वो घाँव कहाँ मिलथे।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

Wednesday 11 September 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गा शंकर इजारदार



छत्तीसगढ़ी गजल

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222  221  1222

विक्कट तो मिलावट से बाजार सजत हावै ,
लुच्चा ग लफंगा से सरकार सजत हावै ।।

अब दूध मथानी मा माछी ह घलो नइये ,
दारू के तो भठ्ठी मा दरबार सजत हावै ।।

हे पूछ परख भारी चप्पल के चटइया के ,
दरपन के दिखइया बर तलवार सजत हावै।।

हे पाँव ग बिन चप्पल काँटा तो बिनइया के ,
थूम्भा के जगइया घर तो कार सजत हावै ।।

कोठी हे निचट खाली जे नाम किसानी हे ,
दाना के दलाली के व्यापार सजत हावै।।

अपनेच अपन मा तो दुनिया ह सिमट गे हे ,
बिन दाई ददा के अब परिवार सजत हावै ।।

मँय झूठ कहँव दुर्गा कउँवा ह धरे चाबे ,
लुबलाब हवय तेकर गलहार सजत हावै ।।

गजलकार-दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़ छत्तीसगढ़

Monday 9 September 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर



गज़ल

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222  221  1222

ए भइया गरम वाले कमजोर करम वाले
अखबार तहूँ ले ले ताजा हे गरम वाले

दमदार बियँग शैली सच खोज लिखे हावय
देरी ले समझ आही हे बात मरम वाले

परताप के दावा हा उघरे हे दिखावा हा
आजो हें छपे देखव दू चार शरम वाले

बइमान के पारी ला हर बात म गारी ला
मुँह मूँद सहत बइठे ईमान धरम वाले

हर बात म नटबे झन सुखदेव चिमटबे झन
जादा म भड़क जाही चुप शान्त बरम वाले

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

Monday 2 September 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-चोवाराम वर्मा"बादल"

गजल

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222 221 1222

रेंगत हे गलत रस्ता इंसान भटक जाही
 इरखा के हवय चिखला जिनगी ह अटक जाही

 हे जेब में पइसा तब ममहात सबो ला हे
 तैं देख अभी किरनी दू चार चटक जाही

 सरकारी हवय पइसा जोहत हे इहाँ कतको
आधा ल बताथे उन बड़का  ह गटक जाही

 वो मोर बने उड़थे सब बाग बगइचा मा
आँखी म शिकारी के उड़ना ह खटक जाही

 बइहाय हवच काबर कुछ काम बुता कर तैं
 मन तोर लुभा के वो तितली ह मटक जाही

  घेरे हे गरीबी हा दाइज ग  कहाँ  ले लानय
 होगे  हे फिकर भारी का बाप झटक जाही

 'बादल' ह थिरागे अब हे क्वांर सुघर आये
 ले ओस गिरत हावय सब धान छटक जाही

चोवा राम 'बादल '

छत्तीसगढ़ी गजल-दिलीप कुमार वर्मा

गजल -दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222 221 1222

मँय तोर मया खातिर,आगी ले गुजर जाहाँ।
धुतकार भले कतको,मँय तोर करा आहाँ।

मँय धीर धरइया हँव,जल्दी न हवय मोला।
भँवरा के सहीं रइहँव,तब तोर मया पाहाँ।

अवकात भले नइ हे, दू जून के रोटी के।
पर तोर मया पाये,मँय चाँद तको लाहाँ।

खेती हे न बारी हे, घर हे न दुवारी हे।
पर तोर रहे खातिर,मँय ताज ल बनवाहाँ।

गदहा के असन बोली,सुर बांस बजे फटहा।
अरमान जगाये बर,मँय गीत तको गाहाँ।

बस हाड़ बचे हावय, अउ जान बचे हावय।
मन तोर लुभाये बर,मँय मार तको खाहाँ।

मजनू न बनँव मँय हा, मँय हीर तको नो हँव।
कलजुग के मयारू हँव,मँय मार के मर जाहाँ।

दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार

Friday 12 July 2019

छत्तीसगढ़ी गज़ल - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

सुखदेव सिंह अहिलेश्वर के छत्तीसगढ़ी गज़ल

गज़ल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

चार दिन बचपना हे माफी मा
शेष जिनगी हिसाब कापी मा

आज उड़ ले अगास भर तोरे
कल समाना हे पाँव माटी मा

तोर लठिया अभी हे अँटियाले
एक दिन फुटही मूड़ लाठी मा

सोच के देख कोन ला भाही?
रोज कोदो दरइ हा छाती मा

कोइला राख कङ्गला करही
देख होरा भुँजइ ह छानी मा

चार पइसा किंजर कमा डारे
खोज डारे तैं खोट साथी मा

धरले सुखदेव सत के धारन ला
बइठना हे समय के चाकी मा

गज़ल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

संगवारी असाढ़ आगे हे
श्याम रंगी बदरिया छा गे हे

हारे हपटे गिरे थके झुलसे
फेर उल्हे के आस जागे हे

चैत बैसाख जेठ के झोला
तोर अगोरा करत सहागे हे

तँय झमाझम बने बरस आँसो
पउर मुड़ मा फिकर बसा गे हे

बूड़ झन जाय अब उबारव गा
भुँइ के भगवान अकबका गे हे

छेना लकड़ी जतन मगन बैठे
छानी परवा खदर छवा गे हे

तोर कर हे परोस ज्ञान अमरित
मंद-मउहा इहाँ बँटा गे हे

कर दे सहयोग बाँच जाहूँ मँय
हाथ पखना तरी चपा गे हे

अरतता अरतता अमरवाणी
आज सुखदेव ला सुना गे हे

गज़ल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

गोठियइया गजब हवैं भइया
पाँच सच्चा पचीस भरमइया

आदमी ला चरात हें अइसे
जस चराथे ग बरदिहा गइया

घाट भर हें बुड़ोय बर डोंगा
एक दुइ चार पार नहकइया

दे पँदोली चढ़ात हें बिरले
कोरी खइखा हें टाँग खींचइया

गाय गरुवा गली म घूमत हे
चैन के नींद सोय गोसइया

माँग के वोट मोठ ओ हो गे
रोज दुबराय वोट देवइया

नानपन के खियाल कर बेटा
तब समझबे ग कोने सम्हरइया

टोक दे थें सहीं करइया ला
पर गलत के न एक बरजइया

देख सुखदेव मूँद झन आँखी
जान चिन्ह ले छुड़इया अरझइया

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

Tuesday 9 July 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

 (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

 2122  1212  22
~~~~~~~~~~~~~
एक चिनहा अपन बनाले तैं
गाँव मा जस धरम कमाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~
काम जादा बड़े तो नोहै जी
पेड़ हर घर गली लगाले तैं
~~~~~~~~~~~~~
बैठही रेंगईयाँ मनखे मन
छाँव एकाक तो सजाले तैं
~~~~~~~~~~~~~
जेठ के घाम जोर मारय जी
जल चिराई घलो पियाले तै
~~~~~~~~~~~~~
खाही बासी बइठ नँगरिहा मन
मेंड़ मा रुख बने जगाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~
स्रोत गहिलात हर समय दिन दिन
लउहा बदरी ला झट बलाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~~
सुन मलरिहा बुता सबो होही
अब धरा ला हरा बनाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~~

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

 (2)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122   2122   212

फेर बादर हा निचट तरसात हे
घूम फिरके कति मुड़ा मा जात हे

बड़ बिपत छागे इही सावन समै
चैत जइसे देखतो भभकात हे

पंप अउ ट्यूबेल के का काम हे
पानी गहिरागे न कछु टमरात हे

होत झगरा बड़ नहर के धार बर
रात दिन संसो गझावत आत हे

लागथे कुदरत भुलागे गाँव ला
नदिया-तरिया ला घलो अटवात हे

जीवमन तड़पत मरत हे प्यास मा
आन के करनी दुसर पेरात हे

पेड़-जंगल ही बलाथे पानी ला
आज के बेरा, इही समझात हे

सुन मलरिहा जल पवन प्रकाश सब
ये धरा ला तो इही महकात हे ।


गजलकार - मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़
_______________________

Tuesday 2 July 2019

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

मोर माथा म का लिखाये हे।
भाग मा मोर काय आये हे।

खीर पूड़ी बने रहे घर मा।
चोर करिया सबो ल खाये हे।

जेन ले मँय मया करे चाहँव।
तेन दूसर के सँग भगाये हे।

छोड़ दे आज ले गुलामी ला।
तोर पुरखा बहुत बचाये हे।

रात कस हो गये हवय दिन हा।
केंश कोनो सखी सुखाये हे।

जेन मुखिया बने करे गलती।
तेन थपरा तको जी खाये हे।

हारगे हे कतेक राजा मन।
जेन जनता रहे भुलाये हे।

पाँव ओखर उखड़ जथे साथी।
जेन के नींव डगमगाये हे।

भाग के लाज ला बचा पप्पू।
तोर पाछू कुकुर छुवाये हे। 

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

देख माटी नमी ल खोये हे।
दुःख भारी किसान ढोये हे।

धान पाबो बने यहू बारी
आस भारी सबो सँजोये हे।

देख के दुख किसान के भारी।
देव बरसा तुरत पठोये हे।

टोर जाँगर किसान हा बोवय।
धान भाँठा रखे सरोये हे।

चोर चोरी करे भगा जाथे।
कोन छेंकय सबो तो सोये हे।

आम कइसे मिले बता संगी।
जेन अँगना बबूल बोये हे।

मार देथे बने रहे हीरो।
हाथ आथे तहाँ ले रोये हे।

ओ मसीहा बने हवय भाई।
पाप के दाग सब ल धोये हे।

मान लेवव दिलीप के कहना।
घाम चुंदी कहाँ पकोये हे।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

जब ले बाई सुराग पाये हे।
जान मुश्किल म मोर आये हे।

दान दाता हवय इहाँ भारी।
भीख मंगा बहुत बनाये हे।

हार पहिरे गली म झन जाबे।
दिन दहाड़े बहुत लुटाये हे।

कोन बिसवास अब करे बतला।
भाई भाई ल अब ठठाये हे।

भाग जाथौं उँखर दुवारी ले।
देख करिया कुकुर बँधाये हे।

सोर करथे हमर ददा दाई।
दुःख पा के बड़े बढ़ाये हे।

जब ले बेटा दलीप के बाढ़े।
रात दिन बोल के पकाये हे।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (4)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

भूत ठाढ़े कहूँ दुवारी मा।
चीर देबो पकड़ के आरी मा।

जेन रेंगे सकय नही भाई।
तेन दउड़य परे तुतारी मा।

सास झगरा करे ल नइ जानय।
बीत जाथे समे ह चारी मा।

देख गोरी टुरी तको हावय।
मोर हिरदे लगे हे कारी मा।

छेंक नरवा रखव तको गरुवा।
आज घुरुवा बनाव बारी मा।

देव हर सब करा कहाँ रइही।
भेज देहे मया ल नारी मा।

मोर झगरा बने बढ़े हावय।
रोस आथे बड़ा सुवारी मा।

जेन गुस्सा रहे उड़ा जाथे।
देख आथे मया ह सारी मा।

सेठ के पेट का समाये हे।
माल पाये दुकान दारी मा।

देह कपड़ा भले रहय झन जी।
घीव खाले मिले उधारी मा।

दाम लेके सबो सताये हे।
भाग जाथे ग मोर पारी मा।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (5)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

छंद सीखे सबो सधाये हे।
जेन साधे उही ह पाये हे।

खोल आँखी बने बने देखव।
कोन काला कहाँ लुकाये हे।

आज अठरा घलो कहाँ रहिथे।
देख टूरा टुरी भगाये हे।

ओ जवानी रहय जवानी जी।
चार बाई बबा चलाये हे।

नाक अँगड़ी कभू करव झन जी।
जेन करथे ओ मार खाये हे।

चोर बनके चुराय हे दिल ला।
बेंच पइसा बहुत कमाये हे।

नाक नकटा के बाढ़ जाथे जी।
लाज ओला कभू न आये हे।

राम के नाम ला भजव भाई।
नाथ बिगड़ी सबो बनाये हे।

मौन रहिके रहय अपन घर मा।
मान जिनगी बने पहाये हे।

गजलकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

Monday 1 July 2019

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

बहर-2122-1212-22

चारो' मूड़ा बवाल होवत हे।
आनी' बानी धमाल होवत हे।

कोन आसो चुनाव जीतत हे
बस इही अब सवाल होवत हे।

वायदा जीत के अपन भूले
आज नेता दलाल होवत हे।

रोज के योजना नवा लावय
अब दिनोदिन कमाल होवत हे।

भूले' संस्कार आज के बेटा
बाप घर ले निकाल होवत हे।

रोज पीके चलय डगर मनखे
मंद हा जीव काल होवत हे।

आज चाऊँर मिल जथे सस्ता
फेर महँगा जी' दाल होवत हे।

मार महँगाई' के परे थपरा
आम जनता हलाल होवत हे।

'ज्ञानु' बीतत सजा बरोबर हे
जिन्दगी तंगहाल होवत हे।

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122-1212-22

आज मन हा उदास हे काबर।
देख दुनियाँ हतास  हे काबर।

रट्ट ले टोर देथे* हिरदै ला
जें बहुत दिल के* खास हे काबर।

भूल कइसे जहूँ मयारू ला
दूर रहिके भी* पास हे काबर।

देखले हाल अन्नदाता के
रोजके भूख प्यास हे काबर।

देखके सावचेत रह बेटी
आदमी बदहवास हे काबर।

मिलही* छइहाँ इहाँ कहाँ ले जी
पेड़ पौधा विनास हे काबर।

'ज्ञानु' आही कि नही ये* अच्छा दिन
आज ले फेर आस हे काबर। ।

छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122-1212-22

चार दिन बर मिले हवय जिनगी।
फूल कस ये खिले हवय जिनगी।

आज ले नइ दिखिस हे अच्छा दिन
दुख दरद मा हिले हवय जिनगी।

कोन सुनथे गुहार का हमरो
जानके मुँह सिले हवय जिनगी।

कुछ मिलय तो सुझाव कुछु कखरो
मार  मंतर ढ़िले हवय जिनगी।

घाम का छाँव का कभू जाड़ा
'ज्ञानु' रोजे छिले हवय जिनगी।


छ्त्तीसगढ़ी गज़ल - ज्ञानुदास मानिकपुरी (4)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122-1212-22

ओढ़ कथरी ल घीव खावत हे।
राग अपने ल बस सुनावत हे।

राम मुख मा जपत जमाना हे
अउ बगल मा छुरी दबावत हे।

लाज मरगे घलो इहाँ गिरगिट
रंग मनखे अपन दिखावत हे।

आज पहिचानना हवय मुश्किल
चेहरा सब अपन छिपावत हे।

नाम सरकार बस हवय भइया
काज कखरो कहाँ बनावत हे।

जोड़ रिश्ता मया मयारू हा
अब मया के चिन्हा मिटावत हे।

"ज्ञानु" अँधियार हे मया बिन ये
जग तभे प्रेम गीत गावत हे।

गजलकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम - चंदैनी , कबीरधाम
छत्तीसगढ़

Saturday 29 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"

छत्तीसगढ़ी गजल - गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

(2122  1212  22)

दोस्ती  मोर  बड़  निराला हे।
मैं  सुदामा  वो नन्द लाला हे।।

मैं  गरम  चाय  केटली  भाई।
प्रेम  के  मीठ  वो पियाला हे।।

वो मसीहा गरीब मन बर जी।
मैं  पुजारी  उही  शिवाला  हे।।

घोरथे रस  मया  निरन्तर वो।
मैं दुखी  दीन भाग  काला हे।।

का कहौं मोर दुख कहानी ला।
हे  सखा  देख  हाथ  छाला हे।।

घोर  संकट परे  सहौं बिपदा।
मोर किस्मत के बंद ताला हे।।

हे गजानन्द दुख बरोबर सुख।
जीत मन  के उहाँ  उजाला हे।।

गजलकार- इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

Thursday 27 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू "मितान"

छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू "मितान"

मनीराम साहू: छत्तीसगढ़ी गजल (1)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

बहर 2122, 2122, 212

गोठ हाबय सार भइया मान ले।
पेड़  होथे देंवता कस जान ले।

ये ह जीथे गा सुवारथ छोड़ के,
झन कटय तैं आज मन मा ठान ले।

पर जथन बीमार तव देथे दवा,
ठीक कर देथे अपन जर पान ले।

पेड़ बिन जिनगी अधूरा गा हवय,
नइ मिलय सुख जान कोनो आन ले।

नइ सकय वो बोल नइ वो हर चलै
आस करथे फेर गा इन्सान ले।

मीत हे गा जान झन तैं कर दगा,
मान ले तैं डर चिटिक भगवान ले।

हाथ जोरे हे कहत तोला 'मितान',
राख ले तैं कर जतन ईमान ले।

मनीराम साहू: छत्तीसगढ़ी गजल (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22

तोर सुरता अबड़ के*आथे गा,
रोज आके जिया जलाथे गा।

रात दिन ये चिन्है नही बेरा,
मोर पीरा नँगत बढ़ाथे गा।

बंद रखथवँ कपाट अंतस के,
पेल भीतर खुसर ये*जाथे गा।

खोभ रखथे अबड़ के*आँखी ले,
नीद आवत ल ये भगाथे गा।

भूख डरथे नँगत के*एकर ले,
प्यास जाने कहाँ लुकाथे गा।

गोठ मीठा रथे बिकट एकर,
स्वाद पाछू करू जनाथे गा।

आ जथे ये 'मितान' हो काहत,
फेर बइरी असन सताथे गा।

       
मनीराम साहू: छत्तीसगढ़ी गजल (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22

चार दिन के हवय ठिकाना गा।
हाँस गाले मया तराना गा।

छोड़ जाबे बलाव आही तब,
तोर चलही कहाँ बहाना गा।

काम आवय नही नता रिश्ता,
तोर दौलत महल खजाना गा।

पुन्य भर हा बँधाय जाही तब,
पाप काबर इहाँ कमाना गा।

गोठियाले हली-भली सबले,
मारबे झन कभूच ताना गा।

जान पीरा अपन सही सब के,
छोड़ दे तैं अपन बिराना गा।

तैं मितानी 'मितान' के रखले,
पोठ हाबय इही हा* दाना गा।

गजलकार - मनीराम साहू 'मितान'
ग्राम - कचलोन सिमगा जिला - भाटापारा
छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल - अजय अमृतांशु

छत्तीसगढ़ी गजल - अजय अमृतांशु

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122   1212   22

तोर सुग्घर करम के ये फल हे ।
रुख लगाये बने तभे जल हे।

पेंड झन काट बनके बइहा तैं।
पेंड हे सिरतो मा तभे कल हे।

चेत झन जाय बिरथा पानी हा।
पानी ले मनखे के सबो बल हे।

आय गरमी सबो हवय प्यासे।
झार सूखा परे हवय नल हे।

पानी ला तैं बचा के रख भाई।
तोर संकट के अतके जी हल हे।

राख ले तैं सहेज के सब ला।
आज के तोर कीमती पल हे।

गजलकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़

Wednesday 26 June 2019

चोवा राम "बादल": छत्तीसगढ़ी गजल

चोवा राम "बादल": छत्तीसगढ़ी गजल

छत्तीसगढ़ी गजल (1)


बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


2122 2122 212

मोह माया ले अपन मुख मोड़ के
रेंग दिस पुरखा सबो ला छोड़ के।

आज  बेटा हा उराठिल हे कहे
बाप के हिरदे ल रट ले तोड़ के ।

झन भरोसा आन के करबे गड़ी
कर भरोसा हाथ खुद के गोड़ के ।

भाग जाहीं उन सबो हुशियार मन
ठीकरा ला तोर मूँड़ी  फोड़ के ।

नींद भाँजत हे अजी रखवार हा
चल उठाबो जोर से झंझोड़ के ।

पेट भर जी अन्न पानी मिल जही
काय करबे दाँत चाबे जोड़ के ।

फेंक देही जेन ला माने अपन
देख "बादल" तोर जर ला कोड़ के

                 चोवा राम "बादल "👍
                     हथबन्द (छग)

छत्तीसगढ़ी गजल (2)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122 2122 212

बात ला तैं गोठियाना फोर के।
बोल जी सच ला बने दंदोर के ।

 पाँच परगट रेंग रद्दा साफ तँय
 मुँह लुकाना काम होथे चोर के।

 का  चरे ला छोड़ देही खेत ला
  कोन करही जी भरोसा  ढोर के।

 देख हमला फेर कर दिच पाक हा
  मन भरे नइये अभी लतखोर के।

 पेड़ ला सब काट के हम सोचथन
 कोइली हा गीत गावय  भोर के ।

 पाट के नरवा ल अब पछतात हन
    मौत आगे  हे कुआँ अउ बोर के।

 ले जगा बखरी ल मौका हे मिले
साग ताजा राँध लेबे टोर के।

          चोवा राम "बादल "
             हथबन्द (छग)


  छत्तीसगढ़ी गजल  (3)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122 2122 212

खोंट ला धो लव मया के धार मा।
आत्मा ला रंग लव त्योहार मा।

आज होली के परब हावय सुघर
पेड़ एको ठन लगादव पार मा ।

खेत मा अबड़े दवा डारत हवँन
स्वाद चिटको नइये* चाउँर दार मा।

जोर ले दू चार पैसा आज ले
काम आही एक दिन परिवार मा।

बात घर के दोब के तैं राख ले
फोकटइहा चाल झन गा चार मा।

रास्ता ला तैं गलत पकड़े हवच
धन लुटावत हच शहर के बार मा ।

खोज झन भगवान ला पगलाय कस
शांत हो जा मिल जही घर द्वार मा ।

            चोवा राम "बादल "
                हथबन्द (छग)


   छत्तीसगढ़ी गजल (4)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

 2122 1212 22

मोर घर मा कहाँ उदासी हे।
भोग छप्पन बनेच बासी हे।

चार मंजिल  हवय ठिकाना हा
चोरहा के उहें तलासी हे।

छेद करही अभी करेजा मा
गोठ के वो धरे पटासी हे।

ढार दारू गिलास मा तैं हा
आज मन मा अबड़ थकासी हे।

देख मंत्री बने हवय अड़हा
मोर बेटा पढ़े खलासी हे।

खेत मजदूर के हवे भाँठा
गौंटिया के बने मटासी हे।

होम मा हाथ हा जरे "बादल"
झन बता तैं सुने म हाँसी हे।

   चोवा राम "बादल "
      हथबन्द (छग)
       

  छत्तीसगढ़ी गजल (5)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

 2122 12 12 22

हाँके तैं बिन लगाम के संगी ।
गाड़ी गिरगे धड़ाम ले संगी।

ताना मारे बिना बिचारे गा
फेंके चिखला खुदे सने संगी।

बिरथा हावय धरम दिखावा ये
दान लालच म तैं दिये संगी।

कोन हे ठगवा गम कहाँ पाबे
संत कस चोला हे सजे संगी ।

काटे जंगल सड़क बना डारे
भादो मा भोंभरा जरे संगी।

राग धरके बजा बजा ढपली
नारा ला भोथरा गढ़े संगी।

मूंद लवँ कान हा पिरागे हे
तोर भाषण अबड़ रथे संगी।

  चोवा राम "बादल "
      हथबन्द (छग)
 
   
  छत्तीसगढ़ी गजल (6)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
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2122 1212 22

काम डिगरी ह नइ तो आवत हे।
रोज पनही बहुत घिसावत हे ।

हाथ बर काम बूता नइये कुछु
कारखाना मशीन लावत हे।

जतका ठन हे अनार के फर हा
पइसा  वाला खरीद खावत हे।

ठलहा  बेटा पढ़े लिखे हावय
शादी  ओकर कहाँ हो पावत हे।

छाय हावय नवा चलागन हा
घानी धुँकनी इहाँ नँदावत हे।

भूँखहा बोमफार के रोवय
पेट जेकर भरे वो  गावत हे ।

जीव लेवा हवा भरे धुँगिया
देख "बादल " घलो नठावत हे।


       चोवा राम "बादल "
           हथबन्द (छग)

       
छत्तीसगढ़ी गजल (7)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

प्यार मा जेन मात खाये हे
 फाँसी चढ़ जान ला  गँवाये हे

 आय जिनगी निचत जहर कड़वा
 मीठ हे  कोन हा बताये हे

 गोठ फोकट करे हवय ओहा
 चाँद ला कोन तोड़ लाये हे


 देश बर बूंद भर लहू नइये
 तोर बर खून ला बहाये हे

 ऐन   मौका लुका छटक देइच
 छाती जब्बर अपन  बताये हे

 झाँक धनवान के महल भीतर
 कोन सरकार हा बँधाये हे

 का भरोसा जुबान के ओकर
 मूँड़ डोला कहाँ निभाये  हे

गजलकार - चोवा राम "बादल "
        हथबन्द, छत्तीसगढ़

Tuesday 25 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मोहन लाल वर्मा

मोहन लाल वर्मा: छत्तीसगढ़ी गजल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
           
2122 - 1212  -22
   
     पर भरोसा उमर पहावत हे।
     शान झूठा अपन दिखावत हे।

     नाँव के जेन आय जी बड़का,
     खानदानी भले कहावत हे।

      राम-रहमान के कहानी ला,
     आज लइका हमर भुलावत हे।

      मोटरा भर धरे हवय पइसा,
      नींद मा फेर बड़बड़ावत हे।

      ढेंखरा मा चढ़े करेला हा,
      टेटका तीर मुचमुचावत हे।

      मूँड़ मा जेकरे हवय पागा,
      वो नता मा बड़े गिनावत हे।

      नइ बिकय जी दया-मया "मोहन"
       पार हाँका खुदे बतावत हे।

                       -- मोहन लाल वर्मा
      ----------------------------------------
मोहन लाल वर्मा: छत्तीसगढ़ी गजल

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
     
2122- 1212 - 22
     
      बात छोटे गहिर इशारा हे।
      पेड़ ले घात रोंठ डारा  हे।।

      मानथँव खून के हवय रिश्ता,
       पीठ पाछू दताय आरा हे।

       देखथे वो सुते- सुते सपना,
       चोर  घर मा लगाय तारा हे।

      चाम होगे कमा-कमा करिया,
       खेत गिरवी धरे बिचारा हे।

       बाप के नइ सुनँय बहू-बेटा,
       आज घर-घर इही नजारा हे।

       देश खातिर परान दे  देबो ,
       ये तिरंगा हमर पिँयारा हे।

       तान छाती खड़े हवय "मोहन"
       वीरता के बजत नगारा हे।

         ----- मोहन लाल वर्मा
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Monday 24 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - दुर्गाशंकर इजारदार

दुर्गाशंकर इजारदार: छत्तीसगढ़ी गजल (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122,1212,22

आज सच के कहाँ पुछारी हे ।
झूठ के नाम बड़ ग भारी हे ।।

साव पाछू पुलिस पड़े हावै ।
चोर के संग मा ग यारी हे ।।

ढीठ बइला चरे हरा चारा ।
पीठ सिधवा परे तुतारी हे ।।

झूठ के वाह जेन ला भावय।
बात सच लागथे ग गारी हे ।।

रहिबे कुसियार तँय बने कब तक ।
अब तो' रे जाग तोर पारी हे ।।

भूख अउ प्यास के फिकर झन कर ।
सत्ता मा हाँव हाँव जारी हे ।।

बेंदरा बन उजाड़ डारिस वो ।
जेकरे नाम कोटवारी हे ।।

दुःख पीरा हरे के हे वादा,
सुक्खा नदियाँ बहान जारी हे ।।

बात कइसे ग सच कहय दुर्गा ,
ओकरे बर तो सच ह चारी हे ।।

दुर्गा शंकर इजारदार : छत्तीसगढ़ी गजल (2)

2122,1212,22

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

आज कल के  गजब कहानी हे ।
सास ले अब बहू सयानी हे ।।

पत्नि गौंटिन कहात हावय अउ ।
घर म दाई तो नौकरानी हे ।।

ढोलगी हर भरे हवै ओकर ।
जेकरे बात मा लमानी हे ।।

मुखिया हावय उपास वो घर मा ।
नाम मा जेकरे किसानी हे ।।

बीत गे हे उमर ढलाई मा ।
ओकरे छत खदर के छानी हे ।।

खेत डोली बहे जिहाँ नदिया ।
उँहचे बोतल भराय पानी हे ।।

होत हे सब जथर कथर दुर्गा ।
अब कहाँ घोर घोर रानी हे ।।


दुर्गाशंकर इजारदार: छत्तीसगढ़ी गजल (3)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

 2122,2122,212

घोप दे हे छल कपट के नार हा ,
मतलबी होगे सरी संसार हा ।।

कारखाना तो बनत हावय बहुत ,
अब कहाँ फरही जी तेन्दू चार हा ।।

बाप बेटा मा कहाँ दिखथे मया
ठाढ़ सुक्खा हे मया  के टार हा ।।

कोन उठथे देख के सुकवा इहाँ ,
अब कहाँ गोबर लिपाथे द्वार हा ।।

हे समय दुर्गा अभी भी चेत तँय ,
बाँच जाही जी टुटे बर डार हा ।।

दुर्गाशंकर इजारदार : छत्तीसगढ़ी गजल (4)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122,2122,212

का बतावँव देश के का हाल हे ,
चोर डाकू मन तो' मालामाल हे ।।

कोलिहा तो सान मारत हे इँहा ,
ओढ़ के तो देख बघवा खाल हे ।।

सौंप देंहन हाथ मा बारी सबो ,
बेंदरा कस तो चलत अब चाल हे ।।

बाँध दारे धार ला वो बात मा ,
गोठ मा नेता कहाँ कंगाल हे ।।

गोठ करथे मीठ शक्कर घोर वो ,
मन भरे हे नार फाँसा जाल हे ।।

छाँव मिलथे जी कहाँ रुख ताल में,
ढूलथे पानी सदा जी ढाल हे ।।

गजलकार - दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़, छत्तीसगढ़

Friday 21 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी गजल - आशा देशमुख

गजल - 1

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122   2122   212

आज मनखे पेड़ जंगल काट के
घर बनावै ताल नदिया पाट के।

गाँव के सुख दुख समेटे जेन मन
आज देखौ दुर्दशा सब घाट के।

त्याग के शिक्षा बतावँय रात दिन
धन उही मन हें वसूलँय हाट के।

रेंग के आये मया के मोटरी
अब चिन्हारी हे कहाँ वो बाट के।

नींद खोजै कब बिछौना मखमली
 आज भी संगी हवय वो टाट के।

वाह तोला का कहँव रे पोसवा
होत चर्चा तोर अब खुर्राट के।

पाय कुरसी जे कभू बैठे दरी।
 देख आशा आज उंखर ठाट के।

ग़ज़ल - 2

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122,,2122,,212

आव होली खेल लव रँग डार के
बैर इरखा द्वेष ला सब बार के ।

चल गिंयाँ    धरबो मया के ताग ला
प्रेम सुम्मत नींव हे परिवार  के।

राज जिनगी के छुपे हे रंग मा
सब अलग हे जीव मन संसार के।

ये मया के सूत्र जानव त्याग मा
जीत जाहू मान बाजी हार के।

माँग झन दे बर घलो सब सीख लव।
गुण भरव सुमता दया संस्कार के।

काम भी आये नही वरदान हा
संग धरथे जेन अत्याचार के।

सब ख़ुशी आनन्द मा डूबे हवे।
छंद के गंगा बहे सतधार के।

गजल - 3

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122   2122  212

देख गरमी मा सबो हलकान हे
प्यास मा सबके सुखावत प्रान हे।1

रोज तो जंगल कटावत हे इहाँ
जीव पंछी मन सबो परेशान हे।2

सोच के मन होय भारी दुख लगे
स्वार्थ के चारो डहर तूफ़ान हे।3

बोर नदिया ताल सब सूखत हवे
का कहूँ ला होत येखर भान हे।4

रोय धरती रोज छाती फाड़ के
पर सुने नइ देख सब अंजान हे।5

का कहँव अइसे जमाना आ गए
रोय लकड़ी बर चिता शमशान हे।6

लाय कइसे कोन खुशहाली इहाँ
देख आशा सब डहर वीरान हे।7

गजल - 4

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122  1212  22

झूठ अब्बड़ इहाँ चले संगी
आज सच हा कहाँ पले संगी।1।

मन गली मातगे हवे चिखला
प्रेम के पान हा गले संगी।2।

हर नता मा भरे हवे स्वारथ
मोह के राग हा छले संगी।3।

फ़ैल गे हे बबूल के डारा
मीठ आमा कहाँ फले संगी।4।

बैठ जुच्छा समय गुजारे मा
बाद मा हाथ बस मले संगी।5।

आज मनखे जिए दिखावा मा
खेत बारी बिके भले संगी।6।

धूल आँधी हवा बिगाड़े कब
आस के ज्योत जब जले संगी।7।

ग़ज़ल - 5
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122,1212,22

गीत सुनलव नवा जमाना के
गाय कइसे बिना तराना के ।1।

देख चलथे सबो डहर बदरा
मोल हावय न पोठ दाना के।2।

आय फैशन कटे फटे कपड़ा
लाज संस्कृति बिना ठिकाना के।3

छाय भाखा विदेश के देखव
अब कहाँ प्रेम बोल हाना के।4।

छाँव आशीष बर कहाँ हावय
पेड़ सुक्खा तना न पाना के।5।

ताल सुर मन घलो सिसक रोंवय
छीन गे  रंग रूप गाना के।6।

राज करथे सबो लुटेरा मन
कोन रक्षा करय खजाना के।7।

ग़ज़ल - 6

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122,1212,22

एक नक्शा नवा बनत हावय
देश दुनियाँ सबो जुड़त हावय।1।

सोन चिड़िया फुदुक फुदुक आही
पेड़ पौधा बने फरत हावय।2।

घर उही हा लगय सरग जइसे
मान ममता मया सुमत हावय।3।

माथ चंदन भले दिखावा मा
श्रम तरी मा घलो भगत हावय।4।

जान लव दूध घी दही के गुण
देख लेवव अभो बखत हावत।5

खुद भरोसा रखव अपन मन मा
मान ईमान तक बिकत हावय।6।

घोर अँधियार का बिगाड़े जी
ज्योति आशा जिंहाँ जलत हावय।7।

ग़ज़ल - 7

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122  1212  22

तीपगे भोंभरा जरे अब्बड़
ये सुरुज मा अगिन भरे अब्बड़।1

रात दिन झांझ लू हवा चलथे
ये हवा हा उमस धरे अब्बड़।2

बोर नदिया कुँआ सुखागे हे
बस पसीना हमर झरे अब्बड़।3

पेड़ जंगल सबो कटावत हे
देख आँसू घलो ढरे अब्बड़।4

कोयली बैठ के सुघर कुहके
डार आमा लदे फरे अब्बड़।5

ये हवा अउ सुरुज के जोड़ी हा
आज मिलके दुनो छरे अब्बड़।6

पाय मिहनत बिना न धन कोनो
कोढ़िया काम से डरे अब्बड़।7

राख घर साफ फेंक दे कचरा
गंदगी होय अउ सरे अब्बड़।8

देख जाथे कहाँ चढ़ावा हा
दान सोचे बिना करे अब्बड़।9।


गजलकार - आशा देशमुख
एन टी पी सी जमनीपाली,कोरबा
छत्तीसगढ़

Monday 17 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

छत्तीसगढ़ी गजल- (1)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
बहर- 2122  1212  22

संत  गुरु  ज्ञान  पाठशाला  हे।
सच कहौं जग तभे उजाला हे।।

मान  भगवान  जी  ददा  दाई।
पाँव  गुरु  के  इहाँ शिवाला हे।।

देख डॉक्टर नजीर  बनगे अउ।
ज्ञान गुरु  पाय  कोट  काला हे।।

लाँघ  पर्वत  बड़े  बड़े  डारिन।
चाँद  मा  पाँव  बीर  बाला  हे।।

नित गजानन्द हा करै विनती।
गुरु के महिमा बड़ा निराला हे।।

इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ी गजल- (2)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
(2122  1212  22)

पेड़  समता  चलव  उगाना  हे।
फूल  सुमता  इहाँ  खिलाना हे।।

राज परदेशिया चलन झन दव।
लाज मिलके अपन  बचाना हे।।

पेड़  पानी  जमीन  कर  रक्षा।
मान  छत्तीसगढ़   बढ़ाना  हे।।

दूर करबो चलव गरीबी मिल।
दुःख अँधियार ला मिटाना हे।।

पेट खाली रहे  हमर झन अब।
रोज  हर  हाथ  काम पाना हे।।

गाँव दिखही शहर चकाचक जी।
काम कुछ  नेक कर दिखाना हे।।

कह  गजानंद हाथ जोड़े  जी।
थाम  बइहाँ  गिरे  उठाना  हे।।

इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ी गजल - (3)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
(2122  1212  22)
दाई  छत्तीसगढ़  कहौं मइयाँ।
छाँव अँचरा तुँहर रहौं मइयाँ।।

आरती ला सजा सुमन सुमता।
तेल हित दीप भर  बरौं मइयाँ।।

पाँव धोवँव  महानदी अरपा।
माथ चन्दन धरा भरौं मइयाँ।।

गीत  करमा मया  सुवा पंथी।
फूल बन ददरिया झरौं मइँया।।

पंच  कुंडी  गिरौद सत  धारा।
कुंभ राजिम नहा तरौं मइयाँ।।

बोल  घासी  कबीर जग गूँजे।
राम तुलसी बचन धरौं मइयाँ।।

ये  गजानंद  तोर  बन  बेटा।
रोज सेवा जतन करौं मइयाँ।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ी गजल- (4)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
(2122  1212  22)

चल करम धाम गाँव पाबो जी।
आम बर नीम छाँव  पाबो जी।।

साँस  अरझे  बिना  ददा  दाई।
रूप  भगवान  पाँव  पाबो जी।।

मन जराथे  हवा शहर  के तो।
चल नदी  तीर ठाँव पाबो जी।।

मीठ  बोली सुनौं सखा  संगी।
बचपना खेल  दाँव पाबो जी।।

भाव  समता उहाँ  बसे  भारी।
नित शहर भेद घांव पाबो जी।।

कोयली   कूहके   मया  बोली।
पर शहर काँव काँव पाबो जी।।

जान  छत्तीसगढ़  उँहे  बसथे।
अउ गजानंद  नाँव  पाबो जी।।

इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

छत्तीसगढ़ी गजल - (5)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
बहर- 2122 1212  22

सच हा जग मा महान होथे जी।
झूठ  के कब  बखान  होथे जी।।

छल कपट के भरे  जमाना मा।
कोन  काकर मितान होथे जी।।

मेहनत के चखौ सदा फल ला।
मीठ  जइसे  जुबान होथे  जी।।

पाठ  इंसानियत  सिखावय जे।
ग्रंथ   गीता  कुरान   होथे  जी।।

देश  भारत  अखण्डता के  हे।
सोंच  हमला  गुमान  होथे जी।।

मान  छत्तीसगढ़  धरौं  मैं  हा।
सुन जिहाँ खूब धान होथे जी।।

जान  ले सत्यबोध  गुरु  बाना।
ज्ञान गुरु सब सुजान होथे जी।।

गजलकार - इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)

Thursday 13 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के 5 गजल
 (छत्तीसगढ़ी) बहर में
बहर-2122 1212 22

छत्तीसगढ़ी गजल

1,गर्मी जेठ के (गजल)

जेठ आगी बरत हवै भारी।
तन चटाचट जरत हवै भारी।1।

हाल बेहाल हे सबे झन के।
तन ले पानी झरत हवै भारी।2।

बैरी बनके सुरुज नरायण हा।
चैन सुख ला चरत हवै भारी।3।

झाँझ झोला घलो चले रहिरहि,
देख जिवरा डरत हवै भारी।4।

बांध तरिया दिखत हवै सुख्खा,
रोना जल बर परत हवै भारी।5।

डोले डारा चले न पुरवइया।
घर म भभकी भरत हवै भारी।6।

खैरझिटिया न खैर अब तोरे।
गर्मी दिन दिन फरत हवै भारी।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)

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2,गजल(छत्तीसगढ़ी)

रात दिन मन खसर मसर होही।
ता भला का गुजर बसर होही।1।

हाथ आही चिटिक अकन कुछु हा।
अउ खइत्ता पसर पसर होही।2।

लोग लइका सगा दिही धोखा।
ता बने मन म का असर होही।3।

आदमी आदमी कहाही का।
मीत ममता मया कसर होही।4।

खैरझिटिया बचे नही काया।
जल बिना थल ठसर ठसर होही।5।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)
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3,गजल(छत्तीसगढ़ी)

छल कपट मुँह उलाय झन भैया।
तोर सुरता भुलाय झन भैया।1।

देबे कुछु भी ठठा बजा देबे।
माँगे बेरा झुलाय झन भैया।2।

सुध बचा होश मा रबे हरदम।
पासा जइसे ढुलाय झन भैया।3।

झूठ मक्कार के जमाना हे।
कोनो तोला रुलाय झन भैया।4।

मार मालिस चघा चना मा जी।
फुग्गा कस फुलाय झन भैया।5।

फेंक चारा गरी फँसा कोई।
आ आ कहिके बुलाय झन भैया।6।

खोचका खन के खैरझिटिया गा।
सेज कहिके सुलाय झन भैया।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)
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4,गजल(छत्तीसगढ़ी)

बात बानी सुने कहाँ कोई।
आज मनखे गुने कहाँ कोई।1।

अब फिकर जान के घलो नइहे।
मेकरा कस जाल बुने कहाँ कोई।2।

मन म इरखा दुवेस के बदरा।
मोह माया फुने कहाँ कोई।3।

कद अहंकार के बढ़े निसदिन।
फेर ओला चुने कहाँ कोई।4।

मरते रह भूख खैरझटिया।
तोर बर कुछु भुने कहाँ कोई।5।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)
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5,,गजल(छत्तीसगढ़ी)

दुख दबाके चलेल लगही जी।
चोट खाके पलेल लगही जी।2।

भूख पर के भगाये बर तोला।
दार जइसन गलेल लगही जी।2।

काँपही रात मा जिया कखरो।
दीप बन तब जलेल लगही जी।3।

घाम अउ छाँव मान सुख दुख ला।
मन म दूनो मलेल लगही जी।4।

बैर रखके दिही दगा कोई।
बनके छलिया छलेल लगही जी।5।

मान सम्मान नइ मिले फोकट।
पाय बर तो फलेल लगही जी।6।

खैरझटिया खड़े रबे कब तक।
जीये बर तो हलेल लगही जी।7।

गजलकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)

Wednesday 12 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - दिलीप कुमार वर्मा

एक्के बहर मा दिलीप कुमार वर्मा के पाँच गजल


दिलीप कुमार वर्मा: - गजल (1)
2122 2122 212

आदमी मरके मरे नइ जान ले।
जेन के अच्छा करम हे मान ले।

प्यार बाँटे बर सदा तइयार हे।
ओ करम अच्छा करे पहिचान ले।

दुख रहे ले जे खड़े हे संग मा।
आदमी ओ आदमी भगवान हे।

जे भला सब के करे बर सोचथे।
मान अइसे लोग ही इंसान हे।

मिल जही कतको इहाँ अइसे तको।
जे भला लागे मगर बइमान हे।

काम आथे आदमी ओ आदमी।
नइ करे जे काम ओ सइतान हे।

कर भला तब तो अमर होबे दिलीप।
मन लगा सेवा म जब तक जान हे।

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दिलीप कुमार वर्मा: - गजल (2)

2122 2122 212

अति कभू हो जाय कोनो बात जी।
तब समझलव मार देथे लात जी।

बड़ सुहाथे जब गिरे पानी सखा।
पर डरा देथे बढ़े बरसात जी।

घाम हाड़ा बर बने होथे कहे।
पर जला देथे बढ़े जे तात जी।

साँझ कन निकले सबो घूमत रहे।
पर डरा देथे ओ घपटे रात जी।

चाहथे सबझन गुलाबी जाड़ ला।
पर सहे नइ जाय ठंडा घात जी।

साँस बर सब ला हवा चाही इहाँ।
जे बने तूफान बिगड़े बात जी।

आग बिन खाना बने नइ मानथौं।
पर बढ़े जे आग देथे मात जी।

चाहथे पानी रहय नदिया सबो।
बाढ़ दिखलाथे हमर अवकात जी।

हे गरीबी सोंच झन जादा दिलीप
छटपटावत हे अमीरी रात जी।

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दिलीप कुमार वर्मा: - गजल (3)

2122 2122 212

मोर घर ला देख के घबरा जथे।
कोन कहिथे सुख सबो घर आ जथे।

बाँस बल्ली मा टिके छान्ही हवय।
जब कभू आथे हवा उड़िया जथे।

जब बरसथे बून्द पानी के इहाँ।
खाट तक डोंगा बने उफला जथे।

जाड़ मा जस देंह ठिठुरे कटकटा।
मोर घर दीवार हर थर्रा जथे।

घाम बर छइहाँ बने सबके महल।
मोर घर भितरी सुरुज हर आ जथे।

चेरका हन दे हवय दीवाल हा।
देश के नक्शा बने मन भा जथे।

खाय खातिर तोर घर होही सबो।
मोर घर पसिया तको सरमा जथे।

डेहरी ले जे भगाये हव अपन।
मूँड़ बर सब छाँव इहँचे पा जथे।

का मिले कखरो करा रो के दिलीप।
मौत सब ला एक दिन तो खा जथे।

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दिलीप कुमार वर्मा: - गजल (4)

2122 2122 212

एक दिन आही महू ला आस हे।
हार नइ मानँव जहाँ तक साँस हे।

बालटी ला डार के तीरत हवँव।
बून्द तक हा मोर बर तो खास हे।

छोंड़ के कइसे भला जावँव बता।
मोर माटी मोर तन के पास हे।

राह जोहत हँव उहू आही इहाँ।
ओखरो तो नइ बुझाये प्यास हे।

पेंड़ के पंछी उड़े आकाश मा।
लौट के आही इहें बिसवास हे।

पेंड़ के पाना सहीं झरगे सबो।
मोर हाड़ा रेंगथे जस लास हे  

देख आवत हे अभी करिया दिलीप।
सोर होवत हे बरसही आस हे।

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दिलीप कुमार वर्मा: - गजल (5)

2122 2122 212

मँय घटा करिया के होवत शोर औं।
चुप कराले दे मया मँय तोर औं।

तोर घर के देहरी मा हे कुकुर।
भूँक थे ता लागथे मँय चोर औं।

पा मया हरिया जहूँ कहिके कहे।
तँय बता का मँय खनाये बोर औं।

डूब के रइहूँ कहे तँय मोर ले।
तँय बता का साग के मँय झोर औं?

जब घटा आथे निटोरत रहि जथस।  
नाच के दिखला कहे ,का मोर औं?

बाँध के रखबे कहे परिवार ला।
का समझथस ,मँय ह कोनो डोर औं?

नाम मोरो हे बतावत हँव दिलीप।
तँय हुदर के बोलथस ,का ढोर औं?

गजलकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...