छत्तीसगढ़ी गज़ल - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
2122 2122 212
का सुनावँव धाक नइहे बात के
आदमी मँय नानकन औकात के।
मँय अभागा दिन म अनचिन्हार हँव
का मदद के आस राखँव रात के।
कान खोले हाथ बाँधे हँव तभो
मोर बर निरदेस घूसा लात के।
झन डरा तँय तीन तल्ला तोर बर
मोर कद बस एक टँठिया भात के।
रोज थक के सो जथौं बिस्तर बिना
तँय समझथस मँय परे हँव मात के।
मँय सृजन सहयोग महिनत जानथौं
नइ समझ हे लूट धोखा घात के।
जर जवै कोनो त कोनो बर जवै
गोठियइया आँव मँय सँउहात के।
प्यार मा तँय मँय तहाँ शादी-बिहाव
का जरूरत नेग अउ बारात के।
आप पढ़थव खुश रथे सुखदेव हा
चाह नइहे वाह के बरसात के।
-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम, छत्तीसगढ़