Total Pageviews

Friday 31 May 2019

छत्तीसगढ़ी गज़ल - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

छत्तीसगढ़ी गज़ल - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर

2122 2122 212

का सुनावँव धाक नइहे बात के
आदमी मँय नानकन औकात के।

मँय अभागा दिन म अनचिन्हार हँव
का मदद के आस राखँव रात के।

कान खोले हाथ बाँधे हँव तभो
मोर बर निरदेस घूसा लात के।

झन डरा तँय तीन तल्ला तोर बर
मोर कद बस एक टँठिया भात के।

रोज थक के सो जथौं बिस्तर बिना
तँय समझथस मँय परे हँव मात के।

मँय सृजन सहयोग महिनत जानथौं
नइ समझ हे लूट धोखा घात के।

जर जवै कोनो त कोनो बर जवै
गोठियइया आँव मँय सँउहात के।

प्यार मा तँय मँय तहाँ शादी-बिहाव
का जरूरत नेग अउ बारात के।

आप पढ़थव खुश रथे सुखदेव हा
चाह नइहे वाह के बरसात के।

-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
  गोरखपुर कबीरधाम, छत्तीसगढ़

Thursday 30 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - अजय अमृतांशु

छत्तीसगढ़ी गजल - अजय अमृतांशु

देख ले झगरा ला थोरिक टार के ।
जीत जाबे मान बाजी  हार के ।

होत गंदा सब डहर जी गाँव हा।
देख कचरा घुरुवा मा तैं डार के।

जान लव दुनिया मा सब के हक हवे।
खाव झन दूसर के हक ला मार के

घर अपन उजियार करथस रोज गा।
देख दीया दीन के घर बार के।

मिल जथे कतको इँहा भटकाय बर।
कर अपन तैं बात सुन के चार के।

कोनो ककरो गोठ ला सुनथे कहाँ
हे फजीता गाँव घर परिवार के।

खाय हे किरिया"अजय"सिरतोन गा।
न्याय कहिहूँ नइ कहँव बेकार के ।

गजलकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़

Wednesday 29 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया

छत्तीसगढ़ी गजल - जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया

2122   2122   212

नइ मिले शोहरत कभू बिन काम के।
कतको जग मा हे पड़े बिन नाम के।

काम कर कौड़ी कमा ना फोकटे,
धन सुबे आही सिराही शाम के।

धन असल ईमान अउ सम्मान हे,
सोन चाँदी हा हरे बस दाम के।

पद बढ़े अउ कद बढ़े सब सोंचथे,
फेर कोनो नइ चले सत थाम के।

चार दिन चलथे मया मातम इहाँ,
नाम रटते नित रबे श्री राम के।

झन जराबे गोठ मा दिल काखरो,
देंवता रिसहा अबड़ मन धाम के।

खैर नइहे खैरझिटिया के घलो,
ताव आगी कस बरे बड़ घाम के।

गजलकार - जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया
बालको

Tuesday 28 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू

छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू

2122 2122 212

गोठ हाबय सार भइया मान ले।
पेड़  होथे देंवता कस जान ले।

ये ह जीथे गा सुवारथ छोड़ के,
झन कटय तैं आज मन मा ठान ले।

पर जथन बीमार तव देथे दवा,
ठीक कर देथे अपन जर पान ले।

पेड़ बिन जिनगी अधूरा गा हवय,
नइ मिलय सुख जान कोनो आन ले।

नइ सकय वो बोल नइ वो हर चलै
आस करथे फेर गा इन्सान ले।

मीत हे गा जान झन तैं कर दगा,
मान ले तैं डर चिटिक भगवान ले।

हाथ जोरे हे कहत तोला 'मितान',
राख ले तैं कर जतन ईमान ले।

गजलकार - मनीराम साहू "मितान"

Monday 27 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - दुर्गाशंकर इजारदार

छत्तीसगढ़ी गजल - दुर्गाशंकर इजारदार

2122 2122 212

आज गुन के तो कहाँ सनमान हे ।
पुछ परख हे जेन तो बलवान हे ।।

बाँध टप टप ला भरे हे मान ले ।
मोर सुक्खा खेत अउ खलिहान हे ।।

जेन उँगली ला धरे हे झूठ के ।
आज मनखे तो उही धनवान हे ।।

खाय बर दाना नहीं जेकर करा ।
पासबुक मा तो भरे ईमान हे ।।

हाथ लाठी जेन रखते हाँक के ।
मान तेकर भैंस होथे जान ले।।

देश के माटी ल चंदन तँय समझ ।
मान अल्ला गा इही भगवान हे ।।

वोट पावत ला कहे तँय देंवता ।
बाद दुर्गा तोर का पूछान हे ।।

गजलकार - दुर्गाशंकर इजारदार

Sunday 26 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - कन्हैया साहू "अमित"

छत्तीसगढ़ी गजल - कन्हैया साहू "अमित"

बहर-2122, 2122, 212,

नाव के सरकार हे जय राम जी।
गोठ भर दमदार हे जय राम जी।

काम के कोनो ठिकाना नइ इहाँ,
फेर बड़ मतवार हे जय राम जी।

मीठलबरा हा कलेचुप साधथे,
बस चिटिक हुसियार हे जय राम जी।

पार परिहा सब सुवारथ जानथें,
कौन दुख बँटवार हे जय राम जी।

एक रुपिया मा किलो भर झोंक लव।
कोन अब बनिहार हे जय राम जी।

कोढ़िया के ओढ़हर बस एकठन।
रोजिना इतवार हे जय राम जी।

भेस सादा भर धरे ले का 'अमित'।
मन कुलुप अँधियार हे जय राम जी।

गजलकार - कन्हैया साहू "अमित"
भाटापारा, छत्तीसगढ़

Saturday 25 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"

छत्तीसगढ़ी गजल - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"

2122 2122 212

बाँध भाई अब सुमत के डोर ला।
मिल के लाना हे मया के भोर ला।।

देख ताकत हे खड़े दुश्मन इँहा।
मिल भगाना हे सुमत के चोर ला।।

भेद ले के भेद झन देवव कभू।
बात मानौ ये हमेशा मोर ला।।

फूल सुमता के ख़िलाबो मिल चलव।
फेर महकाबो गली अउ खोर ला।।

खोल आँखी तैं बने पहिचान ले।
कोन लूटत हक इहाँ जी तोर ला।

पाटबो डबरा कुमत के अब चलव।
फेर बगराबो मया के शोर ला।।

घोर अँधियारी दिखत हे सत्यबोध।
लान बो चल अब मया अंजोर ला।।

गजलकार - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
छत्तीसगढ़

Friday 24 May 2019

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ गजल  - दिलीप कुमार वर्मा

2122   2122   212

झाँझ हा झुलसात हाबय का करँव।
मँय गरीबी मा पले बपुरा हरँव।

तोर सुख बर मोर हाड़ा हा गले।
घाम पानी ले भला कइसे डरँव।

टोर के पथरा बनाथौं राह मैं।
रात दिन कर काम तन ले मैं छरँव।

जोंत के नांगर उगाथौं धान ला।
कर किसानी पेट सब के मँय भरँव। 

प्यास मा कोनो मरय झन जान के।
मँय कुँआ ला खोद पानी बन झरँव।

भूँख मा बिलखत सबो ला देख के।
सूख के लकड़ी बने आगी बरँव।

कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप।
काम करके तोर बर मँय हा मरँव।

दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

Thursday 23 May 2019

छतीसगढ़ी ग़ज़ल आशा देशमुख

छतीसगढ़ी ग़ज़ल - आशा देशमुख

2122   2122 212

देख गरमी मा सबो हलकान हे
प्यास मा सबके सुखावत प्रान हे।1

रोज तो जंगल कटावत हे इहाँ
जीव पंछी मन सबो परेशान हे।2

सोच के मन होय भारी दुख लगे
स्वार्थ के चारो डहर तूफ़ान हे।3

बोर नदिया ताल सब सूखत हवे
का कहूँ ला होत येखर भान हे।4

रोय धरती रोज छाती फाड़ के
पर सुने नइ देख सब अंजान हे।5

का कहँव अइसे जमाना आ गए
रोय लकड़ी बर चिता शमशान हे।6

लाय कइसे कोन खुशहाली इहाँ
देख आशा सब डहर वीरान हे।7


आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा छत्तीसगढ़

Wednesday 22 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - सूर्यकान्त गुप्ता

छत्तीसगढ़ी गजल - सूर्यकान्त गुप्ता
【2122   2122   212】

लात के भूत

भूत वो बिन लात के मानय नही।
प्रेम के भाखा ल वो जानय नही।।

पीठ मा  तो भोंकथे हरदम छुरा।
मुँह अपन गा सामने लानय नही।।

हे इहों ज़ज़्बा के कहिथौं बड़ कमी।
लेहे'  बर बदला  कभू ठानय नही।।

वीर  सैनिक  बिन मिले आदेश के।
वो  अपन  बंदूक ला  तानय नहीं।।

मन मा कचरा तो भरे हे बैर के।
दोस्ती के छन्नी'  मा छानय नहीं।।

रात दिन बिख बीज बोथे फोकटे।
प्रेम रस ला घोर के सानय नहीं।।

'कांत'  खोना नइये  काँही जोश मा।
वो नफा नकसान पहिचानय नहीं।।

सादर जय जोहार...
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

Monday 20 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - चोवाराम वर्मा "बादल"

छत्तीसगढ़ी गजल खजाना, छन्द के छ परिवार के साधक मन के नवा उदिम हे जेमा गजल-विधान के पालन करके छत्तीसगढ़ी भाषा मा गजल कहे के कोशिश करे गेहे। आप जम्मो झन के स्वागत हे।

छत्तीसगढ़ी गजल - चोवाराम वर्मा "बादल"
{2122 2122 212}

मोह माया ले अपन मुख मोड़ के
रेंग दिस पुरखा सबो ला छोड़ के।

आज  बेटा हा उराठिल हे कहे
बाप के हिरदे ल रट ले तोड़ के ।

झन भरोसा आन के करबे गड़ी
कर भरोसा हाथ खुद के गोड़ के ।

भाग जाहीं उन सबो हुशियार मन
ठीकरा ला तोर मूँड़ी  फोड़ के ।

नींद भाँजत हे अजी रखवार हा
चल उठाबो जोर से झंझोड़ के ।

पेट भर जी अन्न पानी मिल जही
काय करबे दाँत चाबे जोड़ के ।

फेंक देही जेन ला माने अपन
देख "बादल" तोर जर ला कोड़ के।

गजलकार - चोवाराम वर्मा "बादल"
हथबन्द, छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...