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Sunday 24 May 2020

गजल-दुर्गा शंकर इजारदार

गजल-दुर्गा शंकर इजारदार

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

122 122 122 122
लगे कारखाना किसानी सिरागे ।
भरे बाँध टपटप के पानी सिरागे ।।

चकाचौंध बिल्डिंग कालोनी खातिर ।
खदर छाय सुग्घर वो छानी सिरागे ।।

मनच्यूरियन कुरकुरे चिप्स आगू ।
चना मुर्रा लाड़ू खजानी सिरागे।।

बने फेसबुक वाट्सअप दोस्त भारी ।
बदे भोजली के मितानी सिरागे ।।

बने हावै गोशाला अड़बड़ गा दुर्गा ।
घरो घर खड़े घी मथानी सिरागे ।।

गजल- गजानन्द पात्रे

गजल- गजानन्द पात्रे
बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

122 122 122 12

कहाँ मोर छत्तीसगढ़ राज हा ।
नँदावत हवे जी सुमत साज हा ।।

परे खेत परिया सुखागे कुआँ ।
अकाली किसानी गिरे गाज हा ।।

बिछे जाल हे कारखाना बड़े ।
छिनागे हमर श्रम धरे काज हा ।।

बड़ा नीक लागे ददरिया मया ।
सुआ ताल पंथी के अंदाज हा ।।

नवा रोज फैशन जमाना दिखे ।
अपन ले बड़े के कहाँ लाज हा ।।

कुमत चाल परदेशिया मन चले ।
छिनागे हमर सुमता के ताज हा ।।

गढ़ौ राह कल बर गजानंद अब ।
कहाँ हे सुरक्षित हमर आज हा ।।


गजलकार- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल-आशा देशमुख



ग़ज़ल-आशा देशमुख

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

122 122 122 12

अजब चाल मा अकबकासी लगे
गरम बात मा  कँपकपासी लगे।

सबो बेंच के रे गए तँय शहर
फ़टे हाल होगे रोवासी लगे।

बड़े बात बोली लगत हे जबड़
रटे फोकटइहा उबासी लगे।

घुना खाय जिनगी मया के बिना
महल घर अटारी उदासी लगे।

कहूँ थोप देथे बुता काम तब
बिना मन लगन के उँघासी लगे।

अपन सुख गँवावत रहय रात दिन
ददा पूत बर अब खलासी लगे।

दिखे दानदाता शहर गाँव मा
अजब खेल आशा सियासी लगे।


आशा देशमुख
22 -5-2020

ग़ज़ल-ज्ञानु

ग़ज़ल-ज्ञानु

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

122  122  122  12

अपन राग डफ़ली सुहाथे गज़ब
अपन हाथ राँधे मिठाथे गज़ब

बखत जब परे काम आवय नही
मया फेर सब झन जताथे गज़ब

मचाये हवय लूट व्यापारी मन
कही ले ग कीमत लगाथे गज़ब

हवय लॉकडाउन शहर गाँव मा
मयारू मिले बर बुलाथे गज़ब

बबा मेर जाथौं कभू मैं बइठ
कथा सत कहानी सुनाथे गज़ब

बड़े आदमी मनके बातें अलग
ग झन पूछ नखरा दिखाथे गज़ब

इहाँ 'ज्ञानु' चलनी दुहय दूध जें
करम ला अपन बस ठठाथे गज़ब

ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा 
बहरे मुतकारीब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12 

उतर जा उतर जा सबो बोलथे।
उतरहूँ कहाँ पाँव हा डोलथे। 

अजब हे गजब हे जमाना सखा।
सरे राह रेंगत सबो छोलथे।

भले नइ धरावय रतन रेत के।
तभो लालची रेत ला झोलथे।

बने जब ले सरपंच बाई हवय।
बबा मन तको आजकल ठोलथे।

सम्हल के रबे काम जब हे गलत।
लगे कैमरा राज ला खोलथे।

मया मा मयारू मसक दिच नरी।
मया मान महुरा तको घोलथे। 

भरे कोठरी काम आवय नही।
रथे जेन मुसुवा सबो फोलथे। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- चोवा राम 'बादल'

गजल- चोवा राम 'बादल'
बहरे मुतकारीब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12 

भला बर भला काय मिलहीं सबो
कभू सच ल कहि होंठ सिलहीं सबो

कसम से तहूँ देख दारू पिया
तुरत तोर आगू म हिलहीं सबो

बना बात तैंहा सुहाबे तभे
नहीं ते अगिन बान ढिलहीं सबो

भुखाये हवैं भेड़िया मन अबड़
 चबावैं नहीं ठाढ़ लिलहीं सबो

गिनाबे बनवटी धरम के कमी
उबा हाथ डंडा ल पिलहीं सबो

छिपाना हवै खानगी ला असो
किलो दू नहीं धान फिलहीं सबो

बरस जा रे 'बादल' फुहारा सही
मिनट मा अभी फूल खिलहीं सबो

गजलकार-  चोवा राम 'बादल'
हथबन्द
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12

उझारत खनत बेर लागे नही।
बुराई गनत बेर लागे नही।।

गरब मा कहूँ चूर राजा रथे।
भिखारी बनत बेर लागे नही।

तने लोहा हर ठोंके अउ पीटे मा।
रबड़ ला तनत बेर लागे नही।।

मिले साधु संगत सहज मा कहाँ।
अधम मा सनत बेर लागे नही।।

मया मीत सत बर लगे दिन अबड़।
लड़ाई ठनत बेर लागे नही।।

बड़े होय तुरते कहाँ बोकरा।
बली बर हनत बेर लागे नही।

सुखी जिंदगी के कठिन सूत्र हे।
विपत मा छनत बेर लागे नही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12

बिना काम के जीत होही कहाँ।
बिना साज संगीत होही कहाँ।।

जिया हे कहूँ काठ पथरा असन।
उहाँ तब मया मीत होही कहाँ।।

करें सब करम छोड़ के सत धरम।
उहाँ कायदा रीत होही कहाँ।।

बरसही नही घन अँषड़हूँ कहूँ।
भला तब बता शीत होही कहाँ।

जकड़ कुर्सी नेता पहाही समय।
दुबारा मनोनीत होही कहाँ।।

बिना खाय पीये भला काखरो।
बता जिनगी वैतीत होही कहाँ।

रही लोभ लालच सदा संग मा।
दरद दुःख डर चीत होही कहाँ।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

गजल-दुर्गाशंकर इजारदार

गजल-दुर्गाशंकर इजारदार

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर

फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

122 122 122 12


रहै पेट खाली का होही भजन।
अघागे खवाई ल हावै मगन ।।

अधम के कमाई ह का काम के।
बिना जेब रहिथे ग सुनले कफन ।।

गरीबी मिटाये के वादा करे ।
करे ओकरे हक मा नेता गबन ।।

अठारह बछर जब ल बेटी छुये ।
ददा दाई के तब ले होगे मरन ।।

भरे ला भरे उल्चा खाली करे ।
जमाना के अइसन हे उल्टा चलन ।।

करम ला अपन जो धरम मानथे ।
सफलता उही ला तो करथे नमन।।

अभी दोगला नेता पहिचान ले ।
चुनावी समय झन तैं करबे चयन।।

दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़(छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल-आशा देशमुख


ग़ज़ल-आशा देशमुख

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मक्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन1
122  122 122 12

कतिक दिन टिके राज धमकाय ले।
भरे पेट कइसे कसम खाय ले।

ददा दाई के तीर बइठे नही
कते देव आही भजन गाय ले।

कनौजी हे जुच्छा जी हाँसय नशा
चुरे काय आगी जी सिपचाय ले।

कभू टोरहू झन नियम कायदा
सबो नाश होथे गा बउराय ले।

अबड़ मोल होवय मया के नता
पड़े  हे  कई गाँठ दुरिहाय ले।

हवय जेन घेक्खर कुछु नइ सुनय
गला बस पिराही गा चिल्लाय ले।

बुढ़ाथे जभे सच मिले न्याय तब
मिले दुख लबारी ला पतियाय ले।

करू गोठ हे तब बना बात ला
मिलय नइ मया मान कउवाय ले।

सुमत रंग आशा चमक हे अबड़
फबे नइ कपट सोनहा पाय ले।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा (छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु

गजल-  अजय अमृतांशु

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
बहर -122 122 122 12

खवा भूखे मनखे तहूँ कर धरम।
गरीबी हवै देश मा अब चरम।

टिके हावै दुनिया भरोसा करौ।
कभू जिनगी मा पालबे झन भरम।

करत का हवै कोन झन सोंच तैं।
बने राख तैंहा अपन सब करम।

रखे काय हे झगरा झंझट म जी।
बड़े गोठ सुलझय रहे मा नरम।

हवै क्रोध आगी कभू झन करौ।
खिरै काया पल पल म झन हो गरम।

हवै पाप चोरी समझ ले बने।
बुता काम करबे त काबर शरम।

करम ले मिलै सुख समझ ले बने।
इही हे सफ़ल आदमी के मरम।

अजय अमृतांशु

Friday 15 May 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

रही मन मढ़ाना त तोला बलाहूँ।
ठिहा पड़ही छाना त तोला बलाहूँ।

अकेल्ला चबाहूँ चना कस धरे धन।
सिराही खजाना त तोला बलाहूँ।

सजे सेज गद्दी म सोहूँ सनन भर।
चिराही सिराना त तोला बलाहूँ।

मयारू ले करहूँ मया मैं कलेचुप।
कुदाही फलाना त तोला बलाहूँ।

रथे खैरझिटिया जिया तीर तोरे।
जलाही जमाना त तोला बलाहूँ।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-ज्ञानू

गजल-ज्ञानू

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन  फ़ऊलुन  फ़ऊलुन
फ़ऊलुन
अरकान-122 122 122 122

कहाँ आज भाई भुलाये हवस रे
गज़ब मोह माया बढाये हवस रे

मिलय नइ दुबारा मनुज के जनम हा
अकारथ समय ला गवाये हवस रे

करम अउ धरम हा सुहावय नही मन
नशा पान मा धन लुटाये हवस रे

दया अउ मया बोल जाने कभू नइ
छिड़क घीव झगरा कराये हवस रे

भरोसा रिहिस  'ज्ञानु' मोला ग भारी
कहाँ काज कखरो बनाये हवस रे

ज्ञानु

गजल-दुर्गाशंकर इजारदार

गजल-दुर्गाशंकर इजारदार

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

122 122 122 122


गला फाड़ चिचियात सरकार हावय।
गरीबी हटाये का तैयार हावय।

बहस के करे पेट नइ तो भरय गा ।
बहस छोड़ रोटी के दरकार हावय।।

चुनावी बछर सब कहे मोर तँय अस।
लगे तब हितैशी वो भरमार हावय ।।

घटाटोप पानी गिरय अब नहीं गा ।
बता तो कहाँ पेड़ गा खार हावय ।।

लबर्रा लफंगा भरे हे खचाखच।
कहाँ अब तो सच्चा रे रखवार हावय।।

भुलाये अपन आप मा आज बेटा ।
ददा दाई के बिन तो घरबार हावय ।।

धरम जात मा तो बँटे आज दुर्गा।
ठने आदमी आदमी रार हावय ।।

दुर्गा शंकर इजारदार
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छत्तीसगढ़ी गजल- चोवा राम 'बादल ' बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

छत्तीसगढ़ी गजल- चोवा राम 'बादल '

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

सजा काके अइसन मिलत हावे संगी
घटा हा बिपत के दिखत हावे संगी

फटाका न बाजा न तो नाच गाना
सुवासा ह माथा पिटत हावे संगी

सबो काम धंधा ह चौपट ग होगे
असो चीनी गोल्लर चरत हावे संगी

भरे इरखा धुर्रा झँकोरा ह आथे
दिया प्रेम के अब बुझत हावे संगी

महक जाथे अँगना जनम बेटी लेथे
तभो लोग बेटा चुनत हावे संगी

लमा हाथ ला बस दिखावा वो करथे
तभे फासला हा बढ़त हावे संगी

लड़िच देश खातिर अपन जान देके
उहू ला तो मनखे खँड़त हावे संगी

गजलकार--चोवा राम 'बादल'
    हथबन्द, बलौदाबाजार-भाटापारा, छत्तीसगढ़

Thursday 14 May 2020

गजल- अजय अमृतांशु

गजल- अजय अमृतांशु

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
अरकान 122 122 122 122

बने टोर जाँगर तभे दाम पाबे।
सफल होबे तैंहा तभे नाम पाबे।

हवै ब्रज निवासी किशन हा सही मा।
रहै मन में राधा तभे श्याम पाबे।

हवै मनखे सेवा धरम बड़का जानव।
सुवारथ रहै तब कहाँ राम पाबे।

कपट हे सबो कोती संसार मा जी।
बने करबे सेवा परम् धाम पाबे।

शहर कोती झन जा कमाये धमाये।
अपन गाँव मा तैं बने काम पाबे।

अजय अमृतांशु

Wednesday 13 May 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
अरकान 122 122 122 122

अकेला म आबे बहुत मार खाबे।
कहूँ तँय बताबे बहुत मार खाबे। 

करे जेन मिहनत उही जाय आगू।
समे जब चुराबे बहुत मार खाबे।

नशा हर करे नाश जिनगी ल संगी।
जे माखुर चबाबे बहुत मार खाबे।

इहाँ नइ चले मास मदिरा समझ तँय।
धरे घर जे लाबे बहुत मार खाबे।

बिना तँय बड़े मन के आशीष पाये।
अपन घर बसाबे बहुत मार खाबे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल- अजय अमृतांशु बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल- अजय अमृतांशु

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
अरकान 122 122 122 122

जमाखोरी मनखे ह काबर करत हे।
बने हावै कानून नइ गा डरत हे।

अभी गरमी आये कहाँ हे बतावव।
बिना पानी मनखे तभो ले मरत हे।

हमर देश आबादी बाढ़े हवय जी।
बिना काम मनखे घरे मा सरत हे।

नशा नाश कर दिस सबो के जवानी।
बचे हाड़ पछताय आँसू झरत हे।

पढ़ा के बना देन लइका ल अफसर।
कहाँ पाँव दाई ददा के परत हे।

अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गजल-आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी गजल-आशा देशमुख

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

अबड़ दिन तो होगे करे लॉकडाउन।
लगे असकटासी सरे लॉकडाउन।

सबो चीज होगे हवय आज महँगा।
नमक ला घलो तो धरे लॉक डाउन।

कमैया बिना जी सुखागे किसानी।
मवेशी सबो ला चरे लॉकडाउन।

अपन गाँव लहुटत हे मजदूर मन हा
करोना मा कतको मरे लॉकडाउन।

गली खोर सुन्ना पुलिस हा दिखत हे
निकलबे त सोंटा परे लॉकडाउन।

बुता काम नइहे  न दाना न पानी
कते दिन भगाही जरे लॉकडाउन।

अपन गाँव परिवार आवत है सुरता
चले ट्रेन गाड़ी झरे लॉकडाउन।


आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

खजाना के खनखन, धरे के धरे हे।
वो मस्ती वो बनठन, धरे के धरे हे।।

जरत हे धरा हा, बरे बन हरा हा।
बिना मेघ के घन, धरे के धरे हे।।

समय मा विपत के, कहाँ कोई आइस।
जमे जोरे जन धन, धरे के धरे हे।।

नही नीर नरमी, करे खूब गरमी।
खड़े झाड़ अउ बन,धरे के धरे हे।

गिराये समय हा, उठाये समय हा।
तने तोर तन मन, धरे के धरे हे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

Wednesday 6 May 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

नचाही नही साँप जब तक सपेरा।।
अघाही भला कइसे तब तक सपेरा।

डँसे साँप बाँचे जिया जान कइसे।
हरे काल कहि बइठे कब तक सपेरा।।

बलाये कभू जन भगाये कभू जन।
उठे ता कभू जाय दब तक सपेरा।

कभू ताव देखा कहे छोड़ देंहूँ।
ठठाते हवे छाती अब तक सपेरा।

सपेरा ये सरकार अउ साँप दारू।
परोसे बदी झेल सब तक सपेरा।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल-ज्ञानू बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

ग़ज़ल-ज्ञानू

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122  122  122  122

पढ़े हस लिखे हस वृथा ज्ञान मत कर
अपन बुद्धि अउ बल के अभिमान मत कर

कहू दान करना हे भूखा ला कुछु दे
ये मंदिर ये मस्जिद कभू दान मत कर

कभू नानचुक  पद मिलय तोला भाई
इहाँ खुद ला सच छोड़ शैतान मत कर

सदा दूर रहना चुगलखोर मन ले
करय कोनो ओती अपन कान मत कर

अपन काम मा बस मगन रहना संगी
बुराई करय कोनो ता ध्यान मत कर

जनम पाय मनखे दिखा बनके मनखे
अपनआप ला स्वंभु भगवान मत कर

सता झन इहाँ तँय कभू दीन दुखिया
सता के बुरा 'ज्ञानु' पहचान मत कर

ज्ञानु

गजल-चोवा राम 'बादल ' बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल-चोवा राम 'बादल '

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

कहे आन हाबय करे आन हाबय
उही हा हमर कइसे भगवान हाबय

उदाली मरइ मा किसानी सिरागे
तभो ले पिये मा कथे शान हाबय

सुभीत्ता बुलत हे गली वायरस हा
अधर मा टँगाये हमर प्रान हाबय

परै पाँव नइ तो कभू बड़का मन के
पढ़े हे अबड़ वो कहाँ ज्ञान हाबय

लुकाके तैं खाबे पसीना के रोटी
झपट के खा देहीं उँकर ध्यान हाबय

उतर झन इहाँ मोर पँड़की परेवा
महल मा बिलइया बड़े जान हाबय

कहूँ सच ल कहिबे त डंडा बजाहीं
चुपे राह 'बादल' त फुरमान हाबय

गजलकार---चोवा राम 'बादल'
हथबन्द
बलौदाबाजार ,छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी गज़ल-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर



छत्तीसगढ़ी गज़ल-सुखदेव

122 122 122 122

भले डगमगाही ग दारू पिये मा
ओ वादा निभाही ग दारू पिये मा

कदरदान के पक्ष मा चेत करके
बटन ला दबाही ग दारू पिये मा

न सब्जी हे घर मा न हे दार चाउँर
ओ आजो भुलाही ग दारू पिये मा

पुड़ी खीर चीला बरा जेवनागे
ओ पाहुन अघाही ग दारू पिये मा

गली ले बिचारा गरू प्रश्न संसद
कहाँ भेजवाही ग दारू पिये मा

अभी बाप ले कइसे बोलै उबक के
ओ बाँटा कराही ग दारू पिये मा

वसा हे न ग्लूकोज प्रोटिन विटामिन
कहाँ देंह आही ग दारू पिये मा

नशा त्याग दे तँय ह'सुखदेव'भइया
ये जिनगी नसाही ग दारू पिये मा

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम

गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन  फ़ऊलुन  फ़ऊलुन  फ़ऊलुन
  122      122     122      122

सुनौ बात संगी नशा नाश होथे ।
धरे साथ जे मौत के दास होथे ।।

बड़ा नीक लागे शुरू मंद दारू ।
इही बाद मा तो गला फाँस होथे ।।

पिये बेच दारू सकेले कमाई ।
इहाँ भूख परिवार उपवास होथे ।।

मिलाये नजर ना सके फेर सबसे ।
लुटे मान सम्मान उपहास होथे ।।

जरे बुद्धि काया करे खोखला तन ।
नशेड़ी तो मनखे जियत लाश होथे ।।

बुराई के जड़ बड़ भरे हे नशा मा ।
लड़ाई मचे घोर उदबास होथे ।।

गजानन्द पात्रे नशा दूर रहिबे ।
बड़ा कीमती जिंदगी सांस होथे ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

Monday 4 May 2020

गजल-मनी राम साहू मितान

गजल-मनी राम साहू मितान

बहरे मुतकारिब मुद्दसस सालिम
122  122  122

चिटिक देख इन्सान बन के।
कृपालू दयावान बन के।

मजा बड़ हवै देख पर सुख,
दिखा दे ग गुनवान बन के।

बिगाड़त हवै जी अशिक्षा,
समा जा मगज ज्ञान बन के।

मिटा दे बढ़त भूख आगी,
उपज खेत तैं धान बन के।

बढ़ा ले मया सार सब ले,
रिझा बाँसुरी तान बन के।

हवै भार सब सिर म तोरे,
अभर पार्थ के बान बन के।

अपन हें सबो आन नोहयँ,
भुला झन ग अनजान बन के।

मनीराम साहू 'मितान'

ग़ज़ल--चोवा राम 'बादल ' बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

ग़ज़ल--चोवा राम 'बादल '

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

122  122  122  122

उपर मा  उठाके  पटकथे अबड़ वो
 कभू दान देके झटकथे अबड़ वो

  फँसे जाल मा मनचला के वो तितली
  कहाँ के कहाँ तो भटकथे अबड़ वो

  तिली नइ लुए तैं करे चेत संगी
अजी देख लेबे चटकथे अबड़ वो

 निंदे तैं नहीं मन के साँवा बदौरी
मरे के बखत मा खटकथे अबड़ वो

नदी हावे साँकुर छलक जाथे पानी
  गिरे एको सरवर मटकथे अबड़ वो

 बताथे  सबो ला जहर होथे दारू
लुका के उही ला गटकथे अबड़ वो

बनत काम ला आन के जे बिगाड़य
  समे आथे 'बादल' अटकथे अबड़ वो

गजलकार---चोवा राम 'बादल'
हथबंद
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल-आशा देशमुख बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

ग़ज़ल-आशा देशमुख
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

जियाए नता ला जी महुरा गटक के।
चले सोज रद्दा गा रद्दा भटक के।

भरे हे खचाखच नही सीट खाली
बुलाये समे हा त जावय लटक के।

लदे डार आमा भरे हे बगीचा
तभो बेंदरा मन हा खाये झटक के।

न आगी दिखत हे न बिजली के खंभा।
जलन मा ये मनखे मरत हे चटक के।

अबड़ दान के मार शेखी बघारत
भरे भीड़ मा भीख देवय फटक के।

सुवारथ भरे हे करत हे दिखावा
सभा शोक मा देख रेंगय मटक के।

बली होय बैरी तभो झन डरावव
अपन बल दिखादे तें पउँरी पटक के।

हवा आय भारी बुझे वंश दीया
जिहाँ लाय नारी के चूँदी हटक के।

अबड़ डींग हाँके धरे नाम ज्ञानी।
सभा मा बुलाये त बोलय अटक के।

कलेचुप बइठव चढ़े हव अगासा
सितारा घलो तो गिरे हे छटक के।

करत हे सवारी सजे पालकी रथ
हूँमेलत हे भैंसा ले जाये पटक के।


आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ गज़ल-सुखदेव

छत्तीसगढ़ गज़ल-सुखदेव

122 122 122 122

तहीं ईस अल्ला खुदा राम रब तँय
बताबे भला ये मनूजन ल कब तँय

लहुट के निहारय जवइया ह तोला
ओ पुन्नी के चंदा सहीं रोज फब तँय

परीक्षा भयंकर कठिन हे  रहन दे
बतादे समय ला हवच खास जब तँय

दबत हस त इस्प्रिंग जइसे भले दब
सगा राख माटी बरोबर न दब तँय

अलाली न कर भाई सुखदेव तँय हा
सिखइया गुरू हे अभी सीख सब तँय

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध" बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम

गजल- इंजी.गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
  122     122      122     122

बिना मान देये कहाँ मान पाबे ।
बिना गुरु लखाये कहाँ ज्ञान पाबे ।।

समाये रही द्वेष मन भीतरी ता ।
सुमत भोर ला तैं कहाँ लान पाबे ।।

शरण धाम चारो ददा दाई गुरु के ।
जपे देव पथरा कहाँ ध्यान पाबे ।।

धरे राह तैं झूठ के तो कहूँ जी ।
बता फेर सीना कहाँ तान पाबे ।।

करौ दीन दुखिया के सेवा सदा जी ।
बड़े येखरे ले कहाँ दान पाबे ।।

धरे राह संगत बुराई चले तँय ।
भलाई मरम ला कहाँ जान पाबे ।।

गजानंद जग आज अँधरा बने हे ।
वचन सत्य खातिर कहाँ ठान पाबे ।।

गजलकार - इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

बड़े के कहे मान गंगा नहाले।
तरे जिंदगी जान गंगा नहाले।

बटोरत रहे जिंदगी भर खजाना। 
समे आय कर दान गंगा नहाले।

चलत राह राही थिरा ले तनिक जी।
भजन के करत पान गंगा नहाले।

कहाँ धाम चारो भटकबे कका तँय।
बबा के रखे ध्यान गंगा नहा ले।

पढ़े जा पढ़े जा ये जिनगी गढ़े जा।
त डुबकी लगा ज्ञान गंगा नहाले।

चढ़े चार काँधा चले जब मुसाफिर।
सँगे जाय शमसान गंगा नहाले।

धरम के डगर मा करत काम नेकी।
बना अपनो पहिचान गंगा नहाले।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गज़ल-अजय अमृतांसु

गज़ल-अजय अमृतांसु

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान -122  122  122 122

कथा राम वैदेही संसार मा हे।
तभो झगरा सब जात परिवार मा हे।

चलाथौं बने कहिके बइठाये मोला।
नवा डोंगहा नाव मँझधार मा है।

करे कुछ नहीं देश के सेती तैंहा।
जवानी हवै फेर बेकार मा हे।

मया मा कहाँ मैं भुलागेंव ओकर ।
बचे जिनगी सिरतोन अँधियार मा हे।

बिना पइसा होवय नहीं काम भइया।
करा लव सबो काम उपहार मा हे।

अपन जान जोखिम करे हे हमेशा।
तभे तो भरोसा वफादार मा हे।

अकेला कहाँ जाबे घूमे ल तैंहा।
बना संगी साथी मजा चार मा हे।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-अजय अमृतांशु

गजल-अजय अमृतांशु

बहरे मुतकारीब मुसद्दत सालिम
फ़ऊलुन   फ़ऊलुन   फ़ऊलुन

बहर - 122    122    122

हमर देश मा अब अमन हे।
इही नेता मन के कथन हे ।

हवै पइसा तब काम होही।
सबो कोती खाली गबन हे।

मदारी करत हे तमाशा ।
सबो आम मनखे मगन हे ।

करै चोरी अउ सीना जोरी।
बने संत गावत भजन हे।

हवै जनता लाचार भारी।
सबो कोती उजरे चमन हे ।

दया नइ रखै जेहा मन मा।
धरे बिरथा वोहा जनम हे ।

लगे लूट मा काला कहिबे ।
बचे नइहे खोखा वतन हे।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)

Saturday 2 May 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

गलत संग धरके मया चाँट झन रे।
ददा दाई भाई ठिहा बाँट झन रे।।

इहाँ ले हवै एक दिन सबला जाना।
नरी बर अपन डोर तैं आँट झन रे।।

जतन रुक्ख राई घटा दुक्ख भाई।
अपन स्वार्थ बर पेड़ तैं काँट झन रे।

सबे दिन रहे नइ ये काया जगत मा।
गरब बैर इरखा कभू छाँट झन रे।।

तहूँ हा करे हस गजब मौज मस्ती।
हरे नान्हे लइका फकत डाँट झन रे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

अरकान-122 122 122 122 

हमर गाँव घर खोर बर धर पकड़ हे।
जिहाँ तोर अउ मोर बर धर पकड़ हे।।

बहे जल के धारी ठिहा बीच ओखर ।
हमर नल कुँवा बोर बर धर पकड़ हे।

घुमै चोर छेल्ला चुराके रतन धन।
थके हारे कमजोर बर धर पकड़ हे।।

नदी मंद मउहा के बोहय शहर मा।
बिहड़ गाँव घनघोर बर धर पकड़ हे।।

धरे धन धनी मन ये जग ला नचावय।
हमर हाय हो शोर बर धर पकड़ हे।।

पुजावै बली कस बने आदमी मन।
कहाँ चोर अउ ढोर बर धर पकड़ हे।।

नयन मूंद चलबे त फलबे ये जग मा।
चिटिक आस अंजोर बर धर पकड़ हे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-दिलीप कुमार वर्मा बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम

गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

पुराना जमाना बहुत याद आथे।
रहँव जे ठिकाना बहुत याद आथे।

बिहनिया घड़ी मा बजे सात बेरा।
नदी ताल जाना बहुत याद आथे। 

बँधाये रहे भैंस भइसा घरो घर।
ओ गरुवा चराना बहुत याद आथे।

चले रेसटिप खेल संझा गली मा।
घरोघर लुकाना बहुत याद आथे।

मँझनिया मँझनिया रहे संग साथी।
डुबक के नहाना बहुत याद आथे।

कुकुर संग ले के धरे हाथ लाठी।
ओ बन्दर कुदाना बहुत याद आथे।

हवय पेट पीरा बनाके बहाना।
ओ शाला ले आना बहुत याद आथे।   

रखे टोर छीता लुकाये जे भूँसा।
अकेल्ला मा खाना बहुत याद आथे।

खुसर के दुसर के जी बारी बियारा।
ओ खीरा चुराना बहुत याद आथे।

चुराये रहँव एक रुपिया कभू ता।
ददा के ठठाना बहुत याद आथे।

समे पंख बांधे उड़ागे गगन मा।
लड़कपन के गाना बहुत याद आथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

ग़ज़ल-आशा देशमुख बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

ग़ज़ल-आशा देशमुख
बहरे  मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122

किसानी कमाए गा बनिहार बनके
उठाये जगत ला  तैं आधार बनके।

खड़े वो करे हे महल घर अटारी।
सदा दिन गुजारे वो लाचार बनके।

कभू हाथ कटगे कभू गोड़ टूटय।
अपन बोझ ढोये वो बेकार बनके।

धरे हाथ माटी औ माथे पसीना
तपे कारखाना मा अंगार बनके।

मुड़ी ला नवाक़े चले वो निहत्था
करे धार श्रमवीर औजार बनके।

सहे भूख अउ प्यास करथे किसानी।
जगत ला भरे अन्न भंडार बनके।

विपत मा पड़े हे कभू देश दुनिया।
लुटाये मया मान परिवार बनके।

आशा देशमुख

गजल बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल 
बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
बहर- 122 122 122 122

घरो घर सफाई ल मजदूर करथे।
लिपाई पुताई ल मजदूर करथे। 

भरे अन्न कोठी सबो के घरो घर।
फसल के कटाई ल मजदूर करथे। 

बड़ा शान मारे दिखाके अटारी।
ओ ईंटा चुनाई ल मजदूर करथे।

बड़े कारखाना के मालिक भले तँय।
तुँहर बर कमाई ल मजदूर करथे। 

बनाये हवच बांध छेंके नदी ला।
पछीना तराई ल मजदूर करथे। 

बुझावत हवच प्यास पानी पलो के।
नहर के खुदाई ल मजदूर करथे।

दिखावत चलत हच पहिर जेन कपड़ा।
उहू के सिलाई ल मजदूर करथे। 

रहे रेशमी या कि सूती के लुगरा
सबो के कताई ल मजदूर करथे।

बनाये पहाड़ी बड़े भव्य मंदिर।
ओ पथरा चढ़ाई ल मजदूर करथे।

लगे जाड़ भारी त कइसे बचे तँय।
ओ स्वेटर बुनाई ल मजदूर करथे।

कभू जान आफत फँसे जिंदगी मा। 
तुँहर बर लड़ाई ल मजदूर करथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल*-मोहन वर्मा बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम

*गजल*-मोहन वर्मा

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन

122  122  122  122

बता दे बरोबर-सहीं जानकारी ।
कहाँ तँय लुका के धरे नोट-कारी ।

बिना दाँत के भोभला आदमी हा,
चबाही कहाँ ले ग सइघो सुपारी ।

बतइया कहाँ नेक रस्ता के पाबे,
निकल के रहय गा खड़े घर- दुवारी

बिदेशी सवाँगा पहिरबे कभू झन,
कुदाही परेतीन धरके  तुतारी ।

सुदामा-कन्हैया बरोबर जगत मा,
बिपत के समय मा रहय मीत-यारी ।

खुशी मा अबड़ झन उछलबे ग भइया,
सरग मा कभू नइ मिलय गा अटारी ।

कठल हाँसके देख ले रोज "मोहन"
ये तन ले भगा जाथे कतको बिमारी ।

गज़लकार- मोहन लाल वर्मा
पता -ग्राम-अल्दा, तिल्दा,
जिला-रायपुर (छत्तीसगढ़)

गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम

गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मुतकारीब मुसमल सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
बहर- 122 122 122 122

बिहिनिया नहाना बहुत काम आथे।
भजन गीत गाना बहुत काम आथे।

रखव नेक साथी अपन जिंदगी मा।
मितानी निभाना बहुत काम आथे।

चढ़ाई के पहिली विभीषण तलासव।
कमी के बताना बहुत काम आथे। 

रहे एक नारद लड़ाई करावय।
उहू ला मनाना बहुत काम आथे। 

सिपाही दिखे ता नमस्ते करव जी।
परे जाय थाना बहुत काम आथे।

कभू घूम आवव दुसर देश ला जी।
छुपे बर ठिकाना बहुत काम आथे।

तिरे तीर मच्छर ह गाना सुनावय।
त ताली बजाना बहुत काम आथे। 

सुने जेन चारी खवावत हे गारी।
सुने ला छुपाना बहुत काम आथे। 

मुसीबत घड़ी मा बनव जी सहायक।
रहे धन लुटाना बहुत काम आथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...