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Monday 22 June 2020

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम 
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 212 212 212 

दिन किसानी के आये हवँय।
सब बतर ला ग पाये हवँय। 

अब सुरुज देव आवय नही।
ओट बादर लुकाये हवँय। 

कोन खोले हवय केश ला।
लागे बादर ह छाये हवँय। 

खार डोली परे सोर हे।
बेंगुवा गीत गाये हवँय। 

जे किसानी करे तेन ला।
गंध माटी के भाये हवँय। 

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

गजल -आशा देशमुख

गजल -आशा देशमुख

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212  212  212*

आत्महत्या महा पाप हे
साँस ला जस मिले श्राप हे।

नइ बियापय सुरुज के अगिन
छल गरब मा अबड़ ताप हे।

झूठ के रंग बिरंगा महल
साँच के अब कहाँ खाप हे।

 पैंजनी छन छना छन बजय।
माँगटीका हा चुपचाप हे।

फोकटे के लगय सौ बछर
पल घलो छोड़थे छाप हे।

खोजथव मंत्र माला कहाँ
प्रेम बोली घलो जाप हे।

सोच आशा हवा का करय
दीप जलथे अपन आप हे।


आशा देशमुख

गजल* चोवाराम वर्मा बादल

*गजल* चोवाराम वर्मा बादल

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212  212  212*

तैं लगा दे दवा घाव मा
हे खुशी सेवा के भाव मा

होंकरे हच अबड़ देख ले
हे जरे जिनगी हा ताव मा

बाँट ले प्रेम ला प्रेम से
दुःख तो मिलथे टकराव मा

 सस्तिहा कतका वो होगे हे
आदमी बिक जथे पाव मा

पार होना हवय चेत कर
टोनका झन रहै नाव मा

छोंड़ अबड़े मनोकामना
शांति आथे दुरिहाव मा

मनखे अच मनखे ला जोर तैं
फट जथे मन ह अलगाव मा

चोवा राम 'बादल'

गजल- मनीराम साहू मितान

गजल- मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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212   212   212

गाँठ सब खोल जप राम ला।
गोठ कर तोल जप राम ला।

मंद नसकान करथे अबड़,
पी के झन डोल जप राम ला।

मान मिलथे रहे दायसी,
मीठ रस घोल जप राम ला।

झन पहा फोकटे कर कुछू,
कर समे मोल जप राम ला।

पोंस तोला करे हें बड़े,
आज झन कोल जप राम ला।

जा कहूँ तैं ह आबे इहें,
जग हवै गोल जप राम ला।

घाम दुख के सुखा नइ सकय
आस गद ओल जप राम ला।

रुख बँचा ले मया के मनी,
पीट के ढोल जप राम ला।

मनीराम साहू मितान

छत्तीसगढ़ी गजल- मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ी गजल- मिलन मलरिहा

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212   212   212*

अढ़हा कस का करे, तैं तो रे
अतका का दुख धरे, तैं तो रे

मुच ले हॉ॑सच अलग सबले तैं
ये का तैं कर डरे, तैं तो रे

खचवा डिपरा रथे जिनगी मा
सोज्झे बिरथा मरे, तैं तो रे

कोनला दुख, बता नइ इहां
मन मा का का भरे, तैं तो रे

छोड़ देते बड़े पर्दा ला
फेर काबर जरे, तैं तो रे

देखते, एकदिन बन जते
सोना सबले खरे, तैं तो रे

मिलन मलरिहा
मल्हार बिलासपुर (छ.ग.)

गजल- ज्ञानु

गजल- ज्ञानु

बहरे मुतकारिक मुसद्दस सालिम
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212 212 212

सबले आघू खड़े हे ददा
आय झन दुख अड़े हे ददा

मोर साक्षात भगवान ये
रब खुदा ले बड़े हे ददा

झन हिलय  घर कभू पथरा बन
नेव के वो गड़े हे ददा

काम सीखोय बर अउ घलो
चार झापड़ जड़े हे ददा

'ज्ञानु' कोनो मरय भूख झन
बीज बनके पड़े हे ददा

ज्ञानु

*गजल* चोवाराम वर्मा बादल

*गजल* चोवाराम वर्मा बादल

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212  212  212*

लबरा के बोलबाला हवय
मुँह लगे सच के ताला हवय

 हे भले वो हा भोला अबड़
 हाथ मा फेर भाला हवय

 करबे झन सुख के जादा गरब
 जिनगी मा दुःख पाला हवय

 हमला तो घात करथे असर
 मेहनत के निवाला हवय

 जे करत हे अबड़ छल- कपट
 ओकरे घेंच माला हवय

कोन करही बने गा जतन
 बाप के छाती छाला हवय

  सूते हच अब ले तैं जाग जा
  भोर  होगे उजाला हवय

  जेला मानत रहे तैं अपन
  वो निचट दिल के काला हवय

 बूड़ 'बादल' जबे चेत कर
  गहिरा धोखा के नाला हवय

चोवा राम 'बादल'

गजल- मनीराम साहू मितान

गजल- मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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212   212   212

मिल बुता हम कमाबो चलव।
गीत सुम्मत के गाबो चलव।

धीर फल मीठ होथे कथें,
संग मिल बाँट खाबो चलव।

लेस इरखा कपट द्वेष ला,
हम मया घर बनबो चलव।

झूठ कब्भू खँटावय नही,
बाट धर सत्य जाबो चलव।

हम सुवारथ म जींयन नही,
काम माटी के आबो चलव।

छोड़ हम बैर घिन भाव ला,
मीत सबके कहाबो चलव।

हे भला हम सबो के मनी
मिल मुठा कस बँधाबो चलव।

मनीराम साहू मितान

Sunday 14 June 2020

गजल-ज्ञानु बहरे मुतकारिद मुसद्दस सालिम

गजल-ज्ञानु

बहरे मुतकारिद मुसद्दस सालिम
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212  212  212

कोन सच गोठियाथे इहाँ
आज रसता  दिखाथे इहाँ

छोड़ बनिहार अउ ये कृषक
पेर जाँगर कमाथे इहाँ

पार सीमा खड़े फौजी मन
मार दुश्मन भगाथे इहाँ

काम चोट्टा हवै जेन हा
बस बहाना बनाथे इहाँ

भाग्य जेखर कहूँ रूठगे
रोज बस वो ठगाथे इहाँ

नाम गुरु के सुमर रोज के
पार जग ले लगाथे इहाँ

बचके रहिबे चुगलखोर ले
'ज्ञानु' झगरा मताथे इहाँ

ज्ञानु

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212   212   212*

देख मोला तुमन हाँसथौ।
जान भोला तुमन हाँसथौ।1

सुरसा कस ये जमाना नवा।
खागे कोला तुमन हाँसथौ।2

घर के थेभा हरे नेंव हा।
पड़गे पोला तुमन हाँसथौ।3

डर के मारे लुकाये जिया।
कोंच वोला तुमन हाँसथौ।4

गेंव मैं (लेंव का) मँहगा बाजार मा।
देख झोला तुमन हाँसथौ।5

एक पग मा खड़े जिंदगी।
गिरगे गोला तुमन हाँसथौ।6

आसरा मोर बेटी रिहिस।
उठगे डोला तुमन हाँसथौ।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212   212   212*

का सहीं का गलत जाँच ले।
तन तपा सत सुमत आँच ले।1

भाग झन कोस झन दुख मना।
साँस हावय चलत नाँच ले।।2

हाँसबे झन दुसर के उपर।
पहली खुद के वसन काँच ले।3

बाँटे बिन ज्ञान गुण मरबे झन।
बनके गुणवान गुण बाँच ले।4

खुलबे करही दफन राज हा।
भाग जाबे कहाँ साँच ले।।5

धन सिराही पिराही बदन।
मन म ममता मया खाँच ले।6

भीड़ सौ के घलो हारथे।
जीत होथे बने पाँच ले।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

गजल- गजानन्द पात्रे

गजल- गजानन्द पात्रे

बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
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212   212   212

मोर छत्तीसगढ़ धाम हे ।
हाथ ला जोर परनाम हे ।।

बात कर नीति रख धरम ।
सत्य जग मा सदा दाम हे ।।

चाँद सूरज उगे सत धरा ।
लोक हित ये सुबो शाम हे ।।

भेद मनखे धरम ना करौ ।
एक ही खून तन चाम हे ।।

एक घासी कबीरा इँहे ।
यीशु रहिमन गुरू राम हे ।।

क्रोध तन मन जलाये जिया ।
मीठ बोली बने काम हे ।।

चल गजानंद पात्रे धरे ।
राह सच के लगे जाम हे ।।

गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

छत्तीसगढ़ी गजल-आशा देशमुख

छत्तीसगढ़ी गजल-आशा देशमुख


*बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम*
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*212  212  212*

कोन बाँधे इहाँ काल ला।
कोन काटे बिछे जाल ला।

डर सतावत रहय रात दिन।
का बतावय मनुज हाल ला।

रोग फ़इलत हवय रोज के।
अब  बदल ले अपन चाल ला।

फूँक आगी अहम लोभ के।
काय करबे धरे माल ला।

बैठ के सब उँघावत हवँय
का बजावत हवच गाल ला।

दिन बदलही इही आस हे।
याद करहू यहू साल ला।

कोन जाने कहाँ शत्रु हे
राख आशा अपन ढाल ला।

आशा देशमुख

Monday 1 June 2020

छत्तीसगढ़ी गजल

"मिठलबरा ला मार तुतारी"

सीख ले भइया दुनियादारी
मिठलबरा ला मार तुतारी।

आँखी मा धुर्रा फेंके अउ
बात-बात मा कहय लबारी।

अपनआप ला बड़े बतावै
धोखाबाज बड़े सँगवारी।

महा जुगाड़ू महा लफाड़ू
गावै सदा राग-दरबारी।

ओकर काम-बुता ये जानँव
एकर चुगली ओकर चारी।

मैं मैं मैं नरियावत रहिथे
ओकर आय इही चिन्हारी।

टेस बतावय राज-महल के
गिरवी ओकर लोटा थारी।

आगू करथे नँगत बड़ाई
पाछू देथे अब्बड़ गारी।

'अरुण' मानथे मिठलबरा ला
कोरोना ले बड़े बिमारी।

 - अरुण कुमार निगम
   आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...