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Sunday 14 February 2021

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


वो लगाय नेकी पौधा अभी नान नान बाढ़े

दुनो हाथ ले लुटाये वो धरम के मान बाढ़े।



कहूँ  हा सकेले सोना कहूँ हा सकेले माया

तहूँ खोल पाठशाला उहाँ रोज ज्ञान बाढ़े।


भरे हे जगत मा दाता ये भरात हे तिजोरी 

कभू तँय लुटा मया ला इही प्रेम दान बाढ़े।


ये सुनार के हे सोना,ये किसान के हे खेती

हे मिलाय ताम पानी तभे भार धान बाढ़े।


भुजा मा करे भरोसा  लगे रात दिन लगन हे

सहे लाभ हानि सब मा तभे तो दुकान बाढ़े।


का बिगाड़े छोट नीयत रहे साथ जब विधाता

कती ले खिंचाय साड़ी कती ले ये थान बाढ़े।


ये ख़िरत हे खेती बारी, दिखे नइ तको चरागन

हवे नान छोट डोली भूमि के लगान बाढ़े।


आशा देशमुख

गजल


 *बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


लमा हाथ सत धरम बर तभे जग मा नाँव मिलही।

लगा पेड़ ला सुमत के तभे सुख के छाँव मिलही।


लगे भाँय भाँय अँगना गली खेत खार सुन्ना।

सजे मोर आँख सपना कहाँ अब वो गाँव मिलही।


चले तोर जोर जाँगर हवे तब तलक पुछाड़ी।

धरे आय तन बुढ़ापा तहाँ हाँव हाँव मिलही।


बिछे जाल छल कपट के इहाँ देख ताक चलबे।

रचे कूटनीति के अब घरों घर मा ठाँव मिलही।


बचा आज तैं गजानंद अपन आप ला इहाँ जी।

कहे जेन ला अपन तैं सदा ओखरे से घाँव मिलही। 


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


नवा दग‌ बिहान आही गियाँ थोरकिन सबर कर।

करू रात हा पहाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


भले हे अभी रिसाये सखा तोर वो मयारू,

मया गीत गुनगुनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


कुआँ आस के खने हस सही ज्ञान जल निकलही,

बढ़े प्यास ला बुझाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


कला जानथस चिखे के कहे गोठ ला सबन‌ के,

कसा मीठ कस जनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


ले के हार के सहारा बड़े जीत पा जबे गा,

ते हा सत्य बाट राही गियाँ थोरकिन सबर कर।


सरी दिन जपन‌ करे हस हवे हरि अबड़ दयालू,

नठे काम वो बनाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


रखे राह गा भरोसा मनी हे मितान‌ सब के,

वो हा दोसती निभाही गियाँ थोरकिन सबर कर।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

 गजल-इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


नवाँ माथ गुरु चरण मा सुखी तोर द्वार होही।

फँसे बीच नाँव जिनगी कृपा गुरु पा पार होही।


रखे दूर गुरु बुराई जला जोत ज्ञान हिरदे।

खड़े ढाल बन बिपत मा जिहाँ सच पुकार होही।


सहीं राह गुरु दिखाये मिले बड़ नसीब ले वो।

सजे मन घड़ा बरोबर पड़े हाथ गुरु कुम्हार होही।


पढ़ा पाठ एकता गुरु कहे संग संग रइहौ।

रहे मान शिष्य गुरु के इही बात सार होही।


जपे नाम ला गजानंद सदा अपन तो गुरु के।

मिले तोर ज्ञान के जनमो जनम उधार होही।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

मुकम्मल ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 मुकम्मल ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


हवे पार वो लगइया तें श्री राम के भजन‌ कर।

इही नाँव हे तरइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


जे हा हाँस के गइस बन हरे बर सबन‌ के पीरा,

ददा के कहे मनइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


नदी के करार पहुँचिस चढ़े नाव‌ के बहाना,

गुहा भाग के बनइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


हवे एक जात मनखे इही बात ला बताइस,

जुठा बेर के खवइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


बना के मितान मरकट भला काम जे करे हे,

सदा दोसती निभइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


लिखे नाँव ले उफल गय बड़े ले बड़े वो पथरा,

सदा सत्य शिव जपइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


कटा मूड़ ला जी रावन तरे जात कुल के सुद्धा,

मनी मन सदा बसइया तें श्री राम के भजन‌ कर।


- मनीराम साहू 'मितान'

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे कामिल मुसम्मन सालिममुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन 

11212  11212  11212  11212


कभू बात करबे बने समझ के निकालबे गा जुबान ले। 

हवे बात जे बने काम के तहूँ पूछ ले जी सियान ले। 


दगा दे के तैं कहाँ जाबे जी हवे दुनिया गोल बताँव जी।

भला अउ बुरा मिले एक दिन  दुनो के नतीजा हा मान ले। 


भले काम बर सबो आव आघु इही मा सार हवे सुनव। 

बने काम के जी नतीजा होथे बने ये बात ला जान ले।


हे अकेला चलना ये रद्दा जिनगी के काँटा ले भरे जान ले। 

बढ़ा के कदम,नहीं रुकना हे,भले आँधी आय ये ठान ले।


मिले ज्ञान हा जिहाँ भी बने धरे कर "अजय" सबो सार ला। 

कहाँ ले बिसाबे तहीं बता मिले ये कभू ना दुकान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )

Thursday 11 February 2021

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल-  ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मजाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन 

1121 2122 1121 2122


लहू मा जी तोर मारत हे अबड़ उबाल काबर 

कुछू जब मिलय नही रोज करे बवाल काबर 


सुने हँव के बात मा तोर हवय अबड़ के दम जब

करे नइ कुछू इहाँ आज तलक कमाल काबर 


दिखा दव विकास ऊपर म विकास जब करे हव

दिखे नइ सुधार अउ  जस के ग तस हे हाल काबर 


सही ताय कतको ल नाम गरीब के इहाँ बस 

बना योजना तुमन लेव डकार माल काबर 


का बताँव बढ़ जथे 'ज्ञानु' दरद हा देखथँव ये

इहाँ अपने ह खिंचै अपने के रोज खाल काबर 


ज्ञानु

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]


फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


1121 2122 1121 2122 


बबा के कमाये धन मा ददा हर पुटानी मारे। 

करे हे बहुत दिखावा जुआ मा तकोच हारे। 


बचे नइ हवय तनिक भी जगा खेत खार भर्री।  

चले मोर घर ह कइसे बिना काम बिन सुधारे।


उठे हे उफान नदियाँ बहे तेज धार भारी।

फँसे जिंदगी के नइया बता कोन अब उबारे। 


परे राह मा जे पथरा चला मिल अभी हटाबो। 

नहीं ते हपट जही जी चले राह जे बिचारे। 


गरी खेल के फँसाथे गुथे मोह माया चारा। 

फँसे लालची जे मछरी दिखे दिन तको म तारे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


घुमे सच गली गली मा रमे झूठ  हाट देखे

कहाँ हे रतन चिन्हैया चुपे सोन बाट देखे।


बहे खून धार नदिया होय हे अबड़ लड़ाई

हे गवाह सब किला मन सबो राजपाट देखे।


बिछे पाँव मा गलीचा लगे फूल कांस थारी

अभी दाना बर तरसथे कभू शान ठाट देखे।


इहाँ ले उहाँ घुमत हे धरे हे सबो के नस ला

हवे कोन मीठ सिठ्ठा जेहा घाट घाट देखे।


करौ कर्म मा भरोसा इही भाग ला बनाये

सुने हँव मरे सड़क मा जेन हा ललाट देखे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]


फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


1121 2122 1121 2122


जभे मोर मन से लिखहूँ  तभे काम मोर होही।  

रहे भाव जब भराये तभे नाम मोर होही। 


ये कहाँ फँसे हवँव मँय,बँधे मोह माया बंधन।

करे बर परे तपस्या तभे राम मोर होही। 


दही बर नचाये गोपी त दिखाय नाच कान्हा। 

मया मा रिझाहुँ मँय हर तभे श्याम मोर होही।


करे जेन हर दिखावा वो कहाँ चले सफर मा। 

रमे मन जहाँ रमाये तभे धाम मोर होही।


परे हे डगर डगर मा रहे सिरतो नइ पुछारी।

सजे राह मा जे आहूँ तभे दाम मोर होही। 


रचनाकार-दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


बता मूँद के नयन ला, बने राह छाँट पाबे।

नदी अउ कुँवा मा मनके, का मइल ला माँज पाबे।


चले गोठ बात भारी, कभू सच कभू लबारी।

उना पेट हा रही ता, कहाँ कूद नाँच पाबे।


भरे हे नँगत खजाना, कही के लगे लुटाना।

खुदे उस्तरा चलाबे, उड़े बर का पाँख पाबे।


धरे आन मनके गलती, हँसे मार मार कलथी।

कहूँ चूक तोर होही, बता तब का हाँस पाबे।


चले चारो खूँट चरचा, छपे हे गजब के परचा।

उड़े बात जब हवा मा, बता तोप ढाँक पाबे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन

1121 2122 1121 2122


मजा हे बताँव ओखर कहाँ वो बतात हावय।

ददा हे कमात वो घर मा हे बइठे खात हावय। 


ददा तरसे पानी पीये,कहाँ तिर मा बेटा आवय। 

परे हे कुकुर के पाछू उही ला खवात हावय। 


हवे भारी सेना भारत के सबो ये जान डारिन। 

तभे दुनिया गुण ला भारत के अबड़ जी गात हावय। 


धनी गे हे जब ले परदेस बताय काला वोहा।

रो धो के ये जिनगी बीतत ले दे के पहात हावय। 


का भरोसा साँस के थम जही ये"अजय"कभू भी।

करे राह काम पुन के इही सार बात हावय। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा ( छत्तीसगढ़ )

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


टुरा काय ये करत हे लुका पासथे जमाना।

धरे जाल फास नँगते सदा फाँसथे जमाना।


कभू भाय नइ‌ गा कोनो मया बात मोर चिटको,

खड़े हो कुरा ससुर बन जला खाँसथे जमाना।


बने खूब आड़ बाधा हवे बाट मा अबड़‌ के,

कभू जाय टूट एमन बढ़ा ठाँसथे जमाना।


रुँधे हें कपट के काँटा लगे स्वार्थ के गा बारी,

हिँटे ना कभू रुँधानी जमा धाँसथे जमाना।


लुहा के मताय ठेनी करे खूब गा तमासा,

मजा बर बने गा कुकरा खड़े बासथे जमाना।


कभू तो मितान‌ गाथे बने धुन मा गुनगुनाथे,

बढ़े बल बिचार मन के गिरा हाँसथे जमाना।


- मनीराम साहू 'मितान'

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह

 छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव सिंह


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन


 1121 2122 1121 2122


बना चेहरा ल चन्दा जे सगा चकोर बनगे

तहॉं जानले बिचारा ह मया के ढोर बनगे


ए मया मिलन के किस्सा समे आज ले सुनाथे 

कभू लास बनगे नइया कभू सॉंप डोर बनगे


टुरी दिल ल का चोराइस टुरा कामचोर बनगे

इही बात के बहाना एक शेर मोर बनगे


समे संग छोइहा के धरे रूप रस के राजा

ए मरम बताए खातिर हॉं गवाही खोर बनगे


न उला न पोठ सानी सुखदेव शायरी मा

गुरूदेव के असीस ले ये गजल सजोर बनगे


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

212  212  212  212


देश के रक्षा बर मरना हे जान ले। 

बैरी आघू खड़े तोप ला तान ले। 


मूँड़ी कटही भले फेर झुकही नहीं।

ये तिरंगा सदा फहरै जी शान ले। 


सीमा के रक्षा बर मैं अडिग रहिथौं जी।

देश भीतर के बैरी तैं पहिचान ले। 


चेत जावय अभी जेन गद्दार हे। 

भूल के झन कभू खेलहू आन ले।


घेरी बेरी मचावत हे उत्पात उन।

आज बैरी ला देबो सबक ठान ले।


जीत वोकर हमेशा ही होथे"अजय"।

जेन लड़थे अखड़ के जी तूफान ले।


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कली बनही फूल तब आबे रे भँवरा जा अभी तैं

इहाँ घेरी बेरी आ आके ना इँतरा जा अभी तैं


गिरा मत फुहार सावन सरी अंग हा सिहरगे

धनी आही ता चले आबे न  बरखा जा अभी तैं


बता मत शहर मा का का हे नवा उदीम होये

मिटे चिनहा गाँव के खोज वो लाना जा अभी तैं


बिना हेलमेट के गाड़ी चलाना छोड़ देना

गिरे मूँड़ फूट जाथे लगा के आ जा अभी तैं


अरे दू कदम चले हस थके पाँव दिखथे 'बादल'

अजी नइये तोर दमखम बने सुरता जा अभी तैं


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी 


बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मजाइफ़ [दोगुन]

फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन 

1121 2122 1121 2122


कभू काम हर कहाँ बनथे हताश होय मा सुन 

मिले कुछ घलो नइ चुप्प उदास होय मा सुन 


सबो मिल बढ़ाबो जब हाथ हमन जरूर कहिथँव

इहाँ रोक कोन सकही ग विकास होय मा सुन 


बने सावचेत रहना हे करत हियाव अपने

कहाँ देर फेर लगथे जी विनाश होय मा सुन 


पिये परही तोला पानी तभे तो पियास बुझही

बुझे  हे कहाँ कखरो ग नदी पास होय मा सुन 


पहा जिनगी ला सुघर 'ज्ञानु' सदा हँसी खुशी मा

मिले कुछ नही ग जिंदा रही लाश होय मा सुन 


ज्ञानु

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


रहे जीत जेन कोती, उती हार होत हावे।

हरू होत हे गलत हा, बने भार होत हावे।


हवे रोक बढ़िया पथ मा, लगे जंग सत सुमत मा।

बदी बैर भोथरातिस, तिही धार होत हावे।


कहे कोन तोला का अब, दिये नाक तैं कटा अब।

बने बूता नइ बढ़त हे, बुरा चार होत हावे।


ये समै अजब गजब हे, बने छोड़ बाकि सब हे।

खुदे लड़भड़ाये जेहा, ते अधार होत हावे।


कते तीर मिलही मरहम, कते तीर भागही गम।

हवे एक ठन जे आफत, ते हजार होत हावे।


ठिहा खेत बन बारी, सबे मा रही व्यपारी।

का बने समै हबरही, का करार होत हावे।


चुका नइ सके ता कर्जा, मरे छोट मोट मनखे।

नपा लोन बड़ बड़े मन, तड़ी पार होत हावे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गज़ल- अजय अमृतांशु

 गज़ल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िरफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा

212  212  212  2


लोभ मा रात दिन तैं मरत हस।

काम ला जी के छूटत करत हस। 


संग मा का ले के जाबे भाई।

तोर का हे बता जे धरत हस।  


सच के रद्दा मा तोला हे चलना। 

काय के डर हवय जे डरत हस। 


चार दिन के हे मेला  संमझ ले। 

चीज बस जोड़ काबर भरत हस। 


चोरी करके भरे तैंहा कोठी।

चारा हे देश मन भर चरत हस।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'

 ग़ज़ल - मनीराम साहू 'मितान'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


सही बाट मा‌ रखत पग जगा भाग तैं अपन गा।

लिहीं नाँव तोर सरलग जगा भाग तैं अपन गा।


कहाँ काम के हवय जी धरे तोर धन खजाना,

मया मोह सब हवँय ठग जगा भाग तैं अपन गा।


हें बिरान गा सबो झन नता गोत तोर हें जे,

प्रभू नाम बस हवय सग जगा भाग तैं अपन गा।


दिखे देह हा भले जी खरा सोन कस चमक मा,

सदा रइही ये कहाँ दग जगा भाग तैं अपन गा।


हवे तोर मूड़ भाई चढे़ पाप हा नँगत के,

बढ़ा पाँव ला धरम डग जगा भाग तैं अपन गा।


तहूँ जान गा दुसर दुख खुशी बाँट ले ससन भर,

हवे शांति हा इही बग जगा भाग तैं अपन गा।


अढ़ा हे मितान सिरतो कथे बात फेर खाँटी,

बना चाल खुद के जगमग जगा भाग तैं अपन गा।


- मनीराम साहू 'मितान'

Sunday 7 February 2021

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।

बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1


बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।

छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2


अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।

खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3


गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।

चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4


कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।

कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5


धरे हाथ मा जे पइसा, हे पहुँच उँखर सबे तीर।

गले दाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।6


नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।

नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।7


कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।

उना थाल देख के मोर उदास हावे मन हा।8


जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।

झुके भाल देख के मोर उदास हावे मन हा।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


लुटे हे खजाना तेकर गला फूल माला हावय

हवे उजला कपड़ा अंतस भरे खोट काला हावय


हे अमीर के महल ये जिहाँ सोन के हे खम्बा

छिने हे हमेशा मजदूर के जे निवाला हावय


करे हे भरोसा जब जब मिले धोखा तब हे वोला

तभे वो किसान भाई धरे आज भाला हावय


लगे प्यार के तो आगी सरी अंग हा झुलसगे

अजी झाँक देख लेना परे दिल मा छाला हावय


नता के चिन्हारी नइये गड़े इरखा हिरदे भीतर

कहाँ कोन दिखही आँखी मा कपट के जाला हावय



चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹

 

🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*



हवे तोर गोठ भारी कहूँ कर समात नइहे।

ये उधार के परोसा बने से खवात नइहे।


बड़े घर बिहाव माढ़े हे अबड़ सजाय मंडप

ये बनाय भोग छप्पन तभो दार भात नइहे।


ये लुकाय बाँसुरी हा बजे ढोल पोल बाजा

का लिखाय गीत कैसे एको ठन सुनात नइहे।



हवे लोभ के कुटुम्बी धरे भोग के खजाना

ये रखाय चीज कतको तभो ले अघात नइहे।


दिखे पाप के अँधेरा ये सुरुज कहाँ  लुकाये

वो कहाय नाम पूनम ये अँजोर रात नइहे।



आशा देशमुख

गजल-चोवा राम 'बादल'

 गजल-चोवा राम 'बादल'


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


उहू बात मान जाही तहूँ मान देख लेना

दुनो के विचार ला एके मा सान देख लेना


सदा जानू जानू कहिके जे हा जान छिड़कय

उही धोखा करके लेइच अजी जान देख लेना


हँसी हे उपर छवा प्यार तको बनावटी हे

हवे वादा खोखला चढ़े शान देख लेना 


घड़ा आधा हे भरे फेर छलक भरे जनाथे

इही हाल मूढ़ के तो भरे ज्ञान देख लेना


हे खरीददार कतको खड़े जेब मा हे गरमी

बिके आबरू जिहाँ हे वो दुकान देख लेना


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


चुका गेहे मोर पारी तभो दाँव हा चलत हे।

बने मैं हवँव ग सिधवा हुँवा हाँव हा चलत हे।


सबे मनखे मन बदलगे ठिहा ठाँव तक बदलगे।

लगे देख के शहर बर सजे गाँव हा चलत हे।


कहूँ चुप रबे ता कोई कभू जाने तक नही जी।

करे ताम झाम जउने उही नाँव हा चलत हे।


दिखे बोंदवा धरा हा कटे बाग बन हरा हा।

तिपे घाम बड़ सुरुज के खुशी छाँव हा चलत हे।


गरी खेत खार घर बर बिछा दे हवे व्यपारी।

गरी मा फँसे के खातिर ठिहा ठाँव हा चलत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कभू खेत सुक्खा पड़गे कभू होगे पानी पानी।

कहे गे हे ओकरे बर जुआ काम तो किसानी।।


गिरे हपटे मन के संगी सुनौ हाथ धर चलौ गा।

पड़े जे अलग थलग रे बदौ संग मा मितानी।।


हवै दुनिया तोर मालिक बड़े तो अजब गजब के।

हवै काकरो महल तो कहूँ नइये परवा छानी।।


रहौ भाई भाई मिलके रखे का हवव अलग मा।

अरे जायदाद संगे मया होथे चानी चानी।।


जे जवानी देश हित बर नहीं काम जेन आवय।।

ले जनम हवै अभिरथा हे का काम के जवानी।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल-गजानन्द पात्रे"सत्य बोध"

गजल-गजानन्द पात्रे"सत्य बोध"

 *बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*

*1121 2122 1121 2122*


दगा दे जही जवानी तहूँ मीत गीत गा ले।

मिले ना समय दुबारा बने कर्म ला बना ले।


धरौ साथ गुरु गुनी के मिले ज्ञान के खजाना।

ददा दाई के चरन मा सदा माथ ला नँवा ले।


रहौ दूर नाश दारू करे खोखला बसे घर।

दही दूध घी मही मा बने तन अपन सजा ले।


दिखे छाँव ना खुशी के तिपे घाम बड़ बिपत के।

गली गाँव घर शहर मा मया पेड़ ला लगा ले।


बढ़ा पाँव ला गजानंद धरे बात ला सियानी।

दया दान कर जगत मा खुदे नाम ला कमा ले।


इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"

बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


कहूँ ला सुहाये दारू कहूँ ला दही सुहाये।

कहूँ ला हाँ हाँ सुहाये कहूँ ला नही सुहाये।


हे सबे के सोच अलगे हे अलग सबे के आदत।

कहूँ हा गलत करत हे कहूँ ला सही सुहाये।


बने तन बदन हवे ता सबे चीज रास आथे।

जिया भीतरी भरे दुख नही ता कही सुहाये।


करे घाम जब गजब के तिपे चाम तब गजब के।

ता सबे ला छाँव भाये दही अउ मही सुहाये।


हाँ अमीर के मया मीत अमीर बर बने हे।

हे गरीब खैरझिटिया उहू ला वही सुहाये।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*


*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*


*1121 2122 1121 2122*


हवे चार दिन के जिनगी आ मया के गीत गा ले

बना झन महल अटरिया सबो दिल मा घर बसा ले।


ये महल न संग जाही तहूँ जानथस ये सच ला

लिही नाम तोर दुनिया मया-बंसरी बजा ले।


दया ले बड़े धरम का? मया ले बड़े करम का?

इहाँ दान कर मया के उहाँ बर जघा बना ले।


ये नशा नरक के रद्दा सबो काम ला बिगाड़य

तहूँ छोड़ दे नशा अब दही दूध घीव खा ले। 


कभू हारथे "अरुण" तो कभू जीत जाथे बाजी

ये जगत जुआ असन हे तहूँ भाग आजमा ले।


*अरुण कुमार निगम*


ये बहर मा कुछ  फिल्मी गीत

(1) मिली खाक में मोहब्बत जला दिल का आशियाना

(2) जिसे तू क़ुबूल कर ले, वो अदा कहाँ से लाऊँ?

(3) मुझे इश्क़ है तुझी से मेरी जान ए जिंदगानी

(4) जो खुशी से चोट खाए वो जिगर कहाँ से लाऊँ

(5) है कली कली के लब पे तेरे हुश्न का फसाना

Saturday 6 February 2021

गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार

 गजल-दुर्गा शंकर ईजारदार


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


थाह पाही वो भला का पीर रे किसान के ।

दाल रोटी ला बिसाके जेन खात हे दुकान के।।


खार मा तो खेत अउ तो घर जी नइये गाँव मा।

भाव तय उही करे किसान मन के धान के ।।


जेड प्लस सुरक्षा घेरे नेता मालदार ला।

देख कोनो मोल नइये आम जन के जान के।।


पल मा मासा पल मा तोला हो जथे जी नेता  मन।

आज कोनो मोल नइये नेता के जुबान के।।


बूँद बूँद पानी बर मरत हवै किसान मन।

कारखाना बर खुले हे पानी रे बँधान के।।


दुर्गा शंकर ईजारदार

सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

गजल - अजय अमृतांशु

 गजल - अजय अमृतांशु 


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून

फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22 


हाल बड़ हे  बुरा  बताना हे।

आज जिनगी के का ठिकाना हे।


काय धर के जगत मा आये हस। 

काला धरबे कहाँ ले जाना हे ।


चार दिन रहना हे रहव सुख से।

कोन ला घर इहाँ बसाना हे । 


बाँट के सुख भुलाव दुख ला जी।

दुख के बादर सबो छँटाना हे। 


माटी मा मिलथे माटी के काया। 

खोना हे बस इहाँ का पाना हे। 


भाई भाई लड़त हवव काबर। 

अब लगे आगी ला बुझाना हे। 


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


बड़ मतात हे गिधान मन बवाल देवता।

पाँख झट कतरके पिंजरा मा डाल देवता।


पथरा जइसे होगे मनखे पथरा बन तहूँ हवस।

हाल देख तैं जगत के अब तो हाल देवता।


मार काट होत हावे सोत हावे सत सुमत।

मनखे मन ला मनखे मन बनाय ढाल देवता।


टेक गे महल अटार गाँव गे शहर लहुट।

बाग बन कटाय अउ अँटाय ताल देवता।


झूठ बाढ़गे गजब अउ लूट बाढ़गे गजब।

चोर ढोर के नँगत के पो दे गाल देवता।


बात बानी हे जहर उठे विकार जस लहर।

लागथे अब आत हावे सबके काल देवता।


लाज राखे बर धरम के आबे के नही बता।

दे हुँकारू है हाँ नही मा हे सवाल देवता।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


अमरे बर अगास फोकटे अड़े हे तोर घर।

देखे भर मा नाम के गजब बड़े हे तोर घर।1


मोर घर हा नींद भाँजे रोज लात तान के।

एक पग मा चुरमुराय बस खड़े हे तोर घर।2


आघू मा दुवार अउ पिछोत बारी मोर हे।

साज सज्ज़ा बस दिखावटी जड़े हे तोर घर।3


मोर घर मा भाई बहिनी माँ ददा बबा हवै।

भूत बंगला असन रिता पड़े हे तोर घर।4


मोर घर कहाय झोपड़ी मकान घर ठिहा।

नाम धर महल अटार बस गड़े हे तोर घर।5


मोर घर दुवार मा फुले हे फूल बड़ अकन।

पान फूल एको ठन कहाँ झड़े हे तोर घर।6


पी घलो जहर ला मोर घर अमर हे देख ले।

दुःख डर दरद ले का कभू लड़े हे तोर घर।7



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल- अजय अमृतांशु

 गजल- अजय अमृतांशु


बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिमफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन

212 212 212 


सब ले बढ़िया वो इंसान हे। 

दिल मा जेकर गा ईमान हे। 


देख भारत के सेना खड़े।

बैरी मन भारी हैरान हे। 


जेन लूटत हे मजबूर ला। 

सिरतो वोहा  हैवान हे। 


झन झुकय याद रख बात ला। 

ये तिरंगा हमर शान हे। 


साँच के संग देना हवय।

झूठ ला छोड़ पहिचान के।


अजय "अमृतांशु"

भाटापारा (छत्तीसगढ़)

ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*ग़ज़ल --आशा देशमुख*


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*



सोन के चिरई उदास पंख हा कटात हे।

गीध के चिंया ला देख चोंच लफलफात हे।


काग बर सजाय थाल मोतियन रतन चुगे

मूंग मोठ छींत फेंक हंस ला खवात हे।


आज कल तो पूर्व मा भी पश्चिमी हवा चले

नाच गान मंच मा ये लाज हा उड़ात हे।


लाल लाल हे जमीन घाव हे हरा हरा

बैर के ये खेत मा मया अबड़ सुखात हे।


सात छेद हे तभो धरे हे राग बाँसुरी

एक ताल ढोल हा ढमक ढमक बजात हे।



आशा देशमुख

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


देश ला अजाद जे कराये वो अमर रहे। 

जान दे के आन जे बचाये वो अमर रहे। 


वीर वो सपूत नाम दर्ज जिन कराय हे। 

नइ कराय जान पर गँवाये वो अमर रहे। 


सब गरीब ला उठाय बर विचार जे करे।

जेन संविधान ला बनाये वो अमर रहे। 


देश के सुरक्षा बर डटे रथे सबो पहर। 

सीमा मा सिपाही जेन जाये वो अमर रहे। 


भूख ला मिठाय बर गड़े रथे जे खेत मा। 

जे किसान अन्न ला उगाये वो अमर रहे।


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा


बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़

फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन


212 1212 1212 1212 


बात-बात मा बड़े-बड़े निकलथे बात हर। 

बात जब खिंचाय बीत जाय पूरा रात हर। 


बात के बिना कभू बने न कोई बात जी। 

बात ला बिचार के कहव बढ़े न घात हर। 


बोलना हे बात ला समाज में त सोंच लव। 

जोश मा बिगड़ जथे त पर जथे ग लात हर। 


बात जब गरम रहे त दूर होना ठीक हे। 

मुँह तको जलाय देत हावे ज्यादा तात हर। 


जब उठे धुआँ-धुआँ समझ जवव जलत हवे। 

पेंड़ तक सहे नहीं झड़े लगे जी पात हर। 


खून सींच के कमाय तेन मन अघाय जी। 

जे रहे अलाल तेला नइ मिठाय भात हर। 


नर्म भाव रख जिये ले सुख सदा मिलत रथे। 

जेन हे घमंडी तेला नइ सहाय मात हर। 


रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार

Thursday 4 February 2021

ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


आगाज से मतलब नही अंजाम चाही बने।

कुछ काम से मतलब नही परिणाम चाही बने।1


सूरज लुकाये रोज के गरमी घरी मा भले।

सरदी समय घर अंगना मा घाम चाही बने।2


देवय दरद दूसर ला बेपरवाह होके जौने।

पीरा भगाये बर उहू ला बाम चाही बने।3


बिन शोर अउ संदेश के तरसे घलो कान अब।

मन मा खुशी भर दै तिसन पैगाम चाही बने।4


आफत बुला झन रात दिन करके हटर हाय तैं।

जिनगी जिये बर जान ले आराम चाही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...