🌹 ग़ज़ल -आशा देशमुख 🌹
*बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]*
*फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन*
*1121 2122 1121 2122*
वो लगाय नेकी पौधा अभी नान नान बाढ़े
दुनो हाथ ले लुटाये वो धरम के मान बाढ़े।
कहूँ हा सकेले सोना कहूँ हा सकेले माया
तहूँ खोल पाठशाला उहाँ रोज ज्ञान बाढ़े।
भरे हे जगत मा दाता ये भरात हे तिजोरी
कभू तँय लुटा मया ला इही प्रेम दान बाढ़े।
ये सुनार के हे सोना,ये किसान के हे खेती
हे मिलाय ताम पानी तभे भार धान बाढ़े।
भुजा मा करे भरोसा लगे रात दिन लगन हे
सहे लाभ हानि सब मा तभे तो दुकान बाढ़े।
का बिगाड़े छोट नीयत रहे साथ जब विधाता
कती ले खिंचाय साड़ी कती ले ये थान बाढ़े।
ये ख़िरत हे खेती बारी, दिखे नइ तको चरागन
हवे नान छोट डोली भूमि के लगान बाढ़े।
आशा देशमुख