Total Pageviews

Tuesday 2 July 2019

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

मोर माथा म का लिखाये हे।
भाग मा मोर काय आये हे।

खीर पूड़ी बने रहे घर मा।
चोर करिया सबो ल खाये हे।

जेन ले मँय मया करे चाहँव।
तेन दूसर के सँग भगाये हे।

छोड़ दे आज ले गुलामी ला।
तोर पुरखा बहुत बचाये हे।

रात कस हो गये हवय दिन हा।
केंश कोनो सखी सुखाये हे।

जेन मुखिया बने करे गलती।
तेन थपरा तको जी खाये हे।

हारगे हे कतेक राजा मन।
जेन जनता रहे भुलाये हे।

पाँव ओखर उखड़ जथे साथी।
जेन के नींव डगमगाये हे।

भाग के लाज ला बचा पप्पू।
तोर पाछू कुकुर छुवाये हे। 

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

देख माटी नमी ल खोये हे।
दुःख भारी किसान ढोये हे।

धान पाबो बने यहू बारी
आस भारी सबो सँजोये हे।

देख के दुख किसान के भारी।
देव बरसा तुरत पठोये हे।

टोर जाँगर किसान हा बोवय।
धान भाँठा रखे सरोये हे।

चोर चोरी करे भगा जाथे।
कोन छेंकय सबो तो सोये हे।

आम कइसे मिले बता संगी।
जेन अँगना बबूल बोये हे।

मार देथे बने रहे हीरो।
हाथ आथे तहाँ ले रोये हे।

ओ मसीहा बने हवय भाई।
पाप के दाग सब ल धोये हे।

मान लेवव दिलीप के कहना।
घाम चुंदी कहाँ पकोये हे।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

जब ले बाई सुराग पाये हे।
जान मुश्किल म मोर आये हे।

दान दाता हवय इहाँ भारी।
भीख मंगा बहुत बनाये हे।

हार पहिरे गली म झन जाबे।
दिन दहाड़े बहुत लुटाये हे।

कोन बिसवास अब करे बतला।
भाई भाई ल अब ठठाये हे।

भाग जाथौं उँखर दुवारी ले।
देख करिया कुकुर बँधाये हे।

सोर करथे हमर ददा दाई।
दुःख पा के बड़े बढ़ाये हे।

जब ले बेटा दलीप के बाढ़े।
रात दिन बोल के पकाये हे।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (4)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

भूत ठाढ़े कहूँ दुवारी मा।
चीर देबो पकड़ के आरी मा।

जेन रेंगे सकय नही भाई।
तेन दउड़य परे तुतारी मा।

सास झगरा करे ल नइ जानय।
बीत जाथे समे ह चारी मा।

देख गोरी टुरी तको हावय।
मोर हिरदे लगे हे कारी मा।

छेंक नरवा रखव तको गरुवा।
आज घुरुवा बनाव बारी मा।

देव हर सब करा कहाँ रइही।
भेज देहे मया ल नारी मा।

मोर झगरा बने बढ़े हावय।
रोस आथे बड़ा सुवारी मा।

जेन गुस्सा रहे उड़ा जाथे।
देख आथे मया ह सारी मा।

सेठ के पेट का समाये हे।
माल पाये दुकान दारी मा।

देह कपड़ा भले रहय झन जी।
घीव खाले मिले उधारी मा।

दाम लेके सबो सताये हे।
भाग जाथे ग मोर पारी मा।

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा (5)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122 1212 22

छंद सीखे सबो सधाये हे।
जेन साधे उही ह पाये हे।

खोल आँखी बने बने देखव।
कोन काला कहाँ लुकाये हे।

आज अठरा घलो कहाँ रहिथे।
देख टूरा टुरी भगाये हे।

ओ जवानी रहय जवानी जी।
चार बाई बबा चलाये हे।

नाक अँगड़ी कभू करव झन जी।
जेन करथे ओ मार खाये हे।

चोर बनके चुराय हे दिल ला।
बेंच पइसा बहुत कमाये हे।

नाक नकटा के बाढ़ जाथे जी।
लाज ओला कभू न आये हे।

राम के नाम ला भजव भाई।
नाथ बिगड़ी सबो बनाये हे।

मौन रहिके रहय अपन घर मा।
मान जिनगी बने पहाये हे।

गजलकार - दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़

5 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई हो भाई जी

    बहुते सुघ्घर सृजन

    ReplyDelete
  2. बहुत सुघ्घर गजल भाई जी आप ला बहुत बहुत बधाई

    ReplyDelete
  3. बड़ सुघ्घर गजल भैया जी,बधाई

    ReplyDelete
  4. सुन्दर सुन्दर गज़ले
    शेर भी क्या कहने

    ReplyDelete
  5. बहुत बहुत बधाई सर

    ReplyDelete

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...