छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा
(1)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
~~~~~~~~~~~~~
एक चिनहा अपन बनाले तैं
गाँव मा जस धरम कमाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~
काम जादा बड़े तो नोहै जी
पेड़ हर घर गली लगाले तैं
~~~~~~~~~~~~~
बैठही रेंगईयाँ मनखे मन
छाँव एकाक तो सजाले तैं
~~~~~~~~~~~~~
जेठ के घाम जोर मारय जी
जल चिराई घलो पियाले तै
~~~~~~~~~~~~~
खाही बासी बइठ नँगरिहा मन
मेंड़ मा रुख बने जगाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~
स्रोत गहिलात हर समय दिन दिन
लउहा बदरी ला झट बलाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~~
सुन मलरिहा बुता सबो होही
अब धरा ला हरा बनाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~~
छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा
(2)
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
फेर बादर हा निचट तरसात हे
घूम फिरके कति मुड़ा मा जात हे
बड़ बिपत छागे इही सावन समै
चैत जइसे देखतो भभकात हे
पंप अउ ट्यूबेल के का काम हे
पानी गहिरागे न कछु टमरात हे
होत झगरा बड़ नहर के धार बर
रात दिन संसो गझावत आत हे
लागथे कुदरत भुलागे गाँव ला
नदिया-तरिया ला घलो अटवात हे
जीवमन तड़पत मरत हे प्यास मा
आन के करनी दुसर पेरात हे
पेड़-जंगल ही बलाथे पानी ला
आज के बेरा, इही समझात हे
सुन मलरिहा जल पवन प्रकाश सब
ये धरा ला तो इही महकात हे ।
गजलकार - मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़
_______________________
(1)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
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एक चिनहा अपन बनाले तैं
गाँव मा जस धरम कमाले तैं
~~~~~~~~~~~~~~
काम जादा बड़े तो नोहै जी
पेड़ हर घर गली लगाले तैं
~~~~~~~~~~~~~
बैठही रेंगईयाँ मनखे मन
छाँव एकाक तो सजाले तैं
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जेठ के घाम जोर मारय जी
जल चिराई घलो पियाले तै
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खाही बासी बइठ नँगरिहा मन
मेंड़ मा रुख बने जगाले तैं
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स्रोत गहिलात हर समय दिन दिन
लउहा बदरी ला झट बलाले तैं
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सुन मलरिहा बुता सबो होही
अब धरा ला हरा बनाले तैं
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छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा
(2)
बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
फेर बादर हा निचट तरसात हे
घूम फिरके कति मुड़ा मा जात हे
बड़ बिपत छागे इही सावन समै
चैत जइसे देखतो भभकात हे
पंप अउ ट्यूबेल के का काम हे
पानी गहिरागे न कछु टमरात हे
होत झगरा बड़ नहर के धार बर
रात दिन संसो गझावत आत हे
लागथे कुदरत भुलागे गाँव ला
नदिया-तरिया ला घलो अटवात हे
जीवमन तड़पत मरत हे प्यास मा
आन के करनी दुसर पेरात हे
पेड़-जंगल ही बलाथे पानी ला
आज के बेरा, इही समझात हे
सुन मलरिहा जल पवन प्रकाश सब
ये धरा ला तो इही महकात हे ।
गजलकार - मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़
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बहुत सुग्घर गजल भाई
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर गज़ल मिलन जी बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteजय जोहार
बड़ सुग्घर सृजन हे भाई मिलन।
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआभार
बहुत बहुत बधाई सर
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