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Tuesday 9 July 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

 (1)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

 2122  1212  22
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एक चिनहा अपन बनाले तैं
गाँव मा जस धरम कमाले तैं
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काम जादा बड़े तो नोहै जी
पेड़ हर घर गली लगाले तैं
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बैठही रेंगईयाँ मनखे मन
छाँव एकाक तो सजाले तैं
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जेठ के घाम जोर मारय जी
जल चिराई घलो पियाले तै
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खाही बासी बइठ नँगरिहा मन
मेंड़ मा रुख बने जगाले तैं
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स्रोत गहिलात हर समय दिन दिन
लउहा बदरी ला झट बलाले तैं
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सुन मलरिहा बुता सबो होही
अब धरा ला हरा बनाले तैं
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छत्तीसगढ़ी गजल - मिलन मलरिहा

 (2)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

2122   2122   212

फेर बादर हा निचट तरसात हे
घूम फिरके कति मुड़ा मा जात हे

बड़ बिपत छागे इही सावन समै
चैत जइसे देखतो भभकात हे

पंप अउ ट्यूबेल के का काम हे
पानी गहिरागे न कछु टमरात हे

होत झगरा बड़ नहर के धार बर
रात दिन संसो गझावत आत हे

लागथे कुदरत भुलागे गाँव ला
नदिया-तरिया ला घलो अटवात हे

जीवमन तड़पत मरत हे प्यास मा
आन के करनी दुसर पेरात हे

पेड़-जंगल ही बलाथे पानी ला
आज के बेरा, इही समझात हे

सुन मलरिहा जल पवन प्रकाश सब
ये धरा ला तो इही महकात हे ।


गजलकार - मिलन मलरिहा
छत्तीसगढ़
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7 comments:

  1. सुन्दर गज़ल मिलन जी बधाई

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    Replies
    1. धन्यवाद
      जय जोहार

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  2. बड़ सुग्घर सृजन हे भाई मिलन।

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  3. बहुत बहुत बधाई सर

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