छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
बहर-221 1222 221 1222
भुर्री के मजा लेलौ,बड़ जाड़ बढ़े हावै।
सूरज के पता नइहे,बेरा ह चढ़े हावै।।1
बरसात म बरसे जल,गर्मी म बियापे थल।
जुड़ जाड़ के मौसम ला,भगवान गढ़े हावै।2
खुद काम कहाँ करथे,बइमान बने लड़थे।
अपनेच अपन अँड़थे,वो काय पढ़े हावै।3
गिन के हे बने मनखे,जे मान रखे तन के।
नित झूठ कहे जेहर,वो दोष मढ़े हावै।।4
सब बात हवा मा हे,मुद्दा ह तवा मा हे।
बहकाव म बह जावै,ओ मन न कढ़े हावै।5
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
बहर-221 1222 221 1222
भुर्री के मजा लेलौ,बड़ जाड़ बढ़े हावै।
सूरज के पता नइहे,बेरा ह चढ़े हावै।।1
बरसात म बरसे जल,गर्मी म बियापे थल।
जुड़ जाड़ के मौसम ला,भगवान गढ़े हावै।2
खुद काम कहाँ करथे,बइमान बने लड़थे।
अपनेच अपन अँड़थे,वो काय पढ़े हावै।3
गिन के हे बने मनखे,जे मान रखे तन के।
नित झूठ कहे जेहर,वो दोष मढ़े हावै।।4
सब बात हवा मा हे,मुद्दा ह तवा मा हे।
बहकाव म बह जावै,ओ मन न कढ़े हावै।5
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
बहुत खूब, क्या बात है
ReplyDeleteग़जब भाई...
ReplyDelete👏👏👏👏👏👍👍👌👌
Kya Kya bat jitendra Bhai
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