गजल -दिलीप कुमार वर्मा
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
मँय तोर मया खातिर,आगी ले गुजर जाहाँ।
धुतकार भले कतको,मँय तोर करा आहाँ।
मँय धीर धरइया हँव,जल्दी न हवय मोला।
भँवरा के सहीं रइहँव,तब तोर मया पाहाँ।
अवकात भले नइ हे, दू जून के रोटी के।
पर तोर मया पाये,मँय चाँद तको लाहाँ।
खेती हे न बारी हे, घर हे न दुवारी हे।
पर तोर रहे खातिर,मँय ताज ल बनवाहाँ।
गदहा के असन बोली,सुर बांस बजे फटहा।
अरमान जगाये बर,मँय गीत तको गाहाँ।
बस हाड़ बचे हावय, अउ जान बचे हावय।
मन तोर लुभाये बर,मँय मार तको खाहाँ।
मजनू न बनँव मँय हा, मँय हीर तको नो हँव।
कलजुग के मयारू हँव,मँय मार के मर जाहाँ।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
मँय तोर मया खातिर,आगी ले गुजर जाहाँ।
धुतकार भले कतको,मँय तोर करा आहाँ।
मँय धीर धरइया हँव,जल्दी न हवय मोला।
भँवरा के सहीं रइहँव,तब तोर मया पाहाँ।
अवकात भले नइ हे, दू जून के रोटी के।
पर तोर मया पाये,मँय चाँद तको लाहाँ।
खेती हे न बारी हे, घर हे न दुवारी हे।
पर तोर रहे खातिर,मँय ताज ल बनवाहाँ।
गदहा के असन बोली,सुर बांस बजे फटहा।
अरमान जगाये बर,मँय गीत तको गाहाँ।
बस हाड़ बचे हावय, अउ जान बचे हावय।
मन तोर लुभाये बर,मँय मार तको खाहाँ।
मजनू न बनँव मँय हा, मँय हीर तको नो हँव।
कलजुग के मयारू हँव,मँय मार के मर जाहाँ।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
बहुत सुघ्घर गजल
ReplyDeleteलाजवाब गजल दिलीप जी।
ReplyDeleteवाह !!!
ReplyDeleteवाहःह भाई जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
वाह बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल, गुरुदेव ।सादर नमन ।
ReplyDeleteअतिसुन्दर रचना गुरुदेव।आपको और आपकी गजल को प्रणाम
ReplyDeleteसुग्घर गजल भैय्या जी🙏🙏🙏🙏
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