छत्तीसगढ़ी गजल
बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
विक्कट तो मिलावट से बाजार सजत हावै ,
लुच्चा ग लफंगा से सरकार सजत हावै ।।
अब दूध मथानी मा माछी ह घलो नइये ,
दारू के तो भठ्ठी मा दरबार सजत हावै ।।
हे पूछ परख भारी चप्पल के चटइया के ,
दरपन के दिखइया बर तलवार सजत हावै।।
हे पाँव ग बिन चप्पल काँटा तो बिनइया के ,
थूम्भा के जगइया घर तो कार सजत हावै ।।
कोठी हे निचट खाली जे नाम किसानी हे ,
दाना के दलाली के व्यापार सजत हावै।।
अपनेच अपन मा तो दुनिया ह सिमट गे हे ,
बिन दाई ददा के अब परिवार सजत हावै ।।
मँय झूठ कहँव दुर्गा कउँवा ह धरे चाबे ,
लुबलाब हवय तेकर गलहार सजत हावै ।।
गजलकार-दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़ छत्तीसगढ़
बहुत बढ़िया गजल गुरुजी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो
महेन्द्र देवांगन माटी
सादर धन्यवाद सर जी
Deleteसुग्घर गजल भईया जी
ReplyDeleteजय जोहार
सादर धन्यवाद भाई जी
Deleteशानदार गज़ल सर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर जी
Deleteगजब सुघ्घर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भैय्या जी
Deleteगजब अब्बड़ सुग्घर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई जी
Deleteबहुत बहुत बधाई दुर्गा भैया
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर जी
Deleteजबरदस्त कहना भैया जी बहुतेच सुग्घर गज़ल बर बधाई झोकव।
ReplyDeleteसादर जय जोहार दी
Deleteवाह! वाह!! सर जी बहुत बेहतरीन उम्दा खयालात।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद भाई जी
DeleteNice sir ji
ReplyDeleteसादर आभार सर जी
Deleteवाह वाह वाह
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन सृजन भैय्या जी
सादर धन्यवाद सर जी
Deleteसुग्घर गजल।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर आभार गुरुदेव
Deleteगजब अब्बड़ सुग्घर गुरूजी
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