Total Pageviews

Wednesday 11 September 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-दुर्गा शंकर इजारदार



छत्तीसगढ़ी गजल

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन

221 1222  221  1222

विक्कट तो मिलावट से बाजार सजत हावै ,
लुच्चा ग लफंगा से सरकार सजत हावै ।।

अब दूध मथानी मा माछी ह घलो नइये ,
दारू के तो भठ्ठी मा दरबार सजत हावै ।।

हे पूछ परख भारी चप्पल के चटइया के ,
दरपन के दिखइया बर तलवार सजत हावै।।

हे पाँव ग बिन चप्पल काँटा तो बिनइया के ,
थूम्भा के जगइया घर तो कार सजत हावै ।।

कोठी हे निचट खाली जे नाम किसानी हे ,
दाना के दलाली के व्यापार सजत हावै।।

अपनेच अपन मा तो दुनिया ह सिमट गे हे ,
बिन दाई ददा के अब परिवार सजत हावै ।।

मँय झूठ कहँव दुर्गा कउँवा ह धरे चाबे ,
लुबलाब हवय तेकर गलहार सजत हावै ।।

गजलकार-दुर्गा शंकर इजारदार
सारंगढ़ छत्तीसगढ़

23 comments:

  1. बहुत बढ़िया गजल गुरुजी
    बहुत बहुत बधाई हो

    महेन्द्र देवांगन माटी

    ReplyDelete
  2. सुग्घर गजल भईया जी
    जय जोहार

    ReplyDelete
  3. शानदार गज़ल सर

    ReplyDelete
  4. बहुत बहुत बधाई दुर्गा भैया

    ReplyDelete
  5. जबरदस्त कहना भैया जी बहुतेच सुग्घर गज़ल बर बधाई झोकव।

    ReplyDelete
  6. वाह! वाह!! सर जी बहुत बेहतरीन उम्दा खयालात।

    ReplyDelete
  7. वाह वाह वाह
    बहुत ही बेहतरीन सृजन भैय्या जी

    ReplyDelete
  8. सुग्घर गजल।हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  9. गजब अब्बड़ सुग्घर गुरूजी

    ReplyDelete

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...