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Monday 5 October 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम 

मुस्तफ़इलुन  मुस्तफ़इलुन

2212   2212    


दुख हर जनावय जान ले।

सुख नइ गनावय जान ले। 


कतकोन तँय रूठे रबे।

ओ नइ मनावय जान ले। 


खेती करे के साध हे।

चिखला सनावय जान ले। 


तरिया खने कतको कहे।

डबरा खनावय जान ले। 


भाई करे बाँटा कभू।

रिस्ता चनावय जान ले। 


झगरा बढ़े घर द्वार मा।

परदा तनावय जान ले। 


जे शांति के दुश्मन रथे।

ओ बम बनावय जान ले। 


रचानाकार- दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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