गजल- मनीराम साहू मितान
बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
भिथिया कपट ओदार गा।
मन खोट सब तैं मार गा।
सत के अलख नितदिन जगा,
तैं झूठ झिटका बार गा।
संतोष रख अंतस अपन,
लड़ना हवय बेकार गा।
मिलही सफलता एक दिन,
हिम्मत चिटिक झन हार गा।
सत ज्ञान दीया बार ले,
झन पोंस तैं अॅधियार गा।
बइठे पुरय नइ ताल जल,
मिहनत हवय जग सार गा।
आलस भरे तन त्याग दे,
होही तभे बढ़वार गा।
कर ले मनी हरि के भजन,
होबे तहूॅ भव पार गा।
- मनीराम साहू मितान
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