गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
सबके बने मंजिल शहर।
बिन दिल के बनगे दिल शहर।1
सुनवाई करथे शान से।
बन बाग के कातिल शहर।2
जिनगी जिये बन जानवर।
मनखे मा नइ शामिल शहर।3
खेती किसानी सत मया।
सबला करे चोटिल शहर।4
का होथे जस ममता मया।
का जानही जाहिल शहर।5
आघू बढ़े के आस मा।
लेहे खुशी ला लिल शहर।6
हीरा बरत हे हाथ मा।
का जानही कंडिल शहर।7
बस एक दिन इतवार के।
होवै हरू बोझिल शहर।8
जी भैया तैं कान आँख मूंद।
हे मोर बर मुश्किल शहर।9
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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