गजल-ज्ञानु
बहरे मुतकारिद मुसद्दस सालिम
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
कोन सच गोठियाथे इहाँ
आज रसता दिखाथे इहाँ
छोड़ बनिहार अउ ये कृषक
पेर जाँगर कमाथे इहाँ
पार सीमा खड़े फौजी मन
मार दुश्मन भगाथे इहाँ
काम चोट्टा हवै जेन हा
बस बहाना बनाथे इहाँ
भाग्य जेखर कहूँ रूठगे
रोज बस वो ठगाथे इहाँ
नाम गुरु के सुमर रोज के
पार जग ले लगाथे इहाँ
बचके रहिबे चुगलखोर ले
'ज्ञानु' झगरा मताथे इहाँ
ज्ञानु
बहरे मुतकारिद मुसद्दस सालिम
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
कोन सच गोठियाथे इहाँ
आज रसता दिखाथे इहाँ
छोड़ बनिहार अउ ये कृषक
पेर जाँगर कमाथे इहाँ
पार सीमा खड़े फौजी मन
मार दुश्मन भगाथे इहाँ
काम चोट्टा हवै जेन हा
बस बहाना बनाथे इहाँ
भाग्य जेखर कहूँ रूठगे
रोज बस वो ठगाथे इहाँ
नाम गुरु के सुमर रोज के
पार जग ले लगाथे इहाँ
बचके रहिबे चुगलखोर ले
'ज्ञानु' झगरा मताथे इहाँ
ज्ञानु
वाहःह बहुत सुंदर सृजन
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