गजल- ज्ञानु
बहरे मुतकारिक मुसद्दस सालिम
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
सबले आघू खड़े हे ददा
आय झन दुख अड़े हे ददा
मोर साक्षात भगवान ये
रब खुदा ले बड़े हे ददा
झन हिलय घर कभू पथरा बन
नेव के वो गड़े हे ददा
काम सीखोय बर अउ घलो
चार झापड़ जड़े हे ददा
'ज्ञानु' कोनो मरय भूख झन
बीज बनके पड़े हे ददा
ज्ञानु
बहरे मुतकारिक मुसद्दस सालिम
फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212
सबले आघू खड़े हे ददा
आय झन दुख अड़े हे ददा
मोर साक्षात भगवान ये
रब खुदा ले बड़े हे ददा
झन हिलय घर कभू पथरा बन
नेव के वो गड़े हे ददा
काम सीखोय बर अउ घलो
चार झापड़ जड़े हे ददा
'ज्ञानु' कोनो मरय भूख झन
बीज बनके पड़े हे ददा
ज्ञानु
शानदार गजल सर जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल भाई
ReplyDeleteसुग्घर मार्मिक गजल।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसुग्घर मार्मिक गजल।हार्दिक बधाई।
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