छत्तीसगढ़ी गजल - जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया
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नइ मिले शोहरत कभू बिन काम के।
कतको जग मा हे पड़े बिन नाम के।
काम कर कौड़ी कमा ना फोकटे,
धन सुबे आही सिराही शाम के।
धन असल ईमान अउ सम्मान हे,
सोन चाँदी हा हरे बस दाम के।
पद बढ़े अउ कद बढ़े सब सोंचथे,
फेर कोनो नइ चले सत थाम के।
चार दिन चलथे मया मातम इहाँ,
नाम रटते नित रबे श्री राम के।
झन जराबे गोठ मा दिल काखरो,
देंवता रिसहा अबड़ मन धाम के।
खैर नइहे खैरझिटिया के घलो,
ताव आगी कस बरे बड़ घाम के।
गजलकार - जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया
बालको
बहुत ही सुन्दर गजल सर
ReplyDeleteनमन भाई जी
Deleteवाहःहः भाई जितेंन्द्र
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल सृजन
धन्यवाद ,सादर नमन
Deleteवाह वाह ।
ReplyDeleteखैर नइ हे खैरझिठिया के घलो।
बहुत बढ़िया।बधाई
सादर नमन सर जी
Deleteशानदार गजल बर जितेंद्र जी ला हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसादर पायलागी सर जी
Deleteउम्दा गजलकारी सर जी।
ReplyDeleteनमन सर
Deleteवाह वर्मा जी जोरदार
ReplyDeleteसादर बधाई अउ नमन सर जी
Deleteशोहरत कमाय बर मिहनत जरुरी हे,सुग्घर संदेश देवत आपमन के गज़ल अनंत बधाई गुरुजी👍👌💐
ReplyDeleteधन्यवाद दीदी
Deleteबहुत जोरदार गुरूदेव
ReplyDeleteसादर नमन
Deleteशानदार गुरुदेव
ReplyDeleteधन्यवाद भाई जी
Deleteशानदार गजल। का कहना। बधाई।
ReplyDeleteसादर नमन,
Deleteशानदार गजल भैया वाह्ह्ह्ह्ह्
ReplyDeleteशानदार गजल भैया वाह्ह्ह्ह्ह्
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteजबरदस्त खैरझीटिया जी
ReplyDeleteधन्यवाद भैया जी
Deleteवाह वाह क्या बात है वर्मा जी ।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, गजल आदरणीय ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर जी
Deleteसादर नमन
ReplyDeleteवाहहहह!क्या कहने बहुत सुन्दर खैरझिटिया जी
ReplyDeletekya bat mitra............
ReplyDeleteजोरदरहा गजल हे भाई जी।बधाई
ReplyDeleteबहुत सुदंर हे चाचा
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