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Thursday, 23 May 2019

छतीसगढ़ी ग़ज़ल आशा देशमुख

छतीसगढ़ी ग़ज़ल - आशा देशमुख

2122   2122 212

देख गरमी मा सबो हलकान हे
प्यास मा सबके सुखावत प्रान हे।1

रोज तो जंगल कटावत हे इहाँ
जीव पंछी मन सबो परेशान हे।2

सोच के मन होय भारी दुख लगे
स्वार्थ के चारो डहर तूफ़ान हे।3

बोर नदिया ताल सब सूखत हवे
का कहूँ ला होत येखर भान हे।4

रोय धरती रोज छाती फाड़ के
पर सुने नइ देख सब अंजान हे।5

का कहँव अइसे जमाना आ गए
रोय लकड़ी बर चिता शमशान हे।6

लाय कइसे कोन खुशहाली इहाँ
देख आशा सब डहर वीरान हे।7


आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा छत्तीसगढ़

14 comments:

  1. सादर आभार नमन गुरुदेव

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  2. शानदार गजल बर आशा बहिनी जी ला हार्दिक बधाई

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  3. बेहतरीन गज़ल दीदी

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  4. बहुत शानदार गजल दीदी

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  5. बहुत शानदार गजल दीदी

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  6. सुग्घर गज़ल बहिनी

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  7. शानदार छत्तीसगढ़ी गजल दीदी,बधाई

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  8. बहुत सुग्घर गजल सरजाय हव दीदी बधाई

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  9. दीदी जी लाजवाब गजलकारी।

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  10. रुख ला झन काटव संदेश देत आपमन के सुग्घर गज़ल,बधाई हो दीदी👍👌💐

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  11. बहुत बढ़िया गजल हे दीदी ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।

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