छतीसगढ़ी ग़ज़ल - आशा देशमुख
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देख गरमी मा सबो हलकान हे
प्यास मा सबके सुखावत प्रान हे।1
रोज तो जंगल कटावत हे इहाँ
जीव पंछी मन सबो परेशान हे।2
सोच के मन होय भारी दुख लगे
स्वार्थ के चारो डहर तूफ़ान हे।3
बोर नदिया ताल सब सूखत हवे
का कहूँ ला होत येखर भान हे।4
रोय धरती रोज छाती फाड़ के
पर सुने नइ देख सब अंजान हे।5
का कहँव अइसे जमाना आ गए
रोय लकड़ी बर चिता शमशान हे।6
लाय कइसे कोन खुशहाली इहाँ
देख आशा सब डहर वीरान हे।7
आशा देशमुख
एन टी पी सी कोरबा छत्तीसगढ़
सादर आभार नमन गुरुदेव
ReplyDeleteशानदार गजल बर आशा बहिनी जी ला हार्दिक बधाई
ReplyDeleteसिरतोन गोठ दीदी
ReplyDeleteसिरतोन गोठ दीदी
ReplyDeleteसिरतोन गोठ दीदी
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल दीदी
ReplyDeleteबहुत शानदार गजल दीदी
ReplyDeleteबहुत शानदार गजल दीदी
ReplyDeleteसुग्घर गज़ल बहिनी
ReplyDeleteशानदार छत्तीसगढ़ी गजल दीदी,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गजल सरजाय हव दीदी बधाई
ReplyDeleteदीदी जी लाजवाब गजलकारी।
ReplyDeleteरुख ला झन काटव संदेश देत आपमन के सुग्घर गज़ल,बधाई हो दीदी👍👌💐
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल हे दीदी ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।
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