छत्तीसगढ़ी गजल - अजय अमृतांशु
देख ले झगरा ला थोरिक टार के ।
जीत जाबे मान बाजी हार के ।
होत गंदा सब डहर जी गाँव हा।
देख कचरा घुरुवा मा तैं डार के।
जान लव दुनिया मा सब के हक हवे।
खाव झन दूसर के हक ला मार के
घर अपन उजियार करथस रोज गा।
देख दीया दीन के घर बार के।
मिल जथे कतको इँहा भटकाय बर।
कर अपन तैं बात सुन के चार के।
कोनो ककरो गोठ ला सुनथे कहाँ
हे फजीता गाँव घर परिवार के।
खाय हे किरिया"अजय"सिरतोन गा।
न्याय कहिहूँ नइ कहँव बेकार के ।
गजलकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़
शानदार गजल सर
ReplyDeleteआभार सर जी
Deleteआभार सर जी
Deleteलाजवाब गजल भैयाजी।
ReplyDeleteआभार अमित भाई
Deleteआभार अमित भाई
Deleteबहुत शानदार गज़ल सर
ReplyDeleteवाह वाह शानदार गजल। हार्दिक बधाई अमृतांशु जी।
ReplyDeleteशानदार गजल।हर शे'र उम्दा हावय। हार्दिक बधाई अमृतांशु जी।
ReplyDeleteआभार भैया जी
Deleteआभार भैया जी
Deleteआभार भैया जी
Deleteबहुत शानदार सिरजन
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल भाई अजय
ReplyDeleteआशा देशमुख
अभार दीदी
Deleteअभार दीदी
Deleteबड़ सुघ्घर सिरजन आदरणीय गुरुदेव जी 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल भैया जी।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल,बधाई 💐
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