छत्तीसगढ़ी गजल - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
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बाँध भाई अब सुमत के डोर ला।
मिल के लाना हे मया के भोर ला।।
देख ताकत हे खड़े दुश्मन इँहा।
मिल भगाना हे सुमत के चोर ला।।
भेद ले के भेद झन देवव कभू।
बात मानौ ये हमेशा मोर ला।।
फूल सुमता के ख़िलाबो मिल चलव।
फेर महकाबो गली अउ खोर ला।।
खोल आँखी तैं बने पहिचान ले।
कोन लूटत हक इहाँ जी तोर ला।
पाटबो डबरा कुमत के अब चलव।
फेर बगराबो मया के शोर ला।।
घोर अँधियारी दिखत हे सत्यबोध।
लान बो चल अब मया अंजोर ला।।
गजलकार - इंजी. गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
छत्तीसगढ़
वाहःहः भाई बहुत सुंदर ग़ज़ल के सृजन
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
गजल खजाना म जगह दिये बर सादर आभार गुरुदेव,
ReplyDeleteप्रणाम।
गजब सुग्घर सर
ReplyDeleteगजब सुग्घर सर
ReplyDeleteसादर बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गज़ल सत्यबोध सर
ReplyDeleteबहुत सुग्घर गज़ल सर
ReplyDeleteसुग्घर पात्रे सर
ReplyDeleteसुग्घर पात्रे सर
ReplyDeleteसुग्घर पात्रे सर
ReplyDeleteबढ़िया गजल हे सत्यबोध जी।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteपात्रे जी बढ़िया गजल बर बधाई
ReplyDeleteसर जी सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल हे ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।
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