छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू
2122 2122 212
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गोठ हाबय सार भइया मान ले।
पेड़ होथे देंवता कस जान ले।
ये ह जीथे गा सुवारथ छोड़ के,
झन कटय तैं आज मन मा ठान ले।
पर जथन बीमार तव देथे दवा,
ठीक कर देथे अपन जर पान ले।
पेड़ बिन जिनगी अधूरा गा हवय,
नइ मिलय सुख जान कोनो आन ले।
नइ सकय वो बोल नइ वो हर चलै
आस करथे फेर गा इन्सान ले।
मीत हे गा जान झन तैं कर दगा,
मान ले तैं डर चिटिक भगवान ले।
हाथ जोरे हे कहत तोला 'मितान',
राख ले तैं कर जतन ईमान ले।
गजलकार - मनीराम साहू "मितान"
बहुत सुंदर रचना गुरू
ReplyDeleteवाह वाह मितान जी। सुंदर गजल बर हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteबहुत शानदार गजल सर
ReplyDeleteबहुत शानदार गजल सर
ReplyDeleteवाहहहहह!वाहहह!वाहहहह!
ReplyDeleteवाहःहः बहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteबढ़िया मुकम्मल गजल रचेहव मितान जी।बधाई
ReplyDeleteशानदार गजल हे मितान जी।बधाई
ReplyDeleteवाह!! बहुत बढ़िया सृजन भैयाजी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गजल मितान जी। रुख राई नोहय बिरान जी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सृजन भइया जी
ReplyDeleteजोरदार गजल मितान बधाई
ReplyDeleteरुख के महिमा ला बतावत आपमन के गज़ल,बधाई👍👌💐
ReplyDeleteशानदार सृजन मितान जी।हार्दिक बधाई ।
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