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Friday 24 May 2019

छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा

छत्तीसगढ़ गजल  - दिलीप कुमार वर्मा

2122   2122   212

झाँझ हा झुलसात हाबय का करँव।
मँय गरीबी मा पले बपुरा हरँव।

तोर सुख बर मोर हाड़ा हा गले।
घाम पानी ले भला कइसे डरँव।

टोर के पथरा बनाथौं राह मैं।
रात दिन कर काम तन ले मैं छरँव।

जोंत के नांगर उगाथौं धान ला।
कर किसानी पेट सब के मँय भरँव। 

प्यास मा कोनो मरय झन जान के।
मँय कुँआ ला खोद पानी बन झरँव।

भूँख मा बिलखत सबो ला देख के।
सूख के लकड़ी बने आगी बरँव।

कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप।
काम करके तोर बर मँय हा मरँव।

दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़

14 comments:

  1. गजब सुग्घर भाव हे आपके गज़ल मा वर्मा सर!

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  2. बेहतरीन ग़ज़ल हे भाई जी

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  3. कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप
    2122 2122 2121 होवत हे सर जी

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  4. बहुत बढ़िया गजल गुरुजी बधाई हो

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  5. *कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप* में मात्रा भार
    2122 2122 2121 होवत हे गुरुदेव

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  6. विधान म हे बोधन जी,गजल नियमानुसार

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  7. सुंदर छत्तीसगढ़ी गजल भैया जी।

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  8. बेहतरीन गजल।हार्दिक बधाई।

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  9. गुरुदेव संग आप सब ल अभार

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  10. बहुते बढ़िया सृजन भैयाजी।

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  11. बहुत बढ़िया गजल सृजन गुरुदेव ।हार्दिक बधाई ।

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