छत्तीसगढ़ गजल - दिलीप कुमार वर्मा
2122 2122 212
झाँझ हा झुलसात हाबय का करँव।
मँय गरीबी मा पले बपुरा हरँव।
तोर सुख बर मोर हाड़ा हा गले।
घाम पानी ले भला कइसे डरँव।
टोर के पथरा बनाथौं राह मैं।
रात दिन कर काम तन ले मैं छरँव।
जोंत के नांगर उगाथौं धान ला।
कर किसानी पेट सब के मँय भरँव।
प्यास मा कोनो मरय झन जान के।
मँय कुँआ ला खोद पानी बन झरँव।
भूँख मा बिलखत सबो ला देख के।
सूख के लकड़ी बने आगी बरँव।
कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप।
काम करके तोर बर मँय हा मरँव।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़
2122 2122 212
झाँझ हा झुलसात हाबय का करँव।
मँय गरीबी मा पले बपुरा हरँव।
तोर सुख बर मोर हाड़ा हा गले।
घाम पानी ले भला कइसे डरँव।
टोर के पथरा बनाथौं राह मैं।
रात दिन कर काम तन ले मैं छरँव।
जोंत के नांगर उगाथौं धान ला।
कर किसानी पेट सब के मँय भरँव।
प्यास मा कोनो मरय झन जान के।
मँय कुँआ ला खोद पानी बन झरँव।
भूँख मा बिलखत सबो ला देख के।
सूख के लकड़ी बने आगी बरँव।
कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप।
काम करके तोर बर मँय हा मरँव।
दिलीप कुमार वर्मा
बलौदा बाज़ार, छत्तीसगढ़
गजब सुग्घर भाव हे आपके गज़ल मा वर्मा सर!
ReplyDeleteबेहतरीन सर
ReplyDeleteबेहतरीन सर
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल हे भाई जी
ReplyDeleteकोन बूता बाँच गे हावय दिलीप
ReplyDelete2122 2122 2121 होवत हे सर जी
बहुत बढ़िया गजल गुरुजी बधाई हो
ReplyDelete*कोन बूता बाँच गे हावय दिलीप* में मात्रा भार
ReplyDelete2122 2122 2121 होवत हे गुरुदेव
बहुत खूब सर
ReplyDeleteविधान म हे बोधन जी,गजल नियमानुसार
ReplyDeleteसुंदर छत्तीसगढ़ी गजल भैया जी।
ReplyDeleteबेहतरीन गजल।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteगुरुदेव संग आप सब ल अभार
ReplyDeleteबहुते बढ़िया सृजन भैयाजी।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गजल सृजन गुरुदेव ।हार्दिक बधाई ।
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