छत्तीसगढ़ी गज़ल - सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
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का सुनावँव धाक नइहे बात के
आदमी मँय नानकन औकात के।
मँय अभागा दिन म अनचिन्हार हँव
का मदद के आस राखँव रात के।
कान खोले हाथ बाँधे हँव तभो
मोर बर निरदेस घूसा लात के।
झन डरा तँय तीन तल्ला तोर बर
मोर कद बस एक टँठिया भात के।
रोज थक के सो जथौं बिस्तर बिना
तँय समझथस मँय परे हँव मात के।
मँय सृजन सहयोग महिनत जानथौं
नइ समझ हे लूट धोखा घात के।
जर जवै कोनो त कोनो बर जवै
गोठियइया आँव मँय सँउहात के।
प्यार मा तँय मँय तहाँ शादी-बिहाव
का जरूरत नेग अउ बारात के।
आप पढ़थव खुश रथे सुखदेव हा
चाह नइहे वाह के बरसात के।
-सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
गोरखपुर कबीरधाम, छत्तीसगढ़
गजब के गजल लिखे हव अहिलेश्वर जी।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteसाधर धन्यवाद गुरुजी
Deleteवाहःहः भाई सुखदेव
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
बहुत बहुत बधाई
सादर धन्यवाद भैया
Deleteदीदी हरव भाई
Deleteबहुत सुंदर गजल सर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर
Deleteभई वाह! शानदार जानदार वजनदार छत्तीसगढ़ी गजल।बधाई
ReplyDeleteसादर धन्यवाद गुरुजी
Deleteबहुत शानदार सिरजन
ReplyDeleteसादर धन्यवाद सर
Deleteसादर धन्यवाद सर
ReplyDeleteगोठ सुग्घर नीक लागे आप के
ReplyDeleteज्ञान लेलव सार जम्मों जात के ।
बड़ सुग्घर गजल गुरुदेव
बहुत बहुत बधाई ।
राज कुमार बघेल
सुग्घर ज्ञान देवत आपमध के गज़ल ,अनंत बधाई👍👌💐
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया बंधु👌💐
ReplyDeleteलाजवाब संगवारी
ReplyDeleteवाह वाह वाह बढ़िया गजल सर जी
ReplyDeleteवाह वाह वाह बढ़िया गजल सर जी
ReplyDeleteबहुत खूब गजलकारी सर जी।
ReplyDeleteसुग्घर गजब गजल भैया जी
ReplyDeleteअतुलनीय गजल आदरणीय ।हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteउम्दा गजल।बहुत ही बढ़िया भाव सृजन।वाह वाह।
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