ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी
बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मजाइफ़ [दोगुन]
फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122
कभू काम हर कहाँ बनथे हताश होय मा सुन
मिले कुछ घलो नइ चुप्प उदास होय मा सुन
सबो मिल बढ़ाबो जब हाथ हमन जरूर कहिथँव
इहाँ रोक कोन सकही ग विकास होय मा सुन
बने सावचेत रहना हे करत हियाव अपने
कहाँ देर फेर लगथे जी विनाश होय मा सुन
पिये परही तोला पानी तभे तो पियास बुझही
बुझे हे कहाँ कखरो ग नदी पास होय मा सुन
पहा जिनगी ला सुघर 'ज्ञानु' सदा हँसी खुशी मा
मिले कुछ नही ग जिंदा रही लाश होय मा सुन
ज्ञानु
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