गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212
रोज के कचर-कचर जे पान खाये आत हे।
हाल चाल देश अउ विदेश के सुनात हे।
नेता के हे नाम काम दूसरा करत हवय।
कोन पाय कुर्सी देश कोन मन चलात हे।
जेन हे अमीर नेता ओखरे कहे करे।
राजनीति हे गुलाम कहिके वो बतात हे।
कोन देश शक्ति शाली कोन हर गरीब हे।
एक पान खात जम्मो चित्र वो दिखात हे।
कोन हे खिलाड़ी जेन खेल मा रमे हवय।
कोन हे बिकाऊ जेन खेल मा हरात हे।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार
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