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Saturday 2 May 2020

गजल बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम

गजल 
बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
बहर- 122 122 122 122

घरो घर सफाई ल मजदूर करथे।
लिपाई पुताई ल मजदूर करथे। 

भरे अन्न कोठी सबो के घरो घर।
फसल के कटाई ल मजदूर करथे। 

बड़ा शान मारे दिखाके अटारी।
ओ ईंटा चुनाई ल मजदूर करथे।

बड़े कारखाना के मालिक भले तँय।
तुँहर बर कमाई ल मजदूर करथे। 

बनाये हवच बांध छेंके नदी ला।
पछीना तराई ल मजदूर करथे। 

बुझावत हवच प्यास पानी पलो के।
नहर के खुदाई ल मजदूर करथे।

दिखावत चलत हच पहिर जेन कपड़ा।
उहू के सिलाई ल मजदूर करथे। 

रहे रेशमी या कि सूती के लुगरा
सबो के कताई ल मजदूर करथे।

बनाये पहाड़ी बड़े भव्य मंदिर।
ओ पथरा चढ़ाई ल मजदूर करथे।

लगे जाड़ भारी त कइसे बचे तँय।
ओ स्वेटर बुनाई ल मजदूर करथे।

कभू जान आफत फँसे जिंदगी मा। 
तुँहर बर लड़ाई ल मजदूर करथे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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