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Wednesday, 22 May 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - सूर्यकान्त गुप्ता

छत्तीसगढ़ी गजल - सूर्यकान्त गुप्ता
【2122   2122   212】

लात के भूत

भूत वो बिन लात के मानय नही।
प्रेम के भाखा ल वो जानय नही।।

पीठ मा  तो भोंकथे हरदम छुरा।
मुँह अपन गा सामने लानय नही।।

हे इहों ज़ज़्बा के कहिथौं बड़ कमी।
लेहे'  बर बदला  कभू ठानय नही।।

वीर  सैनिक  बिन मिले आदेश के।
वो  अपन  बंदूक ला  तानय नहीं।।

मन मा कचरा तो भरे हे बैर के।
दोस्ती के छन्नी'  मा छानय नहीं।।

रात दिन बिख बीज बोथे फोकटे।
प्रेम रस ला घोर के सानय नहीं।।

'कांत'  खोना नइये  काँही जोश मा।
वो नफा नकसान पहिचानय नहीं।।

सादर जय जोहार...
सूर्यकान्त गुप्ता
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)

9 comments:

  1. बहुत बहुत बधाई हो भैया जी

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  2. वाह्ह्ह वाह्ह्ह शानदार गजल भैयाजी

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  3. शानदार,जानदार,सादर बधाई

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  4. वाहहहह!वाहहह!बहुत खूब

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  5. बहुत बढ़िया गजल भइया जी बधाई

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  6. बड़े भैयाजी गजब गजलगिरी।

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  7. अनुपम सृजन ।हार्दिक बधाई गुरुदेव ।

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  8. बहुत बढ़िया गजल भैया जी।बधाई

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