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Saturday 1 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - ज्ञानु दास मानिकपुरी

छत्तीसगढ़ी गजल - ज्ञानु दास मानिकपुरी

खाए बर घर मा न चाउँर दार हे।
बस गरीबी के इहाँ भरमार हे।

भूल गे मनखे किसानी काम ला
देख बंजर आज खेतीखार हे।

आज रिश्ता अउ नता के गोठ हा
कोन ला भाथे लगे जस भार हे।

जिंदगानी के इही बस रीत हे
जीत हावय ता कभू जी हार हे।

फौजी भाई रोज सीमा मा मरै
हाथ मा चुप हाथ धर सरकार हे।

कोन लेथे सुध इहाँ बनिहार के
आज ले बनिहार के बनिहार हे।

पेर जाँगर खा कमाले तँय सुघर
'ज्ञानु' दुनियाँ मा इही बस सार हे।

गजलकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम - चंदैनी, कबीरधाम, छत्तीसगढ़


23 comments:

  1. बहुत बहुत आभार गुरुदेव।सादर प्रणाम

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  2. बहुत बहुत आभार गुरुदेव।सादर प्रणाम

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  3. बहुत सुंदर ग़ज़ल हे भाई ज्ञानु

    आशा देशमुख

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    1. सादर प्रणाम दीदी जी

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  4. सुंदर गजल।एक ले बढ़के एक भाव।
    हार्दिक बधाई ज्ञानु भाई जी।

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    1. सादर प्रणाम गुरुजी

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    2. सादर प्रणाम गुरुजी

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  5. बहुत सुन्दर भाव ले भरे गज़ल हे सर।हार्दिक बधाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर जी

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  6. बड़ सुग्घर गजल गुरुदेव ।

    राज कुमार बघेल

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भैयाजी

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  7. गरीबी के सुग्घर बखान करे हव गज़ल के माध्यम ले अनंत बधाई गुरुजी👍👌💐

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  8. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी

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  9. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी

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  10. बहुत खूब गुरुदेव जी

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  11. अति उत्तम गुरुदेव

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  12. वाह वाह ज्ञानु जी,बहुत सुग्घर

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  13. शानदार गजल भैया जी वाह्ह्

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  14. वाह ।अनुपम सृजन,आदरणीय ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामनायें

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  15. बहुत ही शानदार, गजल ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे भैया ला ।

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  16. कोन लेथे सुध इहाँ बनिहार के।
    मार्मिक व विचारणीय कथन,बधाई

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