छत्तीसगढ़ी गजल - गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
(2122 1212 22)
दोस्ती मोर बड़ निराला हे।
मैं सुदामा वो नन्द लाला हे।।
मैं गरम चाय केटली भाई।
प्रेम के मीठ वो पियाला हे।।
वो मसीहा गरीब मन बर जी।
मैं पुजारी उही शिवाला हे।।
घोरथे रस मया निरन्तर वो।
मैं दुखी दीन भाग काला हे।।
का कहौं मोर दुख कहानी ला।
हे सखा देख हाथ छाला हे।।
घोर संकट परे सहौं बिपदा।
मोर किस्मत के बंद ताला हे।।
हे गजानन्द दुख बरोबर सुख।
जीत मन के उहाँ उजाला हे।।
गजलकार- इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
(2122 1212 22)
दोस्ती मोर बड़ निराला हे।
मैं सुदामा वो नन्द लाला हे।।
मैं गरम चाय केटली भाई।
प्रेम के मीठ वो पियाला हे।।
वो मसीहा गरीब मन बर जी।
मैं पुजारी उही शिवाला हे।।
घोरथे रस मया निरन्तर वो।
मैं दुखी दीन भाग काला हे।।
का कहौं मोर दुख कहानी ला।
हे सखा देख हाथ छाला हे।।
घोर संकट परे सहौं बिपदा।
मोर किस्मत के बंद ताला हे।।
हे गजानन्द दुख बरोबर सुख।
जीत मन के उहाँ उजाला हे।।
गजलकार- इंजी.गजानन्द पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर (छ.ग.)
गजल खजाना म जगह दिये बर सादर आभार गुरुदेव,प्रणाम
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो पात्रे भाई
ReplyDeleteबेहतर ग़ज़ल के लिए
सादर धन्यवाद दीदी,।
Deleteबहुत ही सुन्दर गजल सर
ReplyDeleteसादर धन्यवाद ज्ञानु जी।
Deleteबहुत सुन्दर गुरुदेव
ReplyDeleteसादर धन्यवाद बोधनराम जी।
Deleteसुग्घर गजल।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeleteवाह्ह वाह्ह
ReplyDeleteलाजवाब वाहहह!सर
ReplyDeleteशानदार गजल गुरुदेव ।हार्दिक बधाई
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