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Thursday 27 June 2019

छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू "मितान"

छत्तीसगढ़ी गजल - मनीराम साहू "मितान"

मनीराम साहू: छत्तीसगढ़ी गजल (1)

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन

बहर 2122, 2122, 212

गोठ हाबय सार भइया मान ले।
पेड़  होथे देंवता कस जान ले।

ये ह जीथे गा सुवारथ छोड़ के,
झन कटय तैं आज मन मा ठान ले।

पर जथन बीमार तव देथे दवा,
ठीक कर देथे अपन जर पान ले।

पेड़ बिन जिनगी अधूरा गा हवय,
नइ मिलय सुख जान कोनो आन ले।

नइ सकय वो बोल नइ वो हर चलै
आस करथे फेर गा इन्सान ले।

मीत हे गा जान झन तैं कर दगा,
मान ले तैं डर चिटिक भगवान ले।

हाथ जोरे हे कहत तोला 'मितान',
राख ले तैं कर जतन ईमान ले।

मनीराम साहू: छत्तीसगढ़ी गजल (2)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22

तोर सुरता अबड़ के*आथे गा,
रोज आके जिया जलाथे गा।

रात दिन ये चिन्है नही बेरा,
मोर पीरा नँगत बढ़ाथे गा।

बंद रखथवँ कपाट अंतस के,
पेल भीतर खुसर ये*जाथे गा।

खोभ रखथे अबड़ के*आँखी ले,
नीद आवत ल ये भगाथे गा।

भूख डरथे नँगत के*एकर ले,
प्यास जाने कहाँ लुकाथे गा।

गोठ मीठा रथे बिकट एकर,
स्वाद पाछू करू जनाथे गा।

आ जथे ये 'मितान' हो काहत,
फेर बइरी असन सताथे गा।

       
मनीराम साहू: छत्तीसगढ़ी गजल (3)

बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन

2122  1212  22

चार दिन के हवय ठिकाना गा।
हाँस गाले मया तराना गा।

छोड़ जाबे बलाव आही तब,
तोर चलही कहाँ बहाना गा।

काम आवय नही नता रिश्ता,
तोर दौलत महल खजाना गा।

पुन्य भर हा बँधाय जाही तब,
पाप काबर इहाँ कमाना गा।

गोठियाले हली-भली सबले,
मारबे झन कभूच ताना गा।

जान पीरा अपन सही सब के,
छोड़ दे तैं अपन बिराना गा।

तैं मितानी 'मितान' के रखले,
पोठ हाबय इही हा* दाना गा।

गजलकार - मनीराम साहू 'मितान'
ग्राम - कचलोन सिमगा जिला - भाटापारा
छत्तीसगढ़

9 comments:

  1. वाह्ह्हह वाह्हह सर जी

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  2. वाह्ह्हह वाह्हह सर जी

    ReplyDelete
  3. गुरुदेव ला सादर पयलगी

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  4. शानदार सबो गजल ह

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  5. धारदार लेखनी हे भाई मनी
    बहुत बहुत बधाई

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  6. ठीक कर देथे अपन जर पान ले..वाह्ह वृक्ष के महिमा..सत्य हे।

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  7. गजबे सुग्घर वाहहहहहह

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  8. बहुत सुग्घर गजल आदरणीय ।हार्दिक बधाई ।

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