छत्तीसगढ़ी गजल - अजय अमृतांशु
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
तोर सुग्घर करम के ये फल हे ।
रुख लगाये बने तभे जल हे।
पेंड झन काट बनके बइहा तैं।
पेंड हे सिरतो मा तभे कल हे।
चेत झन जाय बिरथा पानी हा।
पानी ले मनखे के सबो बल हे।
आय गरमी सबो हवय प्यासे।
झार सूखा परे हवय नल हे।
पानी ला तैं बचा के रख भाई।
तोर संकट के अतके जी हल हे।
राख ले तैं सहेज के सब ला।
आज के तोर कीमती पल हे।
गजलकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
तोर सुग्घर करम के ये फल हे ।
रुख लगाये बने तभे जल हे।
पेंड झन काट बनके बइहा तैं।
पेंड हे सिरतो मा तभे कल हे।
चेत झन जाय बिरथा पानी हा।
पानी ले मनखे के सबो बल हे।
आय गरमी सबो हवय प्यासे।
झार सूखा परे हवय नल हे।
पानी ला तैं बचा के रख भाई।
तोर संकट के अतके जी हल हे।
राख ले तैं सहेज के सब ला।
आज के तोर कीमती पल हे।
गजलकार - अजय अमृतांशु
भाटापारा, छत्तीसगढ़
सुग्र करम करना चाही..सुग्घर संदेश आदरणीय बधाई आपमन ला👍👌💐
ReplyDeleteशानदार गजल, अमृतांशु जी ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे ।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हो भाई अजय
ReplyDeleteगजब सुग्घर गजल सर
ReplyDeleteबहुत बढिया संदेश देवत गजल अमृतांशु भाई बधाई आप ला
ReplyDeleteशानदार गजल
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteबढ़िया संदेश देवत..उम्दा ग़ज़ल
ReplyDeleteधन्यवाद मेडम
Deleteसंदेश परक सुग्घर गज़ल सर
ReplyDeleteधन्यवाद सर
Deleteधन्यवाद सर
Deleteधन्यवाद मितान जी
ReplyDeleteधन्यवाद मितान जी
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