छत्तीसगढ़ी गजल - सूर्यकान्त गुप्ता
2122 2122 212
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छोड़ के दल एक सब चिचियात हें।
एक झन ला उन बने खिसियात हें।।
लक्ठियावत हे चुनावी दिन इहाँ।
आम जनता ला इहाँ लड़ियात हें।।
वाह खुरसी तोर बर कतका मया।
पाय बर तोला सबो जुरियात हें।।
खोय हें बेटा गोसइँँया माई मन।
बाँट के उनला रकम भुलियात हें।।
पुरगे हावय बीस दिन बलिदान के।
लेहे' बर बदला लगय ढे'रियात हें।।
नइये चुप दुश्मन घलो तुम जान लौ।
बइठ के मौका उन्हूँ सो'रियात हें।।
'कांत' मनखे आज के चतुरा हवँय।
बात जल्दी उन कहाँ पतियात हें।।
गजलकार -सूर्यकांत गुप्ता, 'कांत'
सिंधिया नगर दुर्ग(छ.ग.)
पाँय हौं भैया के मैं आशीष जी
ReplyDeleteभाव के कोठी मगर खलिहात हे।।
सादर प्रणाम हे भैया....आपके
आशीर्वाद बने रहै....
💐💐🙏🙏🙏💐💐💐
आशुकवि भैया जी
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल बर बहुत बहुत बधाई
आशा देशमुख
चुनाव मा बड़े बड़े मन निपटगे भइया। ओकरे सेती खिसियात हे ।गजल मा बहुत सुग्घर बात हे बहुत बढ़िया सूर्या भइया
ReplyDeleteजानदार शानदार,बधाई अउ नमन सर जी
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई हे भैयाश्री।
ReplyDeleteबेहतरीन गजल गुरुदेव, हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया गज़ल।सूर्या भैया
ReplyDeleteवाह्ह भईया जी
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