छत्तीसगढ़ी गजल - ज्ञानु दास मानिकपुरी
खाए बर घर मा न चाउँर दार हे।
बस गरीबी के इहाँ भरमार हे।
भूल गे मनखे किसानी काम ला
देख बंजर आज खेतीखार हे।
आज रिश्ता अउ नता के गोठ हा
कोन ला भाथे लगे जस भार हे।
जिंदगानी के इही बस रीत हे
जीत हावय ता कभू जी हार हे।
फौजी भाई रोज सीमा मा मरै
हाथ मा चुप हाथ धर सरकार हे।
कोन लेथे सुध इहाँ बनिहार के
आज ले बनिहार के बनिहार हे।
पेर जाँगर खा कमाले तँय सुघर
'ज्ञानु' दुनियाँ मा इही बस सार हे।
गजलकार - ज्ञानुदास मानिकपुरी
ग्राम - चंदैनी, कबीरधाम, छत्तीसगढ़
बहुत बहुत आभार गुरुदेव।सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार गुरुदेव।सादर प्रणाम
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल हे भाई ज्ञानु
ReplyDeleteआशा देशमुख
सादर प्रणाम दीदी जी
Deleteसुंदर गजल।एक ले बढ़के एक भाव।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई ज्ञानु भाई जी।
सादर प्रणाम गुरुजी
Deleteसादर प्रणाम गुरुजी
Deleteबहुत सुन्दर भाव ले भरे गज़ल हे सर।हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सर जी
Deleteबड़ सुग्घर गजल गुरुदेव ।
ReplyDeleteराज कुमार बघेल
बहुत बहुत धन्यवाद भैयाजी
Deleteगरीबी के सुग्घर बखान करे हव गज़ल के माध्यम ले अनंत बधाई गुरुजी👍👌💐
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद दीदी जी
ReplyDeleteबहुत खूब गुरुदेव जी
ReplyDeleteअति उत्तम गुरुदेव
ReplyDeleteवाह वाह ज्ञानु जी,बहुत सुग्घर
ReplyDeleteशानदार सृजन सर जी।
ReplyDeleteशानदार गजल भैया जी वाह्ह्
ReplyDeleteवाह ।अनुपम सृजन,आदरणीय ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत ही शानदार, गजल ।हार्दिक बधाई अउ शुभकामना हे भैया ला ।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteकोन लेथे सुध इहाँ बनिहार के।
ReplyDeleteमार्मिक व विचारणीय कथन,बधाई