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Wednesday, 29 April 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122 

थिराले तनिक छाँव में आव राही।
चढ़े जे सुरुज साँझ के ढल ही जाही।

घना कोहरा छाय हे जिंदगी मा।
न जाने बिहनहा नवा कोन लाही। 

हमर काय होही जी बीते घड़ी मा।
बुझाही दिया की अँजोरी ह आही।

सबो राह जोहत हवय हे विधाता।
लिखे भाग का हे ते कोने बताही।

समंदर के लहरा तको कम लगत हे।
उठे जेन अंतस लहर कब सिराही।

लगे चाँद सुग्घर रहे रात पुन्नी।
न जाने अमावस ह कइसे पहाही। 

बरस बीत गे हे जवानी सिराये।
तभो राख राखे रखे का रखाही।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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