गजल- मिलन मिलहरिया:
बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122
निकलबे अभी झन तैं घर ले
ये भाई गोठ ला मोर धर ले
अरे आए चीनी बिमारी
ये सचरे-बने जानवर ले
प्रकृति आज फरियागे लगथे
प्रदूसन के भारी जहर ले
अभी हाथ धोना हे रुक रुक
नियम ला बने तैं टमर ले
जे छींकत हे खाँसत दिनोदिन
तैं हट दूरिहा वो डहर ले
बिमारी हबरगे शहर मा
अभी गाँव बाचे कहर ले
मिलन तोर कोती खबर का
बने गमझा मुँह मा कर ले।
गजलकार-मिलन मलरिहा
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