ग़ज़ल-ज्ञानु
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
उड़त हे अबड़ देख आगास मनखे
हवय दूर सबले कहाँ पास मनखे
भुलागे इहाँ जेन मालिक रिहिन हे
तरी गोड़ परके बने दास मनखे
अलाली करत दिन पहावत हवय बस
बुता काम आवय नही रास मनखे
सुघर दार चाउँर मिठावय नही अउ
निशाचर बने खात हे माँस मनखे
कभू देख कखरो गरीबी लचारी
दुखी दीन ऊपर ग झन हाँस मनखे
अभी ले बने चेत करलव नही ते
रहू देखते हो जही नास मनखे
मनुज जिंदगानी बड़े भाग मिलथे
इहाँ 'ज्ञानु' बनके दिखा खास मनखे
ज्ञानु
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
उड़त हे अबड़ देख आगास मनखे
हवय दूर सबले कहाँ पास मनखे
भुलागे इहाँ जेन मालिक रिहिन हे
तरी गोड़ परके बने दास मनखे
अलाली करत दिन पहावत हवय बस
बुता काम आवय नही रास मनखे
सुघर दार चाउँर मिठावय नही अउ
निशाचर बने खात हे माँस मनखे
कभू देख कखरो गरीबी लचारी
दुखी दीन ऊपर ग झन हाँस मनखे
अभी ले बने चेत करलव नही ते
रहू देखते हो जही नास मनखे
मनुज जिंदगानी बड़े भाग मिलथे
इहाँ 'ज्ञानु' बनके दिखा खास मनखे
ज्ञानु
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