छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया
बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122
ये जिनगी किसानी न अटके।
पवन संग पानी म अटके।।1
कहाँ नींद गदिया म आही।
जिया जान घानी म अटके।।2
दया अउ मया सत बरोये।
तिंखर बाण बानी म अटके।3
धरे धन रथे जेन जादा।
उँखर गुण गुमानी म अटके।4
बढ़े आदमी का वो आघू।
हवै जे गुलामी म अटके।5
मनुष आज बनगे ब्यपारी।
नता लाभ हानी म अटके।6
प्रलय हो जही खैरझिटिया।
सरी जग सुनामी म अटके।7
खैरझिटिया
बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122
ये जिनगी किसानी न अटके।
पवन संग पानी म अटके।।1
कहाँ नींद गदिया म आही।
जिया जान घानी म अटके।।2
दया अउ मया सत बरोये।
तिंखर बाण बानी म अटके।3
धरे धन रथे जेन जादा।
उँखर गुण गुमानी म अटके।4
बढ़े आदमी का वो आघू।
हवै जे गुलामी म अटके।5
मनुष आज बनगे ब्यपारी।
नता लाभ हानी म अटके।6
प्रलय हो जही खैरझिटिया।
सरी जग सुनामी म अटके।7
खैरझिटिया
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