Total Pageviews

Thursday, 30 April 2020

ग़ज़ल-अजय अमृतांसु

ग़ज़ल-अजय अमृतांसु

बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122    122    122    122

हवै कोड़िहा वो जमाना बताथे।
करै ना बुता बस बहाना बनाथे।

सुनै ना बताबे सही बात काँही।
अपन गोठ खाली उही ला सुहाथे।

पहावत सरी दिन अलाली करत गा।
गरीबी हवै जी तभो बैठ खाथे

नहीं समझै कतको बता बात वोला।
कहूँ बैठ खाबे जिनिस हा सिराथे ।

लपरहा हवै रोज मारे फुटानी।
कहाँ काम धंधा करे ला ग जाथे।

कहूँ कोनो कोती घुमाते नहीं तैं।
हवस बैठे काबर ग काया खियाथे।

धरे हावै गाड़ी ल सिरतो अनाड़ी।
तभे अंते तंते चला के धँसाथे।

अजय अमृतांशु

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...