गजल-चोवाराम वर्मा बादल
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
221 2122 ,221 2122
हें तीर तीर बैइठें मुसवा कुकुर बिलाई
पद पोगराय खातिरँ हें बनगे बहिनी भाई
बंदर करत हे बाँटा रोटी ल चान के गा
तीसर के फायदा हे दू बीच के लड़ाई
फोकट के पाय हावच तब गोठ ला करत हच
किम्मत तभे समझबे ले जोंड़ एको पाई
माँगत रथच मनौती अब्बड़ उपास रहिके
ए मन के सब भरम ला तैं छोड़ देना दाई
खा जेल के हवा अब आगी बहुत लगाये
नेतागिरी करे तैं ,खन जात पात खाई
मन पाप मा भरे हे गंगा कतेक जाबे
चिखला सनाये भीतर जमके जमे हे काई
कमजोर हच जी 'बादल' मन तोर हे बिमरहा
बाँही चढ़ा के काबर करथच बिकट चढ़ाई
गजलकार--चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
221 2122 ,221 2122
हें तीर तीर बैइठें मुसवा कुकुर बिलाई
पद पोगराय खातिरँ हें बनगे बहिनी भाई
बंदर करत हे बाँटा रोटी ल चान के गा
तीसर के फायदा हे दू बीच के लड़ाई
फोकट के पाय हावच तब गोठ ला करत हच
किम्मत तभे समझबे ले जोंड़ एको पाई
माँगत रथच मनौती अब्बड़ उपास रहिके
ए मन के सब भरम ला तैं छोड़ देना दाई
खा जेल के हवा अब आगी बहुत लगाये
नेतागिरी करे तैं ,खन जात पात खाई
मन पाप मा भरे हे गंगा कतेक जाबे
चिखला सनाये भीतर जमके जमे हे काई
कमजोर हच जी 'बादल' मन तोर हे बिमरहा
बाँही चढ़ा के काबर करथच बिकट चढ़ाई
गजलकार--चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़
No comments:
Post a Comment